वे विचार करते हैं
पर नहीं जनम लेता कोई नया विचार बाँझ मस्तिष्क से
इसी सोच विचार में बैठे रहने ने
अकड़ा दी है उनकी पीठ और गर्दन
कहीं से आती भी है आहट
किसी नए विचार की
तो उस पर ध्यान देने कि अपेक्षा
वो करते हैं प्रयास
अकड़ी गर्दन घुमा कर देखने का कि
ये आवाज़ कहाँ से आती है
तब जाके जान पाता हूँ मैं कि
सुनने से ज़यादा , उनके लिए महत्वपूर्ण है
देखना आवाज़ कि शकलो-सूरत
और इस तरह नहीं ले पाते
वे ' गोद ' किसी भी नए विचार को…
Added by AjAy Kumar Bohat on November 25, 2013 at 10:18pm — 10 Comments
फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
.
धीरे- धीरे सब हुनर दिखने लगा।
उसमें कितना है जहर दिखने लगा।
आँख में कैसी खराबी आ गर्इ,
राहजन ही राहबर दिखने लगा।
लाख डींगे मारिये बेषक मगर,
आप के चेहरे से डर दिखने लगा।
जो दवायें दी थीं चारागर ने कल,
उन दवाओं का असर दिखने लगा।
जो कभी झुकता नहीं था दोस्तो
अब वही सर पाँव पर दिखने लगा।
जानवर तो जानवर हैं छोडि़ये,
आदमी भी जानवर दिखने…
Added by Ram Awadh VIshwakarma on November 25, 2013 at 7:30pm — 15 Comments
2122 2122 ( बिना रदीफ )
जो भरा है वो बहेगा
रिक्तता है तो भरेगा
डर हमे काहे सताये
प्राण जिसमें है मरेगा
कानों सुनके आँखों देखे
चुप भला कैसे…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on November 25, 2013 at 7:00pm — 37 Comments
जीवन का आधार........
हर सांस
ज़िंदगी के लिए
मौत से लड़ती है
हर सांस
मौत की आगोश से
ज़िंदगी भर डरती है
अपनी संतुष्टि के लिए वो
अथक प्रयास करती है
मगर कुछ पाने की तृषा में
वो हर बार तड़पती है
तृषा और तृप्ति में सदा
इक दूरी बनी रहती है
विषाद और विलास में
हमेशा ठनी रहती है
ज़िंदगी प्रतिक्षण
आगे बढ़ने को तत्पर रहती है
और उसमें जीने की ध्वनि
झंकृत होती…
ContinueAdded by Sushil Sarna on November 25, 2013 at 12:00pm — 15 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२ (बह्र--हजज मुसम्मन सालिम)
ज़रा बरसात हो जाती हिमालय भी निखर जाता
बदन फिर से दमक जाता ज़रा पैकर निथर जाता
परिंदा लौट के आता शज़र के सूखते आँसू…
ContinueAdded by rajesh kumari on November 25, 2013 at 11:30am — 41 Comments
रिश्ते यहाँ लहू के सिमटने लगे हैं अब
माँ बाप भाई भाई में बँटने लगे हैं अब
लो आज चल दिया है वो बाज़ार की तरफ
सब्जी के दाम लगता है घटने लगे हैं अब
वो प्यार से गुलाब हमें बोल क्या गए
यादों के खार तन से लिपटने लगे हैं अब
बदले हुए निजाम की तारीफ क्या करें
याँ शेर पे सियार झपटने लगे हैं अब
नेताओं की सुहबत का असर उनपे देखिये
देकर जबान वो भी पलटने लगे हैं अब
मशरूफ “दीप” सब हैं क्या…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on November 24, 2013 at 9:07pm — 13 Comments
सुनो उससे कहना...
ठंड आ गई है ...
जरा मेरे अहसासों को
धूप दिखा दें ....
और ख्यालों को भी
सूखा दें ...
ठंड आ गई है ...
रिश्तों की गर्माहट
बहुत जरूरी है ...
गुलाबी मौसम की तरह ...
जिंदगी भी हँसेगी ...
ठंड आ गए है...
जरा अहसासों को धूप दिखा दो...
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Amod Kumar Srivastava on November 24, 2013 at 8:50pm — 12 Comments
बेघर हुए हैं ख़्वाब धमाकों के साथ साथ।
वहशत भी ज़िंदा रहती है साँसों के साथ साथ॥
जब रौशनी से दूर हूँ कैसी शिकायतें,
अब उम्र कट रही है अँधेरों के साथ साथ॥
दरिया को कैसे पार करेगा वो एक शख़्स,
जिसने सफ़र किया है किनारों के साथ साथ॥
वीरान शहर हो गया जब से गया है तू,
हालांकि रह रहा हूँ हजारों के साथ साथ॥
पत्ता शजर से टूट के दरिया पे जो गिरा,
आवारा वो भी हो गया मौजों के साथ…
ContinueAdded by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on November 24, 2013 at 3:30pm — 11 Comments
जम्हूरियत के बुर्ज पर
बैठा सियासत का गिद्ध
फेरता है चारो ओर
पैनी निगाह
जो है अप्रेरित
भूख से,
वह ढूंढता नहीं है
लाश,
भिड़ाता है तरकीब
लाश बिछाने की..
सत्ता की अंध महत्वकांक्षा में
ये निगाह रहती है
चिर अतृप्त.
चुनावों के मौसम में बढ़ जाती
आवाजाही गिद्धों की .
.......... नीरज कुमार ‘नीर’
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Neeraj Neer on November 24, 2013 at 3:30pm — 9 Comments
दूर बैठे थे उनसे कभी हम आज कितने करीब आ गये
दिल ने किया कब दिल से बाते इससे अंजान हो गये
बातो ही बातो हम एक दूजे की नजरो में खो गये
मगर लगी जो नजर प्यार पर एक दूजे से दूर हो गये
कभी अपने लगते थें जो रास्ते आज बेगाने हो गये
किसकी जुबान से निकला क्या हम ढूढ़ते रह गये
चॉंद ढ़ले तक करते बात जो अब चॉंद निकलते सो गये
एक झलक पाये उनका अब लगता वर्षो हो गये
एक ही तो प्यार था मेरा वो जाने कहॉं अब खो गये
कभी अपने लगते थे जो रास्ते आज बेगाने…
Added by Akhand Gahmari on November 24, 2013 at 11:38am — 8 Comments
पूरण करे प्रकृति अभिमंत्रित काम ये काज |
सृष्टि निरंतर प्रवाहित होवे निमित्त यही राज ||
-----------------------------------------------
हाय ! कौन आकर्षण में
बींध रहा है ...मन आज |
नयन ही नयनों से
खेलन लगे हैं रास ||
घायल हुआ मन...अनंग
तीक्ष्ण वाणों से आज |
टूट गए बन्धन ...लाज
गुंफन के सब फांस ||
करने लगे..... झंकृत...…
Added by Alka Gupta on November 23, 2013 at 10:30pm — 12 Comments
कभी गिरते कभी उठते कभी सभलना सीख जाते हैं ।
मंज़िल उनको मिलती है जो चलना सीख जाते हैं ।
नये हर एक मौसम में नया आगाज़ करते हैं ,
वक्त के साथ जो खुद को बदलना सीख जाते हैं ।
बनके दरिया वो बहते हैं और सागर से मिलते हैं ,
जो बर्फीले सघन पत्थर पिघलना सीख जाते हैं ।
उन्होंने लुत्फ़ लूटा है बहारों कि इबादत का ,
बीज मिट्टी में मिट मिट कर जो मिलना सीख जाते हैं ।
अजब सौन्दर्य झलकाते बिखेरें रंग और खुशबू ,
जो काँटों और…
Added by Neeraj Nishchal on November 23, 2013 at 12:48pm — 22 Comments
भंवरों ने घेरा
पहुंचाया अवसादों की गर्तो में
संयोग बड़ ही सुखकर थे जिनके
उनके ही वियोग भुजंग बने,लगे डसने
कौन शक्ति? जो हर क्षण
अपनी ही ओर हमें है खींच रही
कल से खींचा,आज छुड़ाया
जो आयेगा वो भी छुटेगा
नश्वरता में इक दिन जीवन ही डूबेगा
क्षणभंगुरता से हो विकल हृदय
साश्वत खोज में जब भी तड़फा है
मोहवार्तों ने आलिंगन कर
जिज्ञासु तड़फ को मोड़ा है।
खार उदधि की हर विंदु…
ContinueAdded by Vindu Babu on November 23, 2013 at 10:30am — 20 Comments
बह्र--222 221 122
लुट लुट कर बदहाल रहा हूँ
गम के आँसू पाल रहा हूँ
जीवन से ता उम्र लडा मैं
हथियारों को डाल रहा हूँ
किस्मत ने भी खूब नचाया
मैं पिटता सुरताल रहा हूँ
सब हमको ही बेच रहे थे
सस्ता बिकता माल रहा हँ
मकडी मरती आप उलझकर
खुदको बुनता जाल रहा हूँ
मरजाऊँ तो आँख न भरना
मैं अश्कों का ताल रहा हूँ
कर बैठा मैं प्यार अनौखा
रो रोकर बे-हाल रहा हूँ
मौलिक व…
Added by umesh katara on November 23, 2013 at 9:30am — 12 Comments
ढूँढती है एक चिड़िया
इस शहर में नीड़ अपना
आज उजड़ा वह बसेरा
जिसमें बुनती रोज सपना
छाँव बरगद सी नहीं है
थम गया है पात पीपल
ताल, पोखर, कूप सूना
अब नहीं…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on November 23, 2013 at 6:28am — 35 Comments
मासूम सी हूँ मैं .... नाजुक सी |
अभिलाषा भी .... एक नन्हीं सी |
जीवन ये जो ...दिया विधाता ने |
जियूँ ना जीवन क्यूँ अधिकारी सी|| (1)
लगा था मुझे .. मैं भी .. इक इन्सान हूँ |
डूबी जिन्दगी क्यूँ आँसुओं में .. हैरान हूँ |
बता दो कोई .. इस दर्द की दवा क्या है ?
या मैं सिर्फ .. हवस का एक सामान हूँ || (2)
मिल ना पाए सजनी कोई…
Added by Alka Gupta on November 22, 2013 at 10:50pm — 4 Comments
अब ये तन्हाइयाँ हमें डरातीं हैं,
अक्सर तुम्हारी याद दिलातीं हैं।
ये होंठ ख़ामोश रहते हैं अब तो
और आँखें बस आँसू बहातीं हैं।
तुम मुझसे इतने दूर हो गए क्यूँ
कि न ख़बरें तुम्हारी पास आतीं हैं।
यूँ तो कुछ भी नहीं रहा पहले-सा
जाने क्यूँ तुम्हारी यादें सतातीं हैं।
हर दिन बीतता है तेरे इंतज़ार में,
न तू और न हिचकियाँ ही आतीं हैं।
तुझे देखे हुए,सुने हुए अरसा बीता,
पर तेरी बातें मुझे अब भी रूलातीं हैं।
अपनी मुहब्बत का यकीं दिलाऊँ तुझे कैसे,
ये…
Added by Savitri Rathore on November 22, 2013 at 8:21pm — 5 Comments
एक सिवा मै प्रेम के , करूँ न दूजी बात ।
प्रेम मेरी पहचान हो , प्रेम हो मेरी जात ।
आती जाती सांस में , आये जाये प्रेम ।
प्रेम हो मेरी साधना , प्रेम बने व्रत नेम ।
प्रेम कि लहरें जब उठें , बहे अश्रु की धार ।
प्रेम की वीणा जब बजे , जुड़े ह्रदय के तार ।
प्रेम कि पावन धार में, मेरा मै बह जाय ।
मेरी अंतरआत्मा , प्रीतम से मिल जाय ।
नाची मीरा प्रेम में , प्रेम में मस्त कबीर ।
प्रेम खजाना जब मिला , हुए फ़कीर…
Added by Neeraj Nishchal on November 22, 2013 at 8:13pm — 7 Comments
वो अपने यार को छलने के बाद आते हैं
दिलों में दर्द उभरने के बाद आते हैं
चमकते चाँद सितारे गगन में लगता है
विरह की आग में जलने के बाद आते हैं
न कोई देख ले चेहरे की झुर्रियां यारों
तभी वो खूब सँवरने के बाद आते हैं
हमारे दर्द भी करते हैं नौकरी शायद
हमेशा शाम के ढलने के बाद आते हैं
तुम्हारी याद के जुगनू भी बेबफा तुम से
तमाम रात गुजरने के बाद आते हैं…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on November 22, 2013 at 1:30pm — 31 Comments
शरीर तोड़ श्रम के बाद
थक-हार लेट गया
खेत की मेढ में पड़ी,
टूटी खटिया पर..
सर्द हवाओं के बीच
गुनगुनी धूप से तन को राहत मिल रही थी..
पर मन को सुकून नही
वो गुनगुना स्पर्श नही
जो कभी किसी स्पर्श से मिलता था..
सोचा..उठूँ, थोडा और श्रम करूँ
फिर बेजान हो इक लाश की तरह घर पहुँच कर,
बिस्तर पर छोड़ दूंगा
जो कल भोर होते ही
फिर से जी उठेगा...
चल घर तक चल..
घर राह तक रही है तेरी बूढी…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on November 22, 2013 at 1:30pm — 29 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |