For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पहलगाम ही क्यों कहें - दोहे

रक्त रहे जो नित बहा, मजहब-मजहब खेल।
उनका बस उद्देश्य यह, टूटे सबका मेल।।
*
जीवन देना कर सके, नहीं जगत में कर्म।
रक्त पिपाशू लोग जो, समझेंगे क्या धर्म।।
*
छीन किसी के लाल को, जो सौंपे नित पीर।
कहाँ धर्म के मर्म को, जग में हुआ अधीर।।
*
बनकर बस हैवान जो, मिटा रहे सिन्दूर।
वही नीच पर चाहते, जन्नत में सौ हूर।।
*
मंसूबे उनके जगत, अगर गया है ताड़।
देते है फिर क्यों उन्हें, कहो धर्म की आड़।।
*
पहलगाम ही क्यों कहें, पग-पग मचा फसाद।
किससे पाना चाहते, समझो तो ये दाद।।
*
मौलिक अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

Views: 73

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 13, 2025 at 10:51pm

आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, पहलगाम की जघन्य आतंकी घटना पर आपने अच्छे दोहे रचे हैं. उस पर बहुत सुन्दर सुझाव आदरणीय सौरभ जी दे चुके हैं. सच है दोहे को प्रभावकारी बनाने के लिए एक बार पढ़कर कुछ परिमार्जन किया ही जा सकता है. सामयिक घटना पर दोहे रचने के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर   


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 13, 2025 at 2:16pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, 

जिन परिस्थितियों में पहलगाम में आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया गया, वह लोमहर्षक था. 


आपकी दोहावली के लिए हार्दिक साधुवाद. 

इसके पूर्व अपनी जो समझ बनी है वह अवश्य ही आपके माध्यम से पटल पर साझा करना चाहूँगा. 

१. छंदों के पदों (पंक्तियों) के चरणों की बुनावट अर्थवान हो तो उसकी संप्रेषणीयता बढ़ जाती है.

२. पदों (पंक्तियों) या उनके चरणों के लिए गद्यात्मक वाक्य आम तौर पर तो संभव नहीं हो पाते, फिर भी वाक्य-विन्यास के लिए शब्दों के स्थान उचित हों, ताकि ऐसी पंक्तियाँ यथोचित रूप से संप्रेषणीय हों

३. पंक्तियों में इस तरह की तार्किक बुनावट के बावजूद छंद विधान को लेकर कोई समझौता स्वीकार्य नहीं होती. 

अब उपर्युक्त परिप्रेक्ष्य में आपके छंदों को देखा जाय - 

रक्त रहे जो नित बहा, मजहब-मजहब खेल। ...  बहा रहे जो रक्त नित ... प्रथम चरण को यदि ऐसे कहें तो बात अधिक सहजता से आएगी
उनका बस उद्देश्य यह, टूटे सबका मेल।।    ..    उनका तो उद्देश्य यह
*
जीवन देना कर सके, नहीं जगत में कर्म।      ...  जीवन-रक्षा का कभी, नहीं किया जब कर्म 
रक्त पिपाशू लोग जो, समझेंगे क्या धर्म।।   ....    रक्त-पिपासु रहे सदा, क्या समझेंगे धर्म ?   पिपाशू नहीं इसकी शुद्ध अक्षरी पिपासु है. 

इसी तरह अन्य छंदों पर काम किया जा सकता है, आदरणीय. 

शुभ-शुभ

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 5, 2025 at 12:06pm

​अच्छे दोहे लगे आदरणीय धामी जी। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
7 hours ago
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
13 hours ago
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service