For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मम्मी तो ऐसी नहीं न (लघुकथा) / शेख़ शहज़ाद उस्मानी

कुसुम अपने चाचा-चाची के अपने प्रति बदले हुए रवैये से बहुत हैरान थी। वह अपनी परेशानी किसी को भले ही नहीं बता पा रही थी, लेकिन कुछ दिनों से उसके दादा जी बहुत कुछ समझ रहे थे। जब भी उन्हें समय मिलता, वे उसे कुछ न कुछ समझाने-सिखाने की कोशिश करते रहते थे। इसी क्रम में कुसुम द्वारा रोपित बीज से उगे नन्हे पौधे को गमले में से उखाड़कर उसके हाथों में सौंप कर आज उन्होंने कहा - " कुसुम बिटिया, इस नन्हें पौधे को अब धरती में यहां अपन रोपित कर देंगे और खूब खाद, पानी देकर इसकी सेवा करेंगे, तो फ़िर यह एक बड़ा पेड़ बन जायेगा!"

" तो क्या यहां की धरती मेरी उमा चाची की तरह बांझ है और गमला बाँझ नहीं है?" कुसुम के मुख से ये शब्द सुनते ही दादा जी स्तब्ध रह गए और कुसुम की वर्तमान मनोदशा पर पुनः चिंतित हो गए। छोटी बहू उमा किसी कारण माँ नहीं बन पा रही थी, सो बड़ी बहू की छोटी बेटी कुसुम को कुछ सालों से वही बड़े प्यार से पाल रही थी। इस बीच घर व बाहर वालों के जो ताने उमा को सुनना पड़ते थे, उनसे कुसुम पूरी तरह वाकिफ़ थी। अब जबकि टेस्ट-ट्यूब बेबी पद्धति से उमा माँ बनने जा रही थी, तो चाचा-चाची की अद्भुत खुशी देख कर कुसुम भी जितनी ख़ुश थी, उतनी ही भौचक्की भी। वह चाची में माँ को देखती रही थी, और चाची की नज़र में अब वह सिर्फ़ भतीजी रह गई थी।

पौधे को ज़मीन में रोपने में कुसुम की मदद करते हुए दादा जी ने कहा- " बेटा, विज्ञान की तकनीकों से बंजर ज़मीन को कभी-कभी उपजाऊ बनाया जा सकता है। कई बार ज़मीन बंजर नहीं होती, उसमें केवल कुछ कमी होती है, जिसका समाधान किया जा सकता है।"

यह सुनकर जब कुसुम कुछ भी नहीं बोली , तो दादाजी उसके मनोभावों को समझने की कोशिश करने लगे। तभी अचानक कुसुम ने सवाल किया- "तो क्या अब मुझे मेरी मम्मी-पापा के पास भेज दिया जाएगा, जिनकी दो बेटियां होने पर भी घर में लड़ाई-झगड़े होते हैं?" उसकी आँखों से आंसू छलक पड़े।
पौधा रोपित हो चुका था। ऊपर से थोड़ा पानी सींचने के बाद वह दादा जी के पास जाकर बोली - "मेरी मम्मी तो बंजर नहीं है न! उनमें अगर कोई कमी हो, तो समाधान करा दो दादा जी! एक भईया पैदा करवा दो न!"

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 702

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 25, 2017 at 7:49pm
मेरी इस लघुकथा पर समय देकर हौसला अफ़ज़ाई के लिए सादर हार्दिक धन्यवाद आदरणीय हरि प्रकाश दुबे जी व आदरणीय तस्दीक़ अहमद ख़ान साहब।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 25, 2017 at 7:47pm
मेरी इस रचना पटल पर समय देकर हौसला अफ़ज़ाई के लिए सादर हार्दिक धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी जी। हम सभी की रचनाओं पर टिप्पणियां करते हुए यूं ही हमें प्रोत्साहित करते रहिएगा।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 25, 2017 at 7:46pm
मेरी इस लघुकथा पर समय देकर रचना के अनुमोदन, अपने विचार साझा करते हुए आदरणीय कल्पना भट्ट जी के सवाल के जवाब का संकेत करने व मेरी हौसला अफ़ज़ाई के लिए सादर हार्दिक धन्यवाद आदरणीय महेंद्र कुमार जी।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 25, 2017 at 7:43pm
रचना पर समय देकर हौसला अफ़ज़ाई के लिए सादर हार्दिक धन्यवाद आदरणीय कल्पना भट्ट जी। दस-बारह साल की बच्ची घर पर होती रहती बहस/आरोप-प्रत्यारोप/कलह से कुप्रभावित होकर बड़ों से सुने हुए शब्दों के कारण ही अपनी शैली में ऐसा कह रही है, जो कि रचना में स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है। सादर।
Comment by Mahendra Kumar on July 20, 2017 at 9:38pm

बाल मन को केन्द्रित कर संतान और और उससे जुड़े मुद्दों को बहुत ही ख़ूबसूरती से बयां किया है आपने आ. शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी. मुझे लगता है कि आ. कल्पना जी ने जो प्रश्न किया है उसका उत्तर आपके इन शब्दों में "दादा जी स्तब्ध रह गए" मिल जाता है. ढेर सारी बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on July 16, 2017 at 5:52pm
मुहतरम जनाब शेख़ शहज़ाद उस्मानी साहिब,बहुत अच्छी लघुकथा हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें
Comment by Hari Prakash Dubey on July 16, 2017 at 4:34pm

आदरणीय Sheikh Shahzad Usmani   सुन्दर रचना है , आदरणीया कल्पना जी की बात भी जायज लग रही है ,बाकी सुन्दर ,हार्दिक बधाई ! सादर 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 16, 2017 at 3:40pm

कथा बढ़िया है आदरणीय शहजाद भाई पर एक जगह मुझे खटक रहा है एक संवाद " तो क्या धरती......." क्या इतना गूढ़ प्रश्न एक बच्ची कर सकती है ?  सादर |

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 16, 2017 at 2:31pm
आ. भाई सहजाद जी, इस प्रेरक और कई प्रश्न खड़े करती कथा के लिए हार्दिक बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपके अभ्यास और इस हेतु लगन चकित करता है.  अच्छी गजल हुई है. इसे…"
20 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय शिज्जु भाई , क्या बात है , बहुत अरसे बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ा रहा हूँ , आपने खूब उन्नति की है …"
2 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधकह दूँ मन की बात या, सुनूँ तुम्हारी बात ।क्या जाने कल वक्त के, कैसे हों…See More
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" posted a blog post

ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है

1212 1122 1212 22/112मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना हैमगर सँभल के रह-ए-ज़ीस्त से गुज़रना हैमैं…See More
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते…See More
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
""रोज़ कहता हूँ जिसे मान लूँ मुर्दा कैसे" "
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"जनाब मयंक जी ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, गुणीजनों की बातों का संज्ञान…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय अशोक भाई , प्रवाहमय सुन्दर छंद रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई "
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय बागपतवी  भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक  आभार "
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आदाब, ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएँ, गुणीजनों की इस्लाह से ग़ज़ल…"
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
14 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
14 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service