For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,140)


सदस्य कार्यकारिणी
चश्मा (लघु कथा )

“देखो नेहा वो अभी भी घूर रहा है” झूमू ने नेहा का हाथ पकड़े-पकड़े हर की पौढ़ी पर  गंगा में डुबकी लगाते हुए कहा|”बहुत बेशर्म है अभी भी बैठा है इसको पता नहीं किस से पाला  पड़ा है, इसका मजनू पना अभी उतारते हैं शोर मचाकर” उसको थप्पड़ दिखाती हुई नेहा आस पास के लोगों को उकसाने लगी|

इसी बीच में न जाने कब झूमू का हाथ छूट गया और वो तीव्र बहाव में बहने लगी|छपाक!!!!! आवाज आई और कुछ ही देर में वो युवक झूमू को बचाकर बाहर निकाल लाया|

थोड़ी दूर  खड़ा एक पुलिस वाला भी आ गया और  “बोला इन साहब का…

Continue

Added by rajesh kumari on June 22, 2014 at 8:30am — 40 Comments

तरही ग़ज़ल- आयेंगे कब अच्छे दिन तू ही बता !

ग़ज़ल –

फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन

२१२२ २१२२ २१२



एक रत्ती कम न ज़्यादा चाहिए |

मांगते हैं हक़ हमारा चाहिए |





कौन कहता है कि राजा चाहिए |

इस सियासत को पियादा चाहिए |





आयेंगे कब अच्छे दिन तू ही बता ,

कब तलक रखना भरोसा चाहिए |





वो मदारी हम जमूरे हैं फकत ,

हम मरें उनको ये वादा चाहिए |





वायदों के गीत गाये पांच साल ,

खेलने को वो खिलौना चाहिए |





उनकी आँखों ने मुझे बतला… Continue

Added by Abhinav Arun on June 22, 2014 at 7:15am — 25 Comments

भ्रष्टाचार जड़ों में था - डा० विजय शंकर

भ्रष्टाचार जड़ों में था,

वो पत्ते खड़काते रहे , बोले ,

हर पत्ते को खड़का दूंगा ,

भ्रष्टाचार मिटा दूंगा .

पत्ता-पत्ता हिल गया था .

बड़ा शोर औ गुल हुआ था ,

पत्तों का बेइंतहा क्रंदन हुआ था .

हिसाब लगाया गया ,

बड़ा पैसा खर्च हो गया था ,

और नतीजा कुछ नहीं आया था .

पर वे निराश नहीं हुए ,

हताश बिलकुल भी नहीं हुए ,

बोले , पत्ता-पत्ता नुचवा दूंगा .

फिर क्या ,एलान हुआ ,और

पत्ता-पत्ता नोच डाला गया .

पत्ते पुराने थे , पहले से गिर… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on June 22, 2014 at 6:27am — 12 Comments

शिकायत है (गज़ल)

वज्न ~ 1222 1222 122

शिकायत है, नही कुछ भी जियादा

मुहब्बत है, नही कुछ भी जियादा

.

करे वह वार मुझ पे पीठ पीछे

अदावत है, नही कुछ भी जियादा

.

बदलते रंग क्यों गिरगिट के जैसे

ये आदत  है, नही कुछ भी…

Continue

Added by वेदिका on June 22, 2014 at 1:30am — 14 Comments

नवगीत

जाने कहाँ गईं ?

**************

नींदों से सपनों की फसलें

जाने कहाँ  गईं ?

==

मलमल के बिस्तर से तन को

हमने जोड़ रखा

उसके ऊपर मन-चादर को

कस के ओढ़ रखा

रातों की महफ़िल से गज़लें

जाने कहाँ गईं ?

==

बार-बार अँखियों के मैंने

परदे बंद किये

सपनों वाली नींद बुलाने

जप हरचंद किये

नियति -नटी सपनों के खत ले

जाने कहाँ गईं ?

==

बेटी…
Continue

Added by AVINASH S BAGDE on June 22, 2014 at 12:30am — 9 Comments

कुण्डलिया छन्द -- (पहला प्रयास )

लग कर छाती से हुए, बडे और बलवान
निज जननी के सामने, ठाडे सीना तान
ठाडे सीना तान , लाज आये ना उनको
बेशर्मी ली लाद , न भाये अपने मन को
आहत है माँ खूब, दुखी रातों में जगकर
चूसे मां का खून , पले जो छाती लगकर ||

मीना पाठक 
मौलिक अप्रकाशित 

Added by Meena Pathak on June 21, 2014 at 11:13pm — 17 Comments

तू मेरी मोहब्बत है,तू मेरी इबादत है।

तू मेरी मोहब्बत है,तू मेरी इबादत है।

कैसे मैं तुझसे कहूँ,मुझे तेरी ज़रुरत है।



हरदम मैं लूँ नाम तेरा,चाहे शाम हो या सवेरा,

ये तुझको भी है मालूम, मुझे तेरी आदत है।



पाने को न कुछ पाया,जो तुझको नहीं पाया,

फिर चाहे जहाँ भर की,मेरे पास ये दौलत है।



ये साँस भी छिन जाये,जो पास न तू आये,

आकर आगोश में ले ले,बस इतनी हसरत है।



तुझसे ज़िंदगानी मेरी,तुझसे ही कहानी मेरी,

तेरे बिन जीना कैसा,कह दे,मरने की इज़ाज़त है।

 

'सावित्री राठौर'

[मौलिक…

Continue

Added by Savitri Rathore on June 21, 2014 at 8:36pm — 6 Comments

गज़ल

कभी का मर चुका हूँ मैं महज साँसें ही चलती है

मेरी पथरा गयी आँखें मगर फिर भी बरसती हैं

के अक्सर खींच लाती है मुझे लहरों की ये मस्ती

मगर मँझधार में लाकर ये लहरें क्यों मचलती हैं

बहुत है दूर वो मुझसे नहीं आना कभी उसको

मगर दीदार को आँखें न जाने क्यों तरसती हैं

कहीं गुमनाम हो जाऊँ ये शहरा छोड कर मैं भी

मगर दुनियाँ तेरे जैसी तेरे जैसी ही बस्ती हैं

मेरा ये बावफा होना किसी को रास ना आया

सभी की आदतें आपस में…

Continue

Added by umesh katara on June 21, 2014 at 7:00pm — 4 Comments

कविता ,,,,,,,, क्योंकि अक्सर ,,,,,,,,

लोग अक्सर राह चलते

देखकर मादा शरीर

ठिठक जाते हैं

और लेने लग जाते हैं जायजा

शरीर के उतार चढ़ाओं का

खोजने लगते हैं परिस्थितियाँ

जहाँ मादा शरीर उपभोग की वस्तु हो जाए

अक्सर वो ही लोग

देख कर गर्भों में मादा शरीर

डर जाते हैं

नष्ट कर उसे

आश्वस्त हो जाते हैं

क्योंकि अक्सर

लोग अपनी ही नज़र से

तोलते हैं दुनिया को

,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,



गुमनाम… Continue

Added by gumnaam pithoragarhi on June 21, 2014 at 1:13pm — 3 Comments

सरस्वती वंदना -गोपाल नारायन

आपगा सरस्वती

मंत्र है प्रमाण इस भारत मही में कभी

 वाणी की प्रतीक देवि आपगा यशस्विनी  I

बहती थी मंद -मंद  सींचती थी छंद -छंद

बोलती थी कल , कल -कंठ से मनस्विनी  I

स्नान करते थे आर्य, पान करते थे वारि

ध्यान  धरती  थी  यह धारिणी तपस्विनी I

आज यदि होती वह , मेरे पाप धोती वह

  ज्ञान  बीज  बोती,   मेरी  मातः पयस्विनी  I

 

 

(मौलिक और अप्रकाशित )

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 21, 2014 at 1:00pm — 14 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल - कोई कश्ती नदी में ज्यूँ रवाँ है ( गिरिराज भंडारी )

1222      1222      122

कोई खामोश, मेरा हम ज़बाँ है

बड़ी चुप सी ,मेरी हर दास्ताँ है

 

कोई अब साथ आये या न आये

अकेलेपन से मेरा कारवाँ है

 

कहीं है आदमी में उस्तवारी    

कहीं हर शख़्स लगता नातवाँ है 

 

ये मीठी झिड़कियाँ ज़ारी हैं जब तक

तभी तक कोई रिश्ता दरमियाँ है

 

यहाँ कब ज़िन्दगी हरदम है जीती

यहाँ तो मौत ही बस जाविदाँ है

 

दिया बाती कहीं से खोज लाओ

उजाला चंद पल का मेहमाँ…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on June 21, 2014 at 10:36am — 23 Comments

फुसफुसाहट नफरतों की तेज फिर होने लगी - ग़ज़ल

2122  2122  2122  212

**************************

एक भी उम्मीद उन  से  तुम न पालो दोस्तो

रास्ता  इन  बीहड़ों  में  खुद  बना  लो दोस्तो

***

बंद दरवाजे जो  दस्तक से  नहीं खुलते कभी

इंतजारी  से  तो  अच्छा  तोड़  डालो  दोस्तो

***

फुसफुसाहट नफरतों की तेज फिर होने लगी

प्यार का परचम  दुबारा तुम उठा लो दोस्तो

***

होश में तो  कह  रहे  थे ‘साथ  हम तेरे खड़े’

गिर रहा मदहोशियों  में अब सॅभालो…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 21, 2014 at 9:30am — 18 Comments

अंतःकरण की शुद्धि

अंतःकरण की शुद्धि

सुबह में , शाम में,

वर्षा और घाम में,

जीवन के साम-दाम में,

अंतःकरण की शुद्धि चाहिए,

देवता के पूजन में ,

मन्त्रों के गुंजन में,

सज्जन और दुर्जन में,

अंतःकरण की शुद्धि चाहिए,

राग-वैराग्य में,

स्वार्थ और त्याग में ,

जीवन सौभाग्य में,

अंतःकरण की शुद्धि चाहिए,

दुःख में क्लेश में

किसी भी वेश में ,

दुर्भाग्य और भाग्य में,

अंतःकरण की शुद्धि चाहिए,

डॉ. विजय प्रकाश शर्मा …

Continue

Added by Dr.Vijay Prakash Sharma on June 20, 2014 at 8:08pm — 15 Comments

सूचना क्रांति (लघुकथा) रवि प्रभाकर

कुछ ही मिनट पहले विदेश में जन्मे अपने पौत्र की तस्वीरें इंटरनेट पर देख रहे दंपति को खुशी से झूमते देखकर  कोने में बैठा घर का नौकर भी अपने बेटे के कद काठ के बारे कयास लगा रहा था जिसे वह कुछ साल पहले गांव छोड़कर नौकरी के लिए शहर आ गया था।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by Ravi Prabhakar on June 20, 2014 at 10:30am — 11 Comments

चलो एक वृक्ष लगाएँ !

चलो एक वृक्ष लगाएं

करें पुण्य का काम

जो दे हम सब को

जीवन भर आराम

चलो एक वृक्ष लगाएं |



धरती माँ का गहना है ये

है ये उनका रूप श्रृंगार

पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा

देता हमको जीवन दान

चलो एक वृक्ष लगाएं |



बरगद, पीपल, नीम, पाकड़

तुलसी, अक्षय, पारिजात

ये सब है उपहार प्रकृति का

मिला है सबको एक समान

चलो एक वृक्ष लगाएं |



जल का संग्रह करना है अब

सोच लें गर हम सब इक बार

वर्षा जल संचित कर के हम…

Continue

Added by Meena Pathak on June 20, 2014 at 8:30am — 13 Comments

कहा किसने कि राहे इश्क़ में धोका नहीं है

कहा किसने कि राहे इश्क़ में धोका नहीं है

यहाँ जो दिखता है वो दोस्तों होता नहीं है

 

जो कुछ पाया ज़माने की नज़र में था हमेशा

गंवाया जो उसे इस दुनिया ने देखा नहीं है

 

गुज़ारी है वफ़ादारों में सारी उम्र मैंने

दग़ा करना किसी से भी मुझे आता नहीं है

 

मुझे मालूम है इक दिन जुदा होना है सबको

मगर ऐसे भी कोई दूर तो जाता नहीं है

 

मुहब्बत के सफ़र में हमसफ़र जितने थे मेरे

कोई भी साथ थोड़ी दूर चल पाया नहीं…

Continue

Added by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 20, 2014 at 12:37am — 10 Comments

प्रेमगीत : आँखों ने ख़्वाबों के फूल चुने

पलकों ने चुम्बन के गीत सुने

आँखों ने ख़्वाबों के फूल चुने

 

साँसें यूँ साँसों से गले मिलीं

अंग अंग नस नस में डूब गया

हाथों ने हाथों से बातें की

और त्वचा ने सीखा शब्द नया

 

रोम रोम सिहरन के वस्त्र बुने

 

मेघों से बरस पड़ी मधु धारा

हवा मुई पी पीकर बहक गई

बाँसों के झुरमुट में चाँद फँसा

काँप काँप तारे गिर पड़े कई

 

रात नये सूरज की कथा गुने

-------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 19, 2014 at 9:24pm — 18 Comments

एक ताज़ा नवगीत -----जगदीश पंकज---मैं स्वयं निःशब्द हूँ,



एक ताज़ा नवगीत -----जगदीश पंकज

मैं स्वयं निःशब्द हूँ,

निर्वाक् हूँ

भौंचक्क ,विस्मित

क्यों असंगत हूँ

सभी के साथ में

चलते हुए भी

खुरदरापन ही भरा

जब जिंदगी की

हर सतह पर

फिर कहाँ से खोज

चेहरे पर सजे

लालित्य मेरे

जब अभावों के

तनावों के मिलें

अनगिन थपेड़े

तब किसी अवसाद

के ही चिन्ह

चिपकें नित्य मेरे

मुस्कराते फूल

हंसती ओस

किरणों की चमक से …

Continue

Added by JAGDISH PRASAD JEND PANKAJ on June 19, 2014 at 7:30pm — 34 Comments

बरसाती बादल आ ही गए

बरसाती बादल आ ही गए, ठंढक थोड़ी पहुंचा ही गए.

तपती धरती, झुलसाते पवन, ऊमस की थी घनघोर घुटन,

खाने पीने का होश नहीं, 'बिजली कट' और बढ़ाते चुभन

अब अम्बर को देख जरा, बिजली की चमक दिखला ही गए... बरसाती बादल आ ही गए,

सरकारें आती जाती है, बिजली भी आती जाती है,

वादों और सपनों की झोली,जनता को ही दिखलाती है

पर एक नियंता ऐसा भी, बस चमत्कार दिखला ही गए... बरसाती बादल आ ही गए,

अंकुरे अवनि से सस्य सुंड, खेतों में दिखते कृषक…

Continue

Added by JAWAHAR LAL SINGH on June 19, 2014 at 3:30pm — 12 Comments

गजल- चल रही है आँंधियॉं...

गजल- चल रही है आँंधियॉं...

बह्र-- 2122 2122 2122 212

जिन्दगी है आस्मां हर ओर खालीपन चुभे। 

आजकल की दास्तां हर ओर खालीपन चुभे।।

चॉंद, अपनी चॉंदनी रखता नहीं जब पास में,

मेघ-मावस से जहां हर ओर खालीपन चुभे।1

भोर की लाली चहक कर मॉंगती वर खास है,

सॉंझ को लुटती यहां हर ओर खालीपन चुभे।2

प्यार आँंखों में दिलों में दर्द का दरिया बहे,

डूबती कश्ती शमां हर ओर खालीपन चुभे।3

झॉंकते हैं अब झरोखों से…

Continue

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 19, 2014 at 1:30pm — 19 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service