Added by Ravi Prakash on December 9, 2013 at 2:27pm — 19 Comments
१.
मात पिता तो बोझ सम, आपन पूत सुहाय ।
जियबे पर ...पानी नही, मरे गया लइ जाय ॥
२.
धूल संस्कृति फाँकती, ....संस्कार हैं रोय ।
अंधी दौड़ विकास की, मानो सबकुछ होय॥
३.
है विवेक तो तनिक नहिं, शब्दन की भरमार।
अधकचरा से ज्ञान पर,...... हिला रहे संसार॥
४.
ज्ञान समुन्दर उर बसै, फिर भी भटकय जीव।
मन ना बस में करि सकै, ..तन जैसे निर्जीव॥
५.
देख मनुष का गर्व यों, ..सोच रहे भगवान ।
धरा नरक बन जाय जो, सारे होयँ समान…
Added by Kiran Arya on December 9, 2013 at 1:00pm — 17 Comments
२१२२ १२१२ १२२ २२२
रोज आदत जो तुमसे मिल ने की हो जायेगी
मौत की रात मेरी रूह भी रो जायेगी
आखिरी पल क़ज़ा जो सामने होगी मेरे
जिन्दगी इक हसीन ख्वाब में खो जायेगी
आज साकी बनी ग़ज़ल खडी है महफ़िल में
रिंद जब देंगे मशविरा सँवर वो जायेगी
हार उल्फत का देख मौत होगी शर्मिंदा
मौत खुद जिन्दगी ही हार में पो जायेगी
बात गुल से हसीं हो खार सी कड़वी चाहे
बीज जेहन मे ये ग़ज़ल के ही बो…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on December 9, 2013 at 11:30am — 10 Comments
वह अलौकिक हेडलाईट – आँखों देखी 6
शीतकालीन अंटार्कटिका का अनंत रहस्य हर रोज़ अपने विचित्र रंग-रूप में हमारे सामने उन्मोचित हो रहा था. बर्फ़ के तूफ़ान चल रहे थे जो एक बार शुरु होने पर लगातार घन्टों चला करते. कभी-कभी तो छह सात दिन तक हम पूरी तरह स्टेशन के अंदर बंदी हो जाते थे. 80 से 100 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से हवा चलती जो झटके से, जिसे तकनीकी भाषा में Gusting कहते हैं, प्राय: 140 कि.मी.प्र.घ. हो जाती थी. तूफ़ान के आने का…
ContinueAdded by sharadindu mukerji on December 9, 2013 at 12:14am — 20 Comments
2122 2122 1222 12
चल दिया है छोड़, क्या जुल्म ये काफी नहीं
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अब हमारी याद भी क्यूँ तुम्हें आती नहीं
चल दिया है छोड़,क्या जुल्म ये काफी नहीं //१//
तू हमारे दिल बसा , इसमें है कैसी खता
हो गया हमसे जुदा याद क्यूँ जाती नहीं //२//
वो हवायें वो फिजायें बुलाती हैं तुम्हें
आ तो जाओ फिर कोई बात यूँ भाती नहीं //३//
मुडके भी देखा नहीं तुम गये जाने…
ContinueAdded by Atendra Kumar Singh "Ravi" on December 8, 2013 at 9:30pm — 7 Comments
सब कुछ वैसा ही हो जाये
जैसा हमने चाहा था
जैसा हमने सोचा था
जैसा सपना देखा था
सब कुछ वैसा ही हो जाये
लेकिन वैसा कब होता है
कुछ पाते हैं, कुछ खोता है
ठगा-ठगा निर्धन रोता है
थका-हारा, भूखा सोता है
तुम हम सबको बहलाते हो
नाहक सपने दिखलाते हो
अपने पीछे दौडाते हो
गुर्राते हो, धमकाते हो
और हमारे गिरवी दिल में
बात यही भरते रहते हो
सब कुछ वैसा हो जायेगा
जैसा हम सोचा करते हैं
जैसा हम…
Added by anwar suhail on December 8, 2013 at 9:00pm — 5 Comments
तुमने खीची थी जो
सादे पन्ने पर
आड़ी तिरछी रेखाएं
वही मेरी जिंदगी की
तस्वीर है
वही जी रहा हूँ.
रस भरी के फल
जिसे छोड़ दिया था
तुमने कड़वा कहकर
वही मेरी जिंदगी की
मिठास है .
वही जी रहा हूँ ..
मंजिल पाने की जल्दी में
जिस राह को छोड़ कर
तुमने लिया था शोर्ट कट
वही मेरी जिंदगी की
राह है .
वही जी रहा हूँ .
तुम हो गये मुझसे दूर
तुम्हे अंक के…
ContinueAdded by Neeraj Neer on December 8, 2013 at 7:00pm — 14 Comments
प्रेम करो प्रकृति द्वारा
सृजित जीवन से
तो ही जान सकोगे
जीवन के गर्भ में
छुपे अनगिनत रहस्यों को
प्रेम से खुलेंगे
जीवन के वो द्वार
जिनके लिए जन्मों जन्मों
से भटकते रहे तुम
जिनसे अब तक
अन्जान रहे तुम
प्रेम से होगी यह प्रकृति
तुम्हे समर्पित
खोल कर रख देगी
सारे राज तुम्हारे सामने
जैसे गिरा देती है प्रेयसी
परदे अपने प्रेमी के सामने ।
मौलिक व अप्रकाशित
नीरज 'प्रेम '
Added by Neeraj Nishchal on December 8, 2013 at 12:51pm — 19 Comments
बहरे रमल मुसमन महजूफ
2122 2122 2122 212
फूल जो मैं बन गया निश्चित सताया जाऊँगा,
राह का काँटा हुआ तब भी हटाया जाऊँगा,
इम्तिहान-ऐ-इश्क ने अब तोड़ डाला है मुझे,
आह यूँ ही कब तलक मैं आजमाया जाऊँगा,
लाख कोशिश कर मुझे दिल से मिटाने की मगर,
मैं सदा दिल के तेरे भीतर ही पाया जाऊँगा,
एक मैं इंसान सीधा और उसपे मुफलिसी,
काठ की पुतली बनाकर मैं नचाया जाऊँगा,
जख्म भीतर जिस्म में अँगडाइयाँ लेने लगे,
मैं बली फिर से किसी…
Added by अरुन 'अनन्त' on December 8, 2013 at 12:00pm — 26 Comments
बातें खत्म हो गई जिसका
जिक्र हम किया करते थे ...
वो गलियाँ कहीं
खो गईं जिनपे हम
चला करते थे ...
न शाम रही न धुआँ
किसी एक भी
चराग में...
वो चले गए जिन्हे
हम देखा करते थे...
हमको क्या हक़ है
अब, किसी को कुछ कहने का ,,,
रास्ता वो सब छूट गए
जिनपे हम मिला करते थे ...
अब हमको क्या मारेगी
क्या, ये दुनियाँ की विरनिया
वो अंदाज और था जीने का
जब रोज मरा करते थे…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on December 8, 2013 at 10:55am — 6 Comments
सीएफ़एल बोली, "हे बल्ब महोदय! आप ऊर्जा बहुत ज्यादा खर्च करते हैं और रोशनी बहुत कम देते हैं। मैं आपकी तुलना में बहुत कम ऊर्जा खर्च करके आपसे कई गुना ज्यादा रोशनी दे सकती हूँ।"
बल्ब महोदय ने चुपचाप सीएफ़एल के लिए कुर्सी खाली कर दी। रोशनी फैलाने वालों के इतिहास में बल्ब महोदय का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा गया।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 7, 2013 at 11:30pm — 12 Comments
2 1 2 2 2 2 1 2
.
दफ़्तरों में आराम क्यों
फाइलों में है काम क्यों
सुरमयी सी इक शाम है
फिर उदासी के नाम क्यों
कर गया वो करतूत…
ContinueAdded by अमित वागर्थ on December 7, 2013 at 11:00pm — 11 Comments
छंद त्रिभंगी
विधान : चार पद, दो दो पदों में सम्तुकांतता,
प्रति पद १०,८,८,६ पर यति,
पदांत में गुरु अनिवार्य
प्रत्येक पद के प्रथम दो चरणों में तुक मिलान
जगण निषिद्ध
यह जीवन मृण्मय , बंधन तृणमय , भास हिरण्मय , भरमाए
इन्द्रिय बहिगामी , कृत…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on December 7, 2013 at 10:10pm — 12 Comments
ग़ज़ल-
.
मौसम की आसमान में जाहिर हुई खुशी।
खुश्बू है आम की, और कोयल है कूकती।।
बाहर निकल के घर से जरा खेत में चलें,
फ़सलों की खुश्बुओं से निखरती है जिन्दगी...
सूरज को प्रातः काल नमस्कार कीजिये,
अंधकार वो भगाये है, देता है रोशनी....
है आज मेरी और सितारों की ग़फतगू,
ऐ-चाँद पास आओ जरूरत है आपकी...
बरसों गुजर गये हैं मुलाक़ात भी हुये,
अब भी ख़याल आता है मुझको…
ContinueAdded by सूबे सिंह सुजान on December 7, 2013 at 10:00pm — 12 Comments
जीवन का क्या
कब झड़े ज्यूँ सूखे
पेड़ के पत्ते
माँ का दुलार
कितना भी हो, लगे
ओस की बूँद
मन बावरा
कभी जो मान जाता
मन की बात
नदी डालती
भले ही मीठा जल
सागर खारा
.
(मौलिक-अप्रकाशित)
Added by Neelam Upadhyaya on December 7, 2013 at 6:00pm — 6 Comments
तुम्हारे बाहुपाश के लिए …….
कितने
वज्र हृदय हो तुम
इक बार भी तुमने
मुड़कर नहीं देखा
तुम्हारी एक कंकरी ने
शांत झील में
वेदना की
कितनी लहरें बना दी
और तुम इसे एक खेल समझ
होठों पर
हल्की सी मुस्कान के साथ
मेरे हाथों को
अपने हाथों से
थपथपाते हुए
फिर आने का आश्वासन देकर
मुझे
किसी गहरी खाई सा
तनहा छोड़कर
कोहरे में
स्वप्न से खो गए
और मैं
तुम्हें जाते हुए
यूँ निहारती रही…
Added by Sushil Sarna on December 7, 2013 at 5:30pm — 11 Comments
2122 2122 2122 2121
ख़म नहीं ज़ुल्फ़ों के ये जिनको कि सुलझायेंगे आप
उलझने हैं इश्क़ की फिर से उलझ जायेंगे आप
कौन कहता है मुहब्बत अक्स है तन्हाइयों का
हम न होंगे साथ जब साये से घबराएंगे आप
दे तो दोगे इस ज़माने के सवालो का जवाब
दिल नहीं सुनता किसी की कैसे समझायेंगे आप
जा रहे हो बे-रुखी से जान लो इतना ज़रूर
क़द्र जब होगी मुहब्बत कि…
Added by Ayub Khan "BismiL" on December 7, 2013 at 2:30pm — 11 Comments
तुम हो कली कश्मीर की , कोई फ़ना हो जाएगा
रब देख ले तुझको अगर , वो भी फ़िदा हो जाएगा /१
कोरा दुपट्टा बांध लो, पतली कमर के खूंट से
सरकी अगर ये नाज़ से , मौसम खफ़ा हो जाएगा/२
साहिब बहाने से गया, मैं बारहा उसकी गली
दिख जाये गर शोला बदन , कुछ तो नफा हो जाएगा /३
शीशे से नाजुक हुस्न पर, जालिम बड़ी मगरूर है
दो पल की है ये नाजुकी, फिर सब हवा हो जाएगा /४
मुझको सज़ा-ए-मौत दो , शामिल रहा हूँ क़त्ल में
उनको सुकूँ मिल जाएगी, हक़ भी…
ContinueAdded by Saarthi Baidyanath on December 7, 2013 at 12:30pm — 12 Comments
सोच रही हूँ
लड़ूँगी प्रभु से
जब मिलूँगी पर वह भी
डर से
छुपा बैठा है , आता ही नहीं
बुलाने पर हमारे हमारी जिन्दगी को
तबाह किये बैठा है , जिस दिन भी
मिलेगा सुनाउँगी
उसे बहुत जानता हैं
वह भी शायद
इसी लिए मेरी जिन्दगी
की डोर को
ढील दिए
बैठा है ....
.
सविता मिश्रा
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by savitamishra on December 7, 2013 at 12:00pm — 22 Comments
212221222122
आज खबरों में जहाँ जाती नज़र है।
रक्त में डूबी हुई, होती खबर है।
फिर रहा है दिन उजाले को छिपाकर,
रात पूनम पर अमावस की मुहर है।
ढूँढते हैं दीप लेकर लोग उसको,
भोर का तारा छिपा जाने किधर है।
डर रहे हैं रास्ते मंज़िल दिखाते,
मंज़िलों पर खौफ का दिखता कहर है।
खो चुके हैं नद-नदी रफ्तार अपनी,
साहिलों की ओट छिपती हर लहर है।
हसरतों के फूल चुनता मन का…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on December 7, 2013 at 10:56am — 20 Comments
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