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तीर नज़रों का उनका चलाना हुआ,
और दिल का इधर छटपटाना हुआ।
हाल नादान दिल का न पूछे कोई,
वो तो खोया पड़ा आशिक़ाना हुआ।
ये शब-ओ-रोज़, आब-ओ-हवा आसमाँ,
शय अज़ब इश्क़ है सब सुहाना हुआ।
अब नहीं बाक़ी उसमें किसी की जगह,
जिनकी यादों का दिल आशियाना हुआ।
क्या यही इश्क़ है, रूठा दिलवर उधर,
और दुश्मन इधर ये जमाना हुआ।
जो परिंदा महब्बत का दिल में बसा,
बाग़ उजड़ा तो वो बेठिकाना…
Posted on September 30, 2019 at 5:49pm — 4 Comments
असबंधा छंद "हिंदी गौरव
भाषा हिंदी गौरव बड़पन की दाता।
देवी-भाषा संस्कृत मृदु इसकी माता।।
हिंदी प्यारी पावन शतदल वृन्दा सी।
साजे हिंदी विश्व पटल पर चन्दा सी।।
हिंदी भावों की मधुरिम परिभाषा है।
ये जाये आगे बस यह अभिलाषा है।।
त्यागें अंग्रेजी यह समझ बिमारी है।
ओजस्वी भाषा खुद जब कि हमारी है।।
गोसाँई ने रामचरित इस में राची।
मीरा बाँधे घूँघर पग इस में नाची।।
सूरा ने गाये सब पद इस में प्यारे।
ऐसी थाती पा कर हम सब से…
Posted on September 14, 2019 at 9:10am — 3 Comments
गुरु पूर्णिमा के विशेष अवसर पर:-
बह्र:- 2212*4
देते हमें जो ज्ञान का भंडार वे गुरु हैं सभी,
दुविधाओं का सर से हरें जो भार वे गुरु हैं सभी।
हम आ के भवसागर में हैं असहाय बिन पतवार के,
जो मन की आँखें खोल कर दें पार वे गुरु हैं सभी।
ये सृष्टि क्या है, जन्म क्या है, प्रश्न सारे मौन हैं,
जो इन रहस्यों से करें निस्तार वे गुरु हैं सभी।
छंदों का सौष्ठव, काव्य के रस का न मन में भान…
ContinuePosted on July 16, 2019 at 3:30pm — 2 Comments
ग़ज़ल (वो जब भी मिली)
बह्र-ए-वाफ़िर मुरब्बा सालिम (12112*2)
वो जब भी मिली, महकती मिली,
गुलाब सी वो, खिली सी मिली।
हो गगरी कोई, शराब की ज्यों,
वो वैसी मुझे, छलकती मिली।
दिखाई पड़ीं, वे जब भी मुझे,
उन_आँखों में बस, खुमारी मिली।
लगाने की दिल, ये कैसी सज़ा,
वफ़ा की जगह, जफ़ा ही मिली।
कभी वो मुझे,बताए ज़रा,
जो मुझ में उसे, ख़राबी मिली।
गिला भी किया, ज़रा भी अगर,
पुरानी…
Posted on July 14, 2019 at 3:30pm — 5 Comments
आदरणीय
श्री बासुदेव अग्रवाल 'नमन' जी,
सादर अभिवादन,
यह बताते हुए मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है कि ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार में विगत माह आपकी सक्रियता को देखते हुए OBO प्रबंधन ने आपको "महीने का सक्रिय सदस्य" (Active Member of the Month) घोषित किया है, बधाई स्वीकार करें | प्रशस्ति पत्र उपलब्ध कराने हेतु कृपया अपना पता एडमिन ओ बी ओ को उनके इ मेल admin@openbooksonline.com पर उपलब्ध करा दें | ध्यान रहे मेल उसी आई डी से भेजे जिससे ओ बी ओ सदस्यता प्राप्त की गई है |
हम सभी उम्मीद करते है कि आपका सहयोग इसी तरह से पूरे OBO परिवार को सदैव मिलता रहेगा |
सादर ।
आपका
गणेश जी "बागी"
संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक
ओपन बुक्स ऑनलाइन
आपका अभिनन्दन है.
ग़ज़ल सीखने एवं जानकारी के लिए |
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