For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - जिन्दगी फिर जिन्दगी लगने लगी

2122 2122 212 

जिन्दगी फिर जिन्दगी लगने लगी,
तुम मिले दुनिया नयी लगने लगी,

तुमने सींचा जब वफ़ा और प्यार से,
फिर जमीं दिल की हरी लगने लगी,

रात के कोसे में चमका चाँद जब,
हर घड़ी तेरी कमी लगने लगी,

तुमने देखा जब नज़र भर प्यार से,
रूह अपनी अज़नबी लगने लगी,

कबसे आँखों ने सहर देखी नहीं,
दीद तेरी लाजिमी लगने लगी..... !!अनुश्री!!

मौलिक और अप्रकाशित...

Views: 742

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on November 28, 2016 at 7:57am

खूबसूरत गज़ल के लिए बधाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 24, 2016 at 10:48am

आदरणीया अनिता जी , ग़ज़ल अच्छी कही है , हार्दिक बधाइयाँ आपको ,
मतले की काफिया बन्दी देखियेगा  --  ज़िन्दगी और हसीं और ज़मीं हम काफिया नही हो सकते , इस लिये आ. मिथिलेश भाई की सलाह पर गौर करियेगा

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on November 23, 2016 at 7:06pm

मुहतरमा अनीता साहिबा , अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं --
आपकी ग़ज़ल में " हसीं " और " ज़मीं " के क़ाफिये सही नहीं हैं
अगर मुनासिब समझें तो " हसीं " की जगह " भली " कर लें
शेर 2 का सानी मिसरा बहर में नहीं है , उसे चाहें तो इस तरह कर लें
" फिर ज़मीं दिल की हरी लगने लगी "


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 23, 2016 at 6:51pm

आदरणीया अनीता जी, बढ़िया ग़ज़ल का प्रयास हुआ है, हार्दिक बधाई. 

जिन्दगी फिर जिन्दगी लगने लगी,

तुम मिले दुनिया नई लगने लगी,

तुमने सींचा जब वफ़ा औ' प्यार से,

दिल की धरती फिर हरी लगने लगी,

भाव आपके ही हैं बस काफियाबंदी के लिए.....सादर 

Comment by Anita Maurya on November 23, 2016 at 5:14pm

समर सर हार्दिक आभार आपका, ऐसे ही मार्गदर्शन करते रहियेगा, सुरेन्द्र जी, सुशील जी और सुरेश जी, बहुत बहुत आभार....

Comment by Samar kabeer on November 23, 2016 at 3:16pm
मोहतरमा अनीता मौर्या जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल है, मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
मतले में 'हंसी'को "हसीं"करलें,शायद टाइपिंग मिस्टेक है ।
आख़री शैर में 'सहर'स्त्रीलिंग है, इसलिये 'देखा'को "देखी" कर लें।
यहां इस मंच पर ग़ज़ल के साथ अरकान लिखने का नियम है,जो आपने नहीं लिखे,कृपया आगे से ध्यान रखें ।
Comment by नाथ सोनांचली on November 23, 2016 at 2:31pm
आदरणीया अनीता मौर्या जी सादर अभिवादन। आप्जी गजल उम्दा है। मेरी कोटिश बधाई निवेदित है। यहाँ उरूज के साथ गजल लिखने का विधान है।
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on November 23, 2016 at 1:41pm
आदरणीया अनीता जी बहुत ही सुन्दर रचना।
तुम मिले दुनिया हंसी लगने लगी।
में हंसी के स्थान पर हसीं होना चाहिए।
सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई।
Comment by Sushil Sarna on November 23, 2016 at 12:55pm

तुमने देखा जब नज़र भर प्यार से,
रूह अपनी अज़नबी लगने लगी,
कबसे आँखों ने सहर देखा नहीं,
दीद तेरी लाजिमी लगने लगी.....

वाह आदरणीया बहुत ही दिलकश अशआर हुए हैं आपकी ग़ज़ल के। हार्दिक मुबारकबाद कबूल फरमाएं।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"ऐसे😁😁"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"अरे, ये तो कमाल  हो गया.. "
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय नीलेश भाई, पहले तो ये बताइए, ओबीओ पर टिप्पणी करने में आपने इमोजी कैसे इंफ्यूज की ? हम कई बार…"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपके फैन इंतज़ार में बूढे हो गए हुज़ूर  😜"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय लक्ष्मण भाई बहुत  आभार आपका "
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है । आये सुझावों से इसमें और निखार आ गया है। हार्दिक…"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और अच्छे सुझाव के लिए आभार। पाँचवें…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय सौरभ भाई  उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार , जी आदरणीय सुझावा मुझे स्वीकार है , कुछ…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल पर आपकी उपस्थति और उत्साहवर्धक  प्रतिक्रया  के लिए आपका हार्दिक…"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति का रदीफ जिस उच्च मस्तिष्क की सोच की परिणति है. यह वेदान्त की…"
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, यह तो स्पष्ट है, आप दोहों को लेकर सहज हो चले हैं. अलबत्ता, आपको अब दोहों की…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज सर, ओबीओ परिवार हमेशा से सीखने सिखाने की परम्परा को लेकर चला है। मर्यादित आचरण इस…"
10 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service