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लहू बुज़ुर्गो का मिट्टी में बहाने वालो
दागदारोँ को सरेआम बचाने वालो
बच्चोँ के हाथ में शमशीर थमाने वालो
बात फूलोँ की तुम्हारे मुँह से नहीं अच्छी लगती

खुदा के नाम पे दुकानों को चलाने वालो
धर्म् के नाम पर इंसा को बाँट्ने वालो
जुल्म गरीबों पे दिन रात ढहाने वालो
बात फूलोँ की तुम्हारे मुँह से नहीं अच्छी लगती

शहर में अपनी हंकाई दिखाने वालो

आस्तिनों में नये शोहदों को पालने वालोँ
पराई बेटियों के गिरेबाँ में झाँकने वालो
बात फूलोँ की तुम्हारे मुँह से नहीं अच्छी लगती


ज़ुबाँ और दिल में अलग राज़ छुपाने वालो
सीधी चालोँ को भी उल्टा के चलाने वालो
इल्मवालोँ को भी महफिल से हकालने वालो
बात फूलोँ की तुम्हारे मुँह से नहीं अच्छी लगती


-प्रदीप भट्ट-मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by C.M.Upadhyay "Shoonya Akankshi" on August 6, 2019 at 8:14pm

सुन्दर 

Comment by प्रदीप देवीशरण भट्ट on August 5, 2019 at 6:05pm

हुज़ुर शुक्रिया

Comment by Samar kabeer on August 4, 2019 at 10:44am

जनाब प्रदीप जी आदाब,अच्छी रचना है,बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

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