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शरीफों कि वस्ती

ये दीवारें बहुत ऊंची और चौड़ी हैं

कि कोई तांक झांक न कर सके

लेकिन यहां एक खिड़की है

शोर मत करो,ये शरीफों कि वस्ती है

एक औरत जो घूंघट ओड़कर आती है

और घूंघट ओड़कर चली जाती है

एक मोटर इस वस्ती से निकलकर

एक दूसरी वस्ती में जाती है हर रोज

शोर मत करो, ये शरीफों कि वस्ती है

उसके  कपड़ॆ बहुत उजले हैं

और महीन भी बहुत हैं

नजदीक न जाओ मैले हो सकते हैं

और महीन रेशों के बीच से

परावर्तित किरणें तुम्हरी आंखों को

चौंधिया सकती हैं

दूर ही रहो

शोर मत करो,ये शरीफों की वस्ती है

ताजमहल को उसने नही तो किसने बनाया था

उन मजदूरों, कारीगरों का जिक्र न करो

वो खींच कर ले आया द्रोपदी को भरी सभा में,

निर्वस्त्र करने के लिये

सभासदो उस चीर कि चिन्दिओं से

अपनी आंखें ढक लो,चुपचाप रहो

शोर मत करो, ये शरीफों कि वस्ती है   

 

मौलिक व अप्रकाशित                              

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Comment

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 5, 2013 at 10:42am

बहुत सुंदर भाव ली हुयी पंक्तियाँ, सटीक व्यंग बधाई स्वीकारें आदरणीय हेमंत जी

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 5, 2013 at 8:55am

हेमंत जी ..यह तथाकथित शरीफों की बस्ती है ,,वह क्या व्यंग्य किया है आपने ..मेरी मेरी तरफ से हार्दिक शुभकामनाएं ..सादर 

Comment by Tapan Dubey on December 4, 2013 at 6:50pm
वाह वाह बधाई हेमंत जी
Comment by अरुन 'अनन्त' on December 4, 2013 at 1:51pm

वाह आदरणीय क्या खूब कटाक्ष, क्या बिम्ब खींचा है आपने दिल खुश हो गया पढ़कर बहुत ही सुन्दर बधाई आपको

Comment by विजय मिश्र on December 4, 2013 at 12:34pm
क्या कटाक्ष किया है ! सभी अपराध क्षम्य हैं .... शोर न करो , ये ..... | मन को भा गया भाई हेमन्तजी . बधाई
Comment by Sushil Sarna on December 3, 2013 at 7:50pm

ताजमहल को उसने नही तो किसने बनाया था

उन मजदूरों, कारीगरों का जिक्र न करो

वो खींच कर ले आया द्रोपदी को भरी सभा में,

निर्वस्त्र करने के लिये

सभासदो उस चीर कि चिन्दिओं से

अपनी आंखें ढक लो,चुपचाप रहो

शोर मत करो, ये शरीफों कि वस्ती है   ....wah ati sundr bhaavon kee sundr aur prbhaavi rachna...shubhkaamna

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 3, 2013 at 5:48pm

हेमंत जी

बहुत अच्छे  भाव है i उत्तरार्ध काफी बांधे रखता है i

मेरी शुभ कामनाये  i

Comment by coontee mukerji on December 3, 2013 at 4:32pm

आपने इन पंक्तियों में बहुत कुछ कह दिया है........

ये दीवारें बहुत ऊंची और चौड़ी हैं

कि कोई तांक झांक न कर सके

लेकिन यहां एक खिड़की है

शोर मत करो,ये शरीफों कि वस्ती है

एक औरत जो घूंघट ओड़कर आती है

और घूंघट ओड़कर चली जाती है

एक मोटर इस वस्ती से निकलकर

एक दूसरी वस्ती में जाती है हर रोज

शोर मत करो, ये शरीफों कि वस्ती है

उसके  कपड़ॆ बहुत उजले हैं..........कभी कभी इंसान को बहुत कुछ देखकर भी अनदेखा करना पड़ता है.

सादर

कुंती

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