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खिला प्यार का रंग (दोहे)

ऋतु बसंत का आगमन,शीतल बहे सुगंध,

खलिहानों से आ रही, पीली  पीली  गंध |

 

जाडा जाते कह रहा, आते देख बसंत,

मधुर तान यूँ दे रही, बनकर कोयल संत |

 

वन उपवन सुरभित हुए, वृक्ष धरे श्रृंगार

माँ वसुधा का मनिएँ, बहुत बड़ा आभार |

 

कलरव करते मौर अब, देखें उठकर भोर,

अद्भुत कुदरत की छटा, करती ह्रदय विभोर |

 

फूलों पर मंडरा रहे, भँवरे गुन गुन गान

मतवाला मौसम सुने, कुहू कुहू की तान |

 

पुष्प जड़ी चुनरियाँ…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 4, 2015 at 12:30pm — 21 Comments

" जवान बच्चे " (लघुकथा)

"कम्मो।जरा इधर तो आ, तूने अचानक काम पर आना कयों बंद कर दिया?" मिसेज माधवी ने बालकनी की खिड़की से ही गली में गुजरती अपनी काम वाली बाई को आवाज लगाई।

"जी मेम साहब। वो क्या है कि अब हम आप के यिहाँ काम नही करेगें।" कम्मो भी गली से ही लगभग चिल्लाती हुयी बोली।

"क्यों कहीं और ज्यादा पैसे मिलने लगे या पैसो की जरूरत नही रही।" मिसेज माधवी की आवाज में कटाक्ष था।

"नही मेमसाहब, बस ऐसे ही...... बच्चे जवान हो गये ना।"

"तेरे बच्चे ?"

"नही नही मेमसाहब ! मेरे नहीं, आपके बच्चे…

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Added by VIRENDER VEER MEHTA on February 4, 2015 at 11:30am — 15 Comments

कोई मुझे नेता बना दे---डॉo विजय शंकर

काश कोई मुझे नेता बना दे ,

अपने हाथों से उठाये

और भीड़ में गिरा दे |

फिर देखना , कैसे उठता हूँ मैं ,

हाय कोई एक बार तो गिरा दे ,

कोई तो मुझे नेता बना दे |

मेरा प्रोफाइल देख ले,

रिज्यूमे भेज देता हूँ ,

फोटो भी लगा देता हूँ,

क्या-क्या किया है , बता देता हूँ ,

ऐसा क्या है , मैं कर नहीं सकता ,

लोग हैरत में आ जायेंगें ,

जो कर के दिखा सकता हूँ |

बस एक बार , एक बार ,

मुझे उठाओ , एक बार मुझे उछालो ,

फिर देखना , क्या क्या… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on February 4, 2015 at 10:05am — 17 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
एक मुट्ठी गालियाँ...... (मिथिलेश वामनकर)

2122—2122—2122—212

 

रात  भर  संघर्ष  कर  जब  थक  गई ये  आँधियाँ

एक दस्तक दी हवा ने, खुल  गई सब  खिड़कियाँ

 

जो गया ,  जाना उसे  था , कौन  जो  ठहरा…

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Added by मिथिलेश वामनकर on February 4, 2015 at 3:00am — 41 Comments

न्याय (लघुकथा)

दोपहर में घंटी बजने पर उसने दरवाजा खोला तो वो दरिंदा जबरदस्ती अंदर घुस आया और उसकी अस्मिता को तार तार कर गया | अब शरीर तो जिन्दा बच गया लेकिन आत्मा बुरी तरह लहूलुहान थी | एक ऐसा हादसा जिसके लिए जिम्मेदार वो नहीं थी लेकिन भुगतना उसी को था |
पति ने आने पर जब सँभालने की कोशिश की तो उसे झटक कर वह जोर से रो पड़ी , शायद अब वो किसी पुरुष पर भरोसा नहीं कर पाएगी | एक वहशी की गलती की सज़ा अब पूरे पुरुष समाज को भुगतनी होगी |

.
मौलिक एवम अप्रकाशित

Added by विनय कुमार on February 4, 2015 at 12:30am — 18 Comments

ग़ज़ल .........;;;गुमनाम पिथौरागढ़ी

२१२२ २१२२ २


हो गयी है कोफ़्त जीने से
जा निकल भी ऐ जां सीने से


है सराबों का सफ़र ताउम्र
पूरा हो कैसे सफीने से


जिस्मो दिल हों ज़ख़्मी अब बेशक
रखना खुद को तुम करीने से


ख़त किताबों में मुड़ा पाया
लग गए वो लम्हे सीने से


है लिखें तकदीर में जो ज़ख्म
ये नहीं मिटते मै पीने से


हुश्न हो या इश्क हो गुमनाम
हो चुके रिश्ते भी झीने से


मौलिक व अप्रकाशित


गुमनाम पिथौरागढ़ी

Added by gumnaam pithoragarhi on February 3, 2015 at 8:30pm — 11 Comments

रक्षाबंधन (लघुकथा)

“छोटी आज सुबह से ही सज धज कर बैठी थी, उसने बहुत ही सुन्दर राखी खरीद कर पहले ही रख ली थी, थाली में रोली, चावल, दीया- बाती और मिठाई सजा कर बैठी थी, आज कई दिनों बाद उसका राजा भईया आ रहा था, आज ‘रक्षाबंधन’ जो था !”

“तभी उसके मोबाइल फ़ोन की घंटी बजी ,एक एस.ऍम.एस था.. “हे छोटी ,हैप्पी रक्षाबंधन टू यू”, सॉरी आज नहीं आ पाऊंगा तुम्हारी भाभी को लेकर ससुराल आ गया हूँ , मॉम, डैड को हेलो कहना , लव यू बाय !”

“छोटी ने लैपटॉप उठाया ,एक अटैचमेंट बनाया ,मेल किया , भाई को एस.ऍम.एस किया “भईया, राखी…

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Added by Hari Prakash Dubey on February 3, 2015 at 8:15pm — 27 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
" व्यर्थ का अचंभा " अतुकांत -- गिरिराज भंडारी

व्यर्थ का अचंभा

***************

अचंभित न होइये

आपके ही माउस के किसी क्लिक का परिणाम है

आपके कंप्यूटर स्क्रीन पर आई ये फाइल

गलती कंप्यूटर से हो नहीं सकती ,

कंप्यूटर ही गलत , बिग़ड़ा चुन लिया हो तो और बात

अगर ऐसा है तो,

इस ग़लत चुनाव का कारण भी आप ही हैं

कंप्यूटर सदा से निर्दोष है, और रहेगा

 

फाइल खुलने में देरी- जलदी हो सकती है

कंप्यूटर की शक्ति, प्रोसेसर , रेम , हार्डडिस्क के अनुपात में

लेकिन ये तय है…

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Added by गिरिराज भंडारी on February 3, 2015 at 5:36pm — 19 Comments

रिश्ते

कैसे होते हैं ये रिश्ते

कभी दूर, कभी पास

कभी अपने, कभी पराये

कभी सच्चे, कभी झूठे

कभी नादाँ, कभी ग़मगीन

कभी उम्रदराज़, कभी कमसिन

कभी हठीले, कभी गर्वीले

तो कभी कभी सिफारशी भी होते हैं ये रिश्ते

कभी कभी गुमनाम भी होते हैं रिश्ते

कभी कभी बदनाम भी हो जाते हैं रिश्ते

कभी एक दुसरे को कसूरवार भी ठहराते हैं रिश्ते

कभी कभी निभ जाते और कभी कभी निभाने भी पड़ते हैं रिश्ते

कभी अपनी खातिर और कभी दूसरों के लिए वक़्त मांगते हैं रिश्ते

कभी खुद…

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Added by Anurag Goel on February 3, 2015 at 1:00pm — 12 Comments

लिव इन रिलेशनशिप (लघुकथा)

एमबीबीएस की स्टूडेंट मुस्कान तीन सालों से लिव इन रिलेशनशिप में रह रही थी। जिसकी खबर लगते ही पूरे घर में हंगामा हो गया।

"मेरी पोती होकर तुम ऐसा काम कर रही हो मैंने कितनी मेहनत से समाज में अपनी इज्जत बनाई है........"

"नाजायज संबंध रखने वाली मेरी बेटी तो कतई नहीं हो सकती। बदचलन कहीं की। हमारे प्यार और विश्वास का ये शिला दे रही हो। अभी बनाता हूँ तुम्हें डॉक्टर.........."

"पापा, बहुत हो गया आप लोगों का ड्रामा! रवि एक बहुत अच्छा इंसान है हम दोनों एक…

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Added by विनोद खनगवाल on February 3, 2015 at 9:30am — 9 Comments

इबादत जहाँ की मोहब्बत सिखाएं......

मोहब्बत क आयो दिया हम जलाएँ

ये नफ़रत के सारे अंधेरे मिटाएँ

हो मंदिर कोई एक ऐसा भी आला

हो इंसानियत का जहाँ पे उजाला

दुआ मिलके माँगें सभी सब की खातिर

इबादत जहाँ की मोहब्बत सिखाएं

वो खवाबों की पारियाँ वो चाँद और सितारें

महज़ हैं कहानी के क़िरदार सारे

क़िताबों के पन्नों से बाहर निकल के

चलो हम हक़ीकत की ग़ज़ल गुनगुनाएँ

यही धर्म कहता है मज़हब सिखाता

सबक देती क़ुरान कहती है गीता

हो पैदा ये अहसास…

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Added by ajay sharma on February 2, 2015 at 11:29pm — 8 Comments

गुड़िया

मेरी गुड़िया ,मेरी बच्ची --कह कह शर्माइन बेहोश हुई जा रही थी |

विधायक शर्मा जी फोन-पर-फोन किये जा रहें थे पर अभी तक कुछ पता ना चला था|


ब्रेकिंग न्यूज के नाम से घर-घर न्यूज दिख रही थी कि "कद्दावर नेता की कुतिया किसी दुश्मन ने की गायब"

कुतिया नहीं कहो वर्ना चढ़ बैठेगें किसी ने फुसफुसाया ...|

"विधायक की गुड़िया को किसी ने किया गायब ...| " संभलते हुय पत्रकार…

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Added by savitamishra on February 2, 2015 at 10:30pm — 16 Comments

ब्रेक अप पार्टी

युवाओं में ब्रेक अप पार्टी का चलन देख कुछ ख्यालों ने दिल पर दस्तक दी आपकी नजर करती हूँ ...

 

आओ मिलें ऐ दोस्त ,बिछुड़ जाने के लिए 

फिर से याद करें वो यादें ,भूल जाने के लिए 

आओ मिलें एक बार 

लेकर यादों का वो पिटारा 

इक मेरा तुम इक तेरा मैं 

वापिस करें.. 

वो अनमोल लम्हे 

जो जिए हमने संग संग 

वो दुःख दर्द जो बाँटें हमने संग संग 

वो आँसू जिनसे भिगोया तकिया 

एक दूसरे की याद में 

वापिस करें  ...

जो…

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Added by Sarita Bhatia on February 2, 2015 at 10:00pm — 4 Comments

वो जैसे नचा रहा है, मैं वैसे नाच रहा हूँ

समय

साक्षी है

अतीत का

वर्तमान का

मैं सिर्फ इसके…

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Added by Hari Prakash Dubey on February 2, 2015 at 6:30pm — 15 Comments

ग़ज़ल

सारी दुनिया को तमाज़त से बचा लेते हैं
हम वह बादल हैं जो सूरज को छुपा लेते हैं

मेरे ख़ुश होने से कब उन को खुशी होती है
मेरे एहबाब मिरे ग़म का मज़ा लेते हैं

शैर कहने का हुनर सबको कहाँ मिलता हैं
यूँ तो क़व्वाल भी अशआर बना लेते हैं

कितना मासूम है देखो ज़रा फूलों का मिज़ाज
तिशनगी औस के क़तरों से बुझा लते हैं

मुद्दतों हम को सताता रहा तहज़ीब का ग़म
आज इतना है कि आँखों को झुका लेते हैं

------ समर कबीर

मौलिक / अप्रकशित

Added by Samar kabeer on February 2, 2015 at 4:04pm — 17 Comments

ग़ज़ल - छोड़ देते हैं

1222--1222--1222--1222

ख़ला की गोद में लाकर हमेशा छोड़ देते हैं

तसव्वुर के परिंदे साथ मेरा छोड़ देते हैं

 

अँधेरी रात हमने तो ब मुश्किल काट ली यारों

तुम्हारे वास्ते उजला सवेरा छोड़ देते हैं

 

ग़मों का साथ हमने तो निभाया है वहाँ तक भी

जहाँ अच्छे से अच्छे भी कलेजा छोड़ देते हैं

 

हमारा नाम लेकर अब न रुसवाई तेरी होगी

मुसफ़िर हम तो ठहरे शह्र तेरा छोड़ देते हैं

 

लड़कपन में जिन्हेँ चलना सिखाया थामकर…

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Added by khursheed khairadi on February 2, 2015 at 10:30am — 18 Comments


मुख्य प्रबंधक
लघुकथा : सोशल स्टडी (गणेश जी बागी)

रसात के दिन थे, शहर के एक नामी कॉलेज के छात्रों की टीम सुदूर गाँव में सोशलस्टडी हेतु आयी हुई थी. गरीब दास की झोपडी के पास टीम ज्योही पहुँची कि जोरदार बारिश प्रारम्भ हो गई और पूरी टीम बारिश से बचने के लिए झोपड़ी में घुस गयी. टिन की चादर और फूंस की बनी झोपड़ी कई जगह से टपक रही थी तथा प्लास्टिक के खाली डिब्बे और एलुमिनियम के बर्तन टपकते पानी के नीचे रखे हुए थे, यह देख टीम के सदस्य गंभीर चर्चा में लग गये, खैर बारिश रुकी और टीम वापस चली…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 2, 2015 at 10:30am — 38 Comments

एक तरही ग़ज़ल: ज़िन्दगी ने पलट के पूछा है/कृष्णसिंह पेला

वक़्त ऐसे मुक़ाम पर लाया

आज हम से बिछड गया साया



चंद हालात ने जो समझाया

उस को अपनी जगह सही पाया



झूठ से जा मिली जुबाँ उसकी

आज पहली दफ़ा वो हकलाया



हमसफ़र की तलाश है सब को

और पा कर भी कोई पछताया



प्यार के नाम पर वहम केवल

उस के सारे वजूद पर छाया



तुम भी लगते बहुत परेशाँ हो

हम को भी ये जहाँ नहीं भाया



किन ख़यालों में फूल था गुमशुम

मैंने हौले छुआ तो इतराया



मुस्कुराहट में आब बाक़ी है

गाँव… Continue

Added by Krishnasingh Pela on February 1, 2015 at 11:00pm — 17 Comments

नजरिया--

चाय का घूंट लेते हुए उनकी नज़र अखबार की एक खबर पर चली गयी. इलाके में एक लड़की की इज़्ज़त लुटी, आरोपी फरार"|

मन ही मन में राहत की सांस लेते हुए उन्होंने बगल में बैठी पत्नी से कहा " अच्छा हुआ , हमारी लड़की नहीं हुई वर्ना हमें भी डर के रहना पड़ता "|

पत्नी ने एक गहरी सांस ली और पिछले दिन का अखबार निकाला , पहले पन्ने पर छपी हुई तस्वीर जिसमें लड़कियां गणतंत्र दिवस के परेड की अगुआई कर रहीं थीं , उनके सामने रख दिया | चाय उनके हाँथ में ठंडी हो रही थी , वो पत्नी से नज़र नहीं मिला पा रहे थे…

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Added by विनय कुमार on February 1, 2015 at 7:00pm — 12 Comments

ऐ दिल ……

ऐ दिल ……



ऐ दिल तू क्यूँ व्यर्थ में परेशान  होता है

हर किसी के आगे क्यूँ  व्यर्थ में रोता है

कौन भला यहां  तेरा दर्द समझ पायेगा

हर अरमान यहां अश्क के साथ सोता है

ऐ दिल तू क्यूँ व्यर्थ में परेशान  होता है ……

ये सांझ नहीं अपितु सांझ का  आभास है

पल पल क्षरण होते रिश्तों  का आगाज़ है

भावों की कन्दराओं में बोलता सन्नाटा है

पाषाणों में कहाँ  प्यार  का सृजन होता है

ऐ दिल  तू क्यूँ  व्यर्थ  में परेशान होता है…

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Added by Sushil Sarna on February 1, 2015 at 2:00pm — 12 Comments

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