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ग़ज़ल,,,,,
,,,,,,,,,,,,,,,,

1222,1222,1222,1222

तुम्हारा अश्क़ गंगा है हमारा अश्क़ पानी है ।।
तुम्हारा इश्क़ लैला है हमारा क्यूँ कहानी है ।।(1)

छुपाकर अब तलक़ रक्खा गुलाबी गुल किताबों में,
हमारे प्यार की आखिर वही तो इक निसानी है ।।(2)

लिखे थे ख़त कभी तुमनें मुझे दो चार लफ़्ज़ों में,
कसम से आज भी उनमें महकती ज़ाफ़रानी है ।।(3)

शिकायत कर रहा है एक गजरा मोंगरे का अब,
हुई क्यों दूर यूँ मुझसे अचानक रातरानी है ।।(4)

नहीं बदले अभी कुछ भी रखे महफूज़ घर में सब,
वही बिस्तर वही तकिया वही चादर पुरानी है ।।(5)

कभी फुर्सत मिले तो देख जाना रंग अपना भी,
वही बोतल वही साक़ी वही इक पीकदानी है ।।(6)

भला मैं हाल दिल का क्या सुनाऊँ फोन पर तुमको,
तुम्हारी याद का मौसम सुहाना आसमानी है ।।(7)

वहाँ बेचैन तू है और तन्हाँ हूँ यहाँ मैं भी,
"वही तेरी कहानी है वही मेरी कहानी है" ।।(8)

सभी ये कह रहा है "राज़" पागल हो गया है अब,
उन्हें कैसे बताऊँ गर्दिशों की छेड़खानी है ।।(9)

"डॉ राज़ बुन्देली"
01/07/2016

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 550

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Comment by कवि - राज बुन्दॆली on July 3, 2016 at 11:22pm

आदरणीय,,,गिरिराज भंडारी जी नमन

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on July 3, 2016 at 11:21pm

आदरणीय शिज्जू शकूर जी शुक्रिया

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on July 3, 2016 at 11:21pm

आदरणीय महेन्द्र कुमार जी आभार

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on July 3, 2016 at 11:20pm

आदरणीय,,,, डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी इस स्नेह हेतु नमन स्वीकार कीजिये


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 3, 2016 at 7:19am
आदरणीय राज बुन्देली जी बेहतरीन ग़ज़ल हुई वाह बहुत बहुत बधाई आपको। मक्ते के ऊला में टंकण त्रुटि दिख रही है ज़रा देख लीजियेगा।
Comment by Mahendra Kumar on July 2, 2016 at 11:18pm
आदरणीय राज जी, बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने। हार्दिक बधाई स्वीकार करें, सादर!
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 2, 2016 at 9:29pm

वाह  बहुत  उम्दा  राज साहिब  आपको  बधाई . सादर .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 2, 2016 at 6:15pm

आदरणीय राज बुन्देली भाई , बढिया गज़ल कही है , सभी अशआर बेहतरीन हुये हैं , दिली मुबारक बाद कुबूल करें।

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on July 2, 2016 at 1:10pm

आदरणीय,,,सुशील सारना जी,,,,नमन,,,इस स्नेह हेतु

Comment by Sushil Sarna on July 2, 2016 at 1:04pm

तुम्हारा अश्क़ गंगा है हमारा अश्क़ पानी है ।।
तुम्हारा इश्क़ लैला है हमारा क्यूँ कहानी है ।।(1)

छुपाकर अब तलक़ रक्खा गुलाबी गुल किताबों में,
हमारे प्यार की आखिर वही तो इक निसानी है ।।(2)

वाह अादरणीय बुंदेली जी वाह .... क्या ग़ज़ब के अशअार लिखे हैं अपने .... इस दिलकश ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सर।

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