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November 2016 Blog Posts (119)

नयी ग़ज़ल - रहता नहीं

नयी ग़ज़ल 

बह्र - २१२२ २१२२ २१२

अजनबी हमसे सदा रहता नहीं 
चाहता है फिर गिला रहता नहीं

वो जफ़ा कर क्यों खफा तुमसे हुआ 
बा वफ़ा साथी जुदा रहता नहीं

आईना टूटा तभी तो रो दिये 
नूर आँखों का बुझा रहता नहीं

दोस्त तेरा प्यार मुझ पे इस कदर 
टूटकर भी वो ख़फा रहता नहीं

तू मना ले चाह कर भी ऐ “निधी”
नाखुशी से वो ख़ुदा रहता नहीं

मौलिक और अप्रकाशित

Added by Nidhi Agrawal on November 30, 2016 at 11:00am — 4 Comments

मग़र मड़ई छवानी है, कमाना भी ज़रूरी है------पंकज द्वारा ग़ज़ल

1222 1222 1222 1222

चलूँ स्कूल लेकिन घर में दाना भी ज़रूरी है

पढूँगा तो मग़र ये घर बचाना भी ज़रूरी है



ग़रीबी श्राप है इस श्राप से है मुक्ति शिक्षा में

मग़र मड़ई छवानी है, कमाना भी ज़रूरी है



मुझे मालूम है कूड़े में मिलते रोग के कीड़े

ये कचरे ही मेरी रोजी, जुटाना भी ज़रूरी है



उसे भी छोड़िये, पिल्लू अभी भैंसें ले जाएगा

बहुत महँगा हुआ दर्रा, चराना भी ज़रूरी है



हमारे गाँव की चट्टी पे, पे टी एम् नहीं होता

तो मुर्री में बचत अपनी छिपाना भी… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 29, 2016 at 11:49pm — 12 Comments

क्षण भर पीर को सोने दो .....

क्षण भर पीर को सोने दो .....

क्षण भर  पीर को सोने  दो

चाह को  मुखरित  होने दो

जाने चमके फिर कब चाँद

अधर को अधर का होने दो

क्षण भर पीर को सोने दो .....

आलौकिक वो मुख आकर्षण

मौन भावों का प्रणय समर्पण

अंतस्तल  को  तृप्त तृषा  का

वो छुअन अभिनंदन होने दो

क्षण भर पीर को सोने दो .....

बीत न जाए शीत विभावरी

विभावरी तो विभा से  हारी

अंग अंग  को प्रीत गंध का

अनुपम  उपवन  होने  दो

क्षण भर पीर…

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Added by Sushil Sarna on November 29, 2016 at 8:34pm — 6 Comments

सिन्धु सी नयनों वाली (रोला गीत) भाग-२

लिपट चंद्रिका चंद्र, करें वे प्रणय परस्पर।

निरखें उन्हें चकोर, भाग्य को कोसें सत्वर।।

हाय रूप सुकुमार, कंचु अरुणाभा वाली।

स्वर्ग परी समरूप, सिन्धु सी नयनों वाली॥



व्याकुल हुए चकोर, मेघ चंदा को ढक ले।

रसधर सुन्दर अधर, हृदय कहता है छू ले।।

सीमा अपनी जान, लगे सब रीता खाली।

स्वर्ग परी समरूप, सिन्धु सी नयनों वाली॥



रहे उनीदे नैन, सजग अब निरखे उनको।

देख देख हरषाय, तृप्त करते निज मन को।।

हुए अधूरे आप, नहीं वह मिलने वाली।

स्वर्ग परी…

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Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on November 28, 2016 at 10:30pm — 8 Comments

गीतिका/सतविन्द्र कुमार राणा

आधार छन्द -- वाचिक भुजंगप्रयात

मापनी - 122 122 122 122

समान्त-- आ

पदान्त -- है

गीतिका

-------------------------------------------



बिना कर्म के कब किसे कुछ मिला है

करे कर्म जो साथ उसके खुदा है।



लिए माल को आज चिल्ला रहा जो

गरीबी है' क्या वो नहीं जानता है।



सदा श्रम से' सींचा है' जिसने जमीं को

उसी से ही' तो अन्न सबको मिला है।



नहीं मिलता' उसको जो है चाहता वो

बहुत कुछ मगर उसने सब को दिया है।



सही कर्म… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on November 28, 2016 at 7:48pm — 13 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
रेत को आब-ए-रवाँ और धूप को झरना लिखा - ग़ज़ल

2122 2122 2122 212

रेत को आब-ए-रवाँ और धूप को झरना लिखा

बेखुदी में तूने मेरे दोस्त ये क्या-क्या लिखा

 

वो तो सीधे रास्ते पर था मगर यह देखिये

नासमझ लोगो ने उसका हर क़दम उल्टा लिखा

 

एक मुद्दत से अदब में है सियासत का चलन

मैं अलग था नाम के आगे मेरे झूठा लिखा

 

जब तेरे दिल में कभी उभरा जो मंज़र शाम का

तूने काग़ज़ पर महज मय सागर-ओ-मीना लिखा

 

अब मुहब्बत पर अक़ीदत ही नहीं है लोगों को

इसलिए पाक़ीज़गी को ही…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on November 28, 2016 at 2:30pm — 20 Comments

नशाबंदी का ढोंग

धुम्रपान

स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है

इससे कैंसर होता है

सभी जान गए हैं

मगर

क्या बीड़ी सिगरेट की फैक्ट्रियाँ

देश के लिए

दर्द निवारक हैं?

शराब का अधिक सेवन

स्वास्थ्य के लिए

हानिकारक है

इससे लीवर खराब होता है

सभी मान गए हैं

मगर

क्या मधुशालाएं

और शराब के कारखाने

देश के तारणहार हैं?

शायद

इनके बिना काम

नहीं चल सकता।

और भी बहुत सी

नशीली दवाएं व मादक

क्या केवल

टैक्स कमाने के लिए… Continue

Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on November 28, 2016 at 11:02am — 16 Comments

इश्क छुपता नहीं छुपाने से -बैजनाथ शर्मा 'मिंटू'

अरकान – 2122  12  12  22

 

कुछ भी मिलता न सच बताने से |

फिर तो हम क्यों कहें ज़माने से|  

 

कोशिशें लाख हमने की लेकिन,

इश्क छुपता नहीं छुपाने से|

 

कहकहे उनके गूंजते हरज़ा,

हम तो डरते हैं मुस्कुराने से

 

लाख सोचा कि भूल जाऊँ पर,

याद आते हो तुम भुलाने से|

 

मिन्नतें मैंने लाख की लेकिन

क्या मिला मुझको सर झुकाने से

 

या ख़ुदा कुछ न पा सका ‘मिंटू’

रायगाँ ज़िन्दगी गँवाने से…

Continue

Added by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on November 27, 2016 at 8:30pm — 4 Comments

हम उनके बिना भी हुए कब अकेले (ग़ज़ल)

बह्र :  १२२ १२२ १२२ १२२

 

सनम छोड़ जाते हैं यादों के मेले

हम उनके बिना भी रहे कब अकेले

 

मैं समझाऊँ कैसे ये चारागरों को

उन्हें छू के हो जाते मीठे करेले

 

रहे यूँ ही नफ़रत गिराती नये बम

न कम कर सकेगी मुहब्बत के रेले

 

मैं कितना भी कह लूँ ये नाज़ुक बड़ा है

सनम बेरहम दिल से खेले तो खेले

 

इन्हें दे नये अर्थ नन्हीं शरारत

वगरना निरर्थक हैं जग के झमेले

-------------

(मौलिक एवं…

Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 27, 2016 at 6:30pm — 12 Comments

गजल(दूकानें सजी हैं.....)

गजल#(नोट बंदी के फलितार्थ)-7

* एक वार्त्तालाप*

******************************

दुकानें सजी हैं ,दिखाते खरीदो,

कहें बंद जिनकी,चलो अब कहीं तो।1(आज का सच)



अभी दौर मुश्किल हुआ जा रहा है,

उठेगी ही अर्थी,ठहर भर घड़ी तो।2(चेतावनी)



बुझे रात के सब मुसाफिर सुबह तक,

जलाती बहुत है प्रखरता मुरीदो!3(अनुभूति)



बड़े जोड़ से तो बटोरे थे' टुकड़े

जलाना, बहाना अखरता मुरीदो!4(आत्मकथ्य)



हुआ ही कहाँ कुछ?बता दो बखत है,

बचा है वसन बिन नहाना… Continue

Added by Manan Kumar singh on November 27, 2016 at 3:30pm — 8 Comments

खोट के नोट (लघुकथा)

"देखो नम्मो, तू रोज़ाना की तरह उसी रास्ते से अपनी बस्ती में पहुँच कर ये नोट सिर्फ़ झुग्गियों में रहने वाली समझदार औरतों को सारी बात अच्छे से समझा कर बांट देना!" बबीता ने अपनी दूधवाली के दूध के डिब्बे में पुराने पाँच सौ के कुछ नोट भरते हुए कहा- "हमारे नहीं, तो तुम्हारे जैसों के ही काम आ जायें, तो कुछ तसल्ली मिले!"



नम्मो अपने बीमार बेटे को गोदी में लेकर मालकिन के कहे मुताबिक़ अपनी बस्ती की ओर जाने लगी। रास्ते में बदहवास हालत में एक आदमी अपनी साइकल खड़ी कर, भूख से तड़पते अपने बच्चे की… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 26, 2016 at 11:00pm — 9 Comments

चमक धमक (कविता)

चमक धमक

चमक धमक को समझ बैठे
तरक्की की सीढियाँ
चलते रहे चका चौंध के पीछे
इंसानियत को भी गवां बैठे ।


तेज़ रौशनी में छुपे अँधेरे को
समझ न सके पैर डगमगा गए
लोटने का रास्ता भी न मिला
खुद ही खुद को गवां बैठे ।


मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on November 26, 2016 at 8:40pm — 2 Comments

"झिलमिल धूप"/कविता - अर्पणा शर्मा, भोपाल

सर्द सिहराती शिशिर की सुबह,

भेदकर कर कोहरे की नजर,

ओसकणों को चुंबन देकर,

मेरे आँगन धूप उतर आई थी ,

गुनगुनी, ऊष्म, स्नेहिल ज्यों

एक प्रेमालिंगन ले आई थी,

रूपहली-सुनहरी सुरमाई सी,

सूर्य वधु ज्यों प्रातः लेती अंगड़ाई सी,



ये दुछत्ती खिल जाये प्यारी,

महके छोटी सी मेरी फुलवारी,

धूप ने धूम मचाई थी,

चंपा, चमेली, सेवंती की बहार सी,

गेंदे, गुलाब, हरसिंगार भी,

ज्यों सुंदरी रंगीली चुलबुलाई सी,



धूप घुस आती हर दर्रे… Continue

Added by Arpana Sharma on November 26, 2016 at 4:21pm — 8 Comments

चलना ही सीखना है तो ठोकर तलाश कर (ग़ज़ल)

221 2121 1221 212



दुनिया को छोड़ पहले ख़ुद अंदर तलाश कर

ऊंचे से इस मकान में इक घर तलाश कर



हमवार फ़र्श छोड़ के पत्थर तलाश कर

चलना ही सीखना है तो ठोकर तलाश कर



ख़ुद को जला के देख जो सच की तलाश है

किस ने तुझे कहा कि पयम्बर तलाश कर



हरियालियां निगल के उगलता है कंकरीट

इस वक़्त किस तरफ़ है वो अजगर, तलाश कर



तेरा सफ़र में साथ निभाए तमाम उम्र

ए ज़ीस्त कोई ऐसा भी रहबर तलाश कर



*जय* प्यास ही से प्यास का मिट सकता है… Continue

Added by जयनित कुमार मेहता on November 26, 2016 at 1:18pm — 11 Comments

केवल तुम

51

केवल तुम

=======

मैं बार बार मन ही मन हर्षित सा होता हॅूं,

हर ओर तुम्हारा ही तो अभिनन्दन है।

मन मिलने को आतुर फिर भी कुछ डर है सूनापन है,

हर साॅंस बनाती नव लय पर संगीत अनोखी धड़कन है,

अब तो हर द्वारे आहट पर तेरा ही अवलोकन है,

मैं इसीलिये नवगीत कंठ करता रहता हॅूं

हर शब्द में बस तेरा ही तो आवाहन है।

मन की राह बनाकर इन नैनों के सुमन बिछाये हैं,

मधुर मिलन की आस लिये ये अधर सहज मुस्काये हैं,

हर पल बढ़ते संवेदन…

Continue

Added by Dr T R Sukul on November 26, 2016 at 12:45pm — 6 Comments

प्यार में हम भी हद से गुज़र जायेंगे - बैजनाथ शर्मा 'मिंटू'

अरकान – 212 2    122   122   12

काले बादल कभी जब बिखर जायेंगे |

ए नजारे भी बेशक बदल जायेंगे |

 

मुस्कुरा के ना देखो हमें आज यूँ,

दिल के अरमाँ हमारे मचल जायेंगे|

 

हमको मारो न खंज़र से ऐ महज़बी,

रूठ जाओ तो हम यूँ ही मर जायेंगे|

 

आके देखो कभी तुम हमारी गली,

ए इरादे तुम्हारे बदल जायेंगे|

 

लैला-मजनू हैं क्या शीरी फरहाद क्या,

प्यार में हम भी हद से गुज़र जायेंगे|

 

संग दिल हैं वे…

Continue

Added by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on November 25, 2016 at 11:30am — 4 Comments

घूंघट की ओट में .....

घूंघट की ओट में .....

खो गयी
एक गुड़िया
घूंघट की ओट में


बन गयी
वो एक दुल्हन
घूंघट की ओट में


ख़्वाबों का
शृंगार हुआ
घूंघट की ओट में


थम थम के
छुअन बढ़ी
घूंघट की ओट में


सब कुछ
मिला उसे
घूंघट की ओट में


बस
मिल न पाया
उसे एक दिल
घूंघट की ओट में

सुशील सरना

मौलिक एवम अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on November 24, 2016 at 8:31pm — 10 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
तरही ग़ज़ल --बेहोश इक नजर में हुई अंजुमन तमाम ( राज )

221   2121  1221   212/2121 

पर्दा जो उठ गया तो हुआ काला धन तमाम

चोरों की ख्वाहिशों के जले तन बदन तमाम

 

बरसों से जो महकते रहे भ्रष्ट इत्र  से

इक घाट पे धुले वो सभी पैरहन तमाम

 

बावक्त असलियत का मुखौटा उतर गया

किरदार का वजूद हुआ दफ़अतन तमाम

 

ये बंद खिड़कियाँ जो खुली, पस्त हो गई    

सब झूट औ फरेब की बदबू घुटन तमाम 

 

परवाज पर लगाम जो माली ने डाल दी

भँवरे का हो गया वो तभी बाँकपन…

Continue

Added by rajesh kumari on November 24, 2016 at 7:37pm — 26 Comments

ग़ज़ल (पुराने अंदाज़ में) // रवि प्रकाश

ग़ज़ल (पुराने अंदाज़ में)

बहर-SSSSSSSSSSS



जीवन का एकाकीपन मिट जावेगा

आन मिलेंगे पी तो मन इतरावेगा।

  आ जावेंगे बिछुड़े संगी-साथी भी

  कौन कहाँ लौं मन ऐसे तरसावेगा।

जब निरखेंगे नैन किसी के नेह भरे

झूलों का मौसम फिर से फिर आवेगा।

  परसेगा कब तक शून्य हमारी निद्रा

  अब तो कोई सपना दर खटकावेगा।

मन हुलसेगा सावन के पहले घन सा

झूमेगा,हर ओर सुधा बरसावेगा।

  खो देंगे हम भी उस पल सारी निजता

  रंग किसी का जब हस्ती पे छावेगा।

जी ही… Continue

Added by Ravi Prakash on November 24, 2016 at 1:42pm — 4 Comments

बढ़ रहा दर्द है औ दवा कुछ नहीं/सतविन्द्र कुमार राणा

212 212 212 212

बढ़ रहा दर्द है औ दवा कुछ नहीं

फिर भी होठों पे तेरे दुआ कुछ नहीं।



मर मिटा एक मुफ़लिस किसी शौक से

पर अमीरी नजर में हुआ कुछ नहीं।



हौंसलों से बनें काम सब जान लो

बुज़दिली से कभी तो बना कुछ नहीं।



बस तग़ाफ़ुल तेरा है बड़ा कीमती

इश्क से वास्ता अब रहा कुछ नहीं।



काम आलिम का होता बड़ा साथियो

सीखना उन बिना तो हुआ कुछ नहीं।



ज्यों जिए जा रहे बढ़ रही हसरतें

*जिंदगी हसरतों के सिवा कुछ नहीं।*



हर तरफ इस… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on November 24, 2016 at 9:59am — 16 Comments

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