For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,930)

पीछे मेरी दुआ है |

वो आज है नही मेरी दुनिया में 

फिर भी बसती है मेरे जिया में 

लगता है आज भी याद करती है 

मुझे पाने की फ़रियाद करती है

शायद  खुश है ,जिन्दा है

क्यूंकि उसे कुछ हुआ है

वो आज जो है, जैसी है ,पीछे मेरी दुआ है |

मन करता है फिर से पाऊं उसे

दर्द भरी दुनिया से चुराऊं उसे

वो चली गयी पर कुछ कशिश तो है

चिराग न सही ,पर माचिस तो है

एहसास हो रहा है , उसने ख़त छुआ है

 वो आज जो है, जैसी है ,पीछे मेरी दुआ है…

Continue

Added by maharshi tripathi on February 19, 2015 at 10:30pm — 16 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल - ' मौन को भी जवाब ही समझें ' -- गिरिराज भंडारी

' मौन को भी जवाब ही समझें '

2122   1212    112  /  22

***************************

जिन्दगी को हुबाब ही समझें

संग काँटे, गुलाब ही समझें

 

बदलियों ने चमक चुरा ली है

पर उसे माहताब ही समझें

 

शर्म आखों में है अगर बाक़ी

क्यों न उसको नक़ाब ही समझें  

 

इक दिया भी जला दिखे घर में

तो उसे आफ़ताब ही समझें

 

ठीक है , टूटता बिखरता है

पर उसे आप ख़्वाब ही समझें

 

दस्ते रस से अगर है दूर…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on February 19, 2015 at 10:25am — 42 Comments

नाम के बहाने (कहानी )

“शुभम|”

“यस सर|”

“ज्ञानू|”

“यस सर|”

“दुर्योधन|”

“हाजिर सSड़|”

यूँ तो पंचम ब वर्ग का ये अंतिम नाम था |परंतु परम्परा से परे प्राचीन महाकाव्य खलनायक का स्मरण

कर और हाजिरी देने के उसके लहजे से ध्यान बरबस ही उसकी तरफ टिक गया |

“दुर्योधन मेरे पास आओ|” मैंने आदेशात्मक लहजे में कहा |

लंबे चेहरे वाला वो लड़का सकुचाता सा मेरे सामने खड़ा हो गया |मैंने अपनी तीसरी कक्षा और पंचम के छात्रों को कार्य दिया |इस बीच वो गर्दन झुकाए ,जमीन को देखता…

Continue

Added by somesh kumar on February 19, 2015 at 10:00am — 12 Comments

आचरण से ध्यान जादा डील में - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

2122   2122      212

****************************

दोष  ऐसा  आ  गया  अब  शील में

फासले  कदमों  के  बदले  मील में

***

भर लिया तम से मनों को इस कदर

रोशनी   भी   कम   लगे  कंदील  में

****

देह  होकर   देह   सा   रहते  नहीं

टाँगते  खुद  को वसन से कील में

****

युग  नया  है  रीत भी  इसकी नई

आचरण  से  ध्यान  जादा डील में  /       डील-दैहिक विस्तार

****

अब  बचे  पावन  न  रिश्ते दोस्तो

तत तक बदले है खुद को चील में

***

भय सताता क्या …

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 19, 2015 at 7:00am — 25 Comments

सज़ा--

" बाई , कल से काम पर मत आना "|

" लेकिन मेमसाब , मैंने तो कुछ नहीं किया "|

कहना तो चाहती थी " हाँ , तुमने तो कुछ नहीं किया लेकिन साहब को तो नहीं कह सकती मैं ", लेकिन जुबाँ ने साथ नहीं दिया |

बाई हिकारत से देखती हुई चली गयी , उसके अंदर कुछ दरक सा गया |

मौलिक एवम अप्रकाशित  

Added by विनय कुमार on February 18, 2015 at 10:17pm — 20 Comments

मिले जब कामयाबी लोग मिलकर साथ चलते हैं |

१२२२   १२२२  १२२२ १२२२ 
नज़र  के फेर में कितने  फ़साने रोज  बनते हैं |

कहीं राधा कहीं  मोहन बने   लाचार  जलते हैं |

नज़ारा  और होता है  खिले जब  फूल डाली में  ,

कहीं खुशबू…

Continue

Added by Shyam Narain Verma on February 18, 2015 at 5:30pm — 13 Comments

गीतिका .....8 + 8---निगाहें

आँज गगन का नील निगाहें

लगती गहरी झील  निगाहें

 

माँस बदन पर दिख जाये तो

बन जाती है चील निगाहें

 

आन टिकी है मुझ पर सबकी

चुभती पैनी कील निगाहें

 

बंद गली के उस नुक्कड़ पर

करती है क्या डील निगाहें

 

इक पल में तय कर लेती है

यार हज़ारों मील निगाहें

 

बाँध सकेगा मन क्या इनको

देती मन को ढील निगाहें

 

दिखने दे ‘खुरशीद’ नज़ारे

किरणों से मत छील निगाहें 

मौलिक व…

Continue

Added by khursheed khairadi on February 18, 2015 at 3:30pm — 18 Comments

आज़ादी --- डॉ o विजय शंकर

उड़ता वो आज़ाद परिंदा

नभ छू लेने की कोशिश

करता है,

ऊंचा , ऊंचा उड़ता है |

बीच बीच में धरती छूने ,

लौट , लौट कर आता है ,

कुछ चुंगता है, कुछ खाता है,

इठलाता है, कुछ गाता है ,

फिर , फुर्र से उड़ जाता है ,

दूर, बहुत दूर , ओझल हो ,

क्षितिज तरफ वो जाता है ,

क्षितिज तरफ वो जाता है ||

यूँ आते - जाते हमको वो

अपने हौसले दिखलाता है ,

और हमको यह बतलाता है,

हौसलों से क्या नहीं हो जाता है,

हौसलों से क्या नहीं हो जाता है… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on February 18, 2015 at 1:32pm — 25 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
विश्व पुस्तक मेला-2015

विश्व पुस्तक मेला-2015

मेट्रो की घड़घड़ाहट

और ज़िंदगी की फड़फड़ाहट के बीच

कुछ शब्द उभरकर आते हैं

जब-

वरिष्ठ नागरिकों के लिए

आरक्षित आसन पर

नए युग का प्रेमी युगल

चुहल करता है

और-

अतीत की झुर्रियों का फ़ेशियल लिए

लड़खड़ाती हड्डियों का

बेचारा ढाँचा

अवज्ञा की उंगली पकड़कर

अपने गौरवमय यौवन का

सौरभ लेता हुआ

कुछ पल के लिए खो जाता है;

मेट्रो की घड़घड़ाहट थमने लगती है

हड्डियों का ढाँचा

हड़बड़ाहट में चौकन्ना होता…

Continue

Added by sharadindu mukerji on February 18, 2015 at 12:00pm — 19 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
रिश्तें है बेतार..... (मिथिलेश वामनकर)

22  / 22  / 22  / 22 / 22  /  2

-------------------------------------------

बादल  जब  बेज़ार  किसी  से  क्या कहना

फिर  कैसी  बौछार किसी  से  क्या कहना

 

ख़ामोशी,…

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on February 18, 2015 at 10:30am — 32 Comments

कौन पी गया जल मेघों का …..

कौन पी गया जल मेघों का …..

कौन पी गया जल मेघों का …..

और किसने नीर बहाये //

क्योँ बसंत में आखिर …

पुष्प बगिया के मुरझाये //

प्रेम ऋतु में नयन देहरी पर …

क्योँ अश्रु कण मुस्काये //

विरह का वो निर्मम क्षण ….

धड़कन से बतियाये //

वायु वेग से वातायन के ….

पट क्योँ शोर मचाये //

छलिया छवि उस निर्मोही की …

तम के घूंघट से मुस्काये //

वो छुअन एकान्त की ….

देह विस्मृत न कर पाये //

तृषातुर अधरों से विरह की ….

तपिश सही न जाए…

Continue

Added by Sushil Sarna on February 17, 2015 at 7:42pm — 26 Comments

साक्षी

 दशाश्वमेध घाट पर

कुछ उत्तर आधुनिक भारतीय

कर रहे थे स्नान

शैम्पू और विदेशी साबुन के साथ

 

दूर –दूर तक फैलकर झाग

धो रहा था अमृत का मैल

गंगा ने उझक कर देखा

फिर झुका लिया अपना माथ

 

साक्षी तो तुम भी हो

काशी विश्वनाथ !

 

(मौलिक व्  अप्रकाशित )

 

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 17, 2015 at 4:16pm — 24 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
जवां परिंदे .... (मिथिलेश वामनकर)

121--22--121--22--121--22--121—22

------------------------------------------------

हमें  इज़ाज़त  मिले  ज़रा  हम  नई  सदी  को  निकल  रहे है

जवाँ परिंदे  उड़ानों की अब,   हर  इक  इबारत  बदल  रहे हैं।*

 

गुलाबी  सपने  उफ़क  में  कितने  मुहब्बतों  से  बिखर गए है

नया  सवेरा  अज़ीम करने,  किसी  के  अरमां  मचल  रहे  है।

 

मिले  थे  ऐसे  वो  ज़िन्दगी  से,  मिले  कोई जैसे अजनबी से

हयात से जो  मिली  है  ठोकर  जरा - जरा  हम  संभल…

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on February 17, 2015 at 2:30pm — 31 Comments

ताना बाना ........

जीवन का ताना

अकेला उदास डोलता रहा

बाना कहाँ मिला

बुनने को

सच के ताने को

झूठे बानों से

बुनते रहे

एक जख्मी चादर

फरेब के सर पर ओढ़ा

सब्र के कारवाँ चलते रहे

जीने की रिवायत से

समझोता करते रहे

बिन प्यार की

बेरंग चादर ओढ़े

मुखोटों की मुस्कुराहटों का

दम भरते रहे

काश बाना

प्यार की सच्चाई से

खिलता कोई

तो एक सतरंगी चदरिया

बुन लेता

और बस…

Continue

Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on February 17, 2015 at 11:21am — 12 Comments

घनघोर घटायें छायीं हैं, देखो न इनमे खो जाना

घनघोर घटायें छायीं हैं, देखो न इनमे खो जाना ,

बड़ी तेज चली पुरवाई है,देखो न इनमे खो जाना !!

 

पिया ,  क्यूँ रूठे हो मुझसे,

मुझे आज है तुमको मानना,

पिया  निकल पड़ी हूँ घर से,

अपने दफ्तर का पता बताना !!

 

जिद करती हो जैसे बच्चे,

जाओ मुझे नहीं  घर आना,

थोडा दूर  रहो अब मुझसे ,

मेरी कीमत का पता लगाना !!

 

माना भूल हो गयी  मुझसे,

अब माफ़ भी कर दो जाना,

कितना प्रेम करती हूँ तुमसे,

मुझे आज…

Continue

Added by Hari Prakash Dubey on February 17, 2015 at 11:04am — 17 Comments

मुखौटे ओढ़कर अब तो - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

1222     1222  1222 1222

*****************************

बुरे  की  कर  बुराई  अब (बुरे को अब बुरा कह कर)  बुराई  कौन  लेता  है

यहाँ  रूतबे  के  लोगों  से  सफाई कौन लेता है

 ***

हँसी अती है लोगों को किसी की आँख नम हो तो

किसी  की  पीर  हरने  को  बिवाई  कौन  लेता है

 ***

सभी  हम्माम  में नंगे किसे क्या  फर्क पड़ता अब

जमाना  भी  न   देखे   जगहॅसाई   कौन   लेता है

 ***

मुखौटे ओढ़कर अब तो दिलो का राज रखते सब

सच्चाई …

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 17, 2015 at 11:00am — 18 Comments

मिट्टी के खिलौने

मन बच्चा है बहलाने को 

मिट्टी के खिलौने बनायें 

किसी के सिर पर रखकर चोटी 

किसी के माथे तिलक लगायें 

किसी के मुँह पर लगा के दाढ़ी

किसी को सुन्दर साड़ी पहनायें 

किसी के सिर पर रखकर टोपी 

किसी के सिर पगड़ी पहनायें 

 

काश मानव हों मिट्टी के खिलौने 

 

मौला, पंडित ,फादर…

Continue

Added by Sarita Bhatia on February 17, 2015 at 10:30am — 15 Comments

समुद्र में मछली

समुद्र में मछली

ट्रेन से उतरकर उसने चिट को देखा और बोला –“थैंक्यू भईया |”और फिर हम दोनों पुरानी दिल्ली स्टेशन के विपरीत गेटों की तरफ सरकने लगे |मुझे दफ्तर पहुंचने की जल्दी थी|फिर भी एक बार मैंने पलटकर देखा पर स्टेशन की भीड़ में,दिल्ली के इस महासमुद्र में वो विलुप्त हो चुका था |

दफ्तर पहुंचते ही बॉस ने मुझें मेरे नए टारगेट की लिस्ट थमा दी और मैं एक सधे हुए शिकारी की तरह अपने सम्भावित कलाइन्ट्स के प्रोफाइल पढ़ते हुए निकल पड़ा |

शालनी बंसल पेशे से अध्यापिका हैं |दो साल…

Continue

Added by somesh kumar on February 17, 2015 at 10:30am — 4 Comments

देह का सागर जल गया

मन का मीत मन को छल गया
आँख का पानी मचल गया

वो मेहन्दी हाथ की मेरे चिटक के रह गयी
वो मछली नेह की मेरे , तड़फ़ के रह गयी
देह का सागर जल गया

पराई छाँव थी , आख़िर मैं रोकता कब तक
पराया ख्वाब था , आख़िर मैं सोचता कब तक
समय के हाथ से सावन फिसल गया

लिपट के रोटी रही , मन से मेरे प्रीत मेरी
वो अन्छुयी ही रही , मेरे स्वप्न की कोरी देहरी
आस का संबल गल गया

मौलिक अप्रकाशित
अजय कुमार शर्मा

Added by ajay sharma on February 16, 2015 at 11:00pm — 11 Comments

विरासत (लघुकथा)

अब्बाजान के गुजरने के बाद मेरे हिस्से में जो विरासत आयी उसमें पुरानी हवेली के साथ बाबाजान की चंद ट्राफियाँ और मेडल भी थे जिन्हे अब्बुजान हर आने जाने वाले को बड़े शौक से दिखाते थे। मगर हमारे ख्वाबो की शक्ल अख्तियार करती नयी हवेली की सुरत से ये निशानियाँ बेमेल ही थी लिहाजा 'ड्राईंग रूम' से 'स्टोर रूम' का रास्ता तय करती हुयी ये निशानियाँ, जल्दी ही कबाड़ी गफ़ूर चचा की अल्मारियो की शान बन गयी।..........

अब्बुजान की पहली बरसी थी। हम बिरादरी के साथ, अब्बु के इंतकाल के बाद पहली बार आयी नजमा आपा…

Continue

Added by VIRENDER VEER MEHTA on February 16, 2015 at 5:00pm — 17 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
13 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 167 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है ।इस बार का…See More
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service