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कराहती है माँ गंगा

व्यथित है पतितपावनी
अपनी दशा पर आज
प्रश्न पूछती यही सबसे हजार बार
की है किसने दुर्गति ये
कौन है इसका जिम्मेदार ?

राजा, रंक हो या संत
दिया सबको समान अधिकार
सिंचित कर धरा को
भरा संपदा जिसने अपार
विष भर उसकी रगों में फिर
धकेला किसने उसे मृत्यु के द्वार ?

स्नान आचमन से जिसके देव प्रशन्न होते हैं
मुख में इक बूँद ले लोग
स्वर्ग गमन करते हैं
आँचल में उसी के शवों को छुपा
ढेरों मैल बहाया है
दामन पर उसके दाग ये किसने लगाया है ?

हरिहर प्यारी, ब्रह्मा की दुलारी
चलती थी जो मचलती, लहराती
पीड़ा देख उसकी अब
देवों का हृदय भी भर आया है
आखिर उसे इस हाल में किसने पहुँचाया है ?

दी है सद्गति जिसने, आज वह कराहती है
सुनो ना ! माँ गंगा तुम्हें पुकारती है,
माँ गंगा तुम्हें पुकारती है  ||

मीना पाठक
मौलिक/अप्रकाशित  

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Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 23, 2015 at 8:27pm

माँ गंगा तुम्हें पुकारती है! सार्थक सन्देश लिए हुए!सुन्दर रचना पर बहुत बहुत बधाई आदरणीया मीना पाठक जी!

Comment by Meena Pathak on March 23, 2015 at 3:58pm

आदरणीय हरी प्रकाश जी बहुत बहुत आभार 

Comment by Meena Pathak on March 23, 2015 at 3:57pm

आदरणीय बागी जी आपके सुझाव का पूरा खयाल रखूँगी | सादर 

Comment by Meena Pathak on March 23, 2015 at 3:56pm

सस्नेह आभार प्रिय कल्पना 

Comment by Hari Prakash Dubey on March 23, 2015 at 12:40am

दी है सद्गति जिसने, आज वह कराहती है 
सुनो ना ! माँ गंगा तुम्हें पुकारती है,....सुन्दर भावपूर्ण रचना पर बधाई आपको आदरणीया मीना पाठक जी,सादर ! 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 22, 2015 at 8:55pm

आदरणीया मीना पाठक जी, सुन्दर भावाभिव्यक्ति है, एक सुझाव है यदि तुकांत रचना रच रही हैं तो पक्तियों में मात्राओं को संयत कर लें अन्यथा अतुकांत शैली में अभिव्यक्त करने का प्रयास करें. बधाई इस प्रयास पर.

Comment by kalpna mishra bajpai on March 22, 2015 at 1:59am

बहुत सुंदर मीना दी 

Comment by Meena Pathak on March 21, 2015 at 7:59pm

आदरणीय श्याम नारायण जी बहुत बहुत आभार स्वीकारें 

Comment by Meena Pathak on March 21, 2015 at 7:59pm

आदरणीय शुज्जू जी रचना सराहने हेतु बहुत बहुत आभार 

Comment by Meena Pathak on March 21, 2015 at 7:58pm

आदरणीय विजय जी , सादर आभार स्वीकारें 

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