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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Blog (492)

मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२२/२१२२/२१२२

**

आग में जिसके ये दुनिया जल रही है

वह सियासत कब तनिक निश्छल रही है।१।

*

पा लिया है लाख तकनीकों को लेकिन

और आदम युग में दुनिया ढल रही है।२।

*

क्लोन का साधन दिया विज्ञान ने पर

मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है।३।

*

मान मर्यादा मिटाकर पाप करती

(भूल जाती मान मर्यादा सदा वह)

भूख दौलत की जहाँ भी पल रही है।४।

*

गढ़ लिए मजहब नये कह बद पुरानी

पर न सीरत एक की उज्वल रही है।५।

*

दौड़ती नफरत हमेशा फिर रही…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 30, 2025 at 11:41am — 1 Comment

पहलगाम ही क्यों कहें - दोहे

रक्त रहे जो नित बहा, मजहब-मजहब खेल।

उनका बस उद्देश्य यह, टूटे सबका मेल।।

*

जीवन देना कर सके, नहीं जगत में कर्म।

रक्त पिपाशू लोग जो, समझेंगे क्या धर्म।।

*

छीन किसी के लाल को, जो सौंपे नित पीर।

कहाँ धर्म के मर्म को, जग में हुआ अधीर।।

*

बनकर बस हैवान जो, मिटा रहे सिन्दूर।

वही नीच पर चाहते, जन्नत में सौ हूर।।

*

मंसूबे उनके जगत, अगर गया है ताड़।

देते है फिर क्यों उन्हें, कहो धर्म की आड़।।

*

पहलगाम ही क्यों कहें, पग-पग मचा…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 30, 2025 at 11:26am — No Comments

दोहे -रिश्ता

सब को लगता व्यर्थ है, अर्थ बिना संसार।

रिश्तों तक को बेचता, इस कारण बाजार।।

*

वह रिश्ते ही सच  कहूँ, पाते  लम्बी आयु

जहाँ परखते हैं नहीं, दीपक को बन वायु।।

*

तोड़ो मत विश्वास की, कभी भूल से डोर

यह टूटा तो हो  गया, हर रिश्ता कमजोर।।

*

करे दम्भ लंकेश सा, कुल का पूर्ण विनाश।

ढके दम्भ की धूल ही, रिश्तों का आकाश।।

*

रिश्तों में  सब  ढूँढते, केवल स्वार्थ जुगाड़।

शेष बची है अब कहाँ, अपनेपन की आड़।।

*

सुख में सब वाचाल हैं, दुख में बेढब…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 16, 2025 at 8:50pm — 4 Comments

दोहा दसक- गाँठ





ढीली मन की गाँठ को, कुछ तो रखना सीख।

जब  चाहो  तब  प्यार से, खोल सके तारीख।१।

*

मन की गाँठे मत कसो, देकर बेढब जोर

इससे  केवल  टूटती, अपनेपन  की डोर।२।

*

दुर्जन केवल बाँधते, लिखके सबका नाम

लेकिन गाँठें खोलना, रहा संत का काम।३।

*

छोटी-छोटी बात जब, बनकर उभरे गाँठ

सज्जन को वह पीर दे, दुर्जन को दे ठाँठ।४।

*

रिश्तो को कुछ धूप दो, मन की गाँठे खोल

उनको मत मजबूत कर, कड़वी बातें बोल।५।

*

बातें कहकर खोल दे, बाँध न रहकर मौन

मन की…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 25, 2025 at 11:31pm — 2 Comments

दोहा दसक- झूठ



अगर झूठ को बोलिए, ठोक पीट सौ बार

सच से बढ़कर मानता, उसको भी संसार।१।

*

रहा झूठ से  कौन  है, वंचित कहो अबोध

भले न बोला हो गया, होकर कभी सबोध।२।

*

होता मुख पर झूठ के, नहीं तनिक भी नूर

जीवन पाता  अल्प  ही, पर  जीता भरपूर।३।

*

जीवन में बोला नहीं, कभी एक भी झूठ

हरा पेड़ तो  छोड़िए, मिला न कोई ठूँठ।४।

*

होता सच में जो नहीं, वही झूठ का काम

भले न बोला पर लिखा, धर्मराज के नाम।५।

*

भोला  देता  ताव  है,  करके  ऊँची  मूँछ

धूर्त…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 8, 2025 at 7:45am — 4 Comments

दोहा दसक -वाणी

दोहा दसक -वाणी

**************

वाणी का विष लोक में, करे बहुत उत्पात

वाणी पर संयम रखो, सच कहते थे तात।१।

*

वाणी  में  संयम  नहीं, अब  तो संत कुसंत

जग में कैसे हो भला, फिर विवाद का अंत।२।

*

वाणी का रहता हरा, भरता तन का घाव

वाणी ही पुल मेल का, वाणी नदी दुराव।३।

*

वाणी जो कटुता भरी, विष के तीर समान

वो तो करती नित्य  ही, रिश्तों पर संधान।४।

*

सुन्दर वाणी रख सदा, भले न सुन्दर देह

देह न मन में नित बसे, वाणी करती…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 6, 2025 at 10:25pm — 2 Comments

दोहा दसक - सपने

यूँ तो जीवन हर समय, मृगतृष्णा के पास

सच हो जाते स्वप्न पर, करके सत्य प्रयास।१।

*

देख दिवस में सप्न जो, करता खूब प्रयत्न

वह उनको  साकार  कर, पा  लेता है रत्न।२।

*

जिसने जीवन में किया, सपने को कर्तव्य

टूटा करता  वह  नहीं, बन  जाता है भव्य।३।

*

स्वप्न बने उद्देश्य  जब, करना  पड़ता कर्म

जीवन में सबसे प्रथम, समझ इसे ही धर्म।४।

*

निज जीवन के स्वप्न जो, पर हित में दे त्याग

मान उसे  सबसे  अधिक, सपनों से अनुराग।५।

*

सपने …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 6, 2025 at 8:35am — 2 Comments

कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल

१२२/१२२/१२२/१२२

****

कभी तो स्वयं में उतर ढूँढ लेना

जहाँ ईश रहते वो घर ढूँढ लेना।१।

*

हमेशा दवा ही नहीं काम आती

कहीं तो दुआ का असर ढूँढ लेना।२।

*

कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में

कि बच्चो बड़ों की उमर ढूँढ लेना।३।

*

तलाशे बहुत वट सदा काटने को

कभी छाँव को भी शज़र ढूँढ लेना।४।

*

हमेशा लड़ा ले सिकंदर की चाहत

कभी बनके पोरस समर ढूँढ लेना।५।

*

मिलेगा नहीं कुछ ये नीदें चुराकर

हमें फर्क किससे क़सर…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 3, 2025 at 12:02pm — 4 Comments

शंका-दोहा अष्टक-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

शंका-दोहा अष्टक

***

शंका दुख को जन्म दे, शंका मतकर व्यर्थ।

घर-बाहर इससे सदा, होता सकल अनर्थ।१।

*

आसपास जब-जब बढ़े, शंकाओं के शूल।

असमय जाते सूख तब, सुख के सारे फूल।२।

*

शंका नामक रोग  से, तन-मन जल भंगार।

औषध पाया खोज कब, इस का ये संसार।३।

*

लघुतम रहे विवाद को, शंका नित दे तूल।

संतों को असहज रहे, दुर्जन को अनुकूल।४।

*

शंका उस मन जन्म ले, जिसमें रहता खोट।

सदा  रक्तरंजित   रहे,  इससे  पाकर  चोट।५।

*

शंका बैरी चैन…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 25, 2025 at 7:40am — No Comments

गणतंत्र ( दोहा सप्तक ) -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'



जन्म दिवस गणतंत्र का, मना रहे हम आज

रखने  को  सौगंध  खा, संविधान  की लाज।।

*

नाम रखा गणतंत्र गह, राजतंत्र की रीत

कैसे हो गण का भला, ऐसे में कह मीत।।

*

संविधान  की  पीठ  ने, रचे  बहुत  से स्वप्न

गण तक पहुँचे वो नहीं, तंत्र कर गया दफ्न।।

*

पथ में बिखरे शूल सब, यदि ले तंत्र समेट

जनसेवक से हो  नहीं, जनता का आखेट।

*

आठ दशक से जप रहे, गण हैं जिसका मंत्र

देता रोक  स्वराज  वह, क्यों पगपग पर तंत्र।।

*

गण की गण…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 25, 2025 at 7:30am — No Comments

नए साल में - गजल -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

पूछ सुख का पता फिर नए साल में

एक निर्धन  चला  फिर नए साल में।१।

*

फिर वही रोग  संकट  वही दुश्मनी

क्या हुआ है नया फिर नए साल में।२।

*

बात यूँ तो  विगत भी रही अनसुनी

किसने माना कहा फिर नए साल में।३।

*

लोग नफरत  पहन  दौड़ते जा रहे

जब वही है हवा फिर नए साल में।४।

*

मैं न स्वागत  न  तू दोस्ती कर रहा

कौन सीखा बता फिर नए साल में।५।

*

मौलिक/अप्रकाशित

लक्ष्मण धामी…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 12, 2025 at 7:45am — No Comments

भाग्य और गर्भ काल ( दोहा दसक)-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

चाहे करता  भाग्य  ही, जीवन भर संयोग

उच्च कर्म से भाग्य भी, बदला करते लोग।१।

*

सद्कर्मों की  चाल  से, माता देकर त्राण

गर्भकाल में जीव का, करे भाग्य निर्माण।२।

*

कर्म भाग्य  दोनों  रहें, जब  बन पूरक रोज

पाते दुख के गाँव में, मानव तब सुख खोज।३।

*

सदा कर्म ही जीव का, देता है फल जान

उद्यत लेकिन कर्म को, भाग्य करे नादान।४।

*

गर्भकाल है स्वर्ग या, जीवन से बढ़ नर्क

या लेखा है भाग्य का, अपने अपने तर्क।५।

*

गर्भ काल सब…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 8, 2025 at 1:30pm — No Comments

दोहा दसक- बेटी -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

बेटी  को  बेटी  रखो, करके  इतना पुष्ट

भीतर पौरुष देखकर, डर जाये हर दुष्ट।१।

*

बेटा बेटा  कह  नहीं, बेटी  ही  नित बोल

बेटा कहके कर नहीं, कम बेटी का मोल।२।

*

करती दो घर  एक  है, बेटी पीहर छोड़

कहे पराई पर उसे, जग की रीत निगोड़।३।

*

कर मत कच्ची नींव पर, बेटी का निर्माण

होता नहीं  समाज  का, ऐसे जग में त्राण।४।

*

बेटी को मत दीजिए, अबला है की सीख

कर्म उसी के गेह  से, रहे चाँद तक चीख।५।

*

बेटों को भी दीजिए, कुछ ऐसे सँस्कार

बेटी…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 7, 2025 at 1:27pm — No Comments

दोहा सप्तक - नाम और काम- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

नाम भले पहचान  है, किन्तु बड़ा है कर्म

है जीवन में वो सफल, जो समझा ये मर्म।१।

*

महिमा कहते कर्म की, जग में संत कबीर

नाम-नाम ही जो रटे, समझो सिर्फ फकीर।२।

*

नामीं द्विज भी रह गये, कर्म फला रैदास

पुण्य कर्म  आशीष  को, गंगा  माई पास।३।

*

केवल कर्म बखानता, जग में है इतिहास

सूरज  जैसा  कर्म  ही, देता  नाम उजास।४।

*

दबे कोख इतिहास की, कर्महीन जो गाँव

किन्तु उजागर हो गये, सदा कर्म के पाँव।५।

*

लिखे कर्म की लेखनी, चमक चाँदनी…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 6, 2025 at 5:40pm — No Comments

शीत- दोहा दसक-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

शीत लहर की चोट से, जीवन है हलकान

आँगन जले अलाव तो, पड़े जान में जान।१।

*

मौसम का क्या  हाल  है, पर्वत  पूछे नित्य

ठिठुर चाँद सा हो गया, क्या बोले आदित्य।२।

*

धुन्ध फैलती जा रही, ठिठुरन  है चहुँ ओर

गर्म लहू का देह में, शिथिल पड़ गया जोर।३।

*

चला न पलभर सिर्फ रख, एसी-कूलर बंद

तन कहता है खूब ले, कम्बल का आनन्द।४।

*

फैला चादर  धुन्ध  की, हो मौसम गम्भीर

कहे सुखाओ रे! इसे, मिलकर सूर्य समीर।५।

*

पीते गटगट  चाय  सब, पहने  मोजे…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 4, 2025 at 2:23pm — No Comments

नये साल में-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

212 /212/ 212 /212 

*

बच पवन  से  सँभलना  नये  साल में

हमको दीपक सा जलना नये साल में।१।

*

मेट  अन्याय  और  कालिमा  चाहिए

न्याय  विश्वास  फलना  नये  साल में।२।

*

छोड़ना  है  हमें  देश  हित में सहज

नफरतों  से   उबलना  नये  साल में।३।

*

सिर्फ रिश्तों की खातिर भुला द्वेष को

मन से मन तक टहलना नये साल में।४।

*

होगा उन्नत बहुत देश अपना तभी

सब जिएँ छोड़ छलना नये साल में।५।

*

कर रहा…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2024 at 8:56am — No Comments

राम पाना कठिन शेष जीवन में पर -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२/२१२/२१२/२१२

*

जो चले कर्म में सिलसिला राम का

लौट आये सनम काफ़िला राम का।१।

*

एक विनती  करें भोले  शंकर से हम

देश ही क्या जगत हो जिला राम का।२।

*

धन्य जीवन  हमारा  भी होता बहुत

देख लेते अगर मुख खिला राम का।३।

*

जो भी वंचित  सदा  दुख  रहे भोगते

हैं सुखी साथ जिनको मिला राम का।४।

*

दोष मढ़ते  बहुत  वो  अधम राम पर

भेद पाये  नहीं  जो  किला  राम का।५।

*

राम पाना कठिन शेष जीवन में पर…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 29, 2024 at 2:00pm — No Comments

जिन्दगी भर बे-पता रहना -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२२/२१२२/२

*

जिन्दगी  भर  बे-पता  रहना

हर जुबा पर हाँ लिखा रहना।१।

*

हर तरफ मौसम विषम होंगे

बस कुटज सा तू जगा रहना।२।

*

सन्त बिच्छू की कथा कहती

जात  में  अपनी  बना रहना।३।

*

झूठ चाहे चल रहा जग भर

सत्य मन  तू  बोलता रहना।४।

*

माँ पिता के छिन गये साये

सीख उससे बे-ख़ुदा रहना।५।

*

धीरता  कुछ   सीख  धरती से

हर समय क्या जलजला रहना।६।

*

क्या है करना  बेबफा जग…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 28, 2024 at 2:00pm — No Comments

दोहा पंचक - राम नाम

तनमन कुन्दन कर रही, राम नाम की आँच।

बिना राम  के  नाम  के,  कुन्दन-हीरा  काँच।१।

*

तपते दुख की  धूप  में, जब जीवन के पाँव।

तन-मन तब शीतल करे, राम नाम की छाँव।२।

*

राम नाम की नित सुधा, पीते हैं जो लोग।

सन्तापित  होते  नहीं, चाहे दुख का योग।३।

*

चाहे दाता  राम  पर, मिलता  सब कर कर्म।

जो समझा इस बात को, करता नहीं अधर्म।४।

*

राम नाम का मर्म जो, समझ हुआ निष्काम।

उसको लगती भोर सी, ढलती जीवन शाम।५।

*

मौलिक/अप्रकाशित

लक्ष्मण…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 15, 2024 at 10:57pm — 2 Comments

दोहे-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

क्षणभंगुर है आजकल, शीशे सा संकल्प।

राम सरीखा कौन अब, सारे मन के अल्प।।

*

जो आगन को लड़  रहे, भाई से हर शाम

कमतर देखो लग रहा, उन्हें राम का काम।।

*

सूपनखा की कट गयी, लछमन हाथों नाक

बनी रही फिर भी वही, तीन पात का ढाक।।

*

जनमर्यादा  को  करे, कौन  राम सा त्याग

ढूँढा करते किन्तु सब, राम काज में दाग।।

*

दण्ड लखन को मृत्यु का, सीता को वनवास

सहा न क्या-क्या राम…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 27, 2024 at 8:57am — No Comments

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