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माना होता खुदा को एक हमने

2222 1222 1222

लोगों को लूटने का फ़लसफ़ा होता ||
तो अपने नाम पर बाबा लगा होता ||

तूं तूं - मैं मैं न होती इस कदर हम में ,

तेरा मेरा अगर इक रास्ता होता ||

माना होता खुदा को एक हमने तो ,
फिर घर न कोई किसी का जला होता ||

उनको आया नज़र फर्के- लिबासां ही ,
काश !ये इक रंग का खूं भी दिखा होता ||

फिर मैं भी मानता परवाह है उसको ,
ग़र आंसू पोंछ बांहो में कसा होता ||

समझौता कर लिया हालात से उसने ,
हो जाती जीत ग़र ज़िद पे अड़ा होता||

.

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Nazeel on March 18, 2015 at 8:41am
आदरणीय सौरभ पांड़े जी हार्दिक आभार. गुणीजनों की सलाहानुसार मैं इसको ठीक करने की कोशिश कर रहा हूं.

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Comment by Saurabh Pandey on March 18, 2015 at 5:59am

आप ग़ज़ल पर मिले सुझाव पर ध्यान दें.

शुभेच्छाएँ

Comment by Nazeel on March 17, 2015 at 7:51pm

आदरणीय  निर्मल नदीम जी बहुत बहुत धन्यवाद गलती में ध्यान दिलवाने के लिए।  ये अहसास  हो  गया  है मुझको इसको सुधारने  कोशिश रहा  हूँ 

Comment by Nirmal Nadeem on March 17, 2015 at 3:53pm

Muafi chahta hu janab. ghazal jo bhi kahi hai aapne wo khayaal to bahut khoobsoorat hai lekin ye bahr maine kahi nhi dekhi. shukriya.

Comment by Nazeel on March 16, 2015 at 7:57pm

बहुत-बहुत धन्यवाद  आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी और आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी.. जो कुछ तकनीकी त्रुटि है  वो  पता चल गई है  उसको सुधारने की कोशिश कर  रहा  हूँ 

Comment by Hari Prakash Dubey on March 16, 2015 at 7:45pm

 आ. नजील भाई सुन्दर प्रस्तुति है , तकनीकी पक्ष ज्यादा मैं भी नहीं जानता , विद्वजनो ने कह ही दिया है , हार्दिक बधाई आपको ! 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 16, 2015 at 7:41pm

भाई नजील गजल तो आपने खूब कही पर  ---- भंडारी जीने कुछ कहा .  सादर .

Comment by Nazeel on March 16, 2015 at 5:21pm

हौंसला आफजाई के लिए तहे -दिल से शुक्रिया  आदरणीय भाई श्याम मठपाल जी … 

Comment by Shyam Mathpal on March 16, 2015 at 3:14pm

Aadarniya Nazeel Ji,

लोगों को लूटने का फ़लसफ़ा होता ||
तो अपने नाम पर बाबा लगा होता ||  ------ Hakikat bayan ki hai aapne... Bahut sundar. Dhero badhai.

Baba Neta Saudagar aur thagon ke sardar,

Sab janta Ko lutate Karte Bhavnawon Ka vyapar.

Comment by Nazeel on March 16, 2015 at 1:54pm

हौंसला बढ़ाने हेतु तहे-दिल से शुक्रिया आदरणीय  भाई गिरिराज भंडारी जी.. आप सही कह रहें हैं मैंने  ध्यान दिया जब मुकम्मल हो गई थी फिर मैंने छेड़छाड़ नहीं की आगे से ध्यान रखा करुंगा।  एक बार फिर से शुक्रिया  । 

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