एक ग़ज़ल।
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बँध गई हैं एक दिन से प्रेम की अनुभूतियाँ
बिक रही रैपर लपेटे प्रेम की अनुभूतियाँ
शाश्वत से हो गई नश्वर विदेशी चाल में
भूल बैठी स्वयं को ऐसे प्रेम की अनुभूतियाँ
प्रेम पथ पर अब विकल्पों के बिना जीवन नहीं
आज मुझ से, कल किसी से, प्रेम की अनुभूतियाँ
पाप से और पुण्य से हो कर पृथक ये सोचिए
लज्जा में लिपटी हैं क्यों ये प्रेम की अनुभूतियाँ
परवरिश बंधन में हो तो दोष किसको दीजिये
कैसे पहचानेंगे…
Posted on February 14, 2019 at 1:54pm — 4 Comments
हिलता है तो लगता ज़िंदा है साया
लेकिन चुप है, शायद गूँगा है साया
कहने में तो है अच्छा हमराही पर
सिर्फ़ उजालों में सँग होता है साया
सूरज सर पर हो तो बिछता पाँवों में
आड़ में मेरी धूप से बचता है साया
असमंजस में हूँ मैं तुमसे ये सुनकर
अँधियारे में तुमने देखा…
Posted on February 7, 2019 at 12:38pm — 3 Comments
दिखे हरसूँ अँधेरा है
कहाँ जाने सवेरा है
नहीं दिखता कहीं रस्ता
कुहासा है घनेरा है
हुनर सीखें नए कैसे
गुरु बिन आज चेरा है
चुराता जा रहा साँसें
समय है या लुटेरा है
बनाता है जो इंसा को
ये जीवन वो ठठेरा है
नहीं शिकवा है साँपों से
डसे जाता सपेरा है
नहीं घर रास है मुझको
दिलों में ही बसेरा है
तेरा क्या और क्या मेरा
चले माया का फेरा…
ContinuePosted on December 10, 2018 at 7:30pm — 5 Comments
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