For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल,,,,,
,,,,,,,,,,,,,,,,

1222,1222,1222,1222

तुम्हारा अश्क़ गंगा है हमारा अश्क़ पानी है ।।
तुम्हारा इश्क़ लैला है हमारा क्यूँ कहानी है ।।(1)

छुपाकर अब तलक़ रक्खा गुलाबी गुल किताबों में,
हमारे प्यार की आखिर वही तो इक निसानी है ।।(2)

लिखे थे ख़त कभी तुमनें मुझे दो चार लफ़्ज़ों में,
कसम से आज भी उनमें महकती ज़ाफ़रानी है ।।(3)

शिकायत कर रहा है एक गजरा मोंगरे का अब,
हुई क्यों दूर यूँ मुझसे अचानक रातरानी है ।।(4)

नहीं बदले अभी कुछ भी रखे महफूज़ घर में सब,
वही बिस्तर वही तकिया वही चादर पुरानी है ।।(5)

कभी फुर्सत मिले तो देख जाना रंग अपना भी,
वही बोतल वही साक़ी वही इक पीकदानी है ।।(6)

भला मैं हाल दिल का क्या सुनाऊँ फोन पर तुमको,
तुम्हारी याद का मौसम सुहाना आसमानी है ।।(7)

वहाँ बेचैन तू है और तन्हाँ हूँ यहाँ मैं भी,
"वही तेरी कहानी है वही मेरी कहानी है" ।।(8)

सभी ये कह रहा है "राज़" पागल हो गया है अब,
उन्हें कैसे बताऊँ गर्दिशों की छेड़खानी है ।।(9)

"डॉ राज़ बुन्देली"
01/07/2016

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 571

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on July 3, 2016 at 11:22pm

आदरणीय,,,गिरिराज भंडारी जी नमन

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on July 3, 2016 at 11:21pm

आदरणीय शिज्जू शकूर जी शुक्रिया

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on July 3, 2016 at 11:21pm

आदरणीय महेन्द्र कुमार जी आभार

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on July 3, 2016 at 11:20pm

आदरणीय,,,, डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी इस स्नेह हेतु नमन स्वीकार कीजिये


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 3, 2016 at 7:19am
आदरणीय राज बुन्देली जी बेहतरीन ग़ज़ल हुई वाह बहुत बहुत बधाई आपको। मक्ते के ऊला में टंकण त्रुटि दिख रही है ज़रा देख लीजियेगा।
Comment by Mahendra Kumar on July 2, 2016 at 11:18pm
आदरणीय राज जी, बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने। हार्दिक बधाई स्वीकार करें, सादर!
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 2, 2016 at 9:29pm

वाह  बहुत  उम्दा  राज साहिब  आपको  बधाई . सादर .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 2, 2016 at 6:15pm

आदरणीय राज बुन्देली भाई , बढिया गज़ल कही है , सभी अशआर बेहतरीन हुये हैं , दिली मुबारक बाद कुबूल करें।

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on July 2, 2016 at 1:10pm

आदरणीय,,,सुशील सारना जी,,,,नमन,,,इस स्नेह हेतु

Comment by Sushil Sarna on July 2, 2016 at 1:04pm

तुम्हारा अश्क़ गंगा है हमारा अश्क़ पानी है ।।
तुम्हारा इश्क़ लैला है हमारा क्यूँ कहानी है ।।(1)

छुपाकर अब तलक़ रक्खा गुलाबी गुल किताबों में,
हमारे प्यार की आखिर वही तो इक निसानी है ।।(2)

वाह अादरणीय बुंदेली जी वाह .... क्या ग़ज़ब के अशअार लिखे हैं अपने .... इस दिलकश ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service