1212 1122 1212 22
***************************
किरन की साँझ पे यल्गारियाँ नहीं चलती
तमस की भोर पे हकदारियाँ नहीं चलती
**
बचाना यार चमन बारिशें भी गर हों तो
हवा की आग से कब यारियाँ नहीं चलती
**
बसर तो प्यार से करते वतन में हम दोनों
धरम के नाम की गर आरियाँ नहीं चलती
**
चले वही जो करे जाँनिसार खुश हो के
वतन की राह में गद्दारियाँ नहीं चलती
**
बने हैं संत ये बदकार मिल रही इज्जत
कहूँ ये कैसे कि…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 7, 2015 at 4:04pm — 15 Comments
Added by Samar kabeer on February 7, 2015 at 3:30pm — 23 Comments
धीमी-धीमी सी
हवाओं में
दीपों की टिमटिमाती लौ
दे जाती है
अंतर को भी रोशनी
बे-समय आँधियों ने
कब किया है, रोशन
बस! बुझा दिया
या फूंक दिए है जीवन
उन्ही दीपों से.
अथाह तेज बारिशों ने भी
बहा दिए हैं, जीवन
नदियों के मटमैले
जल से
प्यासा, प्यासा ही रहा
वैसे ही, जैसे
वैशाख-ज्येष्ठ की धूप में
बैठा हो
शुष्क किनारों पर
जीवन को तो
उतनी ही…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on February 7, 2015 at 1:03pm — 23 Comments
२१२२ — १२१२ — ११२(२२)
खिल रहे हैं सुमन बहारों में
झूमता है पवन बहारों में
ओढ़कर फागुनी चुनर देखो
सज गया है चमन बहारों में
आइने की तरह चमकता है
निखरा निखरा गगन बहारों में
यूँ तो संजीदा हूं बहुत यारों
हो गया शोख़ मन बहारों में
देखते हैं खिलाता है क्या गुल
आपका आगमन बहारों में
हो धनुष कामदेव का जैसे
तेरे तीखे नयन बहारों में
घुल गई है फिज़ा में मदिरा…
ContinueAdded by khursheed khairadi on February 7, 2015 at 12:00pm — 18 Comments
ज़रूरी है क्या ? चश्मे तर खोजिये
********************************
122 122 122 12
जहाँ ग़म न हो ऐसा घर खोजिये
जो हँसता मिले , बामो दर खोजिये
कोई बाइसे ज़िंदगी भी तो हो
इधर खोजिये या उधर खोजिये
बाइसे ज़िंदगी = ज़िन्दगी का कारण
गिरा एक क़तरा था सागर में कल
ज़रा जाइये अब असर खोजिये
अँधेरा , यक़ीनों…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on February 7, 2015 at 9:00am — 29 Comments
तरही ग़ज़ल
नयी उम्मीद की किरने जगाती है दिवाली में
वो नन्ही जान जब दीपक जलाती है दिवाली में
अगर हो हौसला दिल में तो तय है मात दुश्मन की
जला के खुद को बाती ये सिखातीहै दिवाली में
बताशे खील खिलते फूल दीपक झिलमिलाते यूं
नहीं मुफलिस को यादे गम सताती है दिवाली में
दियों का नूर चेहरे पर चले बल खा के शरमा के
वो कातिल शोख नजरों से पिलाती है दिवाली में
है रुत बहकी, हवा महकी, अजब दिलकश नज़ारा…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on February 6, 2015 at 11:30pm — 15 Comments
मैं अपनी मुहब्बत को …एक रचना
मैं अपनी मुहब्बत को इक मोड़ पे छोड़ आया हूँ
इक ज़रा सी ख़ता पे मैं हर क़सम तोड़ आया हूँ
जाने कितने लम्हे मेरी साँसों की ज़िंदगी थे बने
मैं तमाम ख़्वाब उनकी पलकों में छोड़ आया हूँ
जिसकी मौजूदगी में खामोशी भी बतियाती थी
अब्र की चिलमन में वो माहताब छोड़ आया हूँ
बन के हयात वो हमसे क्यों बेवफाई .कर गए
उनकी दहलीज़ पे मैं हर आहट छोड़ आया हूँ
हिज्र का दर्द चश्मे सागर में न सिमट पायेगा…
Added by Sushil Sarna on February 6, 2015 at 12:02pm — 18 Comments
ग़लत कोई और है , हम क्यों बदलें
********************************
बैलों का स्वभाव उग्र होता है , प्रकृति प्रदत्त
होना भी चाहिये
बिना उग्रता के भारी भारी गाड़ियाँ नहीं खींची जा सकती
जो उसे जीवन भर खींचना है
बिना शिकायत
गायें ममता मयी , करुणा मयी होतीं है
गायों की थन से बहता दूध ,
दर असल उसकी ममता ही है ,
अमृत तुल्य , कल्याण कारी
गायें उग्र नहीं होतीं
प्रकृति जिसे धारिता के योग्य बनाती है , उसे…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on February 6, 2015 at 11:00am — 18 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on February 6, 2015 at 11:00am — 19 Comments
कुलषित संस्कृति हावी तुम पर, बांह पकड़ नाच नचाये ।
लोक-लाज शरम-हया तुमसे, अब बरबस नयन चुराये ।।
किये पराये अपनो को तुम, गैरों से आंख मिलाये ।
भौतिकता के फेर फसे तुम, घर अपने आग लगाये ।।
पैर धरा पर धरे नही तुम, उड़े गगन पंख पसारे ।
कभी नही सींचे जड़ पर जल, नीर साख पर तुम डारे ।
नीड़ नोच कर तुम तो अपने, दूजे का नीड़ सवारे ।
करो प्रीत अपनो से बंदे, कह ज्ञानी पंडित हारे ।।
...............................
मौलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on February 5, 2015 at 11:39pm — 4 Comments
2122—2122—2122—212 |
|
खेत की, खलिहान की औ गाँव की ये मस्तियाँ |
कितनी दिलकश हो गई है बाजरे की बालियाँ |
|
वो कहन क्यूं खो गई जो महफिलों को लूट… |
Added by मिथिलेश वामनकर on February 5, 2015 at 11:00pm — 27 Comments
Added by Usha Choudhary Sawhney on February 5, 2015 at 10:30pm — 14 Comments
122 122 122 2
कभी जिन्दगी को जिया होता
ख़ुदा का अदा शुक्रिया होता
मुकम्मल नई इक ग़ज़ल होती
अगर अश्क़ हँस के पिया होता
फ़लक चूमता ये कदम तेरे
कोई काम ऐसा किया होता
बिखरती न गिरती दुआ रब की
अगर चाकदामन सिया होता
कई रास्ते खुल गए होते
किसी का कभी गम लिया होता
कहाँ काटता यूँ अकेलापन
किसी को सहारा दिया होता
है क्या जीस्त खानाबदोशों की
ठिकाना न…
ContinueAdded by rajesh kumari on February 5, 2015 at 7:42pm — 18 Comments
बता दो याद अब उनकी मिटायें हम कहॉं जाकर
लिखा जो प्यार के किस्से सुनायें हम कहॉं जाकर
बजाकर जो कभी पायल जिगर के पास आती थी
नज़र उसको लगी मेरी बतायें हम कहाँ जाकर
न मैखाना शहर में है न उसका घर पता मुझको
जरा कोई बताये दिल लगायें हम कहाँ जाकर
न पीया जाम क्यों मैने अगर पूछो न तुम मुझसे…
Added by Akhand Gahmari on February 5, 2015 at 6:30pm — 8 Comments
2122 2122 2122 212
भूख हो रोटी न हो तो आप हँसकर देखिये।।
मुफलिसी कहते है किसको इक नज़र कर देखिये।।
आशियाँ उजड़ा है उनका और वे बेघर हुए।
उन परिंदों की लिये खुद को शज़र कर देखिये।।
क्यों भटकते हो भला इस तंग दुनियाँ में मनुष।
इक दफे बस आप अपने घर को घर कर देखिये।।
तोड़ता दिन रात पत्थर चंद सिक्को के लिए।
उसके जैसी बेबसी को भी सहन कर देखिये।।
ख़्वाब नींदों को चुरा सकता नहीं इस शर्त पर।
शब को'दीपक'आप भी इक दिन सहर कर…
Added by ram shiromani pathak on February 5, 2015 at 3:00pm — 10 Comments
1222-1222-1222-1222
दिखाकर तुम हथेली की लकीरों को डराओ मत
रियाज़त से बदल देंगे नसीबों को डराओ मत रियाज़त=परिश्रम
तबस्सुम के दिये की लौ गला देगी हर इक ज़ंजीर
शब-ए-गम की तवालत से असीरों को डराओ मत तवालत=लम्बाई, असीर=कैदी
ये जन्नत की हक़ीक़त भी बख़ूबी जानते हैं जी
दिखाकर डर जहन्नुम का ग़रीबों को डराओ मत
मज़ा आने लगा है अब सभी को दर्द-ए-उल्फ़त…
ContinueAdded by khursheed khairadi on February 5, 2015 at 1:00pm — 13 Comments
2122 2122 2122 212
******************************
कोशिशें पुरखों की यारों बेअसर मत कीजिए
नफरतों को फिर दिलों का यूँ सदर मत कीजिए
******
मिट गये ये तो नरक सी जिंदगी हो जाएगी
प्यार को सौहार्द को यूँ दरबदर मत कीजिए
******
कर रहे हो कत्ल काफिर बोलकर मासूम तक
नाम लेकर धर्म का ऐसा कहर मत कीजिए
******
वो शहीदी कैसे जिनसे है फसादों की फसल
उनको ये इतिहास में लिख के अमर मत कीजिए
*******
दुश्मनी …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 5, 2015 at 12:34pm — 22 Comments
“ हे. भगवान..बस! एक पोते की कामना थी, वो भी पूरी नहीं हो पाई इस बार. तीन-तीन पोतियों की लाइन लग गई ” अपनी बहु के कमरे से बाहर, खले की ओर जाते हुए मन में बडबडा ही रही थी, कि
“ माँ!! मैं बाजार जा रहा हूँ, कुछ लाना हो बता दो ” बेटे ने पूछा
“ हाँ! बेटा.. गुड़ ले आना, वो बूढी गाय न जाने कब जन जाए, अब की बार बछिया ले आये तो आगे भी घर का दूध मिल जाया करेगा “
जितेन्द्र पस्टारिया
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Added by जितेन्द्र पस्टारिया on February 5, 2015 at 10:54am — 24 Comments
राधॆश्यामी छन्द:(मत्त सवैया)
=====================
रूपवती मृग-नयन सुन्दरी,कञ्चन काया भी पाई थी !!
दिल बार बार यॆ कहता था, वह इन्द्रलॊक सॆ आई थी !!
गर्दन ऊँची तनी हुई थी,त्रिभुवन जीत लिया हॊ जैसॆ !!
या त्रिलॊक सुंदरी का उसकॊ,रब वरदान दिया हॊ जैसॆ !!
तालाब किनारॆ बैठी थी वॊ,अधलॆटी सी कुछ सॊई थी !!
ऊहा-फॊह मची थी भीतर,अपनी ही धुन मॆं खॊई थी !!
मतवाली नार नवॆली वॊ,स्वयं स्वयं सॆ कुछ बात करॆ !!
ठहरॆ ठहरॆ गहरॆ जल मॆं, चुन चुन कंकड़ आघात करॆ !!…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on February 5, 2015 at 2:30am — 9 Comments
कुछ तो आपस मे बनी रहने दे
आसमाँ तेरा सही मेरी ज़मीं रहने दे
बिछड़ के होगा तुझे अफ़सोस इस खातिर
अपनी आँखों में नमी रहने दे
मिल गया तू मुझे , तो फिर क्या होगा
मेरे मौला ये कमी रहने दे
मेरे ईमान की आँखें बे-नूर हो जाएँ
तरक़्क़ी तू मुझे ऐसी रोशिनी रहने दे
गैरों पे यक़ीन करना पड़े , "अजय"
तू मुझसे ऐसी दुश्मनी रहने दे
अजय कुमार शर्मा
मौलिक & अप्रकाशित
Added by ajay sharma on February 4, 2015 at 11:27pm — 9 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |