नये वर्ष से है ,हम सबको
उम्मीदें कुछ खास
आँगन के बूढ़े बरगद की
झुकी हरिक डाली
मौसम घर का बदल गया ,
फिर
विवश हुआ माली
ठिठुर रहे है सर्द हवा में
भीगे से अहसास
दरक गये दरवाजे घर के
आंधी थी आयी
तिनका तिनका भी उजड़ गया
बेसुध है माई
जतन कर रही बूढी साँसे
आये कोई पास
चूँ चूँ करती नन्हीं चिड़िया
नयी जगह घबराय
दुनियाँ उसकी बदल गयी है
कौन उसे समझाय
ऊँची ऊँची अटारियों पे…
Added by shashi purwar on January 2, 2014 at 1:30pm — 17 Comments
शिव-मंगल (खण्ड-काव्य) सॆ मंगलाचरण कॆ कुछ छन्द
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शिल्प विधान = सात भगण + दॊ गुरु वर्णॊं सहित प्रत्यॆक चरण मॆं कुल २३ वर्ण,,,,,,,,,
मत्तगयंद सवैया छन्द (१)
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पूजत है प्रथमॆ जग जाकहुँ, कीर्ति त्रिलॊकहुँ छाइ रही है !!
सुण्ड-त्रिपुण्ड लुभाइ रही अति,कंठहिं माल सुहाइ रही है !!
रिद्धि बसै दहिनॆ अरु बामहिँ,सिद्धि खड़ी मुसकाइ रही है !!
हॆ इक दन्त कृपा करियॊ अब, मॊरि मती बउराइ रही है…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 2, 2014 at 12:30pm — 11 Comments
Added by AVINASH S BAGDE on January 2, 2014 at 10:30am — 26 Comments
१ )
लाता एक नया रंग सा,
कुछ अलग एक नया ढंग सा,
कभी नशा सा, कभी मदहोशी सी,
मेरी ज़ुबान पे कभी ख़ामोशी सी।
प्यार ....... बस तेरा प्यार .......
२)
आस दिलाई फिरसे कसमों ने वादों…
Added by M Vijish kumar on January 2, 2014 at 8:30am — 9 Comments
सभी सम्माननीय पाठकवृंदों को नववर्ष कि शुभकामनाओं सहित
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1222 / 1221 / 1212 / 1222
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सुबह उसकी महक लेकर , हवा मेला सजाती है,
उदासी जुल्फ से उसकी , चुरा के शाम लाती है
वो जब काँपती अंगुली , मेरी लट में फिराती है
यादे बूढ़ी माई की , वो फिर से मन जगाती है
पहुचता हूँ जो उस तक मैं , गुजरती साँझ बेला को
वो दिन भर की कथा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 2, 2014 at 8:00am — 6 Comments
मंच पर सभी विद्वजनों से इस्लाह के लिए
२१२२ १२१२ २२१
पैरवी मेरी कर न पाई चोट
पास रहकर रही पराई चोट
फलसफे अनगिनत सिखा ही देगी
असल में करती रहनुमाई चोट
महके चन्दन पिसे भी सिल पर तो
रोता कब है कि मैनें खाई चोट
सब्र का ही तो मिला सिला हमको
सहते रहकर मिली सवाई चोट
तन्हा ढ़ोता है दर्द हर इंसां
क्यूँ तू रिश्ते बढ़ा न पाई चोट…
ContinueAdded by vandana on January 2, 2014 at 8:00am — 22 Comments
गुस्ताख निगाहें भी पहली नज़र में फिसल गई ,
जी भर के देख भी न पाया ,
इसमें मेरा क्या कसूर था।
नादान दिल के कदम भी लड़खड़ाते-लड़खड़ाते संभल गए ,
दूरी मै तय न कर पाया ,
इसमें राहों का क्या कसूर था।
चंद लम्हा भी तेरे बिन रेह न सका, तेरे प्यार में इतना मजबूर हुआ ,
वक़्त ने हरकत ऐसी ली,
इसमें मेरा क्या कसूर था।
रूबरू हुआ जब तुझसे मै, मुझपे सवार तेरा फितूर हुआ ,
ज़ोर किसी का कहाँ चलता है ,
इसमें दिल का…
Added by M Vijish kumar on January 1, 2014 at 8:30pm — 12 Comments
उत्थान पतन के बीच साल फिर बीत गया,
बस आशा और निराशा के संग बीत गया।
कुछ दु:ख मिले कुछ आहत मन उल्लसित हुआ,
वह सुख मिले बस इंतजार में बीत गया।
नव वर्ष किरण फिर आशा की लेकर आया,
जनगण मन के मन-मन में फिर उल्लास जगा।
यह जगा रहे उल्लास पूर्ण हो अभिलाषा,
जनता की भाषा बने तंत्र की परिभाषा।
अपराध न हो, हर नारी को सम्मान मिले,
हर मुरझाए…
Added by Atul Chandra Awsathi *अतुल* on January 1, 2014 at 8:09pm — 7 Comments
ग़ज़ल
बहर-।।ऽ।ऽ ।।ऽ।ऽ (प्रथम प्रयास)
..
कभी चाँदनी सी खिला करे,
कभी धूप बन के सजा करे।
..
सभी चाहतों से हों देखते,
तू नज़र-नज़र में बसा करे।
..
कोई ख़्वाब में हो सँवारता,
कोई राहतों की हवा करे।
..
जहाँ लड़खड़ाएँ क़दम वहीं,
कोई हाथ बढ़ के वफ़ा करे।
..
रहें मंज़िलें तेरे सामने,
हो कठिन डगर तो हुआ करे।
..
जिसे देखता हूँ मैं ख़्वाब में,
वही शख़्स तुझमें मिला करे।
..
मेरा फ़न रहे,तेरी सादगी,
मेरी हर…
Added by Ravi Prakash on January 1, 2014 at 6:00pm — 12 Comments
नई सुबह के स्वागत् में, हम वंदनवार लगायें।
रंग बिरंगे फूलों से, घर आंगन द्वार सजायें॥
नये वर्ष के अभिनंदन में, गीत नया हम गायें।
मंगल की सब करें कामना, मिलकर जश्न मनायें॥
फूल खिले हैं, बगिया महकी , हैं भँवरे मंडराये।
भ्रमर सरीखे हम भी झूमे , गुंजन करते जायें ॥
कुहू -कुहू जब कोयल कूके, चहुँदिश मस्ती छाये।
हम भी ऐसी बोली बोलें , मन सबका…
ContinueAdded by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on January 1, 2014 at 12:30pm — 28 Comments
॥ नये साल की पहली ग़ज़ल मेरे भगवान को समर्पित ॥
ॐ श्री साई नाथाय नमः
11212 11212
मेरी शायरी का असर है तू
मेरी ज़िन्दगी का हुनर है तू
मै हूँ एक बुझती सी आग बस
मुझे फिर जला दे ,…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on January 1, 2014 at 8:30am — 35 Comments
आँखों देखी 8 - दक्षिण गंगोत्री में सांस्कृतिक उत्सव
शीतकालीन अंटार्कटिका के विविध रंग हमें दिख रहे थे और हम उनमें डूबते जा रहे थे. लेकिन, जैसा कि मैंने पहले कहीं कहा है, देश और परिवार से इतनी दूर रहकर अवर्णनीय कठिन परिस्थितियों का सामना करना इतना आसान नहीं था. अंटार्कटिका के इतिहास में कई ऐसे उदाहरण हैं जिनसे पता चलता है कि ऐसी विषम परिस्थितियों में रहकर अभियान दल के सदस्यों में शारीरिक समस्याओं के साथ ही मानसिक समस्याएँ भी उत्पन्न…
ContinueAdded by sharadindu mukerji on January 1, 2014 at 3:43am — 5 Comments
सभी सहह्रदयी सदस्यों को नव वर्ष की हार्दिक मंगल कामनाएँ
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 31, 2013 at 2:30pm — 21 Comments
हार गया समय ... !
कि जैसे अतिशय चिन्ता के कारण
आसमान काँपा
आज कुछ ज़्यादा अकेला
थपथपा रहा हूँ
कोई भीतरी सोच और
अनुभवों की द्दुतिमान मंणियाँ ...
तुम्हारी स्मृतिओं की सलवटों के बीच
मेरे स्नेह का रंग नहीं बदला
हार गया समय
समझौता करते ...
एकान्त-प्रिय निजी कोने में
दम घुटती हवा
अँधेरे का फैलाव, उस पर
कल्पना का नन्हा-सा आकाश
टंके हुए हैं वहाँ…
ContinueAdded by vijay nikore on December 31, 2013 at 1:00pm — 32 Comments
नित्य प्रगति सोपान गढ़ें हम
वर्ष नवल शुभ मंगलमय हो ......
गत्य धुरी पर आगत नित नव
युग्म सतत, प्रति क्षण हो उत्सव,
सद्विचार सन्मार्ग नियामक
ऊर्ध्व करें मानवता मस्तक,
मिटे कलुषता का अँधियारा, हृदय ज्ञान से ज्योतिर्मय हो ......
नित्य प्रगति सोपान गढ़ें हम, वर्ष नवल शुभ मंगलमय हो ......
परिष्कार को प्रतिक्षण तत्पर
संकल्पित अभ्यास सतत कर,
नित्य ज्ञान हित सर्व समर्पित
क्षुद्र अहम् कर पूर्ण…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on December 31, 2013 at 11:30am — 43 Comments
इन आँखो में , पलते सपने , तेरे - मेरे , अलग अलग हैं क्या
दुनिया सबकी ,फिर अपने , तेरे - मेरे , अलग अलग हैं क्या
खुशी , प्यार , अपनापन , और सुक़ून की चाह बराबर
अपनो से तक़रार और फिर मनुहार भरी इक आह बराबर
हंसता है जब - जब तू , जिन जिन बातों पे हंसता हूँ मैं भी
तूँ रोए जबभी , तो मैं भी रो दूँ ,
आँसू के रंग , तेरे - मेरे , अलग अलग है क्या
तू पत्थर को तोड़ें या मैं फिरूउँ तराशता संगमरमर को
मैं क़लम से तोड़ूं तलवारें , या तू जीत ले…
Added by ajay sharma on December 31, 2013 at 1:00am — 11 Comments
पूर्व संध्या की हुई विदाई
भाव भीनी भीनी
राजा जी का महल जागा
नव वर्ष की कर अगवानी
*
मंदिर का बजा घण्टा
ले टीका चंदन का
धूप दीप कर्पूर की आरती
पूरी घाटी महकी चंदन सी
*
सूरज अलसाता जागा
बादलों का मोह न छोड़ा
रहा दिन सोया सोया
सांझ पर न पहरा कोई
*
कुछ बुँदों की टीप टाप
पवन में सुर न जागा
आधि दुनिया में हो-हल्ला
आधि दुनिया खोयी खोयी.
*
कहीं आदि कहीं अंत
कहीं मातम कहीं खुशी
दक्षिणी…
Added by coontee mukerji on December 30, 2013 at 10:30pm — 17 Comments
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पूर्ण कर अरमान, नूतन साल आया।
जाग रे इंसान, नूतन साल आया।
ख़ुशबुओं से तर हुईं बहती हवाएँ,
थम गए तूफान, नूतन साल आया।
गत भुलाकर खोल दे आगत के द्वारे,
छेड़ दे जय गान, नूतन साल आया।
कर विसर्जित अस्थियाँ गम के क्षणों की,
बाँटकर मुस्कान, नूतन साल आया।
मन ये तेरा अब किसी भी लोभ मद से,
हो न पाए म्लान, नूतन साल आया।
पूछता है रब कि तेरी, क्या रज़ा…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on December 30, 2013 at 10:00pm — 31 Comments
जब भी उनपे दांव खेला हम हारकर हर बार निकले,
हमारी तबाही की साजिश में एक दो नहीं हज़ार निकले.
रो भी ना पाये यह जानकर अपनी…
ContinueAdded by Malendra Kumar on December 30, 2013 at 8:00pm — 8 Comments
आकर्षण – विकर्षण
चुम्बक मे ही नहीं होता
भाव भी खींचते हैं , दूर कर देते हैं
भावों को ।
बस , नियम उलटा है
चुम्बक से ।
एक ही भावों होता है खिचाव …
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on December 30, 2013 at 7:30pm — 22 Comments
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