तेरी सूरत का नज़ारा ढूँढ़ता है दिल मेरा ।
बस धड़कने का सहारा ढूँढ़ता है दिल मेरा ।
बेवफाई कि खिजां में खो गया था जो कभी ,
प्यार का मौसम दुबारा ढूँढ़ता है दिल मेरा ।
जिनकी कातिल सी अदा पर मर मिटा था ये कभी ,
उन निगाहों का इशारा ढूँढ़ता है दिल मेरा ।
रहनुमाँ उस आसमाँ से मांगने को एक दुआ ,
आज फिर टूटा सितारा ढूँढ़ता है दिल मेरा ।
भूलकर दुनिया के सारे आशियाँ और मकाँ ,
तेरे आँचल में गुज़ारा ढूँढ़ता है दिल मेरा…
ContinueAdded by Neeraj Nishchal on December 30, 2013 at 2:30pm — 18 Comments
सूखे पत्तों के ढेर में
उम्मीद का
एक अंकुर फूटा
सूखे पत्ते मानो,
लाशें हैं
लाश हारे हुये लोगों की
लाश,
पराधीनता को किस्मत समझ
डर-डर के जीने वालों की
वो अंकुर है
भाग्योदय का
कीचड़ में उतर
परजीवियों को
साफ कर
समाज से
बीमारी हटाने वालों का
जो एक ज़र्रा था कल तक
आज
ज़माना उसकी चमक देख रहा है
अपनी नन्हीं आँखें खोल
मानो, कह रहा…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on December 30, 2013 at 10:52am — 32 Comments
Added by AVINASH S BAGDE on December 28, 2013 at 11:00pm — 27 Comments
मेरी रचना ऐसी हो
मेरी रचना वैसी हो
घूंघट में है रचना मेरी
न जाने वो कैसी हो
शृंगार करूँ मैं सदा कलम का
नित्य हृदय के भावों से
उस पलक द्वार पर देगी दस्तक
जो मेरी रचना की अभिलाषी हो
मौन अधर हों
मौन नयन हों
मौन प्रेम का
हर बंधन हो
बिन बोले जो
कह दे सब कुछ
मेरी रचना ऐसी हो,
हाँ ,मेरी रचना ऐसी हो…….
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on December 28, 2013 at 4:30pm — 12 Comments
ठिठुरती उँगलियाँ
ठिठुरती काँपती उँगलियाँ
तैयार नहीं छूने को कागज़ कलम
कैसे लिखू अब कविता मैं
बिन कागज़ बिन कलम
भाव मेरे सब घुल रहे हैं
गरम चाय की प्याली में
निकले कंठ से स्वर भी कैसे
जाम लग गया ,कंठ नली में
धूप भी किसी मज़दूरन सी
थकी हारी सी आती है
कभी कोहरे की चादर ओढे
गुमसुम सी सो जाती है
सुबह सवेरे ओस कणों से
भीगी रहती धरती सारी
शायद, रात कहर से आहत…
ContinueAdded by Maheshwari Kaneri on December 28, 2013 at 3:30pm — 9 Comments
नया साल है चलकर आया देखो नंगे पांव
आने वाले कल में आगे देखेगा क्या गाँव
धधक रही भठ्ठी में
महुवा महक रहा है
धनिया की हंसुली पर
सुनरा लहक रहा है
कारतूस की गंध
अभी तक नथुनों में है
रोजगार गारंटी अब तक
सपनों में है
हो लखीमपुर खीरी, बस्ती
या, फिर हो डुमरांव
कब तक पानी पर तैरायें
काग़ज़ वाली नांव !
माहू से सरसों, गेहूं को
चलो बचाएं जी
नील गाय अरहर की बाली
क्यों…
ContinueAdded by Rana Pratap Singh on December 28, 2013 at 2:30pm — 40 Comments
बह्र : २१२ २१२ २१२
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इश्क जबसे वो करने लगे
रोज़ घंटों सँवरने लगे
गाल पे लाल बत्ती हुई
और लम्हे ठहरने लगे
दिल की सड़कों पे बारिश हुई
जख़्म फिर से उभरने लगे
प्यार आखिर हमें भी हुआ
और हम भी सुधरने लगे
इश्क रब है ये जाना तो हम
प्यार हर शै से करने लगे
कर्म अच्छे किये हैं तो क्यूँ
भूत से आप डरने लगे
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 27, 2013 at 11:39pm — 13 Comments
क्यूँ
हाँ क्यूँ
मेरा मन
मेरा कहा नहीं मानता
क्यूँ मेरा तन
मेरे बस में नहीं
न जाने इस पंथ का अंत क्या हो
किस इच्छा के वशीभूत हो
मेरे पाँव
अनजान उजाले की ओर आकर्षित हो
निरंतर धुल धूसरित राह पे
बढ़ते ही जा रहे हैं
ये तन
उस मन के वशीभूत है
जो स्थूल रूप में है ही नहीं
न जाने मैं इस राह पे
क्या ढूढने निकला हूँ
क्या वो
जो मैं पीछे छोड़ आया
या वो
जो मेरे मन की
गहरी कंदराओं में…
Added by Sushil Sarna on December 27, 2013 at 8:00pm — 24 Comments
कहते हैं की इन्सान दुनिया से मुँह चुरा सकता है पर स्वयं से नहीं। जब भी हम कुछ करते हैं अच्छा या बुरा हम स्वयं ही उसके गवाह और न्यायाधीश होते हैं, अगर अच्छा करते हैं तो खुद को शाबासी देते हैं और बुरा करते हैं तो स्वयं को कटघरे में खड़ा कर देते हैं,क्योंकि हम खुद के प्रति उत्तरदायी होते हैं पर ये सारी क्रिया हम दुनिया के सामने करने का साहस कर सकते हैं … ??? नहीं … ना …!! क्योंकि हम दुनिया से मुँह चुरा रहे होते हैं। हमारे कार्य जीवन के प्रति हमारे नजरिये से जुड़े होते हैं। हम क्या अच्छा करते…
ContinueAdded by Veena Sethi on December 27, 2013 at 5:30pm — 4 Comments
नयी धूप मै ले आऊँगा !
नए साल मे ,
नया सवेरा -
नयी धूप मै ले आऊँगा ।
सपनों के डोले से ,
हर पल –
खुशियाँ सब पर बरसाऊंगा ।
मांगूंगा मै ,
ढेरों खुशियाँ -
मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे मे I
सुख, शांति की बारिश होगी
भारत के हर घर बारे मे ।
शांति प्रेम का संदेशा ले ,
मै तो अब –
घर घर जाऊंगा ।
नए साल मे ,
नया सबेरा -
नयी धूप मै ले आऊँगा ।
~~~ मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by S. C. Brahmachari on December 27, 2013 at 5:00pm — 21 Comments
Added by Satyanarayan Singh on December 27, 2013 at 5:00pm — 17 Comments
Added by Sarita Bhatia on December 27, 2013 at 4:21pm — 9 Comments
Added by Ravi Prakash on December 27, 2013 at 2:19pm — 14 Comments
शब्द भावों के गले मिलने लगें |
ह्रदय हर किसी के.. मथने लगें |
गुदगुदाते ...लताड़ते से...कभी...
सहलाते से जीवन संवारने लगें ||
राह अभिव्यक्ति की चलने लगें |
शब्द घेरे में जब ..सिमटने लगें |
शब्द मात्रा..रस..छंद..अलंकार में ..
स्मृतियाँ महाकाव्य सी रचने लगें ||
प्रताड़ना से घिरे शब्द भर्त्सना पाने लगें |…
Added by Alka Gupta on December 27, 2013 at 10:00am — 10 Comments
इन गुलाब की पंखुड़ियों पर
जमी
ओस की बुँदकी चमकी
नए साल की आहट पाकर
उम्मीदों की बगिया महकी
रही ठिठुरती
सांकल गुपचुप
सर्द हवाओं के मौसम में
द्वार बँधी
बछिया निरीह सी
रही काँपती घनी धुँध में
छुअन किरण की मिली सबेरे
तब मुँडेर पर चिड़िया चहकी
दर-दर भटक रही
पगडंडी
रेत-कणों में
राह ढूँढती
बरगद की
हर झुकी डाल भी
जाने किसकी
बाँट…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on December 27, 2013 at 9:30am — 24 Comments
वो भी इक , अगर बे-ईमान हो जाए
ये बस्ती उम्मीद की , वीरान हो जाए
इबादतगाह बन जाए , ये दुनिया सारी
हर इक आदमी अगर इंसान हो जाए
झुग्गियों की क़िस्मत भी जगमगा उठे
इक खिड़की भी अगर , रोशनदान हो जाए
फ़िज़ायों में इबादतपसंद है , कोई ज़रूर
वरना ऐसे ही नहीं , कोई अज़ान हो जाए
साल-ये-नौ पर , दुआ है मेरी , ये…
Added by ajay sharma on December 26, 2013 at 11:30pm — 7 Comments
अपनी आँखों को जब मैं
बंद करने कि कोशिश करता हूँ
सोने के लिए
तभी तरह-तरह के विचार आते हैं
मानो जैसे अब
मेरे रास्ते बंद हो गए हैं
मैं कायर सा
डरपोक सा
बैठ गया हूँ
तभी कुछ सुनायी पड़ता है
आवाज
किसी की
कहीं से आ रही है
कुछ कहने कि
समझने कि
कोशिश
इतना डरपोक न बन
हिम्मत कर
तू फिर से
मेहनत करके
एक नया नाम, इज़ज़त, शोहरत
कमा सकता है
इतना सोचते-सोचते
पता नहीं…
Added by SAURABH SRIVASTAVA on December 26, 2013 at 9:30pm — 9 Comments
पीड़ितों के बीच से तलवार लेकर आ गये
आप नाटक में नया किरदार लेकर आ गये |
मैं समझता था हर इक शै है बहुत सस्ती यहाँ
एक दिन बाबा मुझे बाज़ार लेकर आ गये |
माँ के हाथों की बनी स्वेटर थमाई हाथ में
आप बच्चे के लिए संसार लेकर आ गये |
क़त्ल, चोरी, घूसखोरी, खुदखुशी बस, और क्या
फिर वही मनहूस सा अख़बार लेकर आ गये |
दोस्तों से अब नहीं होती हैं बातें राज़ की
चन्द लम्हे बीच में दीवार लेकर आ गये |
--…
ContinueAdded by आशीष नैथानी 'सलिल' on December 26, 2013 at 8:31pm — 14 Comments
प्रतिपल नव की कल्पना, पल-व्यतीत आधार
सामासिक दृढ़ भाव ले, आह्लादित संसार
सिद्धि प्रदायक वर्ष नव : धर्म-कर्म-शुभ-अर्थ
मंशा कुत्सित दानवी, लब्धसिद्धि हित व्यर्थ
शाश्वत मनस स्वभाव…
Added by Saurabh Pandey on December 26, 2013 at 4:20pm — 42 Comments
2122 1122 22/112
आँधी से उजड़ा शजर लगता है
वो बुलन्द अब भी मगर लगता है
सिर्फ किरदार नये हैं उसके
इक पुराना वो समर लगता है
बेकरानी में कहीं गुम शायद
इक बियाबान में घर लगता है
वो कहीं शिद्दते- तूफ़ाँ तो नही
रास्ता छोड़ अगर लगता है
पत्थरों को जो मुजस्सम करे वो
तेरे हाथों में हुनर लगता है
काँच का दिल है ज़बाँ पे पत्थर
बच के जाऊँ मुझे डर लगता…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on December 26, 2013 at 12:00pm — 34 Comments
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