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२२/२२/२२/२२
जनता पर हर वार सियासी
नेता की है हार सियासी।१।
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खून खराबा झेल रहा नित
होकर यह सन्सार सियासी।२।
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बाहर बाहर फूट का दिखना
भीतर जुड़ना तार सियासी।३।
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बस्ती में आने मत देना
कोई भी अंगार सियासी।४।
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घर फूटेगा हो जाने दो
बातें बस दो चार सियासी।५।
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देश का पहिया जाम पड़ा है
दौड़ रही बस कार सियासी।६।
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संकट का क्या अन्त करेगा
झूठा हर अवतार सियासी।७।
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दम घोटे है नित जनता…
Posted on January 6, 2021 at 10:17am — 12 Comments
मन में जब है प्यास रे जोगी
क्या लेना सन्यास रे जोगी।१।
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महलों जैसे सब सुख भोगे
क्यों कहता बनवास रे जोगी।२।
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व्यर्थ किया क्यों झूठे मद में
यौवन का मधुमास रे जोगी।३।
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हम से कहता वासना त्यागो
छिप के करता रास रे जोगी।४।
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खुद ही जब ये निभा न पाया
औरों से क्या आस रे जोगी।५।
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मत कह बन्धन मुक्त हुआ है
तू भी हम सा दास रे जोगी।६।
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तन का है या मन…
Posted on January 5, 2021 at 7:30am — 6 Comments
भूल मन पीड़ा विगत की गा रहा है
शुभ रहे नव वर्ष ये जो आ रहा है।१।
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आँख जब आँसू झराने को विवश थी
अन्त उस मौसम का होने जा रहा है।२।
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जिन्दगी होगी सुहानी आज से फिर
भोर का सूरज हमें समझा रहा है।३।
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बह न पाए फिर लहू इन्सानियत का
ये वचन मन को सभी के भा रहा है।४।
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पेट भर भूखे को रोटी नित मिलेगी
साथ यह उम्मीद साथी ला रहा है।५।
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बाँटना …
Posted on January 1, 2021 at 8:25am — 11 Comments
२२२२/२२२२/२२२२/२२२
धरती माता ने सारे दुख हलधर को दे डाले हैं
लेकिन उसने हँसते हँसते पेट अनेकों पाले हैं।१।
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उद्योगों को नीर बहुत है करने को उपयोग मगर
इसकी खेती को जल जीवन तो नदियों में नाले हैं।२।
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इसके हर साधन पर कब्जा औरों की मनमानी का
मौसम के हालातों जैसे हालात स्वयम् के ढाले हैं।३।
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खेती करके भूखा रहता हलधर देखो रोज यहाँ
व्यापारी के श्वानों के मुँह मक्खन भरे निवाले हैं।४।
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सरकारों ने पथ पथरीले जो शूलों के साथ दिये
उनके…
Posted on December 27, 2020 at 8:32pm — 6 Comments
मुसाफिर सर प्रणाम स्वीकार करें आपकी ग़ज़लें दिल छू लेती हैं
जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’ जी
प्रिय भ्राता धामी जी सप्रेम नमन
आपके शब्द सहरा में नखलिस्तान जैसे - हैं
शुक्रिया लक्ष्मण जी
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