बह्र : रमल मुसद्दस महजूफ
2 1 2 2 2 1 2 2 2 1 2
तंग बेहद हाथ खाली जेब है,
सत्य मेरा बोलना ही एब है,
पाँव नंगे वस्त्र तन पे हैं फटे,
वक्त की कैसी अजब अवरेब है,
( अवरेब = चाल )
जख्म की जंजीर ने बांधा मुझे,
दर्द का हासिल मुझे तंजेब है,
( तंजेब = अचकन, लम्बा पहनावा )
जुर्म धोखा देश में जबसे बढ़ा,
साँस भी लेने में अब आसेब है,
( आसेब = कष्ट )
भेषभूषा मान मर्यादा ख़तम,…
Added by अरुन 'अनन्त' on November 6, 2013 at 12:30pm — 32 Comments
मंगल मंगल को उड़ा ,बनकर मंगल यान
मंगल को कर कामना ,बढ़े देश की शान |
बढ़े देश की शान , नित्य ही उन्नति पायें
भारत मंगल गान , सभी दुनियां में गायें
सरिता कहे पुकार ,बढ़ो दुनियां में हरपल
हनुमन्ता का वार ,कामना करलो मंगल||
.................................................
.......... मौलिक व अप्रकाशित ..........
Added by Sarita Bhatia on November 6, 2013 at 11:31am — 10 Comments
इस नदिया की धारा में
कितने टापू हैं उभरे
कहीं हुई उथली-छिछली
तो कहीं भँवर हैं गहरे
पंख नदारद मोरों के
तितली का है रंग उड़ा
भौंरा भी अब ये सोचे…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on November 5, 2013 at 11:30pm — 20 Comments
१-डर
भयातुर आँखें
शक की नज़रों से देखती सबको
विसंगतियों और क्रूरताओं से भरा यह समाज
कब क्या कर बैठे किसे पता
२-सत्य
जीवन एक तहखाना है
हम सब कैदी
जो ईश्वर से प्यार नहीं करता
वह बार बार यहाँ पटक दिया जाता है
और जो ईश्वर से प्यार करता है
वह हमेसा के लिए मुक्त हो जाता है
३-रहस्य
ये कैसा रहस्य है
सारी उन्मनता.
सारी व्यग्रता
सारी म्लानता
तुम्हारे नेह की तरलता…
Added by ram shiromani pathak on November 5, 2013 at 10:22pm — 21 Comments
सुनो ऋतुराज- 15
सुनो ऋतुराज!!
वह एक अन्धी दौड थी
हांफती हुई
हदें फलांगती हुई
परिभाषाओं के सहश्र बाड़ो को
तोडती हुई
फिर भी वह भ्रम नही टूटा
जिसे तोडने के लिये संकल्पित थे हम
ऋतुओं का मौन यूँ ही बना रहा
सावन बरस् बरस कर सूख गया
हम अन्धड़ के वेग मे भी तने रहे
और आसक्ति का वृक्ष सूख गया
सुनो ऋतुराज
लमहों का बही खाता
जब भी खोलोगे
दग्ध ह्रदय पर लिखा
शुभलाभ अवश्य दिखेगा …
Added by Gul Sarika Thakur on November 5, 2013 at 11:30am — 11 Comments
मोहब्बत आग का दरिया भरोसा तोड़ देती है ।
खुदी आधी जलाकर ही भला क्यों छोड़ देती है ।
छलावा इस से बढ़कर ना कहीं देखा ज़माने में ।
समंदर गम के भर लाये ख़ुशी कि बूँद पाने में ।
लिए नादान सी हसरत किसी मासूम से दिल को ,
ख़ुशी का आसरा देकर ग़मों से जोड़ देती है ।
अच्छा था खुदी मेरी ये खुद में ही समा लेती ।
कहीं अपनी पनाहों में ये मुझको भी छुपा लेती ।
लुटा बैठा ये दीवाना कहाँ अपना मकां ढूढे ,
ये सबकुछ छीनकर मेरा मुझे क्यों…
Added by Neeraj Nishchal on November 5, 2013 at 10:30am — 7 Comments
1212 1122 1212 22
सियाह रात के पर्दे में है निहाँ सा कुछ
ज़मीं से आज उठे है धुआँ-धुआँ सा कुछ
ये ज़ोर शम्अ का है जो बुझी नही शब भर
गया करीब से तूफान बदगुमाँ सा कुछ
न जाने कौन खिरामां सफ़र में था मेरे
तमाम राह चला साथ कारवाँ सा कुछ
चिराग सा कभी, आतिशबजाँ लगे है गाह
वो टिमटिमाता अँधेरों में इक मकाँ सा कुछ
ये बदलियाँ जो हटीं चाँद भी खिला तनहा
इक अर्से बाद नज़र आया शादमाँ सा…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on November 5, 2013 at 9:00am — 16 Comments
वो मुझे याद करता है
वो मेरी सलामती की
दिन-रात दुआएं करता है
बिना कुछ पाने की लालसा पाले
वो सिर्फ सिर्फ देना ही जानता है
उसे खोने में सुकून मिलता है
और हद ये कि वो कोई फ़रिश्ता नही
बल्कि एक इंसान है
हसरतों, चाहतों, उम्मीदों से भरपूर...
उसे मालूम है मैंने
बसा ली है एक अलग दुनिया
उसके बगैर जीने की मैंने
सीख ली है कला...
वो मुझमें घुला-मिला है इतना
कि उसका उजला रंग और…
ContinueAdded by anwar suhail on November 4, 2013 at 7:36pm — 6 Comments
दोस्तो,
अंजुमन प्रकाशन द्वारा 27 अक्टूबर 2013 को लखनऊ के पुस्तक लोकार्पण समारोह में की गयी घोषणा के अनुसार अंजुमन ग़ज़ल नवलेखन पुरस्कार-2014 के नियम एवं शर्त उपलब्ध हैं | युवा शाइरों से निवेदन है कि इस पुरस्कार योजना में शामिल हो कर इसे सफल बनाएँ व इसका लाभ उठायें |…
Added by वीनस केसरी on November 3, 2013 at 7:30pm — 27 Comments
दीवाली के दोहरे
होती है हर एक को, रिद्धि सिद्धि की चाह।
दीप पर्व दिखला रहा, अंतर मन को राह।१।
उनका जीवन पथ चुनें, करें आत्म उत्थान।
जिनके जीवन में मिला, यश कीरत…
ContinueAdded by Satyanarayan Singh on November 3, 2013 at 7:00pm — 28 Comments
छंदों के दीप जलें, शायरी की झिलमिल हो
हँसी खुशी भरी सदा, ओबिओ की महफिल हो
साहित्य करे उन्नति, भाषा का विकास हो
इस मंच पर सदा-सदा स्नेह का प्रकाश हो
सभी विधाओं का सभी दिशाओं में उत्थान हो
सभी नयी प्रतिभाओं के लिये यहां मुस्कान हो
समस्त लक्ष्य - योजना व स्वप्न साकार हो
आने वाले पल के सदा हाथ में उपहार हो
दीपावली की 'चर्चिती शुभकामना' फलीभूत हो
इस मंच के सभी प्रयास सफल व अनुभूत हों
(मौलिक एवं…
ContinueAdded by VISHAAL CHARCHCHIT on November 3, 2013 at 2:00pm — 16 Comments
दीप पावन तुम जलाओ, अंधियारा जो हरे ।
पावन स्नेह ज्योति सबके, हृदय निज दुलार भरे ।
वचन कर्म से पवित्र हो, जीवन पथ नित्य बढ़े ।
लीन हो ध्येय पथ पर, नित्य नव गाथा गढ़े ।
कीजिये कुछ परहित काज, दीन हीन हर्षित हो ।
अश्रु न हो नयन किसी के, दुख दरिद्र ना अब हो ।
सीख दीपक से हम लेवें, हम सभी कैसे जियें ।
मन सभी निर्मल रहे अब, हर्ष अंतर्मन किये ।
शुभ करे लिये शुभ विचार, मानव का मान करे ।
भटक ना जाये मन राह, अधर्म कोई न करे ।
कायम हो…
Added by रमेश कुमार चौहान on November 3, 2013 at 1:00pm — 11 Comments
ज्योतिपर्व की रात में ,करो तिमिर का नाश!
सच ही जीता है सदा ,ऐसा हो विश्वास !!
शांतिदीप घर घर जले ,समय तभी अनुकूल !
आपस में सौहार्द हो,कटुता जाओ भूल !!
ज्योतिपर्व की रात में ,तुम्हे समर्पित तात !
जीवन यूँ जगमग रहे ,दीपों की सौगात!!
मन में शुभ संकल्प लो,हाँथो में ले दीप !
अंतस का कल्मष छटे ,मन का आँगन लीप !!
मन का अँधियारा छटे,कटे दम्भ का जाल !
पहनाओ कुछ इस तरह ,दीपों की इक माल !!
ज्योतिपर्व…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on November 3, 2013 at 11:30am — 26 Comments
सुन..! मेरे मिट्टी के बर्तन,
तू अपनी असलियत को पहचान
इस संसार की झूठी, खोखली वाहवाही से
परे रहना
अपनी गहराई से ज्यादा, अनुपयोगी द्रव्य को
मत सहेजना, ढुल जाता है..
इक दिन निकल गया मैं
किसी के कहने पर
इक नयी मिट्टी का बर्तन बनाने
उस मिटटी में सौंधी खुसबु,
रंग मेरी मिट्टी की ही तरह, साँवला
हुबहू.... मेरे जैसी ही मिट्टी
पर शायद तनिक, कंकरियां मिली थीं,
उससे न बना पाया,बर्तन
बनने से…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on November 3, 2013 at 11:30am — 28 Comments
पाव पाव दीपावली, शुभकामना अनेक |
वली-वलीमुख अवध में, सबके प्रभु तो एक |
सब के प्रभु तो एक, उन्हीं का चलता सिक्का |
कई पावली किन्तु, स्वयं को कहते इक्का |
जाओ उनसे चेत, बनो मत मूर्ख गावदी |
रविकर दिया सँदेश, मिठाई पाव पाव दी ||
मौलिक / अप्रकाशित
वली-वलीमुख = राम जी / हनुमान जी
पावली=चवन्नी
गावदी = मूर्ख / अबोध
Added by रविकर on November 3, 2013 at 9:00am — 13 Comments
दीपोत्सव पर्व की हार्दिक शुभकामनाए
पुष्य नक्षत्र की शुभ बेला में, लक्ष्मी जी ने जन्म लिया,
महक फैलाती आई कमला, गुरु नक्षत्र का चयन किया |
ज्ञान पिपासु की वृद्धि करने, ज्ञानेश्वरी को साथ लिया,
धन वैभव में बरकत करती, सुख सम्रद्धि का भाव दिया |
लक्ष्मी,गणेश खुश हो जाते,जब हो हंसवाहिनी संग,
दीपोत्सव त्यौहार मनाओ, रंगोली ले आती रंग |
घर लक्ष्मी की हो प्रसन्नता, लक्ष्मी देवे तब वरदान
बिन गणपति और…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 3, 2013 at 6:30am — 14 Comments
अब तक तो सभी घरों मे रंग रोगन होकर नए तरीके से सभी के घर भी सज चुके है । जिन घरों मे रंग रोगन नहीं हुआ है वहाँ साफ सफाई होकर सज सज्जा के साथ घरों को लक्ष्मी जी के आगमन हेतु तैयार कर लिया गया है । इस दिवाली लक्ष्मी जी सभी के घरों को खुशियों से भर दें । सभी के मनों मे प्रेम, सौहार्द्य एवं सच्चाई का उजाला भर दें ।कहा जाता है कि दीपावली कि रात्री मे विष्णु प्रिया श्री लक्ष्मी सदगृहस्थों के घर मे प्रवेश कर यह देखती है कि हमारे निवास योग्य घर कौन…
ContinueAdded by annapurna bajpai on November 2, 2013 at 9:30pm — 16 Comments
उतर रही लक्ष्मी घर आंगन
सावन भादो बरस गये
हर्षित हुई अवनी.
नृत्य कर रही है वह खेतों में
धानी चुनरी पहन.
मिली किसानों को फ़सलों का सौगात
बीत गये अंधकार भरे दिन.
गा रही है हर सुबह
उषा, मृदु स्वर में असावरी.
उल्लसित है सब का मन.
कर पितरों को जल तर्पण
भगवती को सुगंधित अर्ध्य अर्पण
तुलसी बीरवा तले दीप जला
त्यौहारों का है मौसम
सखी! सतरंगी परिधान पहन
चल हाट! मोल ले चूड़ियाँ
सिंदूर टिकुली मेहेंदी महावर
और…
Added by coontee mukerji on November 2, 2013 at 5:07pm — 12 Comments
सवाल-ए-इश्क़, रुख़ पे, क्या असर लाये, सुभान’अल्ला!
झुकी नज़रेँ उठेँ, उठ कर झुकेँ, हाए, सुभान’अल्ला!
पलक से, वक़्त बे-क़ाबू, हवा मोड़े जो, चाल ऐसी,
खुले जो ज़ुल्फ, मौज आये, घटा छाये, सुभान’अल्ला!
तेरी खुशबू के रंगोँ से, बहारोँ की धनक महके,
तेरी आवाज़, क़ुदरत का सुकूँ, हाए, सुभान’अल्ला!
उफक़ ये हुस्न, तो, वो चाँद-सूरज हैँ तेरी बिन्दी,
सितारा, बन तेरी नथनी, चमक पाये, सुभान’अल्ला!
कमर प्याला, सुराहीदार गर्दन, जिस्म…
ContinueAdded by सन्दीप सिंह सिद्धू "बशर" on November 2, 2013 at 3:00pm — 7 Comments
ख्वाब के मोती हकीकत में पिरोने के लिए।
लोग हैं तैयार खुद की लाश ढोने के लिए।
झोंपड़े में सो रहा मजदूर कितने चैन से,
है नहीं कुछ पास उसके क्योंकि खोने के लिए।
आसमां की वो खुली, लंबी उड़ानें छोड़कर,
क्यों तरसते हैं परिंदे कैद होने के लिए।
जिंदगी भर खून औरों का बहाते जो रहे,
जा रहे हैं तान सीना पाप धोने के लिए।
जगमगाते हैं दिखावे से शहर के सब मकान,
सादगी तो रह गई है मात्र कोने के लिए।
पुष्प सारे चल…
ContinueAdded by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 2, 2013 at 12:25pm — 28 Comments
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