मौन हवाएं
सर्द गर्म और सीली सीली
आते जाते
आम जनों की
तबियत ढीली
सन्नाटों की चीख
अनवरत अनुशासित है
लेन देन की बात करे हैं
सारे उल्लू
चन्दा का उजियारा
ढूँढे
जल भर चुल्लू
भूतों और पिशाचों से
बस ये शासित है
दहशत वहशत
खुली सड़क पर
खुल के झूमें
डाकू और लुटेरे
क्षण क्षण
दामन चूमें
शबनम का कतरा
त्रण त्रण में आभासित…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on December 1, 2013 at 8:00pm — 13 Comments
बुजुर्ग को सुनाते हैं …..
हाँ
मानता हूँ
मेरा जिस्म धीरे धीरे
अस्त होते सूरज की तरह
अपना अस्तित्व खोने लगा है
मेरी आँखों की रोशनी भी
धीरे धीरे कम हो रही है
अब कंपकपाते हाथों में
चाय का कप भी थरथराता है
जिनको मैं अपने कंधों पर
उठा कर सबसे मिलवाने में
फक्र महसूस करता था
वही अब मुझे किसी से मिलवाने में
परहेज़ करते हैं
शायद मैं बुजुर्ग
नहीं नहीं बूढा बुजुर्ग हो गया हूँ
मैं अब वक्त बेवक्त की चीज़ हो गया हूँ…
Added by Sushil Sarna on December 1, 2013 at 6:12pm — 20 Comments
भलाई का इरादा हो,
परस्पर प्रेम आधा हो,
मुरारी की सुनूँ मुरली,
मेरा मन झूम राधा हो,
लबालब प्रेम से हो जग,
गली घरद्वार वृंदा हो,
यही मैं चाहता हूँ रब,
मेरी चाहत चुनिन्दा हो,
ह्रदय में प्रेम उपजे औ,
मधुर सम्बन्ध जिन्दा हो,
खुले आकाश के नीचे,
सदा निर्भय परिन्दा हो,
बसे इंसानियत दिल में,
मरा भीतर दरिन्दा हो....
मौलिक व अप्रकाशित ..
Added by अरुन 'अनन्त' on December 1, 2013 at 3:30pm — 28 Comments
लक्ष्मी है तू गेह की, तू मेरा सम्मान
सबको देना मान तू ,भाई पिता समान /
बेटी है तो क्या हुआ तू है घर की लाज
हमारा तू गुरूर है, मेरी तू आवाज /
बनना मत तू दामिनी,सहकर अत्याचार
लेना दुर्गा रूप तू ,करना तू संहार /
मत घबराना तू कभी, जो हो जग बेदर्द
तू है दुर्गा कालिका ,मत सहना तू दर्द /
जिसका तुझसे हो भला,उसके आना काम
अबला नारी जो दिखे ,उसको लेना थाम /
..............मौलिक व अप्रकाशित .......
Added by Sarita Bhatia on December 1, 2013 at 11:30am — 14 Comments
Added by sanju shabdita on November 30, 2013 at 8:00pm — 28 Comments
गर्म हवा है खूब यहाँ की
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2 2 2 2 2 2 2 2
.
जो भी मुझसे सम्बंधित है
सुख पाने से वो वंचित है
मौन यहाँ है सबसे…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on November 30, 2013 at 5:00pm — 22 Comments
ऑंखो में था जो
सपना गुम हुआ,
वफा की राह
टूटा वह
मैं बिखर गया
है भरोसा प्यार पर
तेरे हमें इस कदर
वेवफा नहीं कहूँगा
कभी मेरे जानेजिगर
मेरी ही चाहत
में रही शायद
कमी होगी
नहीं याद करती
दूर हो चली,
चली थी बनने
जो कभी मेरा हमसफर।
जब रोया मैं याद कर
उसके तराने को
अश्क सुखाये मेरे
दिल की जलन ने
पी गये बंद ओठ
यादों के अश्क को।
खुले ओंठ तो…
ContinueAdded by Akhand Gahmari on November 30, 2013 at 4:30pm — 8 Comments
किसी सोच में कभी डूब के जो लिखा न हो औ कहा न हो
वो ग़ज़ल है क्या और वो गीत क्या किसी दिल को जिसने छुआ न हो
मेरी शाईरी में है जो निहाँ मेरे हर्फ़ में वो रवाँ रवाँ
मेरी है दुआ उसी रब से के कहूँ जब मैं कोई खफा न हो
ज़रा पूछिए किसी आदमी से छुआ है कैसे ये आसमाँ
क्या सफ़र में फर्श से अर्श के कोई है वो जो कि गिरा न हो
कहे माँ कहीं मिलें गर्दिशें तो खुदा दिखाता है रास्ता
इसी मोड़ पर मेरे वास्ते वो चराग ले के खडा न…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on November 30, 2013 at 4:00pm — 20 Comments
पेशानी पे मुहब्बत की यारो ……….
लगता है शायद
उसके घर की कोई खिड़की
खुली रह गयी
आज बादे सबा
अपने साथ
एक नमी का
अहसास लेकर आयी है
इसमें शब् का मिलन और
सहर की जुदाई है
इक तड़प है
इक तन्हाई है
ऐ खुदा
तूने मुहब्बत भी
क्या शै बनाई है
मिलते हैं तो
जहां की खबर नहीं रहती
और होते हैं ज़ुदा
तो खुद की खबर नहीं रहती
छुपाते…
Added by Sushil Sarna on November 30, 2013 at 2:00pm — 20 Comments
भाव की हर बांसुरी में
भर गया है कौन पारा ?
देखता हूं
दर-बदर जब
सांझ की
उस धूप को
कुछ मचलती
कामना हित
हेय घोषित
रूप को
सोचता हूं क्या नहीं था
वह इन्हीं का चांद-तारा ?
बौखती इन
पीढि़यों के
इस घुटे
संसार पर
मोद करता
नामवर वह
कौन अपनी
हार पर
शील शारद के अरों को
ऐंठती यह कौन धारा ?
इक जरा सी
आह…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on November 30, 2013 at 1:30pm — 34 Comments
2122 /1122 /1122 /22
मौसम-ए-इश्क हसीं प्यास जगा जाता है
प्रेमी जोड़ों का सुकूँ चैन चुरा जाता है
दिल की धड़कन को बढ़ा सीने में तूफ़ान छुपा
मौसम-ए-इश्क दबे पाँब चला जाता है
सर्द हो रात हो बरसात का मादक मंजर
मौसम-ए-इश्क सदा सब को जला जाता है
दर्द ऐसा भी है, अहसास सुखद है जिसका
मौसम-ए-इश्क वो अहसास करा जाता है
देख आँखों मे चमक गुल की यूँ हैराँ मत हो
मौसम-ए-इश्क हसी नूर…
Added by Dr Ashutosh Mishra on November 30, 2013 at 1:30pm — 19 Comments
छंद - दोहा
काव्य रसिक समवेत है ,अद्भुत दिव्य समाज I
माते ! अपनी कच्छपी , ले कर आओ आज II
वीणा के कुछ छेड़ दो , ऐसे मधुमय तार I
सारी पीडाये भुला , स्वप्निल हो संसार II
सपनो में ही प्राप्त है , जग को अब आनंद I
अतः मदिर माते i करो , हम कवियों के छंद II
यदि भावों से गीत से, जग को मिलता त्राण I
रस से सीचेंगे सदा , उनके आकुल प्राण …
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 30, 2013 at 12:00pm — 22 Comments
गाँव-नगर में हुई मुनादी
हाकिम आज निवाले देंगे
सूख गयी आशा की खेती
घर-आँगन अँधियारा बोती
छप्पर से भी फूस झर रहा
द्वार खड़ी कुतिया है रोती
जिन आँखों…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on November 30, 2013 at 8:40am — 43 Comments
अमर पुष्प
कुछ बातें ऐसी थीं
कुछ ठहरी हुई कुछ चंचल
कुछ कही हुई
कुछ अनकही.
कुछ सपने
पलकों में थे बिखरे
ख्यालों की लम्बी दरिया में
कुछ बातें थी उपली.
मैं तुम्हें देखती थी
मुस्काते नयनों से
तुम भी देखते थे
पर रहते थे मौन.
तुम्हारे आस-पास
बन तितली उड़ती रहती
तुम्हारे हृदय का पट न खुला
मैं पहेली बूझ न सकी.
तुम्हारी चुप्पी ने
मेरे कितने सवालों को…
Added by coontee mukerji on November 30, 2013 at 2:39am — 20 Comments
ऐ सांझ ,तू क्यूँ सिसकती है .......
ऐ सांझ ..
तू क्यूँ सिसकती है //
अभी कुछ देर में ..
तिमिर घिर जाएगा …
तिमिर की चादर में …
हर रुदन छुप जाएगा //
रुदन …
उस क्षण का …
जब एक ….
किलकारी ने ….
अपनी चीख से ब्रह्मांड में ….
सन्नाटा कर दिया //
रुदन उस क्षण का ….
जब एक कोपल …
एक वहशी की वासना का ….
शिकार हो गयी //
रुदन उस क्षण का …..
जब दानव बना मानव ……
दरिंदगी की सारी हदें …..
पार कर गया //
रुदन उस…
Added by Sushil Sarna on November 29, 2013 at 3:12pm — 18 Comments
जरूरत
पूनम कानों मे ईयर फोन लगाये रेलिग के सहारे खड़ी किसी से बाते कर रही थी , पास ही चारपाई पर लेटा उसका दो माह का दूधमुहा शिशु बराबर बिलख रहा था । इतनी देर मे तो पड़ोस की छतों से लोग भी झांक कर देखने लगे थे कि क्या कोई है नहीं बच्चा इतना क्यों रो रहा है ?
देखा तो पूनम पास ही खड़ी थी लेकिन उसका मुंह दूसरी ओर था । लोगों ने आवाज भी लगाई पर उसने सुना नहीं । अब तक नीचे से बूढ़ी सास भी हाँफती हुई आ गई थी और बड़बड़ाते हुए उन्होने बच्चे को गोद मे उठा लिया । परन्तु पूनम कि बातें…
ContinueAdded by annapurna bajpai on November 29, 2013 at 1:30pm — 29 Comments
मौन के शव ?
बोलते चुपचाप
बात करते आप
रौंदते है मूक अन्तस को
बधिर होता है हाहाकार
दग्ध पर नहीं होते वो
ध्वंस लेता है फिर आकार
यही होता है प्रकृति में
भावनाओ की विकृति में
सतत क्रम सा बार बार
सभी है सहते उसे
और हाँ कहते उसे
निष्ठुर प्रेम !
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 29, 2013 at 11:49am — 26 Comments
ग़ज़ल
२१२२ ,२१२२ ,२१२२ ,२
बेबसी की इंतिहा जब आह सुनती है
आँसुओं से बैठ कर फिर वक़्त बुनती है.
मरहले दर मरहले बढ़ती रही वो धुँध
जिंदगी क्यों, ये न जाने राह चुनती है.
जीभ से जो पेट तक है आग का दरिया
फलसफों को भूख जिसमें रोज़ धुनती है.
वो थका है कब हमारा इम्तिहाँ ले कर
रेत है जो भाड़ की हर वक़्त…
Added by dr lalit mohan pant on November 29, 2013 at 1:30am — 10 Comments
जख़्म किसने दिया बता दूँ क्या ?
दिल में चाकू कहो घुमा दूं क्या ?
हुक़्म पे तेरे चलता हूं आका ,
ये वफ़ादारियाँ निभा दूँ क्या ?
देखता हूं जिसे मैं सपनों में,
उसकी तस्वीर भी दिखा दूँ क्या ?
आपकी राजनीति कहती है
बस्तियाँ आपकी जला दूं क्या ?
अब किसी काम ही नहीं आता,
आग संविधान में लगा दूँ क्या?
sube singh sujan
यह रचना मौलिक तथा अप्रकाशित है।
Added by सूबे सिंह सुजान on November 28, 2013 at 10:13pm — 20 Comments
तुम विरह की पीड़ा हो,
या हो मिलन की मधुरता।
तुम प्रेम का उन्माद हो,
या हो हृदय की आकुलता।
तुम जीवन की गति हो,
या हो प्राणों का संचार।
तुम मात्र आकर्षण हो,
या हो मेरा पहला प्यार।
तुम मेरे जीवन की तपन हो,
या हो शीतल मंद बयार।
तुम इच्छाओं का सागर हो,
या प्रेम की उन्मुक्त फुहार।
हो तुम कहीं निशीथ तो नहीं,
या सचमुच 'सूर्य' मेरे जीवन के।
तुम सच में मेरी सम्पूर्णता हो,
या हो अपूर्ण स्वप्न मेरे मन के। …
Added by Savitri Rathore on November 28, 2013 at 9:33pm — 11 Comments
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