For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उस मुसाफिर के पाँव मत बाँधो - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२२/१२१२/२२
*
सूनी आँखों  की  रोशनी बन जा
ईद आयी सी फिर खुशी बन जा।१।
*
अब भी प्यासा हूँ इक सदी बीती
चैन  पाऊँ  कि  तू  नदी  बन  जा।२।
*
हो गया जग  ये  शीत का मौसम
धूप सी  तू  तो  गुनगुनी  बन जा।३।
*
मौत आकर खड़ी है द्वार अपने
एक पल को ही ज़िन्दगी बन जा।४।
*
मुग्ध कर दू फिर से हर महफिल
आ के अधरों  पे  शायरी बन जा।५।
*
इस नगर  में  तो  सिर्फ  मसलेंगे
फूल जाकर  तू  जंगली  बन जा।६।
*
काम आया  न  जो  नदी होकर
शाप उसको  है  तिश्नगी बन जा।७।
*
उस 'मुसाफिर' के पाँव मत बाँधो
जिस ने बोला  है  चाँदनी बन जा।८।
*
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

Views: 226

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 14, 2025 at 8:41am

आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और असीम उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।

आपको दो शेर बहुत अच्छे लगे, लेखन सफल हुआ।

आपकी टिप्पणी देर से देख पाया इस विलम्ब के लिए खेद है।

आ. भाई समर जी द्वारा सुझाए सुझाव मूल गजल में कर लिए हैं। 

बेबहर मिसरे को इस प्रकार किया था मार्गदर्शन करें-

'मुग्ध कर दूँगा फिर से हर महफिल'


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 28, 2025 at 11:56am

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,

आपकी प्रस्तुति के लिए धन्यवाद और बधाइयाँ. 

वैसे, कुछ मिसरों को लेकर आदरणीय समर साहब ने बेहतर सुझाव दिये हैं और एक मिसरा के बेबहर होने की बात उन्होंने कही है. उसका आपने संज्ञान लिया ही होगा.

निम्नलिखित शेर के लिए तो मैं बार-बार दाद दूँगा - 

इस नगर  में  तो  सिर्फ  मसलेंगे
फूल जाकर  तू  जंगली  बन जा .. .. इस शेर का मेयार बहुत ऊँचा है. अलबत्ता, जंगली का विन्यास २१२ ही होगा. सो मिसरा बहर में है.  

या, फिर मकता..

उस 'मुसाफिर' के पाँव मत बाँधो
जिस ने बोला  है चाँदनी बन जा ...  .. वाह .. बहुत नाजुक कहन है. ’पहलू में बैठे रहें’ को किस अंदाज में आपने नकारा है. बहुत खूब. 

हार्दिक बधाइयाँ, आदरणीय, और शुभकामनाएँ  

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2023 at 8:51pm

आ. सम्पादक महोदय, सादर अभिवादन। गजल को फीचर श्रेणी प्रदान करने के लिए हार्दिक आभार।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2023 at 8:04pm

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह व मार्गदर्शन के लिए आभार।

Comment by Samar kabeer on December 19, 2023 at 3:38pm

जनाब लक्ष्मण धामी जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें I 

'ईद आयी सी फिर खुशी बन जा'

इस मिसरे का वाक्य विन्यास ठीक नहीं इसे यूँ कर सकते हैं :-

'ईद जैसी ही तू ख़ुशी बन जा '

'चैन  पाऊँ  कि  तू  नदी  बन  जा'

इस मिसरे को यूँ कहना उचित होगा :-

'तू मेरे वास्ते नदी बन जा '

'मुग्ध कर दू फिर से हर महफिल'

ये मिसरा बह्र में नहीं है , देखें I 

'फूल जाकर  तू  जंगली  बन जा '

इस मिसरे में मेरी जानकारी के अनुसार "जंगली" शब्द का वज़्न 22 होता है I 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"कुण्डलिया छंद  _____ सावन रिमझिम आ गया, सड़कें बनतीं ताल। पैदल लोगों का हुआ, बड़ा बुरा है…"
1 hour ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"कुण्डलिया * पानी-पानी  हो  गया, जब आयी बरसात। सूरज बादल में छिपा, दिवस हुआ है रात।। दिवस…"
12 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"रिमझिम-रिमझिम बारिशें, मधुर हुई सौगात।  टप - टप  बूंदें  आ  गिरी,  बादलों…"
19 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"हम सपरिवार बिलासपुर जा रहे है रविवार रात्रि में लौटने की संभावना है।   "
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"कुंडलिया छंद +++++++++ आओ देखो मेघ को, जिसका ओर न छोर। स्वागत में बरसात के, जलचर करते शोर॥ जलचर…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"कुंडलिया छंद *********** हरियाली का ताज धर, कर सोलह सिंगार। यौवन की दहलीज को, करती वर्षा पार। करती…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम्"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण भाई अच्छी ग़ज़ल हुई है , बधाई स्वीकार करें "
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"आदरणीय सुरेश भाई , बढ़िया दोहा ग़ज़ल कही , बहुत बधाई आपको "
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीया प्राची जी , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"सभी अशआर बहुत अच्छे हुए हैं बहुत सुंदर ग़ज़ल "
Wednesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service