For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,140)

ग़ज़ल

2122 1212 1122 22



है कोई तिश्नगी जरूर तेरी आँखों में |

मीठे एहसास का सरूर तेरी आँखों में ||



जब भी देखा गया ये अक्स किसी दर्पण में ।

बे अदब आ गया , गुरूर तेरी आँखों में ||



ख़ास मुश्किल के बाद ही तेरे दर तक पहुँचा ।

कुछ उमीदें दिखीं हैं दूर तेरी आँखों में ।।



मैं तो हाज़िर था तेरीे एक नज़र पर साकी ।

बेसबब क्यो हुआ फितूर तेरी आँखों में ।।



जाम छलके नहीं है आज तलकभी तुझसे ।

है बड़ा कीमती शऊूर तेरी आँखों में… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on July 16, 2017 at 6:30pm — 11 Comments

बंधन : लघुकथा: हरि प्रकाश दुबे

शानदार फूलों से सुसज्जित मंच पर धर्मगुरु विद्यमान ,साथ ही भजन कीर्तन करने वाली भाड़े पर रखी गयी  टीम ,सामने लम्बा पांडाल , अति विशिष्ट भक्तों के लिए आगे सुन्दर सोफों की कतार ,पीछे दरी पर हाथ जोड़ कर बैठे भक्तजन , जगह –जगह एलसीडी ,साउंड सिस्टम , अब प्रवचन शुरू ..........

 

” आप सब के दुखों का कारण ही यही है की आप लोग तमाम मोह ,माया के बंधन में फसें हुए हैं,किसी को परिवार की चिंता है ,कोई धन के पीछे भाग रहा है ,अरे कुत्ते की तरह जिंदगी बना ली है आप लोगों ने अपनी, अरे मैं तो…

Continue

Added by Hari Prakash Dubey on July 16, 2017 at 3:00pm — 4 Comments

सावन की ग़ज़ल (बह्र-22/22/22/22)

मन में आग लगाये सावन ,
यौवन को भड़काये सावन ।
दो दिल मचल रहे हैं देखो ,
ऐसा राग सुनाये सावन ।
छैल-छबीला , रंगीला-सा ,
बाग़ों में इतराये सावन ।
छन-छन छन-छन करता छत पर
बेहद शोर मचाये सावन ।
खेतों में हरियाली लाये ,
संग घटा के छाये सावन ।
मस्ती में जब झूमे नाचे
ऐसा रंग जमाये सावन ।
गीत मिलन के गाता है ये
झूलों में इठलाये सावन ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Added by Mohammed Arif on July 16, 2017 at 2:09pm — 20 Comments

पावस रुत में ....

तृण तृण भीगा

प्रीत पलों का

सावन की बौछारों में

तड़पन भीगी

तन-मन भीगा

सावन की बौछारों में

बीती रैना

भीगे बैना

सावन की बौछारों में

पावस रुत में

नैना बरसे

सावन की बौछारों में

निष्ठुर पिया को

पल पल तरसे

सावन की बौछारों में

बादल गरजे

बिजली चमकी

सावन की बौछारों में

भीगी चौली

भीगी अंगिया

सावन की बौछारों में

चूड़ी खनकी

मिलन को तरसी

सावन की बौछारों में …

Continue

Added by Sushil Sarna on July 16, 2017 at 1:30pm — 6 Comments

ग़ज़ल (कोई आ गया दम निकलने से पहले )

(फऊलन -फऊलन -फऊलन -फऊलन)

मेरे प्यार का शम्स ढलने से पहले |

कोई आ गया दम निकलने से पहले |

बहुत होगी रुसवाई यह सोच लेना

रहे इश्क़ में साथ चलने से पहले |

तेरे ही चमन के हैं यह फूल माली

कहाँ तू ने सोचा मसलने से पहले|

कहे सच हर इक आइना सोच लेना

बुढ़ापे में इसको बदलने से पहले |

ख़यालों में आ जाओ कटती नहीं शब

मिले चैन दिल को मचलने से पहले |

अज़ल से है उल्फ़त का दुश्मन ज़माना …

Continue

Added by Tasdiq Ahmed Khan on July 16, 2017 at 12:30pm — 30 Comments

बूंद-बूंद ही भरता घड़ा (लघुकथा) ["सुख"-विषयांतर्गत -1]/ शेख़ शहज़ाद उस्मानी

वे दोनों अपने आप को उच्च शिक्षित, व्यवहारिक, और मानवता के पैरोकार साबित करने पर तुले हुए थे। बहस का कोई अंत नहीं था। एक-दूसरे से सहमत होना मुश्किल था। अंतिम प्रयास करते हुए उनमें से एक बोला- "मैंने सभी धार्मिक ग्रंथों के साथ ही मानव समाज से संबंधित सभी विषयों पर पर्याप्त अध्ययन और चिंतन-मनन किया है। निष्कर्षत: अब मैं मानवता के मार्ग पर चलना चाहता हूं।"



"तो क्या अब तक दानव बनकर जी रहे थे!" दूसरे ने लगभग चीखते हुए कहा।



"नहीं, ढोंगी मानवता की चादर ओढ़े हुए दानवता की ढाल लिए… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on July 16, 2017 at 9:00am — 6 Comments

अंत का आरम्भ : लघुकथा : हरि प्रकाश दुबे

“डॉक्टर साहब, देखिये ना मेरी फूल सी बिटिया को क्या हो गया है, कुछ दिनों से ये अचानक दौड़ते-भागते हुए गिर जाती है, ठीक से सीढ़ियाँ भी नहीं चढ़ पाती है।“

“अरे आप इतना क्यों घबरा रहें है? लीजिये कुछ टेस्ट लिख दियें हैं, बच्ची की जाँच करवा के मुझे दिखाइये ।“-डॉक्टर ने कहा।

अगले ही दिन बृजमोहन सारी जाँच रिपोर्ट लेकर डॉक्टर मिश्रा के अस्पताल पहुँच गया।

डॉक्टर मिश्रा जैसे –जैसे रिपोर्ट पढ़ते जा रहे थे…

Continue

Added by Hari Prakash Dubey on July 15, 2017 at 9:30pm — 12 Comments

कोई हसरत उफ़ान तक आई

2122 1212 22



बात दिल की जुबान तक आई ।

कोई हसरत उफ़ान तक आई ।।



मैं नहीं बन्द कर रहा कोटा ।

यह बहस संविधान तक आई ।।



हौसले फिर जले सवर्णो के ।

रोशनी आसमान तक आई ।।



फायदा क्या मिला हुकूमत से ।

बस नसीहत लगान तक आयी ।।



मिटती हस्ती को देखता हूँ मैं ।

आंख जब भी रुझान तक आई ।।



यह नदी इंतकाम की खातिर ।

आज हद के निशान तक आई ।।



हक जो मांगा है,औरतों ने कभी ।

रोज चर्चा कुरान तक आई ।।



बूंद… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on July 15, 2017 at 2:26pm — 16 Comments

मुझको क्या मेरी मेरी याद को भी भूल गयी होगी

अब तो मिजाज ऐ यार में वो घुल गए होगी,

मुझको क्या मेरी मेरी याद को भी भूल गयी होगी,
चमक रही होंगी ,खुशी से पेशानियाँ  ,
ख़त्म हो गयी होंगी, सारी परेशानियाँ  ,
अब तो गर्द ऐ फिक्र दामन से धुल गयी होगी,
मुझको क्या मेरी याद को भी भूल गयी होगी,
उसकी गालियों में खुशबु, अब भी आती होगी
मेरी जगह अब वो उसको सुनाती होगी ,
रक़ीब के साथ भी ऐसा ही खुल गयी होगी ,
मुझको क्या मेरी याद को भी भूल गयी होगी.

.

शफ़ीक़ सैफी
मौलिक एबं अप्रकाशित

Added by SHAFIQE SAIFI on July 15, 2017 at 1:00pm — 4 Comments

मम्मी तो ऐसी नहीं न (लघुकथा) / शेख़ शहज़ाद उस्मानी

कुसुम अपने चाचा-चाची के अपने प्रति बदले हुए रवैये से बहुत हैरान थी। वह अपनी परेशानी किसी को भले ही नहीं बता पा रही थी, लेकिन कुछ दिनों से उसके दादा जी बहुत कुछ समझ रहे थे। जब भी उन्हें समय मिलता, वे उसे कुछ न कुछ समझाने-सिखाने की कोशिश करते रहते थे। इसी क्रम में कुसुम द्वारा रोपित बीज से उगे नन्हे पौधे को गमले में से उखाड़कर उसके हाथों में सौंप कर आज उन्होंने कहा - " कुसुम बिटिया, इस नन्हें पौधे को अब धरती में यहां अपन रोपित कर देंगे और खूब खाद, पानी देकर इसकी सेवा करेंगे, तो फ़िर यह एक बड़ा पेड़… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on July 15, 2017 at 2:03am — 9 Comments

नेम प्लेट ...

नेम प्लेट ...

कुछ देर बाद
मिल जाऊंगा मैं
मिट्टी में
पर
देखो
हटाई जा रही है
निर्जीव काल बेल के साथ
लटकी
मेरी ज़िंदा
मगर
उखड़े उखड़े अक्षरों की
एक अजीब सी
चुप्पी साधे
पुरानी सी 
नेम प्लेट

मुझसे पहले 

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on July 14, 2017 at 3:30pm — 24 Comments

'अदब की मुल्क में मिट्टी पलीद कैसे हो'

मफ़ाइलुन फ़इलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन

१२१२ ११२२ १२१२ २२/११२



ख़ुलूस-ओ-प्यार की उनसे उमीद कैसे हो

जो चाहते हैं कि नफ़रत शदीद कैसे हो



छुपा रखे हैं कई राज़ तुमने सीने में

तुम्हारे क़ल्ब की हासिल कलीद् कैसे हो



बुझे बुझे से दरीचे हैं ख़ुश्क आँखों के

शराब इश्क़ की इनसे कशीद् कैसे हो



हमेशा घेर कर कुछ लोग बैठे रहते हैं

अदब पे आपसे गुफ़्त-ओ-शुनीद कैसे हो



इसी जतन में लगे हैं हज़ारहा शाइर

अदब की मुल्क में मिट्टी पलीद कैसे…

Continue

Added by Samar kabeer on July 13, 2017 at 11:30am — 57 Comments

आसक्ति …….

आसक्ति …….

परिचय  हुआ  जब   दर्पण से
तो  चंचल  दृग   शरमाने  लगे 
अधरों  पे कम्पन्न  होने   लगा 
पलकों  में  बिंब  मुस्काने  लगे ll


काजल मण्डित रक्तिम लोचन
अनुराग  निशा  से  बढ़ाने लगे 
कच क्रीडा में लिप्त समीर  से
मेघ  अम्बर  में  शरमाने  लगे ll


लज्ज़ायुक्त स्वर्णिम कपोल पे 
फिर  जलद नीर बरसाने लगे
कनक कामिनी  की काया पे
मधुप  आसक्ति  दर्शाने  लगे ll

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on July 12, 2017 at 4:30pm — 15 Comments

मेरे गाँव में

मापनी २२१२ २२१२ २२१२  

 

आ  तो सही  एक  बार मेरे गाँव में

अद्भुत अतिथि सत्कार मेरे गाँव में

 

हर वक्त  रहते  हैं खुले सबके लिए

सबके दिलों के  द्वार  मेरे  गाँव  में

 

तालाब  नदियाँ और पनघट की छटा

है  प्रीति  का…

Continue

Added by बसंत कुमार शर्मा on July 12, 2017 at 9:44am — 20 Comments

कुण्डलियाँ छंद पर प्रथम प्रयास - निलेश नूर

कुण्डलियाँ छंद पर प्रथम प्रयास 

.

बोझ बढ़ा आवाम पर मगर न आई लाज

लगी लेखनी को अजब भक्तिभाव की खाज.

भक्तिभाव की खाज जो आधी रात जगाये

अपनी बरबादी का ज्ञानी जश्न मनाये. 

व्यापारी का देश में बुरा हुआ है हाल

मौजी निकला घूमने.. देश करे हड़ताल.

.

.

अठरह फी से दिक्कत थी अट्ठाईस से प्यार

बड़े ग़ज़ब के तर्क हैं बड़े ग़ज़ब सरकार.

बड़े ग़ज़ब सरकार लगे जी एस टी प्यारा

भक्ति करेंगे और बनेंगे हम ध्रुव तारा.

पूजन…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on July 11, 2017 at 5:30pm — 17 Comments

ग़ज़ल इस्लाह के लिए (गुरप्रीत सिंह)

2122 -1212 -22


आस दिल में दबी रही होगी
और फिर ख़्वाब बन गई होगी।

टूट जाए सभी का दिल या रब
दिलजले को बड़ी ख़ुशी होगी।

ज़ह्न हारा हुआ सा बैठा है
दिल से तक़रार हो गई होगी।

जिसकी खातिर लुटा दी जान उसने
चीज़ वो भी तो कीमती होगी।

जब मुड़ा तेरी ओर परवाना
शमअ बेइन्तहा जली होगी।

(मौलिक व् अप्रकाशित)

Added by Gurpreet Singh jammu on July 11, 2017 at 1:26pm — 28 Comments

रिश्ते में नुकसान जोड़ते पाई पाई------इस्लाह के लिए ग़ज़ल

22 22 22 22 22 22
रिश्ते में नुकसान जोड़ते पाई पाई।
आँगन में दीवार खींचते भाई भाई।।

वाह रुपये खूब तुम्हारी भी है माया।
पुत्र बसा परदेश गाँव में बाबू- माई।।

कलयुग कैसी है ये तेरी काली छाया
साथ नहीं देती है खुद की ही परछाई।।

नातेदारी मृग मरीचिका में उलझी है
जानें कितनी लाश गिरेगी रे'त में भाई।।

पंकज बैठा लिये तराजू आओ लोगों
नाप-जोख कर भाव लगाकर करो मिताई।।

मौलिक अप्रकाशित

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 11, 2017 at 11:00am — 24 Comments

एक भारत श्रेष्ठ भारत

नवसृजन कर हम बनाएँ,

एक भारत श्रेष्ठ भारत

 

काम हो हर हाथ को,

ख़त्म हो बेरोजगारी.

हो न शोषण बालकों का,

और हो भय मुक्त नारी.

आचरण में भ्रष्टता से,

मुक्त हो अपनी सियासत.

 

शांति के हम दूत बनकर,…

Continue

Added by बसंत कुमार शर्मा on July 11, 2017 at 8:41am — 10 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
मेरा कच्चा मकान क्या करता (ग़ज़ल 'राज')

२१२२  १२१२    २२

बात खाली मकान क्या करता

दास्ताँ वो बयान क्या करता 

 

पंख कमजोर हो गये मेरे  

लेके अब  आसमान क्या करता 

उसकी  सीरत ने छीन ली सूरत

उसपे सिंघारदान क्या करता 

 

रूठ जाते मेरे सभी अपने

चढ़के ऊँचे मचान क्या करता

 

नींव में झूठ की लगी दीमक 

लेके ऐसी दुकान क्या करता

 

बाढ़ में ढह गये महल कितने    

मेरा कच्चा मकान क्या…

Continue

Added by rajesh kumari on July 11, 2017 at 8:30am — 36 Comments

खामियाजा***(लघुकथा)राहिला

क्या मैं जान सकती हूँ सब कुछ फाइनल होने के बाद विवाह से इंकार करने की वजह क्या है?

"आपसे पिछली मुलाक़ात!"उसने सपाट सा उत्तर दिया।

"पिछली मुलाक़ात?"कहते हुए उसके माथे पर हैरानी से बल पड़ गए।

" जहाँ तक मुझे याद है..., उस दिन तो ऐसी कोई बात नहीं हुई थी, जो आपके इंकार की वजह बने।"

"हुई थी!,उस दिन एक ऐसी बात हुई थी जिसकी वजह से मुझे ये फैसला लेना पड़ा।"

" देखिए..!पहेलियां बुझाने से अच्छा ,आप साफ-साफ बताएं।"वह मुद्दे पर आ गयी।

"ठीक है तो सुने!"उसने दोनों हाथ टेबल पर रखते हुए… Continue

Added by Rahila on July 11, 2017 at 6:26am — 9 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service