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212 212 212 212

 

आज दिल की कहानी छुपा ले गयी

आँख से नींद, यादें चुरा ले गयी

 

कैस खुद को भुलाए कोई तू बता  

फिक्र तेरी ज़हन को बहा ले गयी

 

तू नहीं जिंदगी में ये ग़म है मुझे

दूरियां दर्द का भी मजा ले गयी

 

शीत की ये लहर टीस बन कर उठी

हाय दिल की अगन को बढ़ा ले गयी

 

हसरतें अब ये दिल से जुदा हो न हो

मौत की ये रवानी खुदा ले गयी

 

वक्त की चाल का क्या पता ऐ “निधी”

आस जीवन से पतझड़ हटा ले गयी

 

निधि 

मौलिक और अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 23, 2015 at 8:30pm

तू नहीं जिंदगी में ये ग़म है मुझे

दूरियां दर्द का भी मजा ले गयी

वाह! बहुत बहुत बधाइयाँ!

Comment by Hari Prakash Dubey on March 23, 2015 at 12:38am

आदरणीया निधि जी, सुन्दर ग़ज़ल है ,बधाई आपको ! सादर 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 22, 2015 at 8:50pm

अच्छी ग़ज़ल हुई है, बधाई देता हूँ आदरणीया निधि अग्रवाल जी.

Comment by somesh kumar on March 22, 2015 at 7:55pm

तू नहीं जिंदगी में ये ग़म है मुझे

दूरियां दर्द का भी मजा ले गयी

सुंदर,बधाई इस कामयाब गज़ल पर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 22, 2015 at 2:42am
आदरणीया निधि जी बहुत बढ़िया हार्दिक बधाई।
Comment by gumnaam pithoragarhi on March 21, 2015 at 10:52pm
वाह बहुत खूब बधाई .....................
Comment by maharshi tripathi on March 21, 2015 at 5:24pm

उम्दा गजल हेतु आपको बधाई आदरणीय |

Comment by Shyam Narain Verma on March 21, 2015 at 4:38pm
बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल ....हार्दिक बधाई ! 
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 21, 2015 at 1:32pm

आ निधि जी

सुन्दर्  गजल  . मक्ता सुभान अल्लाह . सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 21, 2015 at 9:12am

बह्र तो खूब निभाया है अापने उसके लिये बहुत बहुत बधाई।
वक्त की चाल का क्या पता ऐ “निधी”
आस जीवन से पतझड़ हटा ले गयी
ये शेर बहुत अच्छा लगा 

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