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ग़ज़ल

212 212 212 212

जब से ख़ामोश वो सिसकियां हो गईं ।

दूरियां प्यार के दरमियाँ हो गईं ।।

कत्ल कर दे न ये भीड़ ही आपका ।

अब तो क़ातिल यहाँ बस्तियाँ हो गईं ।।

आप ग़मगीन आये नज़र बारहा ।

आपके घर में जब बेटियां हो गईं ।।

कैसी तक़दीर है इस वतन की सनम ।

आलिमों से खफ़ा रोटियां हो गईं ।।

फूल को चूसकर उड़ गईं शाख से ।

कितनी चालाक ये तितलियां हो गईं ।।

दर्दो गम पर…

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Added by Naveen Mani Tripathi on July 28, 2019 at 12:17am — 2 Comments

करगिल विजय

*करगिल विजय*

वज्रपात कर दुश्मन दल पर, सबक सिखाया वीरों ने

किया हिन्द का ऊँचा मस्तक, करगिल के रणधीरों ने

हर खतरे का किया सामना, लड़ी लड़ाई जोरों से

पग पीछे डरकर ना खींचे, बुझदिल और छिछोरों से l

धीर वीर दुर्गम चोटी पर, कसकर गोले दागे हैं

बंकर चौकी ध्वस्त किये सब, कायर कपूत भागे हैं

किये हवाई हमला भारी, धूर्त सभी थर्राए हैं

अरि मस्तक को कुचल-कुचल कर, अपना ध्वज लहराए हैं l

जब-जब दुस्साहस करता है, दुश्मन मारा जाता है

सरहद का…

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Added by डॉ छोटेलाल सिंह on July 26, 2019 at 7:37pm — 3 Comments

मिटाने फासले तुझको अगर है गुफ़्तगू कर ले (५५ )



मिटाने फासले तुझको अगर हैं  गुफ़्तगू कर ले 

सियेगा ज़ख्म कोई सोच मत ख़ुद ही रफ़ू कर ले 

**

मुक़ाबिल ख़ौफ़-ए-ग़म होजा अगर पीछा छुड़ाना है

ग़मों से भाग मत इक बार तू रुख़ रूबरू कर ले 

**

नहीं महफ़ूज़ गुलशन में कली कच्ची अभी तक भी 

बचा है कौन अब उसकी जो फ़िक्र-ए-आबरू कर ले 

**

कोई तो दर्द है दिल में लबों पर आ नहीं पाता …

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on July 26, 2019 at 5:30pm — 2 Comments

एक ग़ज़ल इस्लाह के लिये

उजड़ गई क्यों प्यार की महफिल,कुछ भी कहा नहीं जाता

मैं सच्चा था या था बुजदिल,कुछ भी कहा नहीं जाता

दिल का टूटना जिसे कहा था वह दुनिया का खेल था इक

अब आकर जो टूटा है दिल,कुछ भी कहा नहीं जाता

सीधा रस्ता मान रहे थे जिसको हम वो उलझन थी

खुद अपने सपनों के कातिल,कुछ भी कहा नहीं जाता

इक दिन मर जाना है सबको दिल में बैठ गई ये बात

कैसा रिश्ता कैसे मंजिल,कुछ भी कहा नहीं जाता

नैतिकता अपराध बन गई अधिकारों की धरती…

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Added by मनोज अहसास on July 25, 2019 at 10:26pm — 3 Comments

हर नफ़र इस शह्र का कुछ इस तरह बस जी रहा--------ग़ज़ल

2122 2122 2122 212

लड़खड़ाती साँस डगमग आस व्याकुल मन सदा

हर नफ़र इस शह्र का कुछ इस तरह बस जी रहा

अनगिनत सपने सजा कर, चाहते निंदिया नयन

रात भर बेचैनियों की, है ग़ज़ब देखो प्रथा

पत्थर-ओ-फ़ौलाद की दीवारें मुझ को चुभ रहीं

आप यदि अपने महल में खुश हैं फिर तो वाह वा

सृष्टि की हर एक रचना का अलग इक सत्य है

कैसे लिख दूँ एक है व्यवहार जल औ आग का

फूल की डाली कली से फुसफुसा कर कह गई

ओढ़ ले काँटे सुरक्षा का यही है…

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Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 25, 2019 at 4:00pm — 4 Comments

शेर लब से लब टहलकर कागजी हो जायेगा

बहर :- 2122-2122-2122-212

ख्याल लफ्जों से उतरकर शाइरी हो जाएगा ।।

शेर लब से लब टहलकर कागजी हो जायेगा।।

अब्र से शबभर गिरेंगी ओश की बूंदें मगर ।

दिन ही चढ़ते ये समां इक मस्खरी हो जाएगा।।

हाँ खुमार -ए-इश्क है बातें तो होगी रात दिन ।

जब भी उतरेगा ये सर से मयकशी हो जाएगा।।

उसके हक़ में है सियासत देखना तुम एक दिन।

जाने वो बोलेगा क्या क्या औऱ बरी हो जायेगा।।

दर्द-ओ-गम शुहरत मुहब्बत सब मिलेगा इश्क में ।

इश्क…

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Added by amod shrivastav (bindouri) on July 25, 2019 at 3:10pm — 3 Comments

प्रीत भरे दोहे .....

प्रीत भरे दोहे .....

अगर न आये पास वो, बढ़ जाती है प्यास।

पल में बनता प्रीत का , सावन फिर आभासll

छोड़ो भी अब रूठना , सावन रुत में तात।

बार बार आती नहीं ,भीगी भीगी रात।।

नैन नैन को दे गए , गुपचुप कुछ सन्देश।

अन्धकार में देह से , हुआ अनावृत वेश। ।।

यौवन की नादानियाँ , सावन के उन्माद।

अंतस के संवाद का ,अधर करें अनुवाद।।

याचक दिल की याचना , दिल ने की स्वीकार।

बंद नयन में हो गया , अधरों का…

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Added by Sushil Sarna on July 24, 2019 at 2:30pm — 3 Comments

बुलन्दी मेरे जज़्बे की - सलीम 'रज़ा' रीवा

1222 1222 1222 1222

बुलन्दी मेरे जज़्बे की ये देखेगा ज़माना भी

फ़लक के सहन में होगा मेरा इक आशियाना भी

.

अकेले इन बहारों का नहीं लुत्फ़-ओ-करम साहिब

करम फ़रमाँ है मुझ पर कुछ मिजाज़-ए-आशिक़ाना भी

.

जहाँ से कर गए हिजरत मोहब्बत के सभी जुगनू

वहां पे छोड़ देती हैं ये खुशियाँ आना जाना भी

.

बहुत अर्से से देखा ही नहीं है रक़्स चिड़ियों का

कहीं पेड़ों पे भी मिलता नहीं वो आशियाना भी

.

हमारे शेर महकेंगे किसी दिन उसकी रहमत से

हमारे साथ…

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Added by SALIM RAZA REWA on July 23, 2019 at 9:30pm — 1 Comment

धन के वे हकदार हैं , श्रम करते भरपूर

धन के वे हकदार हैं , श्रम करते भरपूर

कामचोर को क्यों मिलें लड्डू मोतीचूर ?



बैठे - बैठे खा रहे सरकारी दामाद

कर्म करें जो रात - दिन , मिले उन्हे अवसाद



कोई भी ऐसे नियम , कभी न आए रास

कर्मयोगियों को मिले , जिनसे केवल त्रास



विविध करों की भीड़ में , मेहनतकश मजबूर

टैक्स नहीं ' जनसेवकों ' पर , सम्पति भी भूर…





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Added by Usha Awasthi on July 23, 2019 at 8:30pm — 4 Comments

कुण्डलिया छंद-

- "कुण्डलिया छंद"-
=========================
तेरा मुखड़ा चाँद सा, उतर न जाए यान।
गंजा पति कहने लगा, बचना मेरी जान।।
बचना मेरी जान,दक्षिणी ध्रुव पर खतरा।
चिंता की है बात, उमरिया  तेरी  सतरा।।
एक जगह दो चाँद, एक  तेरा  इक मेरा।
मेरे  सिर का  एक, दूसरा  मुखड़ा  तेरा।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
-हरिओम श्रीवास्तव-

Added by Hariom Shrivastava on July 23, 2019 at 3:30pm — 2 Comments

है ख़ाक काम किया तूने जिंदगी के लिए।

है ख़ाक काम किया तूने जिंदगी के लिए।

मुनीर जब किया दीया न रौशनी के लिए।

बताई जो मेरी माँ ने वही तो मैं भी कही,

अ़मल कहाँ हुआ बस बात शायरी के लिए।

फ़िराग कब मिली जब ये है जिंदगी झमेला,

नसीब कब हुआ वो चाँद आशिकी के लिए।

ख्याल ढूँढ रखा जो बता सकूँ मैं तुझे,

रखी ये चीज़ जो है खास आप ही के लिए।

ख़ता कभी न हो ऐसा कहाँ लिखा है बता,

तभी हुई है कहानी ये आदमी के लिए ।

फ़जा तलाश जहाँ में कहीं यहाँ या…

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Added by मोहन बेगोवाल on July 23, 2019 at 12:00pm — 1 Comment

बृज क्षेत्र का सावन और उसका सौंदर्य

मदमस्त चलती हवाएं और कार में एफएम पर मल्हार सुनकर, पास बैठी मेरी सखी साथ में गाना गाने लगती है "सावन के झूलों ने मुझको बुलाया, मैं परदेशी घर वापस आया" गाते गाते उसका स्वर धीमा होता गया और फिर अचानक वो खामोश हो गयी, उसको खामोश देखकर मुझसे पूंछे बिना नही रहा गया। फिर वो पुरानी यादों में खोई हुई सी मुझसे कहती है कि कहाँ गुम हो गए सावन में पड़ने वाले झूले, एक समय था जब सावन माह के आरम्भ होते ही घर के आंगन में लगे पेड़ पर झूले पड़ जाते थे और किशोरिया गाने लगती थी..

कच्ची नीम की निबौरी, सावन…

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Added by DR. HIRDESH CHAUDHARY on July 22, 2019 at 10:00pm — 1 Comment

बीच समंदर कश्ती छोड़े धोका गर मल्लाह करे (५४)

बीच समंदर कश्ती छोड़े धोका गर मल्लाह करे 

मंज़िल कैसे ढूंढोगे जब रहबर ही गुमराह करे 

**

आज हुआ है इंसानों में प्यार मुहब्बत क्यों ग़ायब 

घर घर की चर्चा है अपने अपनों से ही डाह करे 

**

पानी मांग नहीं पाता है साँपों का काटा जैसे 

ऐसा काम भयानक अक़्सर मज़्लूमों की आह करे 

**

आज अक़ीदत और इबादत का जज़्बा गुम सा देखा 

दिल में जब…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on July 22, 2019 at 8:00pm — 2 Comments

प्रश्न-गुंथन

उर-विदारक उलझन

बर्फ़ीला एहसास

गूँजता-काँपता

एक सवाल

तुम्हा्रा स्नेह भरा संवेदित हृदय 

सुनता तो हूँ उसमें नित्य  नि:सन्देह

संगीत-सी तरंगित अपनी-सी धड़कन

फिर क्यूँ  तुम्हारे आने के बाद

मन के तंग घेरों में लगातार

सिर उठाए ठहरा रहता है हवा में

आदतन एक ख़याल 

एक अंगारी सवाल --

शीशे के गिलास का

हाथ से छूट जाना

तुम्हारे लिए

सामान्य तो नहीं है न ?

       …

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Added by vijay nikore on July 22, 2019 at 7:08am — 4 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
ऐसा हो तो फिर क्या होगा ....डॉ प्राची सिंह

मेरे मन की शांत नदी में अविरल बहती भाव लहर हो

मेरे गीतों से निस्सृत अक्षर-अक्षर का गुंजित स्वर हो

मैं तुलसी तुम मेरा आँगन, मैं श्वासों का अर्पित वंदन,

साथी-सखा-स्वप्न सब तुम ही, सच कह दूँ- मेरे ईश्वर हो !

 

आतुर आँखें आस लगाए राह निहारें लेकिन प्रियतम

साँझ ढले और तुम ना आओ, ऐसा हो तो फिर क्या होगा ?

धुआँ-धुआँ बन कर खो जाओ, ऐसा हो तो फिर क्या होगा ?

 

आँखों ही आँखों में दर्पण चीख़ उठेगा तुमको खोकर

एक हरारत होगी दिल में संग…

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Added by Dr.Prachi Singh on July 21, 2019 at 6:56pm — 2 Comments

एक और खंडहर

स्मृतियाँ आजकल

आए-गए अचानक

कांच के टुकड़ों-सी

बिखरी

चुभती

छोटी-से-छोटी घटना भी

हिलोर देती है हृदय-तल को

हँसी डूब जाती है

नई सृष्टि ...

नए संबंध आते हैं

पर अब दिन का प्रकाश

सहा नहीं जाता

सूर्योदय से पहले ही जैसे

हम बुला लेते हैं शाम

मंडराते रह जाते हैं पतंगों की तरह

प्यार के कुछ शब्द

धुंधले वातावरण में भीतर

नए प्यार के आकार की रेखाएँ

स्पष्ट नहीं…

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Added by vijay nikore on July 21, 2019 at 3:00pm — 2 Comments

तन्हाई में ...

तन्हाई में ...

होती है
बहुत ज़रूरत
तन्हाई में
तन्हा हाथ को
अपने से
एक हाथ की
बोलता रहे
जिसका स्पर्श
सदियों तक
अलसाई सी तन्हाई में

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on July 20, 2019 at 8:05pm — 6 Comments

"मुहब्बत की नहीं मुझसे " , प्रिये ! तुम झूठ मत बोलो |  (५३ )

एक गीत प्रीत का

===========

"मुहब्बत की नहीं मुझसे " , प्रिये ! तुम झूठ मत बोलो |

**

लता के सम लिपट जाना , नखों से पीठ खुजलाना |

अधर से चूम लेना मुख,नयन से कुछ कहा जाना |

कभी पहना दिया हमदम,गले में हार बाहों का

अचानक गोद में लेकर,तुम्हारा केश सहलाना |

हथेली से छुपा लेना, तुम्हारा नैन को मेरे

इशारे प्यार के थे या, शरारत भेद यह खोलो |

"मुहब्बत की नहीं मुझसे " , प्रिये ! तुम झूठ मत बोलो…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on July 20, 2019 at 4:00pm — 8 Comments

गीत - मैं तुमको अपनी सबसे प्यारी गजल समझता हूं।

तुम मुझको चाहे जो भी समझो लेकिन सुनो प्रिय।

मैं तुमको अपनी सबसे प्यारी गजल समझता हूं।।



तुम अमृत जैसी दुर्लभ हो, तुम गंगाजल सी पावन हो।

तुम खुशबू से लबरेज पवन, तुम बहका-बहका सावन हो।

तुम कलियों में कचनार प्रिय, तुम नील गगन में चंदा हो।

उर्वशी-मेनका से सुंदर, जो जग पूजे वो वृंदा हो।



उस जीवन दाता रब का मुझ पर फजल समझता हूं।

मैं तुमको अपनी सबसे प्यारी गजल समझता हूं।।१।।



सांसो की मधुमय हाला से मदहोश सदा हो जाता हूं।

इन नैनो की मधुशाला… Continue

Added by Amit Kumar "Amit" on July 19, 2019 at 6:09pm — 3 Comments

सजन रे झूठ मत बोलो ...

सजन रे झूठ मत बोलो ...

रहने दो

मेरे घावों पर

मरहम लगाने की कोशिश मत करो

मैं जानती हूँ

तुम्हारे मन में

मैं नहीं

सिर्फ मेरा तन है

जानती हूँ

रैन होते ही तुम आओगे

कुछ बहलाओगे कुछ फुसलाओगे

धीरे धीरे मैं बहल जाऊँगी

मोम सी पिघल जाऊँगी

न न करते

मर्यादाओं की दहलीज़ लाँघ जाऊँगी

भोर के साथ नशा उतर जाएगा

हर वादा बहक जाएगा

हर बार की तरह

मेरे मन में

फिर आने की कसक छोड़ जाओगे

हर इंतज़ार

बस…

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Added by Sushil Sarna on July 19, 2019 at 4:24pm — 1 Comment

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