जो बातें होठों तक न आ पाएँ
उसे कागजों पर
उकेरा करो ....
दिल में न रखा करो
ओंठ न सिया करो
कुछ बातें लिखनी मुश्किल हो
तो आँखों से कह दिया करो
जब तन्हा हुआ करो
तो आवाज़ दिया करो
जो हसरत तेरी चाहत मे हो
मेरे दामन से ले लिया करो
गुफ्तगू
जम कर किया करो ....
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Amod Kumar Srivastava on November 14, 2013 at 10:30pm — 10 Comments
टूटी चूड़ियाँ
बह गया सिन्दूर
साथ ही टूटा
अनवरत
यंत्रणा का सिलसिला
बह गया फूटकर
रिश्तों का एक घाव
पिलपिला
अब चाँद के संग नहीं आएगा
लाल आँखें लिए
भय का महिषासुर
कभी कभी अच्छा होता है
असर
जहरीली शराब का ..
... नीरज कुमार ‘नीर’
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Neeraj Neer on November 14, 2013 at 8:30pm — 32 Comments
ग़ज़ल –
२१२२ १२१२ २२
अक्षरों में खुदा दिखाई दे
अब मुझे ऐसी रोशनाई दे |
हाथ खोलूं तो बस दुआ मांगूँ,
सिर्फ इतनी मुझे कमाई दे |
रोशनी हर चिराग में भर दूं ,
कोई ऐसी दियासलाई दे |
माँ के हाथों का स्वाद हो जिसमें,
ले ले सबकुछ वही मिठाई दे |
धूप तो शहर वाली दे दी है,
गाँव वाली बरफ मलाई दे |
बेटियों को दे खूब आज़ादी ,
साथ थोड़ी उन्हें हयाई दे…
ContinueAdded by Abhinav Arun on November 14, 2013 at 7:45pm — 41 Comments
मंदिरों में है बसेरा मस्जिदों में घर तेरा
ऐ परिन्दा बोल आख़िर कौन है रहबर तेरा ?
तेरे ज़ख्मों को भरेगा कौन ऐ हिन्दोस्तां ?
मुददतों से है पड़ा बीमार चारागर तेरा
अम्न के दुश्मन ने फिर ओढ़ा है चाँदी का नक़ाब
हो न जाये बेअसर इस बार भी पत्थर तेरा
इस तरफ मोहताज टूटी खाट को आम आदमी
उस तरफ मख़मल पे सोता है हर इक नौकर तेरा
सोच दिल पे हाथ रखकर ऐ वतन के नौजवां
हादसों के बाद क्यों आता है नाम अक्सर तेरा
.
"मौलिक व…
ContinueAdded by Sushil Thakur on November 14, 2013 at 4:30pm — 16 Comments
मन से सच्चा प्रेम दें, समझें एक समान ।
बालक हो या बालिका, दोनों हैं भगवान ।।
उत्तम शिक्षा सभ्यता, भले बुरे का ज्ञान ।
जीवन की कठिनाइयाँ, करते हैं आसान ।।
नित सिखलायें नैन को, मर्यादा सम्मान ।
हितकारी होते नहीं, क्रोध लोभ अभिमान ।।
ईश्वर से कर कामना, उपजें नेक विचार ।
भाषा मीठी प्रेम की, खुशियों का आधार ।
सच्चाई ईमान औ, सदगुण शिष्टाचार ।
सज्जन को सज्जन करे, सज्जन का व्यवहार ।।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by अरुन 'अनन्त' on November 14, 2013 at 3:00pm — 23 Comments
क्या कभी देखा है
छोटे - छोटे बच्चो को
कूड़ा बीनते
या फिर किसी होटल में
जूठे प्याले धोते
या फूटपाथ पर जूते सिलते
या किसी सेठ की
भव्य दूकान में
अपनी उम्र और वज़न से
ज्यादा बोझ उठाते
या श्रम करते ?
तो क्या यही सचमुच
भारत के बच्चे है,
देश के भविष्य है ?
क्या इन बच्चो के
प्यारे-प्यारे मन में
हमने कभी झाँका है ?
क्या उनके सपनो को
जग ने कभी नापा…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 14, 2013 at 8:30am — 11 Comments
फिर बारिशें होने लगती हैं......
कभी कभी
एक दावानल सा भड़क जाता है
मन के
हरे भरे /महकते
चहचहाते /किलोल करते
गर्जनाओं और वर्जनाओं के / जंगल में
डर
चीखों और चीत्कारों के साथ
हावी हो जाता है....
बेचैनी / घबराहट / घुटन / यंत्रणा
जैसे शब्द
किसी क्षण की चरम स्थितियों…
Added by dr lalit mohan pant on November 14, 2013 at 1:30am — 11 Comments
Added by Amod Kumar Srivastava on November 13, 2013 at 10:01pm — 16 Comments
जो रख हाथ तू माथे पे मेरे
मैं रोना भूल जाऊँगा
जो दे दे हाथ तू हाथों में मेरे
मैं उठ कर खिल खिलाऊँगा
ना जाने दे मुझे उस पर तक
ना फिर मैं लौट पाऊँगा
ये क्या ज़िद है मेरी बच्चों के तरह
कि मैं फिर से लड़खड़ाऊँगा
तू झिड़क दे हाथ मेरा
मैं फिर अंगुली बढ़ाऊँगा
मैं बैठा याद करने अंगुलियों पर
मैं किसको भूल जाऊँगा
रही है मेरी हमसफ़र मेरी ये ज़िंदगी
मैं कैसे भूल जाऊँगा
अप्रकाशित अमुद्रित
अजय कुमार…
Added by ajay sharma on November 13, 2013 at 9:30pm — 12 Comments
समंदर किनारे रेत पर
चलते चलते यूं ही
अचानक मन किया
चलो बनाए
सपनों का सुंदर एक घरौंदा
वहीं रेत पर बैठ
समेट कर कुछ रेत
कोमल अहसास के साथ
बनते बिगड़ते राज के साथ
बनाया था प्यारा सा सुंदर
एक घरौंदा................
वही समीप बैठ कर
बुने हजारों सपनो के
ताने बाने जो
उसी रेत की मानिंद
भुरभुरे से ,
हवा के झोंके से उड़ने को बेताब
प्यारा घरौंदा ..............
अचानक उठी…
ContinueAdded by annapurna bajpai on November 13, 2013 at 8:00pm — 23 Comments
बताया जा रहा हमें
समझाया जा रहा हमें
कि हम हैं कितने महत्वपूर्ण
लोकतंत्र के इस महा-पर्व में
कितनी महती भूमिका है हमारी
ई वी एम के पटल पर
हमारी एक ऊँगली के
ज़रा से दबाव से
बदल सकती है उनकी किस्मत
कि हमें ही लिखनी है
किस्मत उनकी
इसका मतलब
हम भगवान् हो…
ContinueAdded by anwar suhail on November 13, 2013 at 8:00pm — 10 Comments
!!! मनमोहन रूप सॅंवार रहे !!!
दुर्मिल सवैया- आठ सगण
मनमोहन रूप सॅंवार रहे, छवि देख रहे जमुना जल में।
सब ग्वाल कमाल धमाल करें, झट कूद पड़े जमुना जल में।।
अधरों पर ज्ञान भरी मुरली, रस धार बहे जमुना जल में।
गउ-ग्वालिन डूब गयीं रस में, तन तैर रहे जमुना जल में।।
के0पी0सत्यम/ मौलिक व अप्रकाशित
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on November 13, 2013 at 6:00pm — 23 Comments
बात एक रात की,
मैं था सोया
मीठे सपनो में खोया
तभी सपनो में आयी
एक सुन्दर नारी
दमकता चेहरा पर उदास
उज्जवल वस्त्र पर गंदे
कीचड में सने
मैं इर कर कॉंप…
ContinueAdded by Akhand Gahmari on November 13, 2013 at 4:10pm — 3 Comments
Added by Akhand Gahmari on November 13, 2013 at 2:29pm — 7 Comments
Added by Poonam Shukla on November 13, 2013 at 10:02am — 12 Comments
बह्र: 2122/2122/212
_______________________________
दीप मेरा दुनिया को है खल रहा
जब से ये बादे मुखालिफ जल रहा
फिर वही बेचैनियां और मन उदास
ख्वाब किसका दिल में फिर से पल रहा
चांद को अब सौंप कर सब रोशनी…
Added by शकील समर on November 12, 2013 at 11:07pm — 17 Comments
उठेगी जब तेरी अर्थी, ये नज्ज़ारा नहीं होगा,
चिता को आग देगा, क्या, तेरा प्यारा नहीं होगा?
.
हमारे आंसुओं को तुम जगह लब पर ज़रा दे दो.
यकीं जानों कि इनका ज़ायका खारा नहीं होगा.
.
नज़र मुझ से मिलाकर अब ज़रा वो बेवफ़ा देखे,
फिर उसके पास मरने के सिवा चारा नहीं होगा.
.
बहुत से लोग दुनियाँ में भटकते है मुहब्बत में,
जहां भर में कोई सूरज सा आवारा नहीं होगा.
.
ठहरता ही नहीं है ये कहीं भी एक भी पल को,
समय सा कोई भी फक्कड़ या…
ContinueAdded by Nilesh Shevgaonkar on November 12, 2013 at 10:48pm — 17 Comments
दुन्दुभी क्या? वो बाँसुरी होगी
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2122 1212 22
काई ज़ज़्बात पर जमी होगी
दूरी ,क्या यूँ ही बन गयी होगी ?
पूर्ण तो बस ख़ुदा ही होता है…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on November 12, 2013 at 6:00pm — 31 Comments
मेघ भी है, आस भी है और आकुल प्यास भी है,
पर बुझा दे जो हृदय की आग वह पानी कहाँ है ?
स्वाति जल की कामना में, 'पी कहाँ?' का मंत्र पढ़कर
बादलो को जो रुला दे, मीत ! वह मानी कहाँ है ?
क्षत-विक्षत है उर धरा का, रस रसातल में समाया,
सत्व सारा जो लुटा दे, अभ्र वह दानी कहाँ है ?
पार नभ के लोक में, जो बादलो पर राज करता,
छल-पराक्रम का धनी वह इंद्र अभिमानी कहाँ है ?
मौन पादप, वृक्ष नीरव, वायु चंचल, प्राण…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 12, 2013 at 12:30pm — 14 Comments
Added by Poonam Shukla on November 12, 2013 at 9:37am — 2 Comments
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