Added by दिनेश कुमार on February 15, 2015 at 7:47pm — 17 Comments
तुम चलाओ गैंती-फावड़ा
काटो पत्थर, बनाओ नाली
दिन है तो सूरज को घड़ी मानो
और रात है तो गिनते रहो एक-एक प्रहर
कुत्ते कब भौंके
सियार कब चीखे
मुर्गे ने कब बांग दी
यही है तुम्हारी नियति....
तुम चलाओ छेनी-हथौड़ी
तुम्हारे लिए बन नहीं सकतीं
ऐसी यांत्रिक घड़ियाँ
जिनमे काम के घंटों का हिसाब हो
और आराम के पल का ज़िक्र हो...
तुम लिखो कविता-कहानी
फट जाए चाहे
माथे की उभरी नसें
फूट जाए ललाई…
Added by anwar suhail on February 15, 2015 at 7:30pm — 7 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on February 15, 2015 at 11:25am — 8 Comments
“मम्मी मैं किटी पार्टी में जा रही हूँ , आप हेमा को कह दो वह विवान को दूध दे देगी ...वैसे भी विवान मेरे पास नहीं उसी के पास रहता है |” अपने लहराते हुए बालों को झटका देते हुए फाल्गुनी ने कहा ||स्टाइल में रहना, फैशनेबल कपड़े पहनना, सहेलियों के बीच अपनी सुन्दरता की प्रशंसा सुनना, यही तो मनपसंद कार्य है फाल्गुनी का | जन्म तो दिया बच्चे को मगर ममता नहीं लुटा पाई |
इसके विपरीत हेमा जो कि अपने से अधिक चिंता करती है घर परिवार की...अपनी जेठानी के पुत्र पर जान से भी अधिक स्नेह लुटाती है मगर…
ContinueAdded by डिम्पल गौड़ on February 14, 2015 at 3:30pm — 14 Comments
दिल से दिल के तार जुड़े संतूर जहाँ में बजते हैं
छंद पहेली गीत ग़ज़ल जब दूर जहाँ में सजते हैं
रुनझुन-रुनझुन घुंघरू आहट का संदेशा लाती है
ताल मिलाती धड़कन से मगरूर जहाँ में लगते है
अंतस मन मेल हुआ दिलबाग रूमानी गुलशन है
रुखसार गुलाबी होंठ शबाबी नूर जहाँ में लगते हैं
हया लबों पे खेल रही है नज़र नज़ाकत शानी है
कोयल किस्से कहती है मशहूर जहाँ में लगते हैं
नैन नख्श नखरों पे है नायाब नवेली नज्म अदा
फिदा फ़साने पर आनंद वो चूर जहाँ में लगते…
ContinueAdded by anand murthy on February 14, 2015 at 2:59pm — 8 Comments
॥ पछतावा ॥ ॥ अतुकांत ॥
कहने से नहीं
समझाने से नहीं
कोई अगर गंदगी को चख के ही मानने की ज़िद करे
कौन रोक सकता है
बातें
कर्तव्यों को छोड़
केवल अधिकारों तक पहुँच जाये तब
ज़हर धीमा हो अगर
अमृत तो नहीं कह सकते न
संस्कारों की भूमि में
रिश्ते दिनों से मानयें जायें
ये दिन , वो दिन
अफसोस होता है
पता नहीं क्यों
रोज़ रोते हुये देखता हूँ मैं सपने में
राधा-कृष्ण-मीरा को ,…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on February 14, 2015 at 8:55am — 16 Comments
तुम साहसी हो,
मैं यह मानकर चला,
इसी भाव को,
हृदय में धारण कर,
प्रेम पथ पर आगे बढ़ा,
भावी जीवन का स्वप्न सजोयें,
परिवार, समाज, दुनिया से लड़ा,
पर देखो आज शर्मिन्दा खड़ा हूँ ,
स्वयं की नजरों में गिरा पड़ा हूँ ,
मुझे प्यार किया तुमने, पर कह ना सकीं,
मेरा जीवन होम हुआ, पर भंग न तुम्हारा मौन हुआ !!
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित
Added by Hari Prakash Dubey on February 14, 2015 at 8:52am — 16 Comments
क्या तुम्हें मालूम है
मुझे हरवक्त तुम्हें ,मेरे साथ होने का
अहसास रहता है
कि कहीं दूर से ही तुम मुझे कोई सहारा दे रही हो
मगर अबकी बार तुमसे मिलकर
मेरा वह अहसासों भरा विश्वास टूटता नजर आया
क्या तुम खुदको मुझसे दूर ले जाना चाहती हो
या दूर ले जा चुकी हो
बहुत दूर
मुझे तुम्हारी हर राहे मुकाम पर
जरूरत होगी
उस वक्त एक सूनापन
मेरे चेतन को अवचेतन करेगा
मेरे सोचने की शक्ति क्षीण हो जायेगी
मेरा शरीर सुन्न होने लगेगा
मेरी…
Added by umesh katara on February 14, 2015 at 7:30am — 12 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on February 14, 2015 at 1:30am — 20 Comments
बह्र : २२ २२ २२ २२ २२ २२
फिर मिल जाये तुम्हें वही रस्ता, रुक जाना
ख़ुद को दुहराने से है अच्छा रुक जाना
उनके दो ही काम दिलों पर भारी पड़ते
एक तो उनका चलना औ’ दूजा रुक जाना
दिल बंजर हो जाएगा आँसू मत रोको
ख़तरनाक है यूँ पानी खारा रुक जाना
तोड़ रहे तो सारे मंदिर मस्जिद तोड़ो
नफ़रत फैलाएगा एक ढाँचा रुक जाना
पंडित, मुल्ला पहुँच गये हैं लोकसभा में
अब तो मुश्किल है ‘सज्जन’ दंगा रुक…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 13, 2015 at 10:32pm — 17 Comments
पहाड़ और पीठ
एक
पहाड़,
सिर्फ पीठ होता है
मुह होता तो बोलता
पहाड़ के पैर भी नही होते
हाथ भी
वरना वह चलता
कुछ करता या,
उठता बैठता भी
पहाड़, अपनी पीठ पर
लाद लेता है तमाम जंगल नदी नाले,
हरी भरी झील भी
सड़क और बस्तियां भी
और कुछ नही बोलता
क्यों कि,
पहाड़ सिर्फ पीठ है
और पीठ कुछ नही बोलती
दो,
पीठ,
पहाड़ नही होती
पर लाद लेती है पहाड़
पीठ के भी मुह नही होता
पहाड़ की तरह होती है एक…
Added by MUKESH SRIVASTAVA on February 13, 2015 at 12:24pm — 9 Comments
मानव मन दुर्बल हुआ, जो पूजे इंसान ।
अंतर ईश मनुष्य का, ना समझे नादान।।
पंक घृणा के फेंककर, कहलाये भगवान।
इतनी सी इस बात को, समझे ना इंसान।।
अपनी अपनी है समझ, अपना अपना पंथ।
मन से दुर्बल के लिये, व्यर्थ सभी हैं ग्रंथ।।
रहे हृदय में आस्था, श्रृद्धा में हो ईश।
बस उसके ही नाम पर, नत रखना तू शीश।।
मानव को मानव समझ, ऐसा रख व्यवहार।
बने हँसी का पात्र तू, ऐसा क्या आचार।।
-मौलिक व अप्रकाशित
Added by शिज्जु "शकूर" on February 13, 2015 at 8:00am — 9 Comments
मैं उसे देखकर मुस्कराता रहा,
वो मुझे देखकर मुस्कराती रही।
उस कहानी का किरदार मैं ही तो था,
जो कहानी वो सबको सुनाती रही।।
मैं चला घर से मुझ पर गिरीं बिजलियां
बदलियां नफरतों की बरसने लगीं,
बुझ न जाए दिया इसलिए डर गया
देखकर आंधियां मुझको हंसने लगीं,
दुश्मनी जब अंधेरे निभाने लगे
रोशनी साथ मेरा निभाती रही,
मैं उसे देखकर मुस्कराता...
प्यास तुमको है तुम तो हो प्यासी नदी
एक सागर को क्या प्यास होगी भला,
हां अगर तुम…
Added by atul kushwah on February 12, 2015 at 10:00pm — 14 Comments
धूमिल सपने हुए हमारे
रंगहीन सी
प्रत्याशाएँ
सोये-जागे सन्दर्भों की
फैली हैं
मन पर शाखाएँ
शंकायें तो रक्तबीज सी
समाधान पर भी
संशय है
अपने पैरों की आहट में
छिपा हुआ अन्जाना
भय है
किस-किसका अभिनन्दन कर लें
किस-किसका हम
शोक मनाएँ
सांस-सांस में दर्प निहित है
कुछ होने कुछ
अनहोने का
कुछ पाने की उग्र लालसा
लेकिन भय
सब कुछ खोने का
अनगिन…
Added by JAGDISH PRASAD JEND PANKAJ on February 12, 2015 at 8:30pm — 10 Comments
मेरी पलकों को......एक रचना
मेरी पलकों को अपने ख़्वाबों की वजह दे दो
अपनी साँसों में मेरे जज़्बातों को जगह दे दो
जिसकी नमी तुम ये दामन सजाये बैठी हो
उसके रूठे सवालों को जवाबों में जगह दे दो
बंद हुआ चाहती हैं अब थकी हुई पलकें मेरी
अपनी तन्हाई में रूहानी रातों को जगह दे दो
ये ज़िंदगी तो गुज़र जाएगी तेरे हिज्र के सहारे
इन हाथों में कुछ रूठे हुए वादों को जगह दे दो
कल का वादा न करो कि अब न…
ContinueAdded by Sushil Sarna on February 12, 2015 at 8:00pm — 24 Comments
कुष्ट रोग से ग्रसित बिधवा बुढ़िया अकेली ही रहती थी. इकलौता बेटा शादी कर पता नहीं कहाँ जा बसा था. किसी ने बताया कि रोग से मुक्ति चाहिए हो तो जुम्मे के रोज मजार वाले बाबा के पास जाओ. बुढ़िया अगले ही जुम्मे को मजार पर पहुँच गयी । वहाँ झाड़-फूंक चल रही थी. बाबा के एक शागिर्द ने चढ़ावा लिया और घर-परिवार, रिश्तेदारों आदि के बारे में पूछताछ कर एक तरफ बिठा दिया जहाँ पहले से उस जैसे अन्य मरीज इन्तजार कर रहे थे. खैर कुछ देर इन्तजार के पश्चात उसकी बारी आयी ।
बाबा की…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 12, 2015 at 4:00pm — 25 Comments
आधी रात
चांदनी और छाँव
तस्करों का हरा-हरा गाँव
जालिमो में कुछ अधेड़
कुछ तरु, कुछ वृक्ष, कुछ पेड़
कुछ घर थे गरीबों के भी
दांतों के बीच जीभों के भी
सचमुच बदनसीबों के भी
आधी रात
चांदनी और छाँव
सन्नाटे में डरा-डरा गाँव
एक गरीब बुढ़िया के द्वार
तेजी से आया इक घुड़सवार
बुढिया की बेटी को…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 12, 2015 at 10:54am — 14 Comments
1222 1222 1222 1222
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ठसक तेरी मेरी गैरत के आपस में उलझने से
मुहब्बत लुट गयी अपनी दिलों में जह्र पलने से
..........
दगाबाजी से अच्छा तो अलग होना मुनासिब था
बफाओं के बिना क्या है सफर में साथ चलने से
...........
मेरा घर अपने हाथों से कभी मैंने जलाया था
नहीं लगता मुझे अब डर किसी का घर भी जलने से
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तू पत्थर है मुझे हरबार चकनाचूर करता है
मैं सीसा हूँ मुझे अफसोस क्या होगा बिखरने…
Added by umesh katara on February 12, 2015 at 10:48am — 16 Comments
दूर मुझसे कितने दिन रह पायोगे , सोच लो , फिर रहो
दर्द-ए-दिल है ये , सह पायोगे , सोच लो, फिर सहो
लौट के खुद पे आती हैं , बद-दुयाएँ , सुना है ?
सहन ये सब कर पायोगे , सोच लो , फिर कहो
क्या नहीं उसने दिया , पर क्या दिया तुमने उसे ?
क्या कभी उठ पायोगे इतना , सोच लो , फिर गिरो
इतना भी आसां नहीं है, रास्ता ख़ुद्दारियों का
सूरज की जलन सह पायोगे , सोच लो , फिर बढ़ो
घर से बे-घर होके भी उसने बसाई दिल की दुनिया
आँसुयों सा ये सफ़र कर…
Added by ajay sharma on February 12, 2015 at 12:30am — 10 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on February 11, 2015 at 9:17pm — 20 Comments
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