मातृधरा को शीश नवाने फिर आऊँगा
जननी तेरा कर्ज़ चुकाने फिर आऊँगा
चंदन जैसी महक रही है जो साँसों में
उस माटी से तिलक लगाने फिर आऊँगा
आँसू पीकर खार जमा जिनके सीनों में
उन खेतों में धान उगाने फिर आऊँगा
इक दिन तजकर परदेशों का बेगानापन
आखिर अपने ठौर ठिकाने फिर आऊँगा
गोपालों के हँसी ठहाके यादों में हैं
चौपालों की शाम सजाने फिर आऊँगा
खाट मूँज की छाँव नीम की थका हुआ तन
जेठ दुपहरी…
ContinueAdded by khursheed khairadi on February 11, 2015 at 11:29am — 24 Comments
221 2121 1221 2 2
रख ले चराग़ साथ में, शम्सो क़मर नहीं --
रहजन बिना यहाँ पे कोई रहगुज़र नहीं
शम्सो क़मर - चाँद सूरज
तेरी लगाई आग की तुझको ख़बर नहीं
सब ख़ाक हो चुका यहाँ कोई शरर नहीं
रो ले अगर, तेरा बिना रोये गुज़र नहीं
लेकिन ये सच है, आँसुओं में अब असर नहीं
सब कुछ वही है इस जहाँ में , बस तेरे बिना
मेरी वो शाम गुम हुई , वैसी सहर नहीं
मिल जायें बदलियाँ तो वो सूरज को ढ़ाँक…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on February 11, 2015 at 8:30am — 29 Comments
22--22--22--22--22--22--22--2 |
---------------- |
हँसते - हँसते रो लेता हूँ, रोते - रोते हँसता हूँ |
कोई मुझसे ये मत पूछो आखिर क्यों मैं ऐसा हूँ |
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आईने-सी… |
Added by मिथिलेश वामनकर on February 10, 2015 at 11:00pm — 45 Comments
Added by Samar kabeer on February 10, 2015 at 10:42pm — 11 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on February 10, 2015 at 10:30pm — 10 Comments
Added by gumnaam pithoragarhi on February 10, 2015 at 6:05pm — 11 Comments
॥ मै ईश्वर नहीं ॥
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मै ईश्वर नहीं
किसी ईश्वरीय व्यवहार की उम्मीदें न लगायें
मै तो क्या कोई भी चाहे तो ईश्वर नहीं हो सकता
बस दूसरों में ईश्वरीय गुण खोजने में लगे रहते हैं
हम , आप , सब
इसलिये, आज
ये ऐलान है मेरा ,
मुझमें केवल इंसानी गुण ही हैं
अच्छों से उनसे अधिक अच्छा
बुरों से भरसक बुरा
उनके व्यवहार के प्रत्युत्तर में भेज रहा हूँ
कुछ दिल से निकली मौन गालियाँ
कुछ आत्मा से निकली बद…
Added by गिरिराज भंडारी on February 10, 2015 at 10:00am — 21 Comments
Added by दिनेश कुमार on February 9, 2015 at 12:40pm — 33 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on February 9, 2015 at 11:37am — 17 Comments
सुबह शाम
दफ्तर काम
ढलता सूरज
उगता चाँद
रात, तुम्हारी याद
आखों से बरसात !!
कभी भूख
कभी प्यास
कभी हर्ष
कभी विषाद
तन्हाई, रात वीरान
सुलगते हुए अरमान !!
तन्हा सफर
स्ट्रीट लाईट
पाखी जलता
मन मचलता
प्यास, बैचैन करवटें
बिस्तर पर सिलवटें !!
उगता सूरज
आँखें लाल
वही सवाल
वही मदहोशी
गुम, खुद में कहीं
नहीं सुध किसी चीज़ की !!
फिर…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on February 9, 2015 at 10:21am — 26 Comments
अब तक आदित्य को लगता था कि पति-पत्नी क रिश्ते में पति ज्यादा अहम होता है | उसे ज्यादा तवज्जो, मान सम्मान मिलना चाहिए | शायद इसमें उसका कोई दोष भी नही था जिस समाज में वह पला-बढ़ा वह एक पितृ-सत्तात्मक समाज है जहाँ पिता भाई व पति होना ही बहुत बड़ी उपलब्धि है |माँ-बहन व पत्नी ये हमेशा निचले पायदान पर ही रही हैं, बेशक वो समाजिक तौर पर कितनी भी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करें |
बालक के जन्म लेने पर उसके स्वागत में उत्सव और कन्या जन्म पर उदासी |बालक को हर चीज़ में तरजीह और आज़ादी जबकि…
ContinueAdded by somesh kumar on February 8, 2015 at 11:30pm — 10 Comments
कब तक मनाऊँ मैं, वो अक्सर रूठ जाते हैं|
गर्दिश में अक्सर.... हर सहारे छूट जाते हैं|1
न मनाने का सलीका है,न रिझाने का तरीका है|
मनाते ही मनाते वो अक्सर रूठ जाते है|2
संजोकर दिल में रखता हूँ,नजर को खूब पढ़ता हूँ|
मगर खास होते ही ,अक्सर नजारे छूट जाते हैं|3
आयना समझकर हम.., उन्ही को देख जाते हैं|
संभालने की ही कोशिश में,जो अक्सर टूट जाते…
Added by anand murthy on February 8, 2015 at 9:20pm — 8 Comments
Added by Usha Choudhary Sawhney on February 8, 2015 at 7:30pm — 14 Comments
Added by Zaif on February 8, 2015 at 2:40pm — 8 Comments
2122 2122 2122
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डूबता हो सूर्य तो अब डूब जाए
मत कहो तुम रोशनी से पास आए /1
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एक अल्हड़ गोद में शरमा रही जब
चाँद से कह दो नहीं वह मुस्कुराए /2
******
थी कभी मैंने लगायी बोलियाँ भी
मोलने पर तब न मुझको लोग आए /3
******
आज मैं अनमोल हूँ बेमोल बिक कर
व्यर्थ अब बाजार जो कीमत लगाए /4
******
कामना जब मुक्ति की थी खूब मुझको
बाँधने सब दौड़ कर नित पास आए /5
रास आया है मुझे जब आज…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 8, 2015 at 1:52pm — 7 Comments
"कहाँ आगे-आगे बढ़े जा रहे हो जी', मैं पीछे रह जा रही हूँ |"
"तुम हमेशा ही तो पीछे थी"
"मैं आगे ही रही "
"और चाहूँ तो हमेशा आगे ही रहूँ, पर तुम्हारें अहम् को ठेस नहीं पहुँचाना चाहती हूँ समझे|"
"शादी वक्त जयमाल में पीछे ..."
"डाला जयमाल तो मैंने आगे"
"फेरे में तो पीछे रही"
"तीन में पीछे, चार में तो आगे रही न "
"गृह प्रवेश में तो पीछे"
"जनाब भूल रहे हैं, वहां भी मैं आगे थी "
इसी आगे पीछे को लेकर लड़ते -हँसते पार्क से बाहर निकले और एक दूजे से…
Added by savitamishra on February 8, 2015 at 10:59am — 24 Comments
ले लो एक सलाम
आने को फागुन,
है सुन रही गुनगुन,
किसकी अहो,किसकी कहो?
हटा घूँघट अब कली-कली का,
कौन रहा यह मुखड़े बाँच?
कलियों से अठखेली करता,
नाच रहा है घूर्णन नाच ?
हुआ व्यग्र,पहचान नहीं कि
कौन कली खुशबू की प्याली,
कौन रूप की होगी थाली,
खिलखिलाकर खिलने देता,
रूप-वयस को मिलने देता,
देता कुछ सपने उधार,
कलियाँ कहतीं रूप उघाड़---
आज तो अब जा रहा,
हम आज के कल हैं,
अबल कब?सबल…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on February 8, 2015 at 10:00am — 1 Comment
तेरी बेव़फाई मेरी बेव़फाई
कहानी समझ में अभी तक न आई
..........
मेरे इश्क़ में तू उधर ज़ल रहा है
इधर मैंने ज़ल कर मुहब्बत निभाई
..........
बहाने बनाकर ज़ुदा हो गये हम
यूँ दोनों ने मिलके ही दुनिया हँसाई
..........
तुझे मैंने मारा क़भी खंजरों से
क़भी सेज काँटों की तूने बिछाई
..........
जलाये जो तूने मेरे प्यार के ख़त
तो तस्वीर तेरी भी मैंने ज़लाई
उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित
Added by umesh katara on February 8, 2015 at 9:05am — 22 Comments
गुनगुन करती थी सदा
वो एक लड़की ..
खिड़की से आती थी नज़र
वो एक लड़की
कभी नाचती गुड़िया संग
कभी लगाती गुलाबी रंग
बाबा के कंधों पर चढ़
दुनिया थी देखती
माँ की बाहों में झुला झूलती
समय उपरान्त
उसी खिड़की में
आई नज़र
वो एक लड़की
ले रंगबिरंगी चुनर
पूरियाँ तलती थी
बाबा को बिस्तर पर सुला
माथा सहलाती
वो एक लड़की...
बहुत दिनों से
बंद थी खिड़की
नहीं आती नजर…
ContinueAdded by डिम्पल गौड़ on February 8, 2015 at 12:27am — 14 Comments
सोने का संसार !
उषा छिप गयी नभस्थली में,
देकर यह उपहार !
लघु–लघु कलियाँ भी प्रभात में,
होती हैं साकार !
प्रातः- समीरण कर देता है,
नव-जीवन संचार !
लोल-लोल लहलही लतायें,…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on February 8, 2015 at 12:16am — 19 Comments
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