For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अभी विश्राम कहाँ

कह पथिक विश्राम कहाँ

मंजिल पूर्व आराम कहाँ

 

रवि सा जल

ना रुक, अथक चल

सीधी राह एक धर

रह  एकनिष्ठ

बढ़ निडर .

अभी सुबह है, 

बाकी है अभी

दुपहर का तपना.

अभी शाम कहाँ,

मंजिल पूर्व आराम कहाँ.

 

चलना तेरी मर्यादा

ना रुक, सीख बहना

अवरोधों को पार कर

मुश्किलों  को सहना

आगे बढ़ , बन जल

स्वच्छ, निर्मल

अभी दूर है सिन्धु

अभी मुकाम कहाँ

मंजिल पूर्व आराम कहाँ ..

..... नीरज कुमार नीर

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 559

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Neeraj Neer on December 20, 2013 at 6:56pm

आपका हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी ..  आपकी इस टिप्पणी के लिए . आप सब के साथ मुझे नित्य कुछ सीखने को मिलता है .. आप क्यों खेद व्यक्त करते हैं , खेद तो मुझे व्यक्त करना चाहिए कि मैं रूटीन से रूटीनी बने इस शब्द को भली भांति समझ नहीं पाया .. :) :) . चलिए इसी बहाने एक नया शब्द सीख गया .. स्नेह बनाये रखें ..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 20, 2013 at 2:24pm

खेद है, भाईजी, मैं एक ऐसे शब्द के माध्यम से आपकी इस रचना पर संवाद स्थापित कर गया जो और उलझन ही पैदा कर रहा है. मैंने पिछले दिनों आपकी एक अति उन्नत रचना पढ़ी थी. उसके समक्ष यह कविता वहीवहीपन से लबरेज़ मिली. सो रुटीनी कह गया यानि ऐसी कविता जो किसी रुटीन की तरह अभिव्यक्त हो गयी है. इस शब्द के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ. 

Comment by Neeraj Neer on December 20, 2013 at 9:20am

आदरणीय सौरभ जी मैं रूटीनी का अर्थ नहीं समझ पाया .. आपका हार्दिक धन्यवाद ..

Comment by Neeraj Neer on December 20, 2013 at 9:19am

आदरणीय जीतेन्द्र गीत जी आपका हार्दिक आभार ..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 20, 2013 at 12:21am

यह तो एक रुटीनी ही हो गयी भाई.. !

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 16, 2013 at 11:51pm

//चलना तेरी मर्यादा

ना रुक, सीख बहना

अवरोधों को पार कर

मुश्किलों  को सहना

आगे बढ़ , बन जल

स्वच्छ, निर्मल

अभी दूर है सिन्धु

अभी मुकाम कहाँ

मंजिल पूर्व आराम कहाँ ..//

निरंतरता का नाम ही तो जीवन है, सकारात्मक रचना पर बधाई स्वीकारें आदरणीय नीरज जी

Comment by Neeraj Neer on December 16, 2013 at 8:37pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब हार्दिक आभार .. 

Comment by Neeraj Neer on December 16, 2013 at 8:36pm

आपका हार्दिक आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव साहब ..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 16, 2013 at 5:46pm

सतत चलते रने की प्रेरणा देती आपकी रचना के लिये आपको बधाइय़ाँ !!!!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 16, 2013 at 1:53pm

नीर जी

आगे बढ़ने की सतत प्रेरणा देती कविता अर्थपूर्ण  है i

आपको बधाई i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
19 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service