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चितवन

1
सांझ की पड़ी चितवन कटारी
उतर आयी रात आंगन
बिन पिया कैसे मनाऊँ मधुमास
रात की रानी महके
हरसिंगार की झूमर लहके
तारों की बरात लिये
आया कोई पुच्छल तारा
देख सुहानी रात मतवाली
पैरों बाँध घुँघरू
बिरहनी संग यह कैसा परिहास

2
बहक रहा चाँद
लहरों पर थिरक रही चाँदनी
सागर तट पर नाच रहा पवन
बाँध के पैजन
चट्टानों के गृह सखी
चल रहा सम्मोहन
बिन पिया कैसे हो हिय उल्लास

3
दूर गगन से
कोई बाँसुरी पुकारे
हृदय का पट खोल
अंतर में मोह जगाए
कैसा यह उच्छवास
रूक जादूगर! सम्भल जरा
बिन पिया कैसे मनाऊँ मधुमास.

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by वेदिका on April 6, 2014 at 2:00pm
तीन क्षणिकाएं तीनों अभूतपूर्व, वियोग श्रिंगार का पुट लिए हुए। कभी आपका आशीर्वाद हुआ और समय का सुखद संयोग तो ये रचना आपसे लाइव सुनने की आकांक्षा है।
सादर

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 27, 2013 at 10:33pm

तीन दृश्य तीन निवेदन. बहुत खूब !

हार्दिक बधाई आदरणीया

Comment by बृजेश नीरज on December 27, 2013 at 8:38pm

बहुत सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 27, 2013 at 1:44pm

आदरणीय कुंती जी

मधुमास ,परिहास और उल्लास प्रिय के बिन न मनाने की आकुल छटपटाहट  का मर्मस्पर्शी  चित्रण है i आपके बिम्ब बहुत सटीक और उभर कर आते है i  आपकी सभी रचनाओ का स्तर एक आदर्श ऊँचाई पर रहता है , वहा तक पहुचने के लिए बड़ी ऊर्जा चाहिए i  बशुत बहुत बधाई माननीया  i

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 27, 2013 at 9:32am

आपने अंतर की व्यथा को बहुत ही सुंदर शब्दों से संजोया, बधाई स्वीकारें आदरणीया कुंती जी

Comment by coontee mukerji on December 27, 2013 at 2:38am

प्रिय मित्रगण आप लोगों मेरी रचना भायी.हार्दिक आभार वन वर्ष की शुभ कामनाएँ

Comment by कल्पना रामानी on December 26, 2013 at 8:10pm

बहुत ही मार्मिक रचना है आपकी  आदरणीया कुंती जी,  हार्दिक बधाई आपको

..सादर

Comment by MAHIMA SHREE on December 26, 2013 at 7:39pm

सांझ की पड़ी चितवन कटारी
उतर आयी रात आंगन.......... बहुत ही सुंदर आदरणीया कुंती जी हार्दिक बधाई आपको ..सादर

Comment by S. C. Brahmachari on December 26, 2013 at 4:54pm
आ0 कुंती भाभी ,
1 साँझ की घड़ी 2 सागर तट 3 दूर गगन से कोई कोई बांसुरी पुकारे ~~~~~ भावों की अनुपम प्रस्तुति हेतु बधाई
Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on December 26, 2013 at 2:18pm

हार्दिक बधाई आदरणीया कुंतीजी, तीनों में व्यथा है ,  सुंदर भाव है । अंतिम और भी सुंदर।

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