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तुम मेरे ख़ाबों के गुलशन में मिलो------ग़ज़ल

2122 2122 2122 212

तुम मेरे ख़ाबों के गुलशन में रहो हक़ है तुम्हें

मुझ से जब चाहो ख़यालों में मिलो हक़ है तुम्हें

तुम को तकने की ख़ता, नींदें गँवाने की सज़ा

बदला आँखों से मेरी ऐसे ही लो हक़ है तुम्हें

बस तुम्हारा नाम हर पल जप रहा है मेरा दिल

मेरे सीने से लगो तुम भी सुनो हक़ है तुम्हें

कल्पना के व्योम में जितना मेरा विस्तार है

वह क्षितिज पूरा तुम्हारा, तुम उड़ो हक़ है तुम्हें

शब्द सारे भाव हर लय ताल हैं तुम से मेरे

सो सदा पंकज-ग़ज़ल में तुम सजो हक़ है तुम्हें

मौलिक अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 10, 2019 at 8:44am

आदरणीय विजय भाई साहब बहुत बहुत आभार

Comment by vijay nikore on August 9, 2019 at 4:01am

अच्छी गज़ल के लिए बधाई, मित्र पंकज जी

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 8, 2019 at 7:12pm

आदरणीय बाऊजी प्रणाम

ग़ज़ल को आशीष प्रदान करने के लिए सादर आभार, वैसे भी यह सब आपकी ही देन है

Comment by Samar kabeer on August 8, 2019 at 3:44pm

अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 7, 2019 at 12:33pm

आदरणीय लक्ष्मण सर सादर आभार

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 7, 2019 at 12:33pm

आदरणीय उपाध्याय जी बहुत बहुत आभार

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 7, 2019 at 5:31am

आ. भाई पंकज जी , सुंदर गजल हुयी है। हार्दिक बधाई।

Comment by C.M.Upadhyay "Shoonya Akankshi" on August 6, 2019 at 6:56pm

"शब्द सारे भाव हर लय ताल हैं तुम से मेरे

सो सदा पंकज-ग़ज़ल में तुम सजो हक़ है तुम्हें"
अति सुन्दर | 

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