For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Nazeel's Blog (13)

बहुत कुछ दांव पे लगाया है .....

१ २ २ २ १२ १ २२२
बड़ी मुश्किल उसे मनाया है ॥
बहुत कुछ दांव पे लगाया है ॥
किसे कहते कि बेवफा है वो ,
हँसा हम पे जिसे बताया है ॥
बसा दिल-ओ-दिमाग में वो ही ,
अचानक सामने जो आया है ॥
लगे ऐसा हमें खुदा ने उसे ,
हमारे के लिए बनाया है ॥
हुआ है एहसास जन्नत का ,
जो माँ ने गोद में सुलाया है ॥
कहाँ होशो-हवास की बातें ,
किसी पे जब शबाब आया है ॥
लगे है वो पवित्र गंगा सा ,
करिंदा जो पसीने से नहाया है ॥
मौलिक /अप्रकाशित

Added by Nazeel on April 7, 2015 at 9:30pm — 15 Comments

वो सताए है मुझे यादों में शामो - सहर ..... Nazeel



२१२२  २१२२  २१२२  २१२

जिंदगी मेरी कहाँ जाके गई है तू ठहर ॥

ले गई है फिर वहां ,जो छोड़ आया था  शहर



है खुदा भी एक ,एक ही आसमां , एक ही  ज़मीं

सरहदों पर किस लिए हमने मचाया है  कहर   



मारता आया है बरसों  बाद भी अक्सर  हमें ॥

घुल गया था जो दिलों  में  लकीरो  का जहर



भूल कर भी भूल सकता हूँ भला कैसे  उसे  ,

वो सताए है मुझे यादों में शामो - सहर



वायदा करके नहीं आये अभी तक क्यों  भला ,

यूँ अकेला बैठ…

Continue

Added by Nazeel on April 1, 2015 at 8:44pm — 16 Comments

वो वायदे गिनने लगे हैं आज कल...

२२१२ २२१२ २२१२

खामोश से रहने लगे हैं आजकल ॥

हम रात भर जगने लगे हैं आजकल ॥

इन महफ़िलों को क्या हुआ किसको पता ,

सब  चेहरे ढलने लगे है आजकल ॥

सदियों से लूटा है खुदा के नाम पे ,

तो कब नया ठगने लगे है आज कल ॥

निभते नहीं हैं जो सियासत में कभी ,

वो वायदे गिनने लगे हैं आज कल ॥

कैसे कहें , कितना चाहें हैं उसे ,

बस सोच के डरने लगे हैं आज कल ॥

मालूम होता तो बता पाते तुझे ,

वो दूर क्यों हटने…

Continue

Added by Nazeel on March 21, 2015 at 9:30pm — 10 Comments

माना होता खुदा को एक हमने

2222 1222 1222

लोगों को लूटने का फ़लसफ़ा होता ||

तो अपने नाम पर बाबा लगा होता ||

तूं तूं - मैं मैं न होती इस कदर हम में ,

तेरा मेरा अगर इक रास्ता होता ||

माना होता खुदा को एक हमने तो ,

फिर घर न कोई किसी का जला होता ||

उनको आया नज़र फर्के- लिबासां ही ,

काश !ये इक रंग का खूं भी दिखा होता ||

फिर मैं भी मानता परवाह है उसको ,

ग़र आंसू पोंछ बांहो में कसा होता ||

समझौता कर लिया हालात से…

Continue

Added by Nazeel on March 15, 2015 at 8:00pm — 11 Comments

भूला कहाँ हूँ कच्चा घर अपने गाँव का

भूला कहाँ हूँ कच्चा घर अपने गाँव का ||

जो बना था लकड़ी का दर अपने गाँव का ||

थी वो महकती मिटटी और वो कच्ची गली ,

घूमे  ख़्यालों में  मंज़र अपने  गाँव का ||

आँखे हुई नम , देखकर  पानी  बरसात  का ,

जो याद आये जोहड़ अक्सर अपने गाँव का ||

जब…

Continue

Added by Nazeel on March 3, 2012 at 7:00pm — 11 Comments

वो कोशिश करते रहे रुसवा करने की ,

मांगी जो उनसे जिगर में पनाह हमने ||

देखें ऐसे जो किया हो गुनाह हमने ||

आज तक न मिला मुहब्बत सा बहर गहरा,

देखे लाखों बहर गहरे अथाह हमने ||

हमको उसने भी दिया ना जवाब कोई ,…

Continue

Added by Nazeel on February 6, 2012 at 8:10pm — No Comments

मेरे घर के नज़दीक दीवारों पे

मेरे घर के नज़दीक दीवारों पे ||
आए नज़र मुझे तू इश्तिहारों पे ||

है सच्चाई की शरीफ कूचों में भी ,
अक्सर बिकता है हुस्न चौबारों पे ||

शायद सब जायज है इस सियासत में,
बस मुद्दे ही हैं किस्मत के मारो पे ||

मुमकिन ना है अब वस्ल होगा उनसे ,
बसते हैं जो आजकल वो सितारों पे ||

आखिर आए है मौसिमे -वीरानी ,
इस फिजा को महकाती इन बहारों पे ||

Added by Nazeel on January 31, 2012 at 4:30pm — 5 Comments

तेरे बिना लगती है जिंदगी अधूरी सी |

तेरे बिना लगती है जिंदगी अधूरी सी |

अपनी बज़्म की है अब हर ख़ुशी अधूरी सी ||



बन के अब्र कोई ,बरसाए बारिशे-उल्फत ,

मुहब्बत के बिन तो है दिल की ज़मीं अधूरी सी ||



इसको गुनाह समझ ,चाहे समझ खता इसको ,

हमसफ़र के बिन लगती है खुदी अधूरी सी ||



जाम छलके हैं चाहे रोज़ मैकदे में, पर ,

तेरे बिन साकीया ,मैकशी अधूरी सी |



मैं चाहता हूँ अक्सर देखना खुदा को ,

जाने क्यों रह जाए बन्दगी अधूरी सी |



उनके ख्यालों में खोकर "नजील" अब मै तो… Continue

Added by Nazeel on January 21, 2012 at 7:45pm — 6 Comments

मुस्काने की फितरत साथ दे अगर

मुश्किल में एजद की रहमत साथ दे अगर |

तो छू लें बुलंदी हम ,किस्मत साथ दे अगर ||



मिट  जाएगा  झूठ  हमारी  कायनात  से ,

बस हमको इक बार सदाकत साथ से अगर…

Continue

Added by Nazeel on January 17, 2012 at 12:30pm — 4 Comments

उन्हें देख कर सूरत पे जलाल आए

जब भी तुझको पाने का ख्याल आए |

पाए किस तरह ज़हन में सवाल आए ||

.

छोड़ कर हिया वो आ लगे गले से ,

जब उनसे हम पूछने उनका हाल आए |

.

बिन उनके तो हम बैठे रहें बुझे से ,

उन्हें देख कर सूरत पे…

Continue

Added by Nazeel on January 7, 2012 at 12:00pm — 3 Comments

उनकी सुहबत में सुधरते चले गए ||

जैसे -जैसे दिन गुजरते चले गए |

वो मेरे दिल में उतरते चले गए ||

याद दिलाने की कोशिश की है मगर ,

वो इन वादों से मुकरते  चले गए |

औरों को  देते थे सलाह, मगर खुद ,…

Continue

Added by Nazeel on December 30, 2011 at 1:56pm — 2 Comments

वो रूठ जाते हैं बेवजह ही

हर दिन ज़िन्दगी से जूझता हूँ |

हर मोड़ पर मंजिलें ढूढता हूँ ||

.

वो रूठ जाते हैं बेवजह ही ,

उनसे भला मैं कब रूठता हूँ |

.

मजबूरी का बनके पासबां मैं ,

अरमान अपने ही लूटता हूँ |

.

अपना गम छुपाने के लिए अब,

मैं हाल औरों से पूछता हूँ |

.

मैं आज नफरत के दौर में भी,

तेरी उल्फ़त कहाँ भूलता हूँ |

.

हर बार फिर उठता हूँ मैं ,चाहे ,

दिन में कई बारी टूटता हूँ ||

Added by Nazeel on December 24, 2011 at 4:00pm — 6 Comments

माहो-अख्तर के बिना आसमां हूँ मैं ,

माहो-अख्तर के बिना आसमां  हूँ मैं ,

.यादों की बिखरी हुई कहकशां हूँ मैं |



अपने खूं से लिखी हुई दास्ताँ हूँ मैं |

पढने वालों के लिए  इम्तहाँ हूँ मैं |

.

चाहे जिसको लूटना ये ज़हाँ सारा…

Continue

Added by Nazeel on December 15, 2011 at 12:00pm — 4 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
23 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
26 minutes ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
1 hour ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
19 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"कौन है कसौटी पर? (लघुकथा): विकासशील देश का लोकतंत्र अपने संविधान को छाती से लगाये देश के कौने-कौने…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"सादर नमस्कार। हार्दिक स्वागत आदरणीय दयाराम मेठानी साहिब।  आज की महत्वपूर्ण विषय पर गोष्ठी का…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service