For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

‘आस्था’ शापिंग मॉल (लघु कथा)

“इस सन्डे कहाँ पार्टी करें कोमल”? नील  ने पूछा. “यू लाइक  मॉल चलते हैं” “अरे यार, फिर वहीँ.... बोर हो गए हमेशा मॉल मॉल  में जाते कोई नई जगह... “फिर उस भूतिया महल में चलें? है हिम्मत’? बीच में ही बात काटती हुई आस्था बोली| “ना बाबा ना मैं तो नहीं जा सकती तू जा सकती है”?

“मैं भूतों में विश्वास नहीं करती हम आज के युग में जीते हैं क्या पुराने लोगों जैसी  घिसी पिटी बातें  करते हो  और फिर हमारे साथ विश्वास भी तो है उस पर विश्वास करना चाहिए  सब भूतों को ठिकाने लगा देगा  हाहाहा”.. ....

“ठीक है हम बाहर रहेंगे तू ही जाना’ विश्वास ने कहा . ओके.. ओके ..  हम चारों  में से  जो जा सकता है जाकर दिखाए उसकी  अगली ट्रीट हम तीन देंगे  डन” कोमल ने शर्त रखी.  डन!!....सबने एक स्वर में कहा.

अगले सन्डे देर रात तक इन्तजार करते करते उनके माँ बाप पुलिस को सूचना देने ही जा रहे थे कि थाने से  उन सबको तुरंत  आने के लिए फोन आया.

आस्था की लाश के पास तीनों दोस्त फफक-फफक कर रो रहे थे, फिर उन्होंने पूरी घटना बताई कि आस्था भूतिया महल में गई तो बहुत देर तक वापस नहीं आयी आधे घंटे इंतजार कर उन तीनों ने पुलिस को फोन किया पुलिस अन्दर जाकर आस्था की डेड बॉडी लेकर बाहर आई किन्तु पुलिस को अन्दर कोई सुराग नहीं मिला|

 पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सामूहिक बलात्कार के बाद गला घोटकर हत्या की पुष्टि हुई घटना को पंद्रह दिन हो गए पब्लिक के दबाव में केस सी.बी. आई के पास गया|

एक हफ्ते बाद...... आस्था के उन तीनों दोस्तों के खातों में एक-एक लाख रुपया क्रेडिट होते ही बलात्कारी भूत कब्रों से निकलकर सलाखों के पीछे आये.

फिर कुछ महीनों के पश्चात् उस भूतिया महल के आगे एक बोर्ड लग गया “आस्था” शोपिंग मॉल  फाउनडेशन’   

.

मौलिक एवं अप्रकाशित  

Views: 1027

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 16, 2015 at 11:29am

आ० गिरिराज जी ,आपका अनुमोदन पाकर कथा सार्थक हुई हृदय से आभारी हूँ |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 16, 2015 at 11:28am

आ० लक्ष्मण जी ,कहानी पर आपका अनुमोदन हर्ष दायक है आपका बहुत- बहुत आभार |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 16, 2015 at 11:12am

अदरनीया राजेश जी , सार्थक सदेश देती आपकी लघुकथा के लिये हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 16, 2015 at 10:49am

आदमी  के सार्थ के पराकाष्ठा को लेकर  रची सुंदर लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई 

सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 16, 2015 at 8:34am

आ० डॉ गोपाल नारायन जी ,लघुकथा के अनुमोदन हेतु आप का बहुत बहुत शुक्रिया. 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 15, 2015 at 10:08pm

आदर्नीया

कथा नायिका का इतना सार्थक नाम रखकर आपने कथा  में चार चाँद लगा दिए .सादर . 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 15, 2015 at 9:26am

मिथिलेश भैय्या,आप सही कहते हैं विश्वास की डोर/आस्थाएं मर रही हैं संवेदनाएं दम तोड़ रही हैं और हम विकासशीलता तरक्की के गुमान में जी रहे हैं ,लघु कथा के सुन्दर विशलेषण ,अनुमोदन के लिए दिल से आभारी हूँ |  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 15, 2015 at 8:56am

टूटने लगी है डोर विश्वास की,मर रही है  आस्थाएं, मर रही संवेदनाये, इस मॉल संस्कृति ने इंसान को भी माल बना दिया जो उतारा जाता है बाज़ार में.... संवेदनाएं बेचने का चलन .... अपने मर्म को पूरी शिद्दत से सार्थक करती सुन्दर लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई दीदी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 14, 2015 at 9:10pm

जितेन्द्र भैय्या, आपको लघु कथा पसंद आई उसके अनुमोदन एवं आपके सार्थक विचारों के लिए हार्दिक आभार |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 14, 2015 at 9:08pm

कृष्ण मिश्रा जी ,लघु कथा के अनुमोदन एवं विषय पर अपने सार्थक विचार व्यक्त करने के लिए हार्दिक आभार |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service