श्वेत वसना दुग्ध सी, मन मुग्ध करती चंद्रिका।
तन सितारों से सजाकर, भू पे उतरी चंद्रिका।
चाँद ने जब बुर्ज से,…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on December 2, 2013 at 8:00pm — 33 Comments
प्यार में होता सदा ही दर्द क्यों है ?
यह जमाना हो गया बेदर्द क्यों है ?
है बिना दस्तक चला आता सदा जो
वो बना यूँ आज फिर हमदर्द क्यों है ?
छू रही है रूह मेरी आते जाते
यह तुम्हारी साँस इतनी सर्द क्यों है ?
अपनी यादों को समेटे जब गए हो
आज यादों की उठी फिर गर्द क्यों है ?
प्यार पर करता जुल्म हर रोज है जो
वो समझता खुद को जाने मर्द क्यों है ?
तुम समझती हो मुहब्बत जिसको सरिता
वो बना…
ContinueAdded by Sarita Bhatia on December 2, 2013 at 5:40pm — 16 Comments
मैं तारों से बातें करता हूँ
जब गहन तिमिर के अवगुंठन में
धरती यह मुँह छिपाती है
मैं तारों से बातें करता हूँ
झिल्ली जब गुनगुनाती है.
(2)
फुटपाथों पर भूखे नंगे
कैसे निश्चिंत हैं सोये हुए
उर उदर की ज्वाला में
जाने क्या सपने बोये हुए.
(3)
दो बूंद दूध का प्यासा शिशु
माँ की आंचल में रोता है
रोते रोते बेहाल अबोध
फिर जाने कैसे सो जाता है!
(4)
क्या उसके भी सपनों में
कोई, सपने लेकर आता…
Added by sharadindu mukerji on December 2, 2013 at 5:00pm — 20 Comments
रघु सुबह-सुबह ऑटो रिक्शा लेकर सड़क पर निकला ही था क़ि तभी ट्रैफिक पुलिस के एक सिपाही ने हाथ देकर रिक्शा रोक लिया, रघु एक अंजाने भय से कांप गया |
"स्टेशन जा रहे हो क्या ? चलो मुझे भी चलना है" सिपाही जी अपने चिरपरिचित अंदाज मे बोले |
"जी, साहब, स्टेशन ही जा रहे हैं"
आज दिन ही खराब है, सुबह सुबह पता नही किसका मुँह देख लिया था, अभी बोहनी भी नही हुई और सिपाही जी आकर बैठ गये, मन ही मन खुद को कोसते हुए रघु गंतव्य की ओर बढ़ चला | रघु स्टेशन पहुँच कर सभी…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 2, 2013 at 4:13pm — 36 Comments
"क्या? आपने धूम्रपान छोड़ दिया? ये तो आपने कमाल ही कर दिया।"
"आखिर इतनी पुरानी आदत को एकदम से छोड़ देना कोई मामूली बात तो नहीं।"
"सही कहा आपने, ये तो कभी सिगरेट बुझने ही नही देते थे।"
"जो भी है, इनकी दृढ इच्छा शक्ति की दाद देनी होगी।"
"इस आदत को छुड़वाने का श्रेय आखिर किस को जाता है?"
"भाभी को?"
"गुरु जी को?"
"नहीं, मेरी रिटायरमेंट को।"उसने ठंडी सांस लेते हुए उत्तर दिया।
.
.
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by योगराज प्रभाकर on December 2, 2013 at 4:00pm — 63 Comments
"देखो-देखो दमयंती, तुम्हारे शहर के कारनामे!! कभी कोई अच्छी खबर भी आती है, रोज वही चोरी, डकैती ,अपहरण ...और एक तुम हो कि शादी के पचास साल बाद भी मेरा शहर मेरा शहर करती नहीं थकती हो अब देखो जरा चश्मा ठीक करके टीवी में क्या दिखा रहे हैं" कहते हुए गोपाल दास ने चुटकी ली।
"हाँ-हाँ जैसे तुम्हारे शहर की तो बड़ी अच्छी ख़बरें आती हैं रोज, क्या मैं देखती नहीं थोडा सब्र करो थोड़ी देर में ही तुम्हारे शहर के नाम के डंके बजेंगे" दादी के कहते ही सब बच्चे हँस पड़े और उनकी नजरें टीवी स्क्रीन पर गड़ गई। …
Added by rajesh kumari on December 2, 2013 at 11:46am — 29 Comments
"एक लाख पचपन हजार.. एक
एक लाख पचपन हजार.. दो
एक लाख पचपन हजार.. तीन ..."
अधिकारी महोदय ने जोर से लकड़ी का हथौड़ा मेज पर दे मारा. रघुराज ठेकेदार की तरफ देखते हुए वे धीरे से मुस्कुरा दिए.
रघुराज ठेकेदार ने भी आँखों ही आँखों में अधिकारी महोदय को मुस्कुराते हुए अपनी सहमति जतायी और अपने मित्र मोहन के कंधे पर हाथ रख धीरे से बोल उठे, ''ओये मोहन्या..चल भाई, हम भी अब अपना काम करें. अधिकारी महोदय के लिए पूरा इंतजाम करना है ''
दोनों खुश-खुश नीलामी स्थल से…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on December 2, 2013 at 9:36am — 34 Comments
ज़िन्दगी तू मौत से पीछा छुड़ा न पाएगी।
उम्र बढ़ती जाएगी , करीब आती जाएगी।।
ज़िन्दगी सफर है और, मुक्ति है मंजि़ल…
ContinueAdded by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on December 2, 2013 at 9:07am — 24 Comments
चोटिल अनुभूतियाँ
कुंठित संवेदनाएँ
अवगुंठित भाव
बिन्दु-बिन्दु विलयित
संलीन
अवचेतन की रहस्यमयी पर्तों में
पर
इस सांद्रता प्रजनित गहनतम तिमिर में भी
है प्रकाश बिंदु-
अंतस के दूरस्थ छोर पर
शून्य से पूर्व
प्रज्ज्वलित है अग्नि
संतप्त स्थानक
चैतन्यता प्रयासरत कि
अद्रवित रहें अभिव्यक्तियाँ
फिर भी
अक्षरियों की हलचल से प्रस्फुटित
क्लिष्ट, जटिल शब्दाकृतियों…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on December 2, 2013 at 9:00am — 37 Comments
ग़ज़ल
लोग फिर बातें बनाने आ गए,
यार मेरे, दिल दुखाने आ गए.
...
जिंदगी का ज़िक्र उनसे क्या करूँ,
मौत को जो घर दिखाने आ गए.
...
रूठनें का लुत्फ़ आया ही नहीं,
आप पहले ही मनाने आ गए.
...
दो घडी बैठो, ज़रा बातें करो,
ये भी क्या बस मुँह दिखाने आ गए.
...
जेब अपनी जब कभी भारी हुई,
लोग भी रिश्ते निभाने आ गए.
...
राह से गुज़रा पुरानी जब कभी,
याद कुछ चेहरे पुराने आ गये. …
Added by Nilesh Shevgaonkar on December 2, 2013 at 8:00am — 19 Comments
भोले मन की भोली पतियाँ
लिख लिख बीतीं हाये रतियाँ
अनदेखे उस प्रेम पृष्ठ को
लगता है तुम नहीं पढ़ोगे
सच लगता है!
बिन सोयीं हैं जितनीं रातें
बिन बोलीं उतनी ही बातें
अगर सुनाऊँ तो लगता है
तुम मेरा परिहास करोगे
सच लगता है!
रहा विरह का समय सुलगता
पात हिया का रहा झुलसता
तन के तुम अति कोमल हो प्रिय
नहीं वेदना सह पाओगे
सच लगता है!…
ContinueAdded by वेदिका on December 2, 2013 at 5:00am — 54 Comments
मौसम के
सहारे वह
अरमान सजाता
जीवन का
दिन रात ना समझे वह तो
एहसास,ना वर्षा,ना ठंड का
कमर तोड़ मेहनत पर भी
ना मिलता उसे निवाला था।
खाद बीज महँगा अब तो
पानी भी ना देता संग था।
कर्ज में डूब कर भी वह
करता पूरे कर्म था।
तब जीवनदायक
अनाज का दाना
आता उसके घर था।
बड़े अरमान इसी दाने पर
हाथ पीले बेटी के
बदले मेहर की वह
तन दिखाती साड़ी को
जीवन की है और जरूरत
महीनो तक मुँह का निवाला
कर्ज निवारण इसी दाने…
Added by Akhand Gahmari on December 2, 2013 at 12:13am — 8 Comments
रस्म वाले देश की औलाद हैं हम
आज के बच्चे कहें सैयाद हैं हम
उनकी बीबी मायके जब से गयी है
कहते फिरते आजकल आज़ाद हैं हम
ढँक गए हैं गर्द से तो भूलिए मत
इस महल की रीढ़ हैं बुनियाद हैं हम
छोड़ के वो हाथ मेरा जो चले थे
गमजदा हैं देख ये आबाद हैं हम
"दीप" हरदम की मदद है दूसरों की
इसलिए तो आज भी बर्बाद हैं हम
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on December 1, 2013 at 10:00pm — 12 Comments
मौन हवाएं
सर्द गर्म और सीली सीली
आते जाते
आम जनों की
तबियत ढीली
सन्नाटों की चीख
अनवरत अनुशासित है
लेन देन की बात करे हैं
सारे उल्लू
चन्दा का उजियारा
ढूँढे
जल भर चुल्लू
भूतों और पिशाचों से
बस ये शासित है
दहशत वहशत
खुली सड़क पर
खुल के झूमें
डाकू और लुटेरे
क्षण क्षण
दामन चूमें
शबनम का कतरा
त्रण त्रण में आभासित…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on December 1, 2013 at 8:00pm — 13 Comments
बुजुर्ग को सुनाते हैं …..
हाँ
मानता हूँ
मेरा जिस्म धीरे धीरे
अस्त होते सूरज की तरह
अपना अस्तित्व खोने लगा है
मेरी आँखों की रोशनी भी
धीरे धीरे कम हो रही है
अब कंपकपाते हाथों में
चाय का कप भी थरथराता है
जिनको मैं अपने कंधों पर
उठा कर सबसे मिलवाने में
फक्र महसूस करता था
वही अब मुझे किसी से मिलवाने में
परहेज़ करते हैं
शायद मैं बुजुर्ग
नहीं नहीं बूढा बुजुर्ग हो गया हूँ
मैं अब वक्त बेवक्त की चीज़ हो गया हूँ…
Added by Sushil Sarna on December 1, 2013 at 6:12pm — 20 Comments
भलाई का इरादा हो,
परस्पर प्रेम आधा हो,
मुरारी की सुनूँ मुरली,
मेरा मन झूम राधा हो,
लबालब प्रेम से हो जग,
गली घरद्वार वृंदा हो,
यही मैं चाहता हूँ रब,
मेरी चाहत चुनिन्दा हो,
ह्रदय में प्रेम उपजे औ,
मधुर सम्बन्ध जिन्दा हो,
खुले आकाश के नीचे,
सदा निर्भय परिन्दा हो,
बसे इंसानियत दिल में,
मरा भीतर दरिन्दा हो....
मौलिक व अप्रकाशित ..
Added by अरुन 'अनन्त' on December 1, 2013 at 3:30pm — 28 Comments
लक्ष्मी है तू गेह की, तू मेरा सम्मान
सबको देना मान तू ,भाई पिता समान /
बेटी है तो क्या हुआ तू है घर की लाज
हमारा तू गुरूर है, मेरी तू आवाज /
बनना मत तू दामिनी,सहकर अत्याचार
लेना दुर्गा रूप तू ,करना तू संहार /
मत घबराना तू कभी, जो हो जग बेदर्द
तू है दुर्गा कालिका ,मत सहना तू दर्द /
जिसका तुझसे हो भला,उसके आना काम
अबला नारी जो दिखे ,उसको लेना थाम /
..............मौलिक व अप्रकाशित .......
Added by Sarita Bhatia on December 1, 2013 at 11:30am — 14 Comments
Added by sanju shabdita on November 30, 2013 at 8:00pm — 28 Comments
गर्म हवा है खूब यहाँ की
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2 2 2 2 2 2 2 2
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जो भी मुझसे सम्बंधित है
सुख पाने से वो वंचित है
मौन यहाँ है सबसे…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on November 30, 2013 at 5:00pm — 22 Comments
ऑंखो में था जो
सपना गुम हुआ,
वफा की राह
टूटा वह
मैं बिखर गया
है भरोसा प्यार पर
तेरे हमें इस कदर
वेवफा नहीं कहूँगा
कभी मेरे जानेजिगर
मेरी ही चाहत
में रही शायद
कमी होगी
नहीं याद करती
दूर हो चली,
चली थी बनने
जो कभी मेरा हमसफर।
जब रोया मैं याद कर
उसके तराने को
अश्क सुखाये मेरे
दिल की जलन ने
पी गये बंद ओठ
यादों के अश्क को।
खुले ओंठ तो…
ContinueAdded by Akhand Gahmari on November 30, 2013 at 4:30pm — 8 Comments
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