For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

'मैं' को ध्येय बनाऊँगी

कल्पना के मुक्त पर से

सीमाओं तक जाऊँगी।

दुश्वारियों से परे, निज

अस्तित्व को मैं पाऊँगी।।

पर हीन पंछी के हृदय

वेदना ने गान गाये।

बह न पाए अश्क जो भी,

वो शब्द सुर ही बन गये।

नभ सिन्धु तक सैर करके

रश्मि मोद चुन लाऊँगी।।

दुनिया के वीराने पथ

दृष्टि नहीं टिकती जिनपर।

संगीत सजायेंगे,उन

राहों से आहें चुनकर।

खुश होंगे सब पत्थर दिल,

गीत वही जब गाऊँगी।।

'मम' में परदर्द' जोड़कर

ऋण-ऋण धन बन जायेंगे।

तुष्ट बनेंगे हम दोनों

भोगी भी सुख पाएंगे।

एक दिन सुख-राशि बनकर

मिल 'अनन्त' में जाऊँगी।।

'मैं' नहीं व्यष्टि का द्योतक

साहित्य बसा है इसमें।

'मैं' की दिशा सही हो तो

संसार सजेगा सचमें।

हर 'मैं' उन्नत होने तक

'मैं को ध्येय बनाउँगी।।

-विन्दु

(मौलिक/अप्रकाशित)

Views: 996

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Vindu Babu on February 26, 2014 at 12:59am

आभार आदरणीय सक्सेना जी

सादर

Comment by Madan Mohan saxena on January 23, 2014 at 2:05pm
सुंदर प्रस्तुति आदरणीया।
Comment by Vindu Babu on December 11, 2013 at 1:34pm
अरे आदरणीया गीतिका जी आप तो बुरा मान गईं!
और गुस्सा मेरे साधारण से प्रयास पर...प्रतिक्रिया वापस लेकर।
कुछ देकर वापस लेना,वो भी इतनी जल्दी...ऐसा थोड़ी होता है,थोड़ा बहुत तो हास-परिहास चलता है न!
फिर प्रश्न पूछना गलत है क्या?
उत्तर देना न देना अपनी जगह पर।
निवेदन है सहयोग बनाए रखें।
सादर
Comment by Vindu Babu on December 11, 2013 at 1:05pm
आदरणीय सौरभ सर आपकी रचना पर प्रतिक्रिया पाकर आत्मबल बढा,इसके लिए आपका हार्दिक आभार।
मैं आपके कथ्य को आत्मसात कर सुधार का प्रयास करूंगी।
स्नेह बनाए रखें आदरणीय।
सादर
Comment by वेदिका on December 10, 2013 at 8:59pm

//एक प्रश्न आदरणीया गीतिका जी से - क्या वास्तव में कल्पना असीम होती है? क्या रचना में प्रयुक्त 'सीमाओं' शब्द कल्पना की सीमाओं के लिए है, या सामर्थ्य की सीमाओं के लिए, या और किसी ओर इशारा है?

आपके मार्गदर्शन के प्रतीक्षा रहेगी!//

आदरणीय बृजेश जी! किसी रचनाकार की रचना पर मै आपको मार्गदर्शन देने का दुस्साहस नहीं कर सकती|  मै अपनी प्रतिक्रिया वापस लेती हूँ|


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 10, 2013 at 8:22pm

टिप्पणियों से ज्ञात हुआ कि यह आपकी पहली मात्रिक कविता है. इस प्रयास पर हार्दिक बधाई, वन्दनाजी.
लेकिन एक बात अवश्य कहना चाहूँगा, यदि मुझे सुना गया तो ! कारण, कि अबतक का मेरा अनुभव यही बताता है कि हम अपने कथ्य या तथ्यों के प्रति इतने आग्रही हो गये हैं कि किसी से कुछ सुनना सहज प्रतीत नहीं होता. इसे आप अपने पर कोई टिप्पणी या कटाक्ष न मानें इसकी प्रार्थना है.

विधा कोई हो, प्रयास के साथ उस विधा की मूलभूत बातों को सदा मस्तिष्क में पृष्ठभूमि-धुन की तरह बजते रहना चाहिये अन्यथा गहन कथ्य बस किसी भार की तरह लदे दीखते हैं.
आपकी इस कविता में मात्रिकता के मूलभूत नियमों का निर्वहन नहीं हुआ है.
बाकी, सभीने बहुत कुछ कहा है.

आपका प्रश्न हो सकता है कि मात्रिकता के वो मूलभूत नियम कहाँ हैं.

उत्तर है, आपकी जिज्ञासा और आपके सतत अध्ययन में.

आप इसी मंच पर हैं. समुचित समय दें. हर कुछ पर चर्चा होती है. स्पष्ट होता रहेगा.
शुभेच्छाएँ

Comment by Vindu Babu on December 9, 2013 at 8:26am
आदरणीय शरदेन्दु सर नमस्ते।
आपकी टिप्पणी पाकर मन बहुत खुश हुआ।
आपने कहा 'गम्भीर विद्यार्थी'... गंभीरता आई इसका मतलब अब 'सीखना' भी आ जाएगा।

आपके दृष्टिकोण को प्रणाम है,कविता का उद्गम 'भाव' से होता है और कविता का हृदय में विलय होने पर भी भावसम्वर्धन ही होता है इसलिए भाव ही तो प्रधान है।

इस रचना के भाव पर आंशिक ही सही पर चर्चा हुई,रचनाकर्म सार्थक हुआ,मैं मंच की आभारी हूं।

//भावों ते माध्यम से रचनाकार और पाठक के बीच सफलतापूर्वक संवाद होता रहे,तो कोई भी रचना सार्थक और सुन्दर है//
आपकी यह बात मेरे हृदय को छू गई। यह आपने मुझे ही नही पूरे मंच को संदेश दिया है।
आपका हृदयातल से बारम्बार आभार आदरणीय।
शुभ शुभ
सादर
Comment by Vindu Babu on December 9, 2013 at 6:25am
आदरणीय बृजेश सर आपकी प्रतिक्रिया हमारा सम्बल है। आपका प्रश्न रचना को और स्पष्टता की ओर ले जा रहा है।
आपका बहुत आभार आदरणीय
सादर
Comment by Vindu Babu on December 9, 2013 at 6:18am
आदरणीय विजय सर आपकी टिप्पणी से यूं लगा जैसे रचना में और वजन आ गया है।
आपने रचना को अपने मनोभाव से जोड़ा,ये सच में मेरे लिए बहुत गौरव की बात है।
आपके स्नेह की आभारी हूं आदरणीय,आशीर्वाद बनाए रखें।
आपका हार्दिक आभार
सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on December 9, 2013 at 1:58am

आदरणीया वंदना जी, आपकी इस रचना को कई बार पढ़ा. बहुत गहन भाव हैं. शिल्प के विषय में विद्वानों ने थोड़ा इंगित किया है...आप गम्भीर विद्यार्थी हैं साहित्य के क्षेत्र में, शीघ्र ही 'कविता' के हर आंगिक में महारत भी हासिल करेंगी इसमें मुझे कोई संदेह नहीं है...वैसे मुझसे ये बातें नि:संदेह हास्यास्पद हैं क्योंकि मेरी रचनाएँ आवारा बादल की तरह होती हैं....मै शिल्प का जानता ही क्या हूँ. हाँ, भाव तो दिल को छूते हैं. भावों के माध्यम से यदि रचनाकार और पाठक के बीच संवाद सफलतापूर्वक होता रहे तो कोई भी रचना सार्थक और सुंदर है. मेरे दृष्टिकोण से इस कसौटी पर आपकी रचना खरी उतरती है. आपसे इस मंच की बहुत आशाएँ बँध रही हैं. हार्दिक शुभकामनाएँ.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"भाई शिज्जू जी, क्या ही कमाल के अश’आर निकाले हैं आपने. वाह वाह ...  किस एक की बात करूँ…"
19 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपके अभ्यास और इस हेतु लगन चकित करता है.  अच्छी गजल हुई है. इसे…"
42 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय शिज्जु भाई , क्या बात है , बहुत अरसे बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ा रहा हूँ , आपने खूब उन्नति की है …"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" posted a blog post

ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है

1212 1122 1212 22/112मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना हैमगर सँभल के रह-ए-ज़ीस्त से गुज़रना हैमैं…See More
4 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधकह दूँ मन की बात या, सुनूँ तुम्हारी बात ।क्या जाने कल वक्त के, कैसे हों…See More
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते…See More
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
""रोज़ कहता हूँ जिसे मान लूँ मुर्दा कैसे" "
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"जनाब मयंक जी ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, गुणीजनों की बातों का संज्ञान…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय अशोक भाई , प्रवाहमय सुन्दर छंद रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई "
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय बागपतवी  भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक  आभार "
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आदाब, ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएँ, गुणीजनों की इस्लाह से ग़ज़ल…"
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
14 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service