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सदस्य कार्यकारिणी
!!!! काले काले वर्षा वाले !!!! अतुकांत !!!!

सावन के बादल

काले काले ,

वर्षा वाले !

क्षुधित मानव की प्यास

बुझाने वाले…

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Added by गिरिराज भंडारी on December 4, 2013 at 7:00am — 25 Comments

दीवाना होश खो देगा

कन्हैया यूँ न मुस्काओ दीवाना होश खो देगा ।

कि खुद डूबेगा मस्ती में वो तुमको भी डुबो देगा ।

दीवाने को नही मालुम तेरी मुस्कान का जादू ।

जो देखेगा छटा मुख की तो हो जाये न बेकाबू ।

फिर तो होके वो पागल तुम्हारे पीछे दौड़ेगा ।

कन्हैया यूँ न मुस्काओ दीवाना होश खो देगा ।

ये करुणा से भरी आँखें पिलाती प्रेम का प्याला ।

के उस पर माधुरी तेरी घोल दे कौन सी हाला ।

गिरेगा लड़खड़ाकर जब तुम्हें बदनाम कर देगा ।

कन्हैया यूँ…

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Added by Neeraj Nishchal on December 4, 2013 at 6:26am — 18 Comments

एक ग़ज़ल !!

(२१२२ १२१२ २२)

एक बीमार की दवा जैसे
तुम मेरे पास हो ख़ुदा जैसे |

साँस-दर-साँस ज़िन्दगी का सफ़र
और तुम आखिरी हवा जैसे |

उनकी आँखों में बस मेरा चेहरा
आइनों से हो सामना जैसे |

रूह ! बेकार है बदन तुझ बिन
इक लिफ़ाफ़ा है बिन पता जैसे |

आपकी मुस्कुराहटों की कसम
हो गया जन्म दूसरा जैसे |

- आशीष नैथानी 'सलिल'
(मौलिक और अप्रकाशित)

Added by आशीष नैथानी 'सलिल' on December 3, 2013 at 11:30pm — 21 Comments

माँगा किंतु अँगूठा क्यूँ है........

कुछ तो बात रही होगी ही ,वरना तुमसे रूठा क्यूँ है

हाथों में हर दम रहता था , वही खिलौना टूटा क्यूँ है

तुमने तो लिखा था मुझको सारी कसमें हैं उससे ही

अब वो कसमें कोरी कैसे , अब वो बोलो झूंटा क्यूँ है

हर पन्ने पर नाम लिखा था हर पंक्ति मे ज़िक्र था उसका

ज़िल्द बची क्यूँ उस क़िताब की , आख़िर वो ही छूटा क्यूँ है

जिसका मन मंदिर था तेरा , मूरत थी आराधन वंदन

जिसकी ख़ातिर व्रत रखे थे , वही प्रसाद अब जूठा क्यूँ है

जिससे ही…

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Added by ajay sharma on December 3, 2013 at 10:30pm — 2 Comments

माधवी (लघु कथा )

          नदी पर काठ  का एक छोटा किन्तु  मजबूत सेतु बना था  I  उसके नीचे माधवी झाड़ियो से रंग-बिरंगे फूल चुन रही थी  I  अचानक उसने विटप की  ओर  देखा  और  कहा - ' हमारे तुम्हारे  गाँव  के बीच यही एक नदी है जिस पर यह सेतु है I इसका मतलब समझे ?'

'नहीं----' विटप ने हंसकर कहा I

'बुद्धू ---- दो दिलो को ऐसा ही सेतु आपस में मिलाता है I ' -माधवी ने फूलो का ढेर लगाते हुए कहा  ' और----- वह  सेतु है विवाह i ' माधवी ने थोडा रूककर फिर कहा -' विटप, वहा सेतु पर…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 3, 2013 at 9:30pm — 18 Comments

ज़िन्दगी ठहरी फ़क़त दो पल की

खबर क्या है किसी को कल की

ज़िन्दगी ठहरी फ़क़त दो पल की

एक से ही हैं गम हमारे

एक सी ही तो खुशियाँ

दिल से दिल के दरमयाँ

फिर क्यूँ इतनी है दूरियाँ

तमन्ना किसे है आखिर ,किसी ताजमहल की

ज़िन्दगी ठहरी फ़क़त दो पल की .............

आ चल दो पल हम

जरा दिल से रो लें

नफ़रत के हर निशाँ

आँसुओं से धो लें

ओढ़ माँ का आंचल

दो पल को हम सो लें

जिन्दगानी हो कहानी ,यक नए पहल की

ज़िन्दगी ठहरी फ़क़त दो पल की…

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Added by Kedia Chhirag on December 3, 2013 at 4:00pm — 9 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
!!!!!! दोहा वली !!!!! ( गिरिराज भंडारी )

- दोहावली -

संग हरि किये हरि हुये, दानव ,दानव संग

किंतु न मानव बन सके, कर मानव के संग    

 

कह सुन खाली मन करें, बचे न कोई बात ।

मन को उजला कीजिये, जैसे उजली रात ।।

 …

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Added by गिरिराज भंडारी on December 3, 2013 at 2:30pm — 23 Comments

गर जीना हो भोलापन (ग़ज़ल)

1221 1221 1221 121



हमेशा  राह में  नदियों,  बिछे पत्थर नहीं होते

मिला वनवास जिनको हो, उनके घर नहीं होते

.

किसी से बावफा तो, किसी से बेवफा क्यों दिल

कभी   इन  सवालों के,  कोई  उत्तर  नहीं होते

.

कभी  चलके, कभी  तर के, जहाँ   घूम  लेते हैं

परिन्दे जिनके उड़ने को, वदन पे पर नहीं होते

.

चला  देते  हैं झट खन्जर,  नीदों में भी साये पे

ये ना समझो जहन में कातिलों के डर नहीं होते

.

गर  जीना हो  भोलापन,  रहो  भीड़  से…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 3, 2013 at 11:00am — 11 Comments

अकुला रही सारी मही .(अन्नपूर्णा बाजपेई)

अकुला रही सारी मही

किसको पुकारना है सही ।

 

सोच रही अब वसुंधरा

कैसा कलुषित समय पड़ा 

बालक बूढ़े नौजवान

गिरिवर तरुवर आसमान

किसको पुकारना .........

अखंड भारत का सपना

देखा था ये अपना

खंडित हो कर बिखर रहा

न जन मानस को अखर रहा

अकुला रही .................

ढूँढने पर भी अब मिलते नहीं 

राम कृष्ण से पुरुषोत्तम कहीं 

गदाधर भीम अर्जुन धनु सायक नहीं 

गांधी सुभाष भगत  से नायक…

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Added by annapurna bajpai on December 3, 2013 at 11:00am — 10 Comments

मैं एकलव्य नहीं (लघुकथा)

परीक्षाएं निकट थीं लेकिन टीचर पिछले कई दिनों से क्लास से गायब थे. पढ़ाई का बहुत हर्जा हो रहा था जिसे देखकर उसे बेहद गुस्सा आता. रह रह कर उसके सामने अपनी विधवा बीमार माँ का चेहरा घूम जाता, जो लोगों के घरों में झाड़ू पोछा कर उसे पढ़ा रही थी. आखिर उस से रहा न गया और वह शिकायत लेकर प्रधानाचार्य के पास जा पहुंचा।

 “उस कक्षा में और भी तो विद्यार्थी है, सिर्फ तुम्हें ही शिकायत क्यों है।”
“क्योंकि मैं एकलव्य नहीं हूँ सर।”

(मौलिक और अप्रकाशित)    

Added by Ravi Prabhakar on December 3, 2013 at 10:00am — 24 Comments

चार मुक्तक

चार मुक्तक

1.

झुकाना पड़े सिर मां को ऐसा कारोबार मत कीजिये,

अपने लहू से जिसने पाला उसे लाचार मत कीजिये,

कर सको तो करो ऐसा काम जगत में कि गर्व हो तुम पर,

कोख मां की हो जाये लज्जित ऐसा व्यवहार मत कीजिये,

2.

बरस बीत जाते है किसी के दिल में जगह पाने में,

एक गलत फहमी देर नहीं लगाती साथ छुड़ाने में,

बहुत नाजुक होती है मानवीय रिश्तों की डोर यहां,

नफरत में देर नहीं लगाते लोग पत्थर उठाने में।

3.

हर बात की अपनी करामात होती है,

कभी ये हंसाती तो…

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Added by Dayaram Methani on December 2, 2013 at 11:09pm — 8 Comments

शरीफों कि वस्ती

ये दीवारें बहुत ऊंची और चौड़ी हैं

कि कोई तांक झांक न कर सके

लेकिन यहां एक खिड़की है

शोर मत करो,ये शरीफों कि वस्ती है

एक औरत जो घूंघट ओड़कर आती है

और घूंघट ओड़कर चली जाती है

एक मोटर इस वस्ती से निकलकर

एक दूसरी वस्ती में जाती है हर रोज

शोर मत करो, ये शरीफों कि वस्ती है

उसके  कपड़ॆ बहुत उजले हैं

और महीन भी बहुत हैं

नजदीक न जाओ मैले हो सकते हैं

और महीन रेशों के बीच से

परावर्तित किरणें तुम्हरी आंखों…

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Added by hemant sharma on December 2, 2013 at 11:00pm — 8 Comments

***इक पल मैं हूँ..........***

इक पल मैं हूँ..........



इक पल मैं हूँ इक पल है तू

इक पल का सब खेला है

इक पल है प्रभात ये जीवन

इक पल सांझ की बेला है

इक पल मैं हूँ..........

ये काया तो बस छाया है

इससे नेह लगाना क्या

पूजा इसकी क्या करनी

ये मिट्टी का ढेला है

इक पल मैं हूँ..........

प्रश्न उत्तर के जाल में उलझा

मानव मन अलबेला है

क्षण भंगुर इस जिस्म में लगता

साँसों का हर पल मेला…

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Added by Sushil Sarna on December 2, 2013 at 10:00pm — 14 Comments

भू पे उतरी चंद्रिका

श्वेत वसना दुग्ध सी, मन मुग्ध करती चंद्रिका।

तन सितारों से सजाकर, भू पे उतरी चंद्रिका।

 

चाँद ने जब बुर्ज से,…

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Added by कल्पना रामानी on December 2, 2013 at 8:00pm — 33 Comments

प्यार में होता सदा ही दर्द क्यों है ?

प्यार में होता सदा ही दर्द क्यों है ?

यह जमाना हो गया बेदर्द क्यों है ?

है बिना दस्तक चला आता सदा जो

वो बना यूँ आज फिर हमदर्द क्यों है ?

छू रही है रूह मेरी आते जाते

यह तुम्हारी साँस इतनी सर्द क्यों है ?

अपनी यादों को समेटे जब गए हो

आज यादों की उठी फिर गर्द क्यों है ?

प्यार पर करता जुल्म हर रोज है जो

वो समझता खुद को जाने मर्द क्यों है ?

तुम समझती हो मुहब्बत जिसको सरिता

वो बना…

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Added by Sarita Bhatia on December 2, 2013 at 5:40pm — 16 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
मैं तारों से बातें करता हूँ

मैं तारों से बातें करता हूँ

 

जब गहन तिमिर के अवगुंठन में

धरती यह मुँह छिपाती है

मैं तारों से बातें करता हूँ

झिल्ली जब गुनगुनाती है.

(2)

फुटपाथों पर भूखे नंगे

कैसे निश्चिंत हैं सोये हुए

उर उदर की ज्वाला में

जाने क्या सपने बोये हुए.

(3)

दो बूंद दूध का प्यासा शिशु

माँ की आंचल में रोता है

रोते रोते बेहाल अबोध

फिर जाने कैसे सो जाता है!

(4)

क्या उसके भी सपनों में

कोई, सपने लेकर आता…

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Added by sharadindu mukerji on December 2, 2013 at 5:00pm — 20 Comments


मुख्य प्रबंधक
लघुकथा : छवि (गणेश जी बागी)

घु सुबह-सुबह ऑटो रिक्शा लेकर सड़क पर निकला ही था क़ि तभी ट्रैफिक पुलिस के एक सिपाही ने हाथ देकर रिक्शा रोक लिया, रघु एक अंजाने भय से कांप गया |

"स्टेशन जा रहे हो क्या ? चलो मुझे भी चलना है" सिपाही जी अपने चिरपरिचित अंदाज मे बोले |

"जी, साहब, स्टेशन ही जा रहे हैं"

आज दिन ही खराब है, सुबह सुबह पता नही किसका मुँह देख लिया था, अभी बोहनी भी नही हुई और सिपाही जी आकर बैठ गये, मन ही मन खुद को कोसते हुए रघु गंतव्य की ओर बढ़ चला | रघु स्टेशन पहुँच कर सभी…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 2, 2013 at 4:13pm — 36 Comments


प्रधान संपादक
श्रेय (लघुकथा)

"क्या? आपने धूम्रपान छोड़ दिया? ये तो आपने कमाल ही कर दिया।"
"आखिर इतनी पुरानी आदत को एकदम से छोड़ देना कोई मामूली बात तो नहीं।"
"सही कहा आपने, ये तो कभी सिगरेट बुझने ही नही देते थे।"
"जो भी है, इनकी दृढ इच्छा शक्ति की दाद देनी होगी।"
"इस आदत को छुड़वाने का श्रेय आखिर किस को जाता है?"
"भाभी को?"  
"गुरु जी को?"
"नहीं, मेरी रिटायरमेंट को।"उसने ठंडी सांस लेते हुए उत्तर दिया।
.
.
(मौलिक व अप्रकाशित) 

Added by योगराज प्रभाकर on December 2, 2013 at 4:00pm — 63 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
वार्षिक रिपोर्ट (लघु कथा )

"देखो-देखो दमयंती, तुम्हारे शहर के कारनामे!! कभी कोई अच्छी खबर भी आती है, रोज वही चोरी, डकैती ,अपहरण ...और एक तुम हो कि शादी के पचास साल बाद भी मेरा शहर मेरा शहर करती नहीं थकती हो अब देखो जरा चश्मा ठीक करके टीवी में क्या दिखा रहे हैं" कहते हुए गोपाल दास ने चुटकी ली।

"हाँ-हाँ जैसे तुम्हारे शहर की तो बड़ी अच्छी ख़बरें आती हैं रोज, क्या मैं देखती नहीं थोडा सब्र करो थोड़ी देर में ही तुम्हारे शहर के नाम के डंके बजेंगे" दादी के कहते ही सब बच्चे हँस पड़े और उनकी नजरें टीवी स्क्रीन पर गड़ गई। …

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Added by rajesh kumari on December 2, 2013 at 11:46am — 29 Comments

सफल बोली...( लघुकथा )

"एक लाख पचपन हजार..  एक

एक लाख पचपन हजार..  दो

एक लाख पचपन हजार..  तीन ..."

अधिकारी महोदय ने जोर से लकड़ी का हथौड़ा मेज पर दे मारा. रघुराज ठेकेदार की तरफ देखते हुए वे धीरे से मुस्कुरा दिए.

रघुराज ठेकेदार ने भी आँखों ही आँखों में अधिकारी महोदय को मुस्कुराते हुए अपनी सहमति जतायी और अपने मित्र मोहन के कंधे पर हाथ रख धीरे से बोल उठे,  ''ओये मोहन्या..चल भाई, हम भी अब अपना काम करें. अधिकारी महोदय के लिए पूरा इंतजाम करना है ''

दोनों खुश-खुश नीलामी स्थल से…

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Added by जितेन्द्र पस्टारिया on December 2, 2013 at 9:36am — 34 Comments

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