For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वो वायदे गिनने लगे हैं आज कल...

२२१२ २२१२ २२१२

खामोश से रहने लगे हैं आजकल ॥
हम रात भर जगने लगे हैं आजकल ॥

इन महफ़िलों को क्या हुआ किसको पता ,
सब  चेहरे ढलने लगे है आजकल ॥

सदियों से लूटा है खुदा के नाम पे ,
तो कब नया ठगने लगे है आज कल ॥

निभते नहीं हैं जो सियासत में कभी ,
वो वायदे गिनने लगे हैं आज कल ॥

कैसे कहें , कितना चाहें हैं उसे ,
बस सोच के डरने लगे हैं आज कल ॥

मालूम होता तो बता पाते तुझे ,
वो दूर क्यों हटने लगे हैं आज कल ॥

अब क्या कहें तुमको कि तेरे ही सबब ,
हम पे सवाल उठने लगे है आज कल ॥

अप्रकाशित व् मौलिक

Views: 599

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 24, 2015 at 1:38pm

इस सुंदर रचना पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 24, 2015 at 12:00am

सुन्दर गजल पर बधाईयां!

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on March 23, 2015 at 12:47pm

 

अब क्या कहें तुमको कि तेरे ही सबब ,
हम पे सवाल उठने लगे है आज कल ॥

pyare bhaav mitra - badhaee

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 23, 2015 at 11:46am
सुन्दर , बधाई, सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 23, 2015 at 8:24am

अच्छी ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई आदरणीय  नाजिल जी 

बाकी आदरणीय बागी सर ने इशारा कर दिया है.

Comment by Hari Prakash Dubey on March 23, 2015 at 12:18am

आ. नजील जी, सुन्दर प्रयास ,बधाई आपको ! 

मालूम होता तो बता पाते तुझे ,
वो दूर क्यों हटने लगे हैं आज कल ॥...सुन्दर 

Comment by gumnaam pithoragarhi on March 22, 2015 at 9:23pm
अच्छी ग़ज़ल है भाई जी बधाई ....................

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 22, 2015 at 8:10pm

//हाँ चेहरे थकने लगे है आजकल//

आ. नाजिल जी इस मिसरे की तकती नहीं समझ सका,  यदि अरुज के अनुसार कोई छूट हो तो अवगत कराना चाहेंगे. 

Comment by somesh kumar on March 22, 2015 at 7:33pm

अच्छी कोशिश

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 22, 2015 at 6:57pm

अच्छी गजल कही आपने . सादर .  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service