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मेरी मां ने मुझे रोते हुए हंसना सिखाया है

मेरी दादी बताती थी कि ये सब मोह माया है,
कोई परियों की रानी है ये नानी ने बताया है।।

शिवपुरीवासियों दुगनी मोहब्बत से सुनो मुझको,
कटे हैं पंख पंछी के ये अब तक उड न पाया है।।

नहीं जब मानता था बात थप्पड मार देती थी,
मेरी मां ने मुझे रोते हुए हंसना सिखाया है।।

घमंडी मत बनो दौलत का पीछा मत करो इतना
जो अपने पास होता है वो भी सब कुछ पराया है।।

नोट—यह रचना मौलिक व अप्रकाशित है।

Views: 547

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 20, 2013 at 12:18am

एक और शेर का होना बनता था. एक मान्य ग़ज़ल हो जाती.

वैसे शिवपुरी वासियो वाला मिसरा न समझ में आया न वो बह्र में है.. .

Comment by वीनस केसरी on December 17, 2013 at 3:20am

सुन्दर प्रयास है
ढेरो शुभकामना


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 15, 2013 at 9:45pm

आदरणीय,  बहुत सुन्दर बातें कही है रचना के माध्यम से , आपको बधाई ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 15, 2013 at 7:31pm

अच्छी रचना है अतुल जी

Comment by coontee mukerji on December 15, 2013 at 6:46pm

बहुत सुंदर रचना.अब तो दादी-नानी की कहानी भी में रह गयी है.सादर

Comment by atul kushwah on December 15, 2013 at 5:33pm

आदरणीय सविता जी, गोपाल नारायण जी और अजय जी...काव्य लेखन के इस तोतले प्रयास को आशीष देने के लिए शुक्रिया। सादर— अतुल

Comment by savitamishra on December 15, 2013 at 3:50pm

sundar

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 15, 2013 at 2:42pm

atul kushwah jee

जो अपने पास होता है  वो भी सब कुछ पराया है i

अति  सुन्दर i

Comment by ajay sharma on December 15, 2013 at 1:14pm

bahut khoob 

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