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त्रिभंगी छंद पर एक प्रयास........................डॉ० प्राची

छंद त्रिभंगी

विधान : चार पद, दो दो पदों में सम्तुकांतता,

            प्रति पद १०,८,८,६ पर यति,

            पदांत में गुरु अनिवार्य 

            प्रत्येक पद के प्रथम दो चरणों में तुक मिलान

            जगण निषिद्ध 

यह जीवन मृण्मय ,  बंधन तृणमय , भास हिरण्मय ,  भरमाए 

इन्द्रिय बहिगामी , कृत परिणामी , क्षय अक्षय में , उलझाए 

निज प्राण शुद्ध हो, बुद्धि बुद्ध हो , सत ज्योतिर्मय , सुधि पाए 

तब प्राण ब्रह्मलय , हृदय प्रेममय , नित मंगलमय , धुन गाए

मौलिक और अप्रकाशित 

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 19, 2013 at 10:18am

आदरणीय सौरभ जी ,

छंद प्रस्तुतियों में शिल्प के सूक्ष्मतम तत्वों पर आप द्वारा चर्चा किया जाना सदैव ही लेखन में सकारात्मक संवर्धन का कारण बनता रहा है...

यद्यपि यह प्रस्तुति शिल्प का पूर्ण निर्वहन करती है ..फिर भी आप द्वारा इंगित किये गए चारों स्थानों पर गेयता निस्संदेह बाधित है ...और क्यों बाधित है यह भी अब पूरी पूरी तरह मुझे स्पष्ट है.. :)) 

पहले भी ऐसे ही जगण के संशय को मैंने छंद विधान समूह में स्पष्ट करना चाह था... फिर भी कुछ कुछ अस्पष्टता किसी कोने में बची ही रही होगी ...जो आज स्पष्ट हुई है 

त्रिभंगी छंद का एक सूत्र आ० संजीव सलिल जी के आलेख में अभी गौर से देखा और आपकी चर्चा द्वारा प्रदत्त दृष्टिकोण से उसे देखा...तब जा कर समझ आया 

धिन ताक धिना धिन , ताक धिना धिन, ताक धिना धिन, ताक धिना.......  मेरी दोनों पंक्तियों में उच्चारण बाधित हो रहा है क्योंकि २१ २१ ले लिया है मैंने जबकि २१ १२ शब्द सम्मुचय लिया जाना चाहिए था.

लग रहा है.. कहीं अपनी सारी त्रिभंगी छंद रचनाएं ही इस उच्चारण के चलते स्वयं ही खारिज न करनी पड़ जाएँ ...... :))))) पहले इस छंद में यथा परिवर्तन करके फिर एक नज़र उन सब पर भी डाल लूं.

सादर आभार.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 18, 2013 at 10:58pm

आदरणीया प्राचीजी,

आपकी त्रिभंगी छंद पर अधारित रचना पर आने का अब सौभाग्य बन पा रहा है.

भाव, तथ्य और कथ्य से यह रचना अति उन्नत रचना है. तत्सम्बन्धी शिल्प का भी यथोचित निर्वहन हुआ है. अंतिम दोनों पदों में शब्द संयोजन तनिक और सुगढ़ हो सकता था.
इस तथ्य को आपसे कहना इस लिए भी उचित लग रहा है क्योंकि आपने मात्रिकता सम्बन्धी कई सोपान चढ़ लिये हैं.. . :-))))

निम्नलिखित पद को देखिये -
निज प्राण शुद्ध हो, बुद्धि बुद्ध हो , सत ज्योतिर्मय , सुधि पाए

लय गड़बड़ है .. है न ?... क्यों ?

कारण कि उच्चारण के अनुसार जगण की दशा बन रही है.

जिस तरह से सम के बाद सम और विषम के बाद विषम शब्द आते हैं उसी तरह कलों का भी निर्वहन होता है. यानि द्विकल, त्रिकल, चौकल आदि के अक्षर भार पर भी ध्यान देना होता है.
शब्द प्राण  के बाद शब्द शुद्ध  यानि त्रिकल के बाद त्रिकल का निर्वहन कर रहा है. लेकिन शब्दों में अक्षर भार प्राण का २ १ तथा शुद्ध का भी २ १ होता है और गेयता के लिहाज से जगण का निर्माण हो रहा है, यानि,  २-१२१ का और प्रवाह एकदम से रुक जा रहा है. यदि प्राण के बाद ऐसा त्रिकल हो जिसके शब्द का अक्षर भार १२ हो तो जगण का उच्चारण के अनुसार निर्माण नहीं होगा. यही हालत उसी पद के दूसरे चरण में है. बुद्ध की जगह बुधा  जैसा कोई शब्द ही उच्चारण प्रवाह को निर्बाध कर पायेगा.
जैसे .. मान लिया कि दूसरे चरण में शब्द बुद्धि  के बाद कोई शब्द सुधा है तो .. यह चरण होगा ..

निज प्राण सुधा हो, बुद्धि बुधा हो, सत ज्योतिर्मय, सुधि पाए..

इस नये पद का प्रवाह अब एकदम से निर्बाध है न !!?


यही कुछ अंतिम पद के साथ है -
तब प्राण ब्रह्मलय , हृदय प्रेममय , नित मंगलमय , धुन गाए
प्राण के बाद ब्रह्म और हृदय के बाद प्रेम का आना प्रवाह-बाधा का कारण बन रहा है.

इसी हिसाब से परंपरा जैसे शब्द या बड़ा हु आदि में क्रमशः परंप  तथा बड़ा हु   जैसा जगण दीखता हुआ भी उच्चारण से जगण नहीं बना पाता और गेयता सरस बनी रहती है.

विश्वास है मैं इसे स्पष्ट कर पाया.
सादर

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 9, 2013 at 1:30pm

आदरणीया प्राची दी अनुपम त्रिभंगी छंद रचा है आपने शब्द संयोजन का तो जवाब नहीं. अत्यंत सुन्दर सुगठित हृदयस्पर्शी छंद हेतु बहुत बहुत बधाई आपको बहन.

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 9, 2013 at 12:59pm

आदरणीया प्राची जी ..बेहतरीन त्रिभंगी छंद बेहतरी शब्द चयन ..आनंद आ गया पढ़कर ..आपको ढेरों बधाई ..सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 9, 2013 at 10:23am

बहुत सुन्दर सात्विक त्रिभंगी छंद रचा है प्रिय प्राची जी बहुत-बहुत बधाई. 

Comment by ram shiromani pathak on December 9, 2013 at 9:36am

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीया प्राची जी ,,,,  हार्दिक बधाई आपको। । सादर 

Comment by Neeraj Neer on December 8, 2013 at 7:21pm

वाह आदरणीय बहुत सुन्दर .. बेहतरीन शब्द चयन और उत्कृष्ट भाव निदर्शन .. 

Comment by coontee mukerji on December 8, 2013 at 4:05pm

आदरणीया प्राची जी, बहुत सुंदर छ्न्द से आपने हमें प्रसन्न किया....अंत का वाक्य तो और भी अच्छा लगा.

तब प्राण ब्रह्मलय , हृदय प्रेममय , नित मंगलमय , धुन गाए

शुभ कामनाएँ

सादर

कुंती


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 8, 2013 at 1:54pm

आ० चन्द्र शेखर पाण्डेय जी 

आपसे इस रचना के भाव, शब्दावली व प्रवाह पर अनुमोदन पाना विशेष हर्षित कर रहा है...क्योंकि आप भी इस छंद पर काम कर चुके हैं सो इस प्रस्तुति के शिल्प से व इसे साधने के कर्म से भली भाँती परिचित हैं.

हार्दिक धन्यवाद .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 8, 2013 at 1:51pm

आदरणीय डॉ० गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी 

प्रस्तुति में प्रयुक्त शब्द समुच्चय , निहित भाव व अभिव्यक्त तथ्य आपकी अपेक्षा पर सही उत्से... मुझ रचनाकार के लिए यह परम संतुष्टि की बात है..

रचनाकर्म  को मान देने के लिए हार्दिक आभार आदरणीय 

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