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नई सदी का मर्द (लघुकथा)/ शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"देखो तो, कैसा इतरा-इतरा कर नाच रहा है!"
"हाँ, उस मोरनी को देखकर!"
"नहीं, हमें देखकर इतरा रहा है!" सारस ने अपनी टांगों को ज़मीन पर आड़े-तिरछे पटकतेे हुए हंस से कहा।

"बस कुछ ही महीने तो सुंदर दिखता है, फिर भी इंसानों के दिलों में राज करता है!" यह कहते हुए ईर्ष्यालू हँस ने नदी में गोता सा लगाया।

"हर चमकने वाली चीज़ सोना नहीं होती, यह जानते हुए भी!" हंस की बात पर सारस ने कटाक्ष किया।

"आकर्षक तो हम भी हैं, लेकिन न तो हमारा मेकअप इस तरह होता है, न ही हमें ऐसा नृत्य आता है!" हंस ने गर्दन घुमा-घुमा कर अपने और सारस के शरीर का मुआयना सा किया।

"क्या इंसानों में भी मर्द ऐसे ही औरत को आकर्षित करता है?" सारस ने पूछा।

"नहीं, सुना है कि औरत मेकअप करके मर्द को रिझाती है, कुछ औरतें नाचती भी हैं!"

"कौन से ज़माने की बात कर रहे हो? सुनते हैं कि इस सदी में तो मर्द करता है यह सब औरत को रिझाने!".हंस की बात पर सारस ने कहा।

(मौलिक, अप्रकाशित व अप्रसारित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 10, 2017 at 5:33pm
रचना के अवलोकन, अनुमोदन , हौसला अफ़ज़ाई व महत्वपूर्ण विस्तृत जानकारी देने हेतु तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम जनाब समर कबीर साहब। यह जानकारी मुझे आधी अधूरी ही मिल पाई थी, जो सही तरह से आपने पूरी कर दी। हालाँकि मेरी रचना का भाव मात्र राष्ट्रीय पक्षी से अन्य दो पक्षियों की ईर्ष्या और आज के मर्दों के रिझाने संबंधी तौर-तरीक़ों पर केन्द्रित है। सादर
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 10, 2017 at 5:26pm
मेरी इस ब्लोग पोस्ट पर उपस्थित हो कर हौसला अफ़ज़ाई हेतु तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम जनाब सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' साहब व जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहब।
Comment by Samar kabeer on July 10, 2017 at 3:37pm
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी साहिब आदाब,उम्दा लघुकथा लिखी आपने,इस्तेआरों में तंज़ भी अच्छे हुए हैं,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
एक बात बताना चाहूँगा कि मोर अपनी मोरनी को रिझाने के लिये नहीं नाचता,ख़ास बारिश के मौसम में जब रिम झिम बारिश होती है और ठंडी पुरवाई चलती है तब वो मस्त होकर नाचने लगता है,और जब उस मस्ती के आलम में नाचते नाचते अपने पैरों की तरफ़ देखता है तो उनकी बदसूरती देख कर उसकी आँखों से आँसू टपकते हैं जिसे मोरनी अपनी चोंच से पी लेती है,और गर्भवती हो जाती है और कुछ दिन बाद अंडे देती है,कहते हैं कि ये वाहिद परिन्दा है जो अपनी मादा से शारीरिक सम्बन्ध नहीं बनाता,और क़ुदरत ने उनकी नस्ल बढ़ाने के लिये ये तरीक़ा रखा है,कि ये परिन्दा जन्नत का परिन्दा है जिसे हज़रत-ए-आदम अलैहिससलाम के साथ जन्नत से निकाला गया था ।
Comment by Mohammed Arif on July 10, 2017 at 8:01am
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,अच्छी कटाक्षपूर्णा कथा । मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए ।
Comment by नाथ सोनांचली on July 10, 2017 at 5:21am
आद0 शेख़ शहज़ाद उस्मानी साहब सादर अभिवादन। बढ़िया कटाक्ष पूर्ण रचना, वाकई समय बदला है। बधाई आपको इस लघुकथा पर।

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