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सफलता के शिखर पर वे खड़े हैं
सदा कठिनाइयों से जो लड़े हैं
बताओ नाम तो उन पर्वतों के
हमारे हौसलों से जो बड़े हैं
नहीं हैं नैन ये गर सच कहूँ तो
सुघर चंदा में दो हीरे जड़े हैं
जो प्यासी आत्मा को तृप्त कर दें
नहीं हैं होंठ, वे मधु के घड़े हैं
ये सच है कर्मशीलों के लिए तो
सितारे भूमि पर बिखरे पड़े हैं
ये दिल के घाव अब तक हैं हरे क्यों
यकीनन शूल शब्दों के गड़े…
Posted on July 6, 2020 at 11:37pm — 12 Comments
गीत
देखा जब से उनको हिय में हुई अजब सी हलचल।
दिन को चैन और रातों को नींद नहीं है इक पल।।
उनके अरुण अधर ज्यों फूलों की हों कोमल कलियाँ।
जिनसे फूटें स्वर मधुरिम तो गूँजें मन की गलियाँ।।
केशों के झुरमुट में उनका मुखमंडल यों भाये।
घन के मध्य झरोखे में ज्यों इंदु मंद मुसकाये।।
दृग पराग के प्याले हों ज्यों करते हर पल छल-छल।
दिन को चैन और रातों को नींद नहीं है इक पल।।
खिलता यौवन-पुष्प सुरभि यों चहुँ दिश बिखराता…
ContinuePosted on April 26, 2020 at 11:03pm — 6 Comments
महाभुजंगप्रयात सवैया
कड़ी धूप या ठंड हो जानलेवा न थोड़ी दया ये किसी पे दिखाती।
कि लेती कभी सब्र का इम्तिहां और भूखा कभी रात को ये सुलाती।।
जरूरी यहाँ धर्म-कानून से पूर्व दो वक्त की रोटियाँ हैं बताती।
गरीबी न दे ऐ खुदा! जिंदगी में कि इंसान से ये न क्या क्या कराती?
शिल्प-लघु गुरु गुरु(यगण)×8
रचनाकार- रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित
Posted on April 23, 2019 at 5:23pm — 5 Comments
सूत्र-सात यगण +गा; 122×7+2
पड़ी जान है मुश्किलों में करूँ क्या कि नैना मिले और ये हो गया।
गई नींद भी औ' लुटा चैन मेरा न जाने जिया ये कहां खो गया।।
जिया के बिना भी जिया जाय कैसे अरे! कौन काँटें यहां बो गया।
हुआ बावरा या नशा प्यार का है संभालो मुझे हाय! मैं तो गया।।
रचनाकार-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित
Posted on April 17, 2019 at 10:29am — 9 Comments
आदरणीय रामबली गुप्ता जी.
सादर अभिवादन !
मुझे यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि आपका गीत-हृदय का भ्रमर गुनगुनाता चला है को "महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना" सम्मान के रूप मे सम्मानित किया गया है | इस शानदार उपलब्धि पर बधाई स्वीकार करे |
आपको प्रसस्ति पत्र यथा शीघ्र उपलब्ध करा दिया जायेगा, इस निमित कृपया आप अपना पत्राचार का पता व फ़ोन नंबर admin@openbooksonline.com पर उपलब्ध कराना चाहेंगे | मेल उसी आई डी से भेजे जिससे ओ बी ओ सदस्यता प्राप्त की गई हो |
शुभकामनाओं सहित
आपका
गणेश जी "बागी
संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक
ओपन बुक्स ऑनलाइन
आ० रामबली जी
आप जैसा सुन्दर कवि -मित्र पाकर आप्यायित हूँ . आपको सदैव शुभ .
आपका अभिनन्दन है.
ग़ज़ल सीखने एवं जानकारी के लिए |
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