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सोच समझ कर बोलिए, बातें सदा विनीत
छूटा धनु से बाण जो, लौटा कब हे! मीत
तीर-धनुष-तलवार से, बड़े दया औ' प्रेम
इन्हें बना लें शस्त्र यदि, जग को लेंगे जीत।
द्वेष-दंभ सम अरि सखे! यहाँ मनुज के कौन
बिन इनके संहार के, उपजे कब हिय प्रीत
सतत प्रयासों के करें, ऐसे तीव्र प्रहार
पर्वत पथ खुद छोड़ दें, होकर भय से भीत
अधर-सुधा घट भौंह-धनु, मुख…
Posted on November 19, 2018 at 1:21pm — 3 Comments
हे! जगदीश! सुनो विनती अब, भक्त तुम्हें दिन-रैन पुकारे।
व्याकुल नैन निहार रहे पथ, पावन दर्शन हेतु तुम्हारे।।
कौन भला जग में अब हे हरि संकट से यह प्राण उबारे।
आ कर दो उजियार प्रभो! हिय, जीवन के हर लो दुख सारे।।
रचनाकार-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित
सूत्र-भगण×7+गुरु गुरु; 211×7+22
Posted on October 13, 2018 at 9:48pm — 6 Comments
ज्योतिपुंज जगदीश! रहो नित ध्यान हमारे।
कलुष-द्वेष-दुर्भाव, हृदय-तम हर लो सारे।।
सत्य-स्नेह-सद्भाव, समर्पण का प्रभु! वर दो।
जला ज्ञान का दीप, प्रभा-शुचि हिय में भर दो।
दो बल-पौरुष-सद्बुद्धि हरि! मार्ग चुनेें सद्कर्म का।
हर जनजीवन के त्रास हम, फहरायें ध्वज धर्म का।।
मौलिक एवं अप्रकाशित
रचनाकार-रामबली गुप्ता
शिल्प-प्रथम चार पद रोला छंद और अंतिम दो पद उल्लाला छंद के संयोग से छप्पय छंद की निष्पत्ति होती है।
Posted on October 9, 2018 at 11:30pm — 11 Comments
आज खुशी से झूमूँ सखि री पत्र पिया का आया है
भाव भरे अक्षर-अक्षर ने तन-मन को हर्षाया है
लिखते, प्रिये! तुम्हीं से सब कुछ, सुख-दुख की सहभागी तुम
सतरंगी स्वप्नों सा सुंदर जीवन तुमसे पाया है
रहता था निर्वासित सा मन जीवन के निर्जन वन में
पावन प्यार भरा गृह इसको तुमने ही लौटाया है
कहते- पीर भरा यह जीवन जो तपते मरुथल सा था
होकर सिंचित स्नेह से' तेरे हरा भरा हो…
Posted on October 1, 2018 at 9:21am — 10 Comments
आदरणीय रामबली गुप्ता जी.
सादर अभिवादन !
मुझे यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि आपका गीत-हृदय का भ्रमर गुनगुनाता चला है को "महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना" सम्मान के रूप मे सम्मानित किया गया है | इस शानदार उपलब्धि पर बधाई स्वीकार करे |
आपको प्रसस्ति पत्र यथा शीघ्र उपलब्ध करा दिया जायेगा, इस निमित कृपया आप अपना पत्राचार का पता व फ़ोन नंबर admin@openbooksonline.com पर उपलब्ध कराना चाहेंगे | मेल उसी आई डी से भेजे जिससे ओ बी ओ सदस्यता प्राप्त की गई हो |
शुभकामनाओं सहित
आपका
गणेश जी "बागी
संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक
ओपन बुक्स ऑनलाइन
आ० रामबली जी
आप जैसा सुन्दर कवि -मित्र पाकर आप्यायित हूँ . आपको सदैव शुभ .
आपका अभिनन्दन है.
ग़ज़ल सीखने एवं जानकारी के लिए |
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आप अपनी मौलिक व अप्रकाशित रचनाएँ यहाँ पोस्ट (क्लिक करें) कर सकते है. और अधिक जानकारी के लिए कृपया नियम अवश्य देखें. |
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