For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

क्षण भर पीर को सोने दो .....

क्षण भर पीर को सोने दो .....

क्षण भर  पीर को सोने  दो
चाह को  मुखरित  होने दो
जाने चमके फिर कब चाँद
अधर को अधर का होने दो

क्षण भर पीर को सोने दो .....

आलौकिक वो मुख आकर्षण
मौन भावों का प्रणय समर्पण
अंतस्तल  को  तृप्त तृषा  का
वो छुअन अभिनंदन होने दो

क्षण भर पीर को सोने दो .....

बीत न जाए शीत विभावरी
विभावरी तो विभा से  हारी
अंग अंग  को प्रीत गंध का
अनुपम  उपवन  होने  दो

क्षण भर पीर को सोने  दो .....

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 631

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on December 6, 2016 at 4:10pm

आदरणीय   सुनील प्रसाद(शाहाबादी)   जी प्रस्तुति आपके आत्मीय आशीर्वाद से उपकृत हुई। हार्दिक हार्दिक आभार।  पिछले ६-७ दिनों से नेट काम नहीं कर रहा था सो आभार व्यक्त करने में विलम्ब हुआ। इस हेतु क्षमा प्रार्थी हूँ। 

Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on December 5, 2016 at 10:27pm
नमन आदरणीय सुशिल सरना जी सुंदर भावपूर्ण सृजन आपकी लेखनी से आई है बधाई है आपको।
Comment by Sushil Sarna on December 2, 2016 at 5:20pm

आदरणीय  vijay nikore साहिब प्रस्तुति के भावों को अपनी प्रशंसा से अलंकृत करने के लिए हार्दिक आभार

Comment by vijay nikore on December 2, 2016 at 3:39pm

 सदैव समान आपने एक और सुन्दर रचना लिखी है। हार्दिक बधाई।

Comment by Sushil Sarna on November 30, 2016 at 7:07pm

आदरणीय समर कबीर साहिब प्रस्तुति के भावों को अपनी अनुपम प्रशंसा से अलंकृत करने के लिए हार्दिक आभार। बाकी रही पीर की बात तो वो तो क्षण भर के लिए ही उसे सुलाना या भुलाना है ताकि प्रेम भाव मुखरित हो सके। वैसे आपका कथन अपने स्थान पर सही है कि पीर तो मिटने के बाद ही मिटती है। आपकी इस सूक्षम समीक्षात्मक प्रशंसा का शुक्रिया। 

Comment by Samar kabeer on November 30, 2016 at 5:14pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,अच्छे भाव पिरोये हैं आपने इस कविता में,लेकिन पीर तो तभी सोती है जब हम हमेशा के लिये सो जाते हैं ।
इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service