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१२२/१२२/१२२/१२२
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कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के
सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१।
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महल को तिजोरी रहा खोल सिक्के
कहे झोपड़ी का नहीं मोल सिक्के।२।
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लगाता है सबके सुखों को पलीता
बना रोज रिश्तों में क्यों होल सिक्के।३।
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रहें दूर या फिर निकट जिन्दगी में
बजाता है सबको बना ढोल सिक्के।४।
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सिधर भी गये तो न बक्शेंगे हमको
रहे जिन्दगी में जो ये झोल सिक्के।५।
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नहीं पेट ताली …
Posted on July 10, 2025 at 3:15pm
अच्छा लगता है गम को तन्हाई में
मिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।
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दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर
क्या डर लगता है तम को तन्हाई में।२।
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छत पर बैठा मुँह फेरे वह खेतों से
क्या सूझा है मौसम को तन्हाई में।३।
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झील किनारे बैठा चन्दा बतियाने
देख अकेला शबनम को तन्हाई में।४।
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घाव भले भर पीर न कोई मरने दे
जा तू समझा मरहम को तन्हाई में।५।
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साया भी जब छोड़ गया हो तब यारो
क्या मिलना था बेदम को तन्हाई में।६।
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बीता वक्त…
Posted on July 1, 2025 at 10:49pm — 2 Comments
१२२/१२२/१२२/१२२
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जुड़ेगी जो टूटी कमर धीरे-धीरे
उठाने लगेगा वो सर धीरे-धीरे।१।
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दिलों से मिटेगा जो डर धीरे-धीरे
खुलेंगे सभी के अधर धीरे -धीरे।२।
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नपेंगी खला की हदें भी समय से
वो खोले उड़ेगा जो पर धीरे -धीरे।३।
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भले द्वेष का विष चढ़े तीव्रता से
करेगी सुधा मित्र असर धीरे-धीरे।४।
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उलझती हैं राहें अगर ज़िन्दगी की
सुलझती भी हैं वे मगर धीरे-धीरे।५।
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भला क्यों है जल्दी मनुज को ही ऐसी
हुए देव भी …
Posted on June 25, 2025 at 11:40pm — 4 Comments
221/2121/1221/212
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कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर
होगी कहाँ से दोस्ती आँखें तरेर कर।।
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उलझे थे सब सवाल ही आँखें तरेर कर
देता रहा जवाब भी आँखें तरेर कर।।
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देती कहाँ सुकून ये राहें भला मुझे
पायी है जब ये ज़िंदगी आँखें तरेर कर।।
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माँ ने दुआ में ढाल दी सारी थकान भी
देखी जो बेटी लौटती आँखें तरेर कर।।
*…
Posted on June 24, 2025 at 9:28pm — 2 Comments
सादर आभार आदरणीय
अपने आतिथ्य के लिए धन्यवाद :)
मुसाफिर सर प्रणाम स्वीकार करें आपकी ग़ज़लें दिल छू लेती हैं
जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’ जी
प्रिय भ्राता धामी जी सप्रेम नमन
आपके शब्द सहरा में नखलिस्तान जैसे - हैं
शुक्रिया लक्ष्मण जी
हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी!आपने मुझे इस क़ाबिल समझा!
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