देखे जो एक दिन का भी जीना किसान का
समझे तू कितना सख़्त है सीना किसान का
मिट्टी नहीं अनाज उगलती है तब तलक
जब तक मिले न उस में पसीना किसान का
बारिश की आस और कभी है उसी का डर
यूँ बीतता हर एक महीना किसान का
कब से उगा रहा है कपास अपने खेत में
कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का
समतल ज़मीन पर ये लकीरें अजब-ग़ज़ब
देखे ही बन रहा है करीना किसान का
है हिम्मती है…
Added by अजय गुप्ता 'अजेय on May 28, 2025 at 6:30pm — 8 Comments
लोग हुए उन्मत्ते हैं
बिना आग ही तत्ते हैं
गड्डी में सब सत्ते हैं
बड़े अनोखे पत्ते हैं
उतना तो सामान नहीं है
जितने महँगे गत्ते हैं
जितनी तनख़्वाह मिलती है
उस से ज्यादा भत्ते…
Added by अजय गुप्ता 'अजेय on May 23, 2025 at 12:15pm — 7 Comments
हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है
पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता है
दिल टूट गया है- मेरा था, आना न कोई समझाने को,
नुक़सान में अपने ख़ुश हूँ मैं, क्या और किसी का जाता है
संतोष सहज ही मिल जाए, तो कद्र नहीं होती इसकी,
संतोष की क़ीमत वो जाने, जो चैन गँवा कर पाता है
आज़ाद परिंदे पिंजरे में, जी पाएँ न पाएँ क्या मालूम,
जो धार से पीते है उनको,…
Added by अजय गुप्ता 'अजेय on May 15, 2025 at 6:00pm — 6 Comments
कौशिशें इतनी सी हैं बस शायरी की
आदमी सी फ़ितरतें हों आदमी की
हद जुनूँ की तोड़ कर की है इबादत
ख़ूँँ जलाकर अपना तेरी आरती की
गोलियों की ही धमक है हर दिशा में
और तू कहता है ग़ज़लें आशिक़ी की!
भूले-बिसरे लफ़्ज़ कुछ आये हवा में
कोई बातें कर रहा है सादगी की
इतनी लंबी हो गयी है ये अमावस
चाँद भी अब शक्ल भूला चांदनी की
बूँद मय की तुम पिलाओ वक़्ते-रुखसत
आखि़री ख्वा़हिश यही है ज़िन्दगी…
Added by अजय गुप्ता 'अजेय on October 7, 2020 at 5:00pm — 6 Comments
पल सुनहरी सुबह के खोयेंगें हम
और कितनी देर तक सोयेंगें हम।
रात काली तो कभी की जा चुकी
अब अँधेरा कब तलक ढोयेंगे हम।
जुगनुओं जैसा चमकना सीख लें
रोशनी के बीज फिर बोयेंगे…
Added by अजय गुप्ता 'अजेय on September 19, 2020 at 11:20pm — 16 Comments
एक ग़ज़ल।
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बँध गई हैं एक दिन से प्रेम की अनुभूतियाँ
बिक रही रैपर लपेटे प्रेम की अनुभूतियाँ
शाश्वत से हो गई नश्वर विदेशी चाल में
भूल बैठी स्वयं को ऐसे प्रेम की अनुभूतियाँ
प्रेम पथ पर अब विकल्पों के बिना जीवन नहीं
आज मुझ से, कल किसी से, प्रेम की अनुभूतियाँ
पाप से और पुण्य से हो कर पृथक ये सोचिए
लज्जा में लिपटी हैं क्यों ये प्रेम की अनुभूतियाँ
परवरिश बंधन में हो तो दोष किसको दीजिये
कैसे पहचानेंगे…
Added by अजय गुप्ता 'अजेय on February 14, 2019 at 1:54pm — 4 Comments
हिलता है तो लगता ज़िंदा है साया
लेकिन चुप है, शायद गूँगा है साया
कहने में तो है अच्छा हमराही पर
सिर्फ़ उजालों में सँग होता है साया
सूरज सर पर हो तो बिछता पाँवों में
आड़ में मेरी धूप से बचता है साया
असमंजस में हूँ मैं तुमसे ये सुनकर
अँधियारे में तुमने देखा…
Added by अजय गुप्ता 'अजेय on February 7, 2019 at 12:38pm — 3 Comments
दिखे हरसूँ अँधेरा है
कहाँ जाने सवेरा है
नहीं दिखता कहीं रस्ता
कुहासा है घनेरा है
हुनर सीखें नए कैसे
गुरु बिन आज चेरा है
चुराता जा रहा साँसें
समय है या लुटेरा है
बनाता है जो इंसा को
ये जीवन वो ठठेरा है
नहीं शिकवा है साँपों से
डसे जाता सपेरा है
नहीं घर रास है मुझको
दिलों में ही बसेरा है
तेरा क्या और क्या मेरा
चले माया का फेरा…
ContinueAdded by अजय गुप्ता 'अजेय on December 10, 2018 at 7:30pm — 5 Comments
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