Added by नाथ सोनांचली on May 22, 2017 at 12:30pm — 20 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on May 22, 2017 at 12:28pm — 1 Comment
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on May 22, 2017 at 9:00am — 17 Comments
2122 : 2122 212
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वह जमीं पर आग यूँ बोता रहा
और चुप हो आसमां सोया रहा।1
आँधियों में उड़ गये बिरवे बहुत
साँस लेने का कहीं टोटा रहा।2
डुबकियाँ कोई लगाता है बहक
और कोई खा यहाँ गोता रहा।3
पर्वतों से झाँकती हैं रश्मियाँ
भोर का फिर भी यहाँ रोना रहा।4
हो…
Added by Manan Kumar singh on May 22, 2017 at 8:27am — 7 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 22, 2017 at 7:45am — 6 Comments
1212 1122 1212 22 (ग़ज़ल कतआ से शुरू है )
किसी की आँख से अश्कों की आशनाई का
किसी जुबान से लफ़्ज़ों की बेवफाई का
सुखनवरों का हुनर है जो ये समझते हैं
भला क्या रिश्ता है कागज से रोशनाई का
जमीन बिछ गई आकाश बन गया कम्बल
बटा ग़िलाफ़ तलक माँ की उस रिजाई का
जहर भी पी गई मीरा जुनून-ए-उल्फत में
न होश था न उसे इल्म जग हँसाई का
लगाम लग गई उसके फिजूल खर्चों पर
गया जो पैसा…
ContinueAdded by rajesh kumari on May 21, 2017 at 3:30pm — 13 Comments
१२१२/११२२/१२१२/२२ (११२)
.
किसे गुरेज़ जो दो-चार झूठ बोले है,
मगर वो शख्स लगातार झूठ बोले है.
.
चली भी आ कि तुझे पार मैं लगा दूँगी,
हमारी नाव से मँझधार झूठ बोले है.
.
सवाल-ए-वस्ल पे करना यूँ हर दफ़ा इन्कार
ज़रूर मुझ से मेरा यार झूठ बोले है.
.
कहानी ख़ूब लिखी है ख़ुदा ने दुनिया की,
कि इस में जो भी है किरदार, झूठ बोले है.
.
पटकना रूह का ज़िन्दान-ए-जिस्म में माथा,
बिख़रना तय है प् दीवार झूठ बोले है.
.
निलेश…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 21, 2017 at 9:33am — 25 Comments
“छह महीने होने आए, डॉक्टर साहब माई की सेहत में कोई खास अंतर तो दिख नही रहा!”
आश्रम के संचालक ने अपने आश्रम के नियमित डॉक्टर से चिंता बांटी, जो अभी अभी सब मरीज़ों का रुटीन चेकअप करके आश्रम स्थित छोटे से कमरे में आकर बैठें थे जो कि उनका आश्रम में क्लिनिक था।
“हाँ, विलास बाबू! है तो चिंता की बात, इतनी ऊँचाई से गिरी थी और उम्र भी है,आप खुद ही सोचिए।” डॉक्टर साहब में गोल-गोल शब्दों में स्पष्ट किया।
“हाँ आपने कहा तो था शहर ले जाने को, पर क्या करें हमारी विवशता है। वो तो आपका सहारा है…
Added by Seema Singh on May 21, 2017 at 9:00am — 6 Comments
Added by Mohammed Arif on May 21, 2017 at 7:54am — 15 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on May 21, 2017 at 6:06am — 3 Comments
दुनिया कहती है,
मैं ऐसा हूँ।
दुनिया कहती है,
मैं वैसा हूँ॥
जेठ की दोपहरी
पसीने का एहसास,
ताम्र वर्ण की-
अतृप्त प्यास॥
तेरी काँख के गंध
जैसा हूँ॥
दुनिया कहती है,
मैं ऐसा हूँ।
दुनिया कहती है,
मैं वैसा हूँ॥
सही वक़्त, सही लोग
मिल नहीं पाए।
शब्द बिखरे रहे,
अर्थ मिल नहीं पाए॥
उनींदी रातों की,
सिलवटों जैसा हूँ॥
दुनिया…
Added by SudhenduOjha on May 20, 2017 at 10:05pm — No Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 20, 2017 at 8:17pm — No Comments
Added by Samar kabeer on May 20, 2017 at 12:08am — 25 Comments
Added by Tasdiq Ahmed Khan on May 19, 2017 at 9:18pm — 17 Comments
सुख के दुख के हर सांचे में, मिटटी जैसी ढलती माँ
मैं क्या कोई जान न पाया, कब सोती कब जगती माँ
गाँव छोड़कर, गया नगर में, लाल कमाने धन दौलत,
अच्छे दिन की आशा पाले, रही स्वयं को ठगती माँ
दीवाली पर सजते देखे, घर आँगन चौबारे
रहे भागती और दौड़ती, पता नहीं कब सजती माँ
घर के कोने कोने का, दूर अँधेरा करने को,
दीपक में बाती के जैसी, रात रात भर जलती माँ
बेटी और बहू की खातिर, जोड़े जाने क्या क्या तो,
सपने बुनकर…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on May 18, 2017 at 10:25pm — 4 Comments
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 18, 2017 at 8:05pm — 12 Comments
अँधेरे ...
किसने
स्वर दे दिए
रजनी तुम्हें
तुम तो
वाणीहीन थी
मूक तम को
किसने स्वरदान दे दिया
शून्यता को बींधते हुए
कुछ स्वर तो हैं
मगर
अस्पष्ट से
क्षण
तम के परिधान में
सुप्त से प्रतीत होते हैं
भाव
एकांत के दास हैं
शायद
तुम
इस तम की
वाणीहीनता का कारण हो
पर हाँ
ये भी सच है कि
तुम ही इस का
निवारण भी हो
दे दो प्राण
इन एकांत
अँधेरे को
छू लो इन्हें…
Added by Sushil Sarna on May 17, 2017 at 5:18pm — 6 Comments
221 2121 1221 212
हो चाह भी, तो कोई ये हिम्मत न कर सके
तेरी जफ़ा की कोई शिकायत न कर सके
तुम क़त्ल करके चौक में लटका दो ज़िस्म को
ता फिर कोई भी शौक़ ए बगावत न कर सके
हाल ए तबाही देख तेरी बारगाह की
हम जायें बार बार ये हसरत न कर सके
बारगाह - दरबार
मैंने ग़लत कहा जिसे, हर हाल हो ग़लत
तुम देखना ! कोई भी हिमायत न कर सके
बन्दे जो कारनामे तेरे नाम से किये
हम चाह कर ख़ुदा की इबादत न कर…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on May 17, 2017 at 7:24am — 27 Comments
22 11 22 11 22 11 22
.
मैं पहले-पहल शौक़ से लाया गया दिल में
फ़िर नाज़ से कुछ रोज़ बसाया गया दिल में.
.
वो ख़त तो बहुत बाद में शोलों का हुआ था,
तिल तिल के उसे पहले जलाया गया दिल में.
.
हालाँकि मुहब्बत वो मुकम्मल न हो पाई
शिद्दत से बहुत जिस को निभाया गया दिल में.
.
अंजाम पता है हमें कुछ और है फिर भी,
हीरो को हिरोइन से मिलाया गया दिल में.
.
हम सच में तेरी राह में कलियाँ क्या बिछाते
पलकों को मगर सच में बिछाया गया…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 16, 2017 at 7:30pm — 22 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on May 15, 2017 at 9:55pm — 15 Comments
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