बह्र : १२२ १२२ १२२ १२२
सनम छोड़ जाते हैं यादों के मेले
हम उनके बिना भी रहे कब अकेले
मैं समझाऊँ कैसे ये चारागरों को
उन्हें छू के हो जाते मीठे करेले
रहे यूँ ही नफ़रत गिराती नये बम
न कम कर सकेगी मुहब्बत के रेले
मैं कितना भी कह लूँ ये नाज़ुक बड़ा है
सनम बेरहम दिल से खेले तो खेले
इन्हें दे नये अर्थ नन्हीं शरारत
वगरना निरर्थक हैं जग के झमेले
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(मौलिक एवं…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 27, 2016 at 6:30pm — 12 Comments
Added by Manan Kumar singh on November 27, 2016 at 3:30pm — 8 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 26, 2016 at 11:00pm — 9 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on November 26, 2016 at 8:40pm — 2 Comments
Added by Arpana Sharma on November 26, 2016 at 4:21pm — 8 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on November 26, 2016 at 1:18pm — 11 Comments
51
केवल तुम
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मैं बार बार मन ही मन हर्षित सा होता हॅूं,
हर ओर तुम्हारा ही तो अभिनन्दन है।
मन मिलने को आतुर फिर भी कुछ डर है सूनापन है,
हर साॅंस बनाती नव लय पर संगीत अनोखी धड़कन है,
अब तो हर द्वारे आहट पर तेरा ही अवलोकन है,
मैं इसीलिये नवगीत कंठ करता रहता हॅूं
हर शब्द में बस तेरा ही तो आवाहन है।
मन की राह बनाकर इन नैनों के सुमन बिछाये हैं,
मधुर मिलन की आस लिये ये अधर सहज मुस्काये हैं,
हर पल बढ़ते संवेदन…
Added by Dr T R Sukul on November 26, 2016 at 12:45pm — 6 Comments
अरकान – 212 2 122 122 12
काले बादल कभी जब बिखर जायेंगे |
ए नजारे भी बेशक बदल जायेंगे |
मुस्कुरा के ना देखो हमें आज यूँ,
दिल के अरमाँ हमारे मचल जायेंगे|
हमको मारो न खंज़र से ऐ महज़बी,
रूठ जाओ तो हम यूँ ही मर जायेंगे|
आके देखो कभी तुम हमारी गली,
ए इरादे तुम्हारे बदल जायेंगे|
लैला-मजनू हैं क्या शीरी फरहाद क्या,
प्यार में हम भी हद से गुज़र जायेंगे|
संग दिल हैं वे…
ContinueAdded by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on November 25, 2016 at 11:30am — 4 Comments
घूंघट की ओट में .....
खो गयी
एक गुड़िया
घूंघट की ओट में
बन गयी
वो एक दुल्हन
घूंघट की ओट में
ख़्वाबों का
शृंगार हुआ
घूंघट की ओट में
थम थम के
छुअन बढ़ी
घूंघट की ओट में
सब कुछ
मिला उसे
घूंघट की ओट में
बस
मिल न पाया
उसे एक दिल
घूंघट की ओट में
सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on November 24, 2016 at 8:31pm — 10 Comments
221 2121 1221 212/2121
पर्दा जो उठ गया तो हुआ काला धन तमाम
चोरों की ख्वाहिशों के जले तन बदन तमाम
बरसों से जो महकते रहे भ्रष्ट इत्र से
इक घाट पे धुले वो सभी पैरहन तमाम
बावक्त असलियत का मुखौटा उतर गया
किरदार का वजूद हुआ दफ़अतन तमाम
ये बंद खिड़कियाँ जो खुली, पस्त हो गई
सब झूट औ फरेब की बदबू घुटन तमाम
परवाज पर लगाम जो माली ने डाल दी
भँवरे का हो गया वो तभी बाँकपन…
ContinueAdded by rajesh kumari on November 24, 2016 at 7:37pm — 26 Comments
Added by Ravi Prakash on November 24, 2016 at 1:42pm — 4 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on November 24, 2016 at 9:59am — 16 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 23, 2016 at 9:43pm — 7 Comments
फाइलातुन -मफाइलुन -फेलुन
उनके चेहरे पे जो नज़र जाए |
मुस्तक़िल वो वहीं ठहर जाए |
उसपे तुमने उठा लिया खंजर
एक मुस्कान से जो मर जाए |
मैकदा है इधर नज़र है उधर
कोई जाए तो अब किधर जाए |
इक परिंदा भी जा सके न जहाँ
कौन लेकर वहाँ खबर जाए |
बात है देश की हिफ़ाज़त की
क्या गरज है हमारा सर जाए |
जो जबां कर सके न उल्फ़त में
काम वो इक निगाह कर जाए |
पानी पानी घटाएँ…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on November 23, 2016 at 9:30pm — 14 Comments
1212 1122 1212 22(112)
असर दिखा है जमाने में खास बातों का ।
मिटा है खूब खज़ाना रईसजादों का ।।
है फ़िक्र उस को नसीहत रुला गई यारों ।
गया है चैन , सुना है तमाम रातों का ।।
लुटे थे लोग जो अपने गरीबखानों से ।
हिसाब मांग रहे है वही हजारों का ।।
न पूछिए की चुनावों में हाल क्या होगा ।
बड़ा अजीब नज़ारा है इन सितारों का ।।
सफ़ेद पोश से पर्दा हटा गया कोई ।
पता चला है लुटेरों के हर ठिकानों का ।।
गरीब…
Added by Naveen Mani Tripathi on November 23, 2016 at 8:30pm — 5 Comments
सात नदियाँ मिलती हैं
गुजरात के कच्छ में
समुद्र से
उस स्थल पर
जिसे ‘रण’ कहते है
और जहां सबसे खारा होता है
समुद्र का पानी
नमक बनाने के लिए
जिसे हम लवण भी कहते है
और इसी से बनता है
एक मोहक शब्द
लावण्य
जो प्रकट करता है
मनुष्य के जीवन और उसके रंगों में
नमक की महत्ता, उपादेयता और स्वाद
पर
कभी किसी ने सोचा है गोर्की की भाँति
कि किस संत्रास में जीते है
नमक…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 23, 2016 at 8:00pm — 7 Comments
ठहाकों की आवाज़ से कमरा गूंज रहा था, आज बहुत सालों बाद रीमा का सहपाठी रोहन उससे मिलने आया था| पिछले दो घंटे से पिछले १५ सालों की बातें दोनों एक दूसरे को बता रहे थे और साथ पढ़े बाकी दोस्तों के बारे में भी एक दूसरे को बताते जा रहे थे| रीमा ने रमेश को भी बता दिया था कि ऑफिस से जल्दी आ जाना और उसने हामी भर दी थी|
अचानक बात का सिलसिला कॉलेज के जमाने के शौक के बारे में चल निकला| रोहन ने एक गहरी सांस ली और अपने सर पर हाथ फेरते हुए बोला "यार, तुम्हारी एक आदत मुझे अब भी नहीं भूलती| कितना चिढ़ती थी…
Added by विनय कुमार on November 23, 2016 at 7:00pm — 4 Comments
2122 2122 212
जिन्दगी फिर जिन्दगी लगने लगी,
तुम मिले दुनिया नयी लगने लगी,
तुमने सींचा जब वफ़ा और प्यार से,
फिर जमीं दिल की हरी लगने लगी,
रात के कोसे में चमका चाँद जब,
हर घड़ी तेरी कमी लगने लगी,
तुमने देखा जब नज़र भर प्यार से,
रूह अपनी अज़नबी लगने लगी,
कबसे आँखों ने सहर देखी नहीं,
दीद तेरी लाजिमी लगने लगी..... !!अनुश्री!!
मौलिक और अप्रकाशित...
Added by Anita Maurya on November 23, 2016 at 4:30pm — 9 Comments
1222 1222 1222
उसे कह दो जहाँ हूँ मैं वहाँ समझे
ज़मीं हूँ मैं, न मुझको आसमाँ समझे
हो किससे गुफ़्तगू इस दश्ते वीराँ में
कोई तो हो, जो मेरी भी ज़बाँ समझे
हक़ीक़त आशना है क्यूँ भला वो भी
है राहे संग उसको कहकशाँ समझे
छिनी रोटी तो छायी बद हवासी है
मुझे मयख़्वार क्यूँ सारा जहाँ समझे
मुहज़्ज़ब जो दबा लेता है नफरत, को
सही समझे अगर, आतिशफ़िशाँ समझे
तू वो ही है , जो सच में है तेरे…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on November 23, 2016 at 11:05am — 26 Comments
221 2121 1221 212
किस ओर जाएँ हम कि हमें रास्ता मिले
फ़िरक़ापरस्ती का न कहीं फन उठा मिले
दिल इस जहान का अभी इतना बड़ा नहीं
हर हक़बयानी पर मेरा ही सर झुका मिले
नाज़ुक है मसअला ये अक़ीदत का…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on November 23, 2016 at 11:00am — 17 Comments
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