For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,140)

लजाये भला क्यूँ- ग़ज़ल

122 122 122 122

ग़ज़ल में एक नया प्रयास- #कुण्डलियाँ# शैली में

बतायें, तो मन में समाये भला क्यूँ।
समाये तो इसको सताये भला क्यूँ।।

सताये अगर तो बतायें ज़रा ये।
अदाओं से इसको रिझाये भला क्यूँ।।

रिझाये तो सपने जवाँ हो गये सब।
जगा कर के चाहत जगाये भला क्यूँ।।

जगाये अगर रात भर आप हमको।
तो घर से न निकले लजाये भला क्यूँ।।

लजाये भी तो सबसे पहले लजाते।
निगाहें निगाह से मिलाये भला क्यूँ।।

मौलिक अप्रकाशित

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 3, 2016 at 3:59pm — 5 Comments

लिखें सभी पर पढ़े न कोई तो लिखने से फायदा ही क्या है

१२१२२ १२१२२ १२१२२ १२१२२

नहीं है कोई अगर चितेरा संवरने से फायदा ही क्या है

लिखें सभी पर पढ़े न कोई तो लिखने से फायदा ही क्या है

कली कली से ये बात करती अरे सखी क्या ये ज़िन्दगानी

नहीं जो भंवरे नहीं जो तितली निखरने से फायदा ही क्या है

चलो कदम से कदम मिलाकर  हसीं अगर जिन्दगी बनानी

ये बात हारों के मोती समझे बिखरने से फायदा ही क्या है

कलम तुम्हारी है खूब लिखती दुआ मेरी भी है खूब लिख्खे

ख्याल दिल से निकाल दो पर कि पढने से…

Continue

Added by Dr Ashutosh Mishra on July 3, 2016 at 3:00pm — 9 Comments

प्रतिभा का सम्मान--

"सर, ये लिस्ट एक बार देख लीजिए| कमेटी ने तो पास कर दिया है, बस आपका अप्रूवल चाहिए", मुख्य अधिकारी ने तीन पन्ने की लिस्ट उनके सामने रख दी|

"हूँ, अच्छा मैंने जो नाम कहे थे, वो सब तो हैं ना इसमें", एक गहरी नज़र मुख्य अधिकारी के चेहरे पर डाली उन्होंने|

"हाँ सर, वो सब तो हैं ही, आप एक बार देख लीजिए", मुख्य अधिकारी ने हकलाते हुए कहा|

"ठीक है, लिस्ट छोड़ जाओ, मैं देख लूंगा", अभी भी उन्होंने लिस्ट की तरफ नज़र भी डालने की जहमत नहीं उठाई थी|

"ओ के सर" बोलकर मुख्य अधिकारी जाने के लिए…

Continue

Added by विनय कुमार on July 3, 2016 at 4:53am — 4 Comments

गजल

२२१२ २२१२ २२

 

हमने यहीं पर ये चलन देखा

हर गैर में इक अपनापन देखा

 

देखी नुमाइश जिस्म की फिरभी

जूतों से नर का आकलन देखा

 

हर फूल ने खुश्बू गजब पायी

महका हुआ सारा  चमन देखा

 

लिक्खा मनाही था मगर हमने

हर फूल छूकर आदतन देखा

 

उस दम ठगे से रह गए हम यूँ  

फूलों को भँवरों में मगन देखा

 

होती है रुपियों से खनक कैसे

हमने भी रुक-रुक के वो फन देखा

 

रोशन चिरागों…

Continue

Added by Ashok Kumar Raktale on July 2, 2016 at 6:40pm — 14 Comments

सताया मुझे रात भर आपने तो

122 122 122 122

सताया मुझे रात भर आपने तो।
जगाया मुझे रात भर आपने तो।

न मिलने ही आये न सन्देश भेजा।
भुलाया मुझे रात भर आपने तो।।

नयन ये बरसते रहे रात भर कल।
रुलाया मुझे रात भर आपने तो।।

अमावस के हिस्से में बस कालिमा है।
सिखाया मुझे रात भर आपने तो।।

सुलगते रहे ख़्वाब जितने थे सारे।
जलाया मुझे रात भर आपने तो।।

मौलिक तथा अप्रकाशित

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 2, 2016 at 4:58pm — 10 Comments

सात जन्म दे जाए ...

सात जन्म दे जाए ...

मेघों का जल

कौन पी गया

कौन नीर बहाये

क्यूँ ऋतु बसंत में आखिर

पुष्प बगिया के मुरझाये

प्रेम भवन की नयन देहरी पर

क्यूँ अश्रु ठहर न पाए

विरह काल का निर्मम क्षण क्यूँ

धड़कन से बतियाये

वायु वेग से वातायन के

पट रह रह शोर मचाये

छलिया छवि उस बैरी की

घन के घूंघट से मुस्काये

वो छुअन एकान्त पलों की

देह भूल न पाये

तृषातुर अधरों से विरह की

तपिश सही न जाए

नयन घटों की व्याकुल तृप्ति

दूर खड़ी…

Continue

Added by Sushil Sarna on July 2, 2016 at 3:30pm — 6 Comments

ग़ज़ल,,,,

ग़ज़ल,,,,,

,,,,,,,,,,,,,,,,



1222,1222,1222,1222



तुम्हारा अश्क़ गंगा है हमारा अश्क़ पानी है ।।

तुम्हारा इश्क़ लैला है हमारा क्यूँ कहानी है ।।(1)



छुपाकर अब तलक़ रक्खा गुलाबी गुल किताबों में,

हमारे प्यार की आखिर वही तो इक निसानी है ।।(2)



लिखे थे ख़त कभी तुमनें मुझे दो चार लफ़्ज़ों में,

कसम से आज भी उनमें महकती ज़ाफ़रानी है ।।(3)



शिकायत कर रहा है एक गजरा मोंगरे का अब,

हुई क्यों दूर यूँ मुझसे अचानक रातरानी है ।।(4)



नहीं… Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on July 2, 2016 at 10:36am — 10 Comments

आत्मा में आकर ही बसो (कविता)

मेरी यादों में मृत्यु

अब भी जीवित रहता है

मरने के बाद भी

जीने की पुरजोर कोशिश में

बार -बार मरता रहता है

जाने कैसे मर कर वो ज़िंदा रहता है।

तुम तो गए ,

दूर पहाड़ों के उस पार

आसमान के अनंत विस्तार से कहीं बहुत आगे

मैं रह गयी यहाँ गाँव में अकेली

नदी ,पहाड़ और

आषाढ़ की जलती ,दग्ध करती हुई जलती बूंदों  में घिर कर।

अँधेरे गहरे काले साए

मृत्यु के पश्चात भी

मिलन की आकांक्षा जगा जाते है

आत्मा हो…

Continue

Added by kanta roy on July 2, 2016 at 10:30am — 2 Comments

राम-रावण कथा (पूर्व-पीठिका) - 10

कल से आगे ............

देवराज इंद्र के दरबार में मौन छाया था।

कोई गंभीर विषय जैसे ताला बनकर सबके होठों पर लटका हुआ था।

इंद्र समेत तेंतीसों देव अपने-अपने आसनों पर विराजमान थे पर सब शान्त थे।

मौन के इस साम्राज्य को तोड़ने का कार्य किया देवर्षि ने जो अपनी वीणा गले में लटकाये, खरताल बजाते, नारायण-नारायण जपते अचानक आकर उपस्थित हो गये।

‘‘नारायण-नारायण ! देवेन्द्र क्या विपत्ति आ गयी जो ऐसा मौन पसरा हुआ है ? न अप्सरायें हैं, न नृत्य संगीत की महफिल है - आखिर क्या हो…

Continue

Added by Sulabh Agnihotri on July 2, 2016 at 10:29am — 1 Comment

हालात-ए-तालीम -- डॉo विजय शंकर

सदैव सचेत ,जाग्रत ,

रहने वाले प्रबुद्ध हैं हम ,

बस अपने से ही दूर ,

अनन्त अंजान हैं हम।

जागते रहो , नारा है ,

लक्ष्य-आदर्श नहीं ,

दृश्य है , वो दीखता नहीं ,

अदृश्य , लक्ष्य है , और

पहुँच से बहुत दूर दीखता है ,

फिर भी अति प्रसन्न हैं हम ,

सुसुप्त-सुख से ग्रस्त हैं हम ,

जगा दे कोई किसी में दम नहीं।

फिर भी कोई दुःसाहस करे ,

जागते नहीं , उखड़ जाते हैं हम ,

भड़क जाते हैं हम ,

ज्ञान बोध से नहीं ,

अज्ञान के उद्भव से ,… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on July 2, 2016 at 10:00am — 8 Comments

ग़ज़ल - मुहब्बत करने वाला क्यूँ कभी तनहा नहीं मिलता

मफ़ाईलुन/मफ़ाईलुन/मफ़ाईलुन/मफ़ाईलुन

किसी को भी यहाँ पे क्यूँ कोई अपना नहीं मिलता

तुम्हें तुम सा नहीं मिलता, हमें हम सा नहीं मिलता

ज़माना घूम के बैठे, दुआएँ कर के भी देखीं

हमें तो यार कोई भी कहीं तुम सा नहीं मिलता

ज़मीनें एक थीं फिर भी लकीरें खींच दीं हमने

सभी से इसलिए भी दिल यहाँ सबका नहीं मिलता

वहाँ पे बैठ के साहब लिखे तक़दीर वो सबकी

लिखावट एक जैसी है तो क्यूँ लिक्खा नहीं…

Continue

Added by Mahendra Kumar on July 2, 2016 at 7:30am — 7 Comments

राम-रावण कथा (पूर्व-पीठिका) - 9 (2)

कल से आगे ...............

‘‘यह तो आपने बड़ी उल्टी बात कह दी। हमें समझाइये।’’ इस बार बड़ी देर से चुप बैठा विभीषण बोला।

‘‘देखो वरदान क्या है - किसी का हित करना, किसी की सहायता करना।

‘‘किसी का हित या सहायता तीन प्रकार से हो सकती है पहला भौतिक। किसी को धन की आवश्यकता हुई तो मेरे पास प्रचुर है मैंने उसे उसकी आवश्यकतानुसार दे दिया। पर अगर कोई माँग बैठे कि मुझे त्रिलोक का सारा धन मिल जाये तो मैं भला कैसे दे दूँगा। समझ गये ?’’

‘‘जी।’’

‘‘दूसरा शारीरिक या ज्ञान संबंधी।…

Continue

Added by Sulabh Agnihotri on July 1, 2016 at 7:46pm — 2 Comments

ग़ज़ल-नूर की ...हय

२१२२/१२१२/२२ (११२)

.

उन की गर्दन लगे सुराही, हय!!

उन को लगता हूँ मैं शराबी, हय!!

.

मैंने भेजा सलाम महफ़िल में,

उस ने भेजी नज़र जवाबी, हय!!

.

मुझ को कोई चुड़ैल फाँस न ले,

गाहे-गाहे मेरी तलाशी, हय!!

.

जिस नज़र से ये दिल तमाम हुआ,

हाय चाकू, छुरी, कटारी, हय!! 

.

सारी अच्छाइयाँ उदू में थीं,

मेरी हर बात में ख़राबी, हय!! 

.

भींच लेती हैं तेरी यादें मुझे,

“नूर” हर शाम ये कहानी, हय!!    

.

मौलिक /…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on July 1, 2016 at 7:30pm — 12 Comments

दो मन

एक चंचल 

दूजा शांत 

करे युद्ध 

दो मन |

उड़ान भरता 

ख्वाब बुनता 

चंचल चितवन 

एक मन |

सोचता रहता 

कार्य करता 

शांत बैठा 

दूजा मन |

कैसा युद्ध 

कौन जाने 

कई माने 

कई अनजाने |

कभी सावन 

कभी ग्रीष्म 

कभी बसंत 

कभी शरद |

बदलता रहता 

आक्रोश करता 

खामोश बैठता 

कैसा मन !

मौलिक एवं…

Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 1, 2016 at 7:23pm — 2 Comments

कुछ कमाल तो आये

फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन

212 1222  212 1222 

जिन्दगी में कुछ लम्हे बेमिसाल तो आये

ख्वाब में खयालों में कुछ सवाल तो आये

बेखुदी में हैं अब भी, काश होश आ  जाता    

माँ को अपने बच्चे का कुछ खयाल तो आये

 

रूप में उधर चांदी , इश्क में इधर सोना

रोशनी बहुत होगी कुछ उछाल  तो आये

 

फूल खूबसूरत है,  है नहीं मगर खुशबू

हुस्न तो नुमायाँ है  बोल-चाल तो  आये

 

यूँ तो खून बहता है आदमी की धमनी…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 1, 2016 at 4:00pm — 13 Comments

मक्खियाँ (लघुकथा) राहिला

सौम्या की खास सहेली काफ़ी जतन के बाद भी लन्दन से शादी के एक दो दिन पहले ना पहुँच, ठीक उसी दिन पहुँच पायी।अपनी प्रिय सखी की पसंद को लेकर उसके मन में काफ़ी सवाल थे,जो मौका पाते ही निकल पड़े।

"तू बस एक वजह बता दे इस कोयले की खान से शादी करने की?"उसने एक नज़र स्टेज पर खड़े उसके दूल्हे डाल कर कहा।

"तमीज से बोल रमा!इतना तो याद रख ,तू मेरे पति के बारे में बात कर रही है।"

"अच्छा!!खूब ,जरा देख..,अपने पूरे कुटुंब को एक नज़र।इतनी हेठी शख्सियत तो तेरे ड्राइवर की भी नहीं।"

"शक्ल…

Continue

Added by Rahila on July 1, 2016 at 3:00pm — 18 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
पुत्र प्राप्ति मन्त्र (लघु कथा 'राज ')

 “अरे..अरे रे रे ....  ये क्या कर रहे हो दिमाग तो खराब नहीं हो गया आप लोगों का... किराए दार  होकर बिना बताये मेरे ही घर में ये तोड़ फोड़ क्यूँ?” घर के मुख्य द्वार जिसपर उसके स्वर्गीय पति का नाम लिखा था मजदूरों द्वारा हथौड़े से तोड़ते हुए देखकर आपा खो बैठी सावित्री|

“अरे कोई कुछ बोलता क्यूँ नहीं बंद करो ये सब वरना अभी पुलिस को बुलाती हूँ”

“हाँ बुला लीजिये आंटी जी ताकि आज आपको भी पता लगे किरायेदार कौन है वो तो मेरे सास ससुर ने अब तक मेरा व् मेरे पति का मुँह बंद कर रखा था आज कल…

Continue

Added by rajesh kumari on July 1, 2016 at 10:00am — 10 Comments

गजल(आहटों से डर रहा....)

2122 2122 212

आहटों से डर रहा वह अाजकल

चाहतों का बस हुआ वह आजकल।1



फूल को समझा रहा है असलियत

सुरभियों को डँस रहा वह अाजकल।2



शब्द मय चुभते नुकीले दुर्ग में

राह भूला,है फँसा वह अाजकल।3



बात की गहराइयाँ समझे बिना

तंज बेढब कस खड़ा वह आजकल।4



रोशनी की चाह में खुद को भुला

हो गया है अलबला वह अाजकल।5



आदमी लगता कभी सुलझा हुआ

फिर लगा खुद ही ठगा वह अाजकल।6



चादरें हैं श्वेत सबको क्या पता

काजलों में है रँगा… Continue

Added by Manan Kumar singh on July 1, 2016 at 6:30am — 8 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
ग़ज़ल - भूल जा संवेदना के बोल प्यारे // --सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२



फ़र्क करना है ज़रूरी इक नज़र में

बदतमीज़ों में तथा सुलझे मुखर में



शांति की वो बात करते घूमते हैं

किन्तु कुछ कहते नहीं अपने नगर में



शाम होते ही सदा वो सोचता है-

क्यों बदल जाता है सूरज दोपहर में



भूल जा संवेदना के बोल प्यारे

दौर अपना है तरक्की की लहर में



हो गया बाज़ार का ज्वर अब मियादी

और देहाती दवा है गाँव-घर में



आदमी तो हाशिये पर हाँफता है

वेलफेयर-योजनाएँ हैं…

Continue

Added by Saurabh Pandey on July 1, 2016 at 12:30am — 30 Comments

ज़िंदगी को छलने लगी .....

ज़िंदगी को छलने लगी .....

गज़ब हुआ

एक चराग़ सहर से

शब की चुगली कर बैठा

एक लिबास

अपने ग़म की

तारीकियों से दरयाफ़्त कर बैठा

कोई करीबियों से

फासलों की बात कर बैठा

मैंने तो

तमाम रातों के चांद

उस पर कुर्बान कर दिए थे

अपने ग़मग़ीन पैरहन पर

हंसी के पैबंद सिल दिए थे

अपनी आंखों के हमबिस्तर को

मैं चश्मे साहिल पे ढूंढती रहा

नसीमे सहर से

उसका पता पूछती रही

उम्मीदों की दहलीज़

नाउम्मीदी की…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 30, 2016 at 8:35pm — 4 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  रीति शीत की जारी भैया, पड़ रही गज़ब ठंड । पहलवान भी मज़बूरी में, पेल …"
5 hours ago
आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service