Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 3, 2016 at 3:59pm — 5 Comments
१२१२२ १२१२२ १२१२२ १२१२२
नहीं है कोई अगर चितेरा संवरने से फायदा ही क्या है
लिखें सभी पर पढ़े न कोई तो लिखने से फायदा ही क्या है
कली कली से ये बात करती अरे सखी क्या ये ज़िन्दगानी
नहीं जो भंवरे नहीं जो तितली निखरने से फायदा ही क्या है
चलो कदम से कदम मिलाकर हसीं अगर जिन्दगी बनानी
ये बात हारों के मोती समझे बिखरने से फायदा ही क्या है
कलम तुम्हारी है खूब लिखती दुआ मेरी भी है खूब लिख्खे
ख्याल दिल से निकाल दो पर कि पढने से…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on July 3, 2016 at 3:00pm — 9 Comments
"सर, ये लिस्ट एक बार देख लीजिए| कमेटी ने तो पास कर दिया है, बस आपका अप्रूवल चाहिए", मुख्य अधिकारी ने तीन पन्ने की लिस्ट उनके सामने रख दी|
"हूँ, अच्छा मैंने जो नाम कहे थे, वो सब तो हैं ना इसमें", एक गहरी नज़र मुख्य अधिकारी के चेहरे पर डाली उन्होंने|
"हाँ सर, वो सब तो हैं ही, आप एक बार देख लीजिए", मुख्य अधिकारी ने हकलाते हुए कहा|
"ठीक है, लिस्ट छोड़ जाओ, मैं देख लूंगा", अभी भी उन्होंने लिस्ट की तरफ नज़र भी डालने की जहमत नहीं उठाई थी|
"ओ के सर" बोलकर मुख्य अधिकारी जाने के लिए…
Added by विनय कुमार on July 3, 2016 at 4:53am — 4 Comments
२२१२ २२१२ २२
हमने यहीं पर ये चलन देखा
हर गैर में इक अपनापन देखा
देखी नुमाइश जिस्म की फिरभी
जूतों से नर का आकलन देखा
हर फूल ने खुश्बू गजब पायी
महका हुआ सारा चमन देखा
लिक्खा मनाही था मगर हमने
हर फूल छूकर आदतन देखा
उस दम ठगे से रह गए हम यूँ
फूलों को भँवरों में मगन देखा
होती है रुपियों से खनक कैसे
हमने भी रुक-रुक के वो फन देखा
रोशन चिरागों…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on July 2, 2016 at 6:40pm — 14 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 2, 2016 at 4:58pm — 10 Comments
सात जन्म दे जाए ...
मेघों का जल
कौन पी गया
कौन नीर बहाये
क्यूँ ऋतु बसंत में आखिर
पुष्प बगिया के मुरझाये
प्रेम भवन की नयन देहरी पर
क्यूँ अश्रु ठहर न पाए
विरह काल का निर्मम क्षण क्यूँ
धड़कन से बतियाये
वायु वेग से वातायन के
पट रह रह शोर मचाये
छलिया छवि उस बैरी की
घन के घूंघट से मुस्काये
वो छुअन एकान्त पलों की
देह भूल न पाये
तृषातुर अधरों से विरह की
तपिश सही न जाए
नयन घटों की व्याकुल तृप्ति
दूर खड़ी…
Added by Sushil Sarna on July 2, 2016 at 3:30pm — 6 Comments
Added by कवि - राज बुन्दॆली on July 2, 2016 at 10:36am — 10 Comments
मेरी यादों में मृत्यु
अब भी जीवित रहता है
मरने के बाद भी
जीने की पुरजोर कोशिश में
बार -बार मरता रहता है
जाने कैसे मर कर वो ज़िंदा रहता है।
तुम तो गए ,
दूर पहाड़ों के उस पार
आसमान के अनंत विस्तार से कहीं बहुत आगे
मैं रह गयी यहाँ गाँव में अकेली
नदी ,पहाड़ और
आषाढ़ की जलती ,दग्ध करती हुई जलती बूंदों में घिर कर।
अँधेरे गहरे काले साए
मृत्यु के पश्चात भी
मिलन की आकांक्षा जगा जाते है
आत्मा हो…
Added by kanta roy on July 2, 2016 at 10:30am — 2 Comments
कल से आगे ............
देवराज इंद्र के दरबार में मौन छाया था।
कोई गंभीर विषय जैसे ताला बनकर सबके होठों पर लटका हुआ था।
इंद्र समेत तेंतीसों देव अपने-अपने आसनों पर विराजमान थे पर सब शान्त थे।
मौन के इस साम्राज्य को तोड़ने का कार्य किया देवर्षि ने जो अपनी वीणा गले में लटकाये, खरताल बजाते, नारायण-नारायण जपते अचानक आकर उपस्थित हो गये।
‘‘नारायण-नारायण ! देवेन्द्र क्या विपत्ति आ गयी जो ऐसा मौन पसरा हुआ है ? न अप्सरायें हैं, न नृत्य संगीत की महफिल है - आखिर क्या हो…
Added by Sulabh Agnihotri on July 2, 2016 at 10:29am — 1 Comment
Added by Dr. Vijai Shanker on July 2, 2016 at 10:00am — 8 Comments
मफ़ाईलुन/मफ़ाईलुन/मफ़ाईलुन/मफ़ाईलुन
किसी को भी यहाँ पे क्यूँ कोई अपना नहीं मिलता
तुम्हें तुम सा नहीं मिलता, हमें हम सा नहीं मिलता
ज़माना घूम के बैठे, दुआएँ कर के भी देखीं
हमें तो यार कोई भी कहीं तुम सा नहीं मिलता
ज़मीनें एक थीं फिर भी लकीरें खींच दीं हमने
सभी से इसलिए भी दिल यहाँ सबका नहीं मिलता
वहाँ पे बैठ के साहब लिखे तक़दीर वो सबकी
लिखावट एक जैसी है तो क्यूँ लिक्खा नहीं…
Added by Mahendra Kumar on July 2, 2016 at 7:30am — 7 Comments
कल से आगे ...............
‘‘यह तो आपने बड़ी उल्टी बात कह दी। हमें समझाइये।’’ इस बार बड़ी देर से चुप बैठा विभीषण बोला।
‘‘देखो वरदान क्या है - किसी का हित करना, किसी की सहायता करना।
‘‘किसी का हित या सहायता तीन प्रकार से हो सकती है पहला भौतिक। किसी को धन की आवश्यकता हुई तो मेरे पास प्रचुर है मैंने उसे उसकी आवश्यकतानुसार दे दिया। पर अगर कोई माँग बैठे कि मुझे त्रिलोक का सारा धन मिल जाये तो मैं भला कैसे दे दूँगा। समझ गये ?’’
‘‘जी।’’
‘‘दूसरा शारीरिक या ज्ञान संबंधी।…
Added by Sulabh Agnihotri on July 1, 2016 at 7:46pm — 2 Comments
२१२२/१२१२/२२ (११२)
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उन की गर्दन लगे सुराही, हय!!
उन को लगता हूँ मैं शराबी, हय!!
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मैंने भेजा सलाम महफ़िल में,
उस ने भेजी नज़र जवाबी, हय!!
.
मुझ को कोई चुड़ैल फाँस न ले,
गाहे-गाहे मेरी तलाशी, हय!!
.
जिस नज़र से ये दिल तमाम हुआ,
हाय चाकू, छुरी, कटारी, हय!!
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सारी अच्छाइयाँ उदू में थीं,
मेरी हर बात में ख़राबी, हय!!
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भींच लेती हैं तेरी यादें मुझे,
“नूर” हर शाम ये कहानी, हय!!
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मौलिक /…
Added by Nilesh Shevgaonkar on July 1, 2016 at 7:30pm — 12 Comments
एक चंचल
दूजा शांत
करे युद्ध
दो मन |
उड़ान भरता
ख्वाब बुनता
चंचल चितवन
एक मन |
सोचता रहता
कार्य करता
शांत बैठा
दूजा मन |
कैसा युद्ध
कौन जाने
कई माने
कई अनजाने |
कभी सावन
कभी ग्रीष्म
कभी बसंत
कभी शरद |
बदलता रहता
आक्रोश करता
खामोश बैठता
कैसा मन !
मौलिक एवं…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 1, 2016 at 7:23pm — 2 Comments
फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन
212 1222 212 1222
जिन्दगी में कुछ लम्हे बेमिसाल तो आये
ख्वाब में खयालों में कुछ सवाल तो आये
बेखुदी में हैं अब भी, काश होश आ जाता
माँ को अपने बच्चे का कुछ खयाल तो आये
रूप में उधर चांदी , इश्क में इधर सोना
रोशनी बहुत होगी कुछ उछाल तो आये
फूल खूबसूरत है, है नहीं मगर खुशबू
हुस्न तो नुमायाँ है बोल-चाल तो आये
यूँ तो खून बहता है आदमी की धमनी…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 1, 2016 at 4:00pm — 13 Comments
सौम्या की खास सहेली काफ़ी जतन के बाद भी लन्दन से शादी के एक दो दिन पहले ना पहुँच, ठीक उसी दिन पहुँच पायी।अपनी प्रिय सखी की पसंद को लेकर उसके मन में काफ़ी सवाल थे,जो मौका पाते ही निकल पड़े।
"तू बस एक वजह बता दे इस कोयले की खान से शादी करने की?"उसने एक नज़र स्टेज पर खड़े उसके दूल्हे डाल कर कहा।
"तमीज से बोल रमा!इतना तो याद रख ,तू मेरे पति के बारे में बात कर रही है।"
"अच्छा!!खूब ,जरा देख..,अपने पूरे कुटुंब को एक नज़र।इतनी हेठी शख्सियत तो तेरे ड्राइवर की भी नहीं।"
"शक्ल…
ContinueAdded by Rahila on July 1, 2016 at 3:00pm — 18 Comments
“अरे..अरे रे रे .... ये क्या कर रहे हो दिमाग तो खराब नहीं हो गया आप लोगों का... किराए दार होकर बिना बताये मेरे ही घर में ये तोड़ फोड़ क्यूँ?” घर के मुख्य द्वार जिसपर उसके स्वर्गीय पति का नाम लिखा था मजदूरों द्वारा हथौड़े से तोड़ते हुए देखकर आपा खो बैठी सावित्री|
“अरे कोई कुछ बोलता क्यूँ नहीं बंद करो ये सब वरना अभी पुलिस को बुलाती हूँ”
“हाँ बुला लीजिये आंटी जी ताकि आज आपको भी पता लगे किरायेदार कौन है वो तो मेरे सास ससुर ने अब तक मेरा व् मेरे पति का मुँह बंद कर रखा था आज कल…
ContinueAdded by rajesh kumari on July 1, 2016 at 10:00am — 10 Comments
Added by Manan Kumar singh on July 1, 2016 at 6:30am — 8 Comments
२१२२ २१२२ २१२२
फ़र्क करना है ज़रूरी इक नज़र में
बदतमीज़ों में तथा सुलझे मुखर में
शांति की वो बात करते घूमते हैं
किन्तु कुछ कहते नहीं अपने नगर में
शाम होते ही सदा वो सोचता है-
क्यों बदल जाता है सूरज दोपहर में
भूल जा संवेदना के बोल प्यारे
दौर अपना है तरक्की की लहर में
हो गया बाज़ार का ज्वर अब मियादी
और देहाती दवा है गाँव-घर में
आदमी तो हाशिये पर हाँफता है
वेलफेयर-योजनाएँ हैं…
Added by Saurabh Pandey on July 1, 2016 at 12:30am — 30 Comments
ज़िंदगी को छलने लगी .....
गज़ब हुआ
एक चराग़ सहर से
शब की चुगली कर बैठा
एक लिबास
अपने ग़म की
तारीकियों से दरयाफ़्त कर बैठा
कोई करीबियों से
फासलों की बात कर बैठा
मैंने तो
तमाम रातों के चांद
उस पर कुर्बान कर दिए थे
अपने ग़मग़ीन पैरहन पर
हंसी के पैबंद सिल दिए थे
अपनी आंखों के हमबिस्तर को
मैं चश्मे साहिल पे ढूंढती रहा
नसीमे सहर से
उसका पता पूछती रही
उम्मीदों की दहलीज़
नाउम्मीदी की…
Added by Sushil Sarna on June 30, 2016 at 8:35pm — 4 Comments
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