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आँसू के रंग , तेरे - मेरे , अलग अलग है क्या

इन आँखो में , पलते सपने , तेरे - मेरे , अलग अलग हैं क्या
दुनिया सबकी ,फिर अपने , तेरे - मेरे , अलग अलग हैं क्या

खुशी , प्यार , अपनापन , और सुक़ून की चाह बराबर
अपनो से तक़रार और फिर मनुहार भरी इक आह बराबर
हंसता है जब - जब तू , जिन जिन बातों पे हंसता हूँ मैं भी
तूँ रोए जबभी , तो मैं भी रो दूँ ,
आँसू  के रंग , तेरे - मेरे , अलग अलग है क्या

तू पत्थर को तोड़ें या मैं फिरूउँ तराशता संगमरमर को
मैं क़लम से तोड़ूं तलवारें , या तू जीत ले कोई समर को
काटता है रातें सियाह तू , तो धूप में तपता हूँ मैं भी
तू बोए धरती , तो मैं भी सींचू ,
प्रश्नों के हल , तेरे-मेरे , अलग अलग है क्या

इस दुनिया के हमने तुमने , कितने ही टुकड़े कर डाले
अब क्या रोने से होता जब , ज़ख़्म बने इस तन के छाले
जानता है तू , ग़लतियाँ इक तरफ़ा ना थी , मानता हूँ मैं भी
तू खोजे मुस्तकबिल , तो मैं भी चलूं ,
माझी के गम तेरे- मेरे , अलग अलग हैं क्या

प्रस्तुति , मौलिक व अप्रकाशित
द्वारा अजय कुमार शर्मा

Views: 591

Comment

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Comment by vandana on January 3, 2014 at 6:21am

बहुत सुन्दर भाव आदरणीय अजय जी 

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 2, 2014 at 2:25pm

बहुत ही सुन्दर रचना आदरणीय अजय शर्मा जी अंतिम बंद बहुत भाया इस सुन्दर रचना हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 2, 2014 at 7:32am

आदरणीय अजय जी,

नव वर्ष की शुभ कामनाओं के साथ इस सुंदर रचना  की भी हार्दिक बधाई.

इस दुनिया के हमने तुमने , कितने ही टुकड़े कर डाले
अब क्या रोने से होता जब , ज़ख़्म बने इस तन के छाले

बहुत खूब 

Comment by ajay sharma on January 1, 2014 at 10:33pm

giriraj ji abhi romanized hindi  se devnagiri hindi me typing ka zyada anubhav nahi ho paya hoo....

please ise ......maji hi pada jaye .................aage koshish karoonga ki typing shuddh hi ho 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 1, 2014 at 10:04pm

इस दुनिया के हमने तुमने , कितने ही टुकड़े कर डाले
अब क्या रोने से होता जब , ज़ख़्म बने इस तन के छाले
जानता है तू , ग़लतियाँ इक तरफ़ा ना थी , मानता हूँ मैं भी
तू खोजे मुस्तकबिल , तो मैं भी चलूं ,
माझी के गम तेरे- मेरे , अलग अलग हैं क्या..............

बहुत उत्कृष्ट रचना,सुंदर भाव बधाई स्वीकारें आदरणीय अजय जी

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on January 1, 2014 at 7:10pm

अजय भाई नव वर्ष की शुभ कामनाओं के साथ आपको इस सुंदर रचना  की भी हार्दिक बधाई॥

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on January 1, 2014 at 6:33pm
भाई अजय जी! एक उत्कृष्ट रचना।
बहुत ही गुह्यतम कथन का उद्घाटन। रचना हेतु बधाई।
नववर्ष की अनेकश: शुभकामनाएं।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 1, 2014 at 11:47am

आदरणीय अजय भाई , बहुत खूब सूरत रचना की है , आपको बधाई ॥

इस दुनिया के हमने तुमने , कितने ही टुकड़े कर डाले
अब क्या रोने से होता जब , ज़ख़्म बने इस तन के छाले
जानता है तू , ग़लतियाँ इक तरफ़ा ना थी , मानता हूँ मैं भी
तू खोजे मुस्तकबिल , तो मैं भी चलूं ,
माझी के गम तेरे- मेरे , अलग अलग हैं क्या --- वाह भाई वाह ॥  आदरणीय शायद आप माजी ( अतीत ) कहना चाहते हों , माझी टाइप हो गया है ॥

Comment by ajay sharma on December 31, 2013 at 10:22pm

aap dono sisters ko is nacheez bhai ki ..........naye saal par khoob khoob mubaraqbaad ......................

dhanya huya ........asli comments to yahi hai .......bahut kuch soch kar likha tha ....par .........nevertheless.....thanks to you both 

Comment by coontee mukerji on December 31, 2013 at 9:50pm

तू पत्थर को तोड़ें या मैं फिरूउँ तराशता संगमरमर को
मैं क़लम से तोड़ूं तलवारें , या तू जीत ले कोई समर को
काटता है रातें सियाह तू , तो धूप में तपता हूँ मैं भी
तू बोए धरती , तो मैं भी सींचू ,
प्रश्नों के हल , तेरे-मेरे , अलग अलग है क्या......बहुत ही अनूठी रचना. बधाई.

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