प्रोषितपतिका मंदिर में स्थित देवता पर फूल चढाने वाली ही थी कि उसका आठ वर्षीय बेटा दौड़ा हुआ आया और हांफते हुए बोला -'मम्मी , पूरे दस महीने बाद आज डैडी घर आये है i' इतना कह्कर लड़का वापस चला गया i माँ ने झटपट पूजा संपन्न की और घर की ओर भागी i उसके पहुचते ही बेटे ने टिप्पड़ी की माँ आपके दोनों पैरो में अलग - अलग किस्म की चप्पले है i माँ ने झेप कर पैरो की ओर देखा फिर लाज की एक रेखा सी उसके चेहरेपर दौड़ गयी i पतिदेव शरारत से मुस्कराये i
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 29, 2014 at 1:08pm — 24 Comments
221 2121 1221 212
ताज़ा लहू के सुर्ख़ निशाँ छोड़ आया हूँ
हर गाम एक किस्सा रवाँ छोड़ आया हूँ
वो रोज़ था, मुझे न मयस्सर ज़मीं हुई
ये हाल है कि अब मैं जहाँ छोड़ आया हूँ
परदेस में लगे न मेरा मन किसी तरह
बच्चों के पास मैं दिलो-जाँ छोड़ आया हूँ
उड़ती हुई वो ख़ाक हवाओं में सिम्त-सिम्त
जलता हुआ दयार धुआँ छोड़ आया हूँ दयार= मकान
मौजूदगी को मेरी तरसते थे रास्ते
चलते हुये उन्हें…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on June 29, 2014 at 11:59am — 24 Comments
मन की...
तपती धरा पर
कुछ बूंदें ही बारिश की
यूँ पड़ी..
न कोई राहत ,न ही सौंधी सी महक
सिर्फ बेचैनी और उमस
कहीं संवेदनाओं की मिट्टी
पत्थर तो नहीं हो गई
या वर्ष भर के
लम्बे विरह से
मिलन की ,भूख-प्यास चाहती हो
खूब टूट-टूट कर
बरसें ये बादल
हाँ..! यही सच है
शायद..
मन भी यही चाहता है.
जितेन्द्र’गीत’
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Added by जितेन्द्र पस्टारिया on June 29, 2014 at 11:00am — 22 Comments
हे भाग्य विधात्री, जन सुख दात्री, मातु भारती, वंदन है ।
मां माटी तोरी, सौंधी भोरी, रज कण माथे, चंदन है ।।
गिरि हिम आच्छादित, करते प्रमुदित, मुकुट मणी सा, सोहत है ।
धरा मनोहारी, मातु तुम्हारी, हरि हर को भी, मोहत है।।
...............................................................
मौलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on June 29, 2014 at 9:14am — 10 Comments
बहर - 2122 / 1212 / 2122
रेत पर किसके नक्शे पा ढूँढता हूँ !
ज़िंदगी क्यूँ तेरा पता ढूँढता हूँ !!
किस ख़ता की सज़ा मिली मुझको ऐसी
माज़ी में अपने ,वो ख़ता ढूँढता हूँ !!
य़क सराबों के दश्त में खो गया मैं
अब निकलने का रास्ता ढूँढता हूँ !!
दौरे गर्दिश में संग ,गर चल सके जो
कोई ऐसा मैं हमनवा ढूँढता हूँ !!
रौशनी थी मुझे मयस्सर कब आखिर
फिर भी क्यूँ कोई रहनुमा ढूँढता हूँ !!
.
चिराग़…
ContinueAdded by Kedia Chhirag on June 28, 2014 at 1:00pm — 13 Comments
आज मैंने छूट्टी दे दी है -
अनगिनत दुखों को, बेचैनियों को
ज़िंदगी के अभावों और अनुभवों को
सगे-संबंधी के रिश्तों की गठरी को
अपने नाम - शोहरत के बोज को भी
जगमगाहट भरी भौतिकता की लाईट बंद
अपने नियमों - आग्रहों से दु:खी होनेवाले को
अपने साथी-संगाथियों से हुई अनबन…
Added by Pankaj Trivedi on June 27, 2014 at 9:00pm — 10 Comments
प्रायश्चित करना चाहिए
गुरु द्रोण को...
जिन्होंने अपने ज्ञान को
सीमित रखा उन महाराजा के
वंशजों के लिए और
ज्ञान से वंचित रहने लगा
वो वनवासी !
जिसने सिर्फ मिट्टी के
गुरु को स्थापित किया
और धनुर्विद्या में
महारत हांसिल की |
* * *
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by Pankaj Trivedi on June 27, 2014 at 9:00pm — 8 Comments
Added by Ravi Prabhakar on June 27, 2014 at 3:40pm — 12 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on June 27, 2014 at 10:51am — 17 Comments
२१२२ ११२२ २१२२
कुछ जलाना तो चिरागों को जलाओं
पी के तम को ये जहाँ रोशन बनाओ
चल पड़ा है वो मसीहा जग बदलने
राह से कांटे सभी उसको हटाओ
आज चिलमन है हमारे दरमिया क्यों
नाजनीनो यूं न हमको तुम सताओ
सब की हम पर ही नजर है बज्म में अब
जाम नजरों से हमें छुपकर पिलाओं
है सबब कोई खफा जो हमसे हो तुम
बेकली दिल की बढ़ी कुछ तो बताओ
बात बज्मों में निगाहें ही करेंगी
तुम भी जो…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on June 26, 2014 at 2:32pm — 20 Comments
रक्त पिपासु कीड़ा है नाम!
दर्द देना उनका है काम!!
कहें दर्द को कम करता जी!
वाह हमारे नेता जी!!
स्वेत वस्त्र पर दिल है काला!
गरीबोँ का खाते निवाला!!
फ़िर भी वो भूखा रहता ज़ी!
वाह हमारे नेता जी!!
जनता के पैसे खा जाते !
फ़िर भी सब को आँख दिखाते !!
मै तो सज्जन हूँ कहता जी!
वाह हमारे नेता जी!!
बोलबचन बस झूठे वादे!
गंदे इनके सदा इरादे!!
बिन बुलाया भूत दीखता जी!
वाह हमारे नेता…
Added by ram shiromani pathak on June 26, 2014 at 2:30pm — 10 Comments
1222 1222 122
कहीं अब झाँकती है रोशनी भी
कहीं बदली लगी थोड़ी हटी भी
शजर अब छाँव देने लग गये हैं
फ़िज़ा में गूंजती है अब हँसी भी
निशाँ पत्थर में पड़ते लग रहे हैं
अभी है रस्सियों में जाँ बची भी
जहाँ चाहत मरी घुट घुट, वहीं पर
नई चाहत कोई दिल में पली भी
मिलेंगी शाह राहों से ये गलियाँ
गली से रिस रही है ये खुशी भी
मरे से ख़्वाब करवट ले रहे हैं
नज़र आने लगी है…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on June 26, 2014 at 1:30pm — 19 Comments
1222 1222 1222 1222
********************************
भला हो या बुरा हो बस, शिकायत फितरतों में है
वो ऐसा शक्स है जिसकी बगावत फितरतों में है
**
रहेगा साथ जब तक वो चलेगा चाल उलटी ही
भले ही दोस्तों में वो, अदावत फितरतों में है
**
उसे लेना नहीं कुछ भी बड़े छोटे के होने से
खड़ा हो सामने जो भी, नसीहत फितरतों में है
**
हुनर सबको नहीं आता हमेशा याद रखने का
भुलाए वो किसी को क्या, मुहब्बत फितरतों में है…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 26, 2014 at 11:00am — 25 Comments
दिल के मिले ना दाम बाजार में
खुद को किया नीलाम बाजार में
दो वक़्त की रोटी जुटाने में भी
जेबें हुई नाकाम बाजार में
औरत ने अपना चीर खुद छोड़ा है
देखें खड़े ये श्याम बाजार में
अब दाल रोटी मुश्किलों से मिले
कैसे खरीदें आम बाजार में
थे पेट भूखे जिनको भरने को ही
कमसिन गुजारे शाम बाजार में
२२१२ २२१२ २१२
मौलिक व अप्रकाशित
Added by gumnaam pithoragarhi on June 26, 2014 at 10:30am — 4 Comments
सच-झूठ,दिन-रात
बनाते रहते हैं लोग.
औरत और आदमी को
अलगाते रहते हैं लोग.
हर रोज जीवन को
उलझाते रहते है लोग.
कभी बनाते है भोग्या
तो कभी चढ़ाते हैं भोग.
नर-नारीपूरक हैं,
नही समझ पाते लोग.
दोनो का सम- भाव हो
कब आएगा यह संजोग?
विजय प्रकाश शर्मा
मौलिक और अप्रकाशित
Added by Dr.Vijay Prakash Sharma on June 25, 2014 at 9:00pm — 12 Comments
सावन का था महीना ......
वो आ के छम्म से बैठी मेरे करीब ऐसे
बरसी हो बादलों से सावन की बूंदें जैसे
सावन का था महीना
मदहोश थी ...हसीना
गालों पे .लग रही थी
हर बूँद ..इक नगीना
आँचल निचोड़ा उसने ..मेरे करीब ऐसे
बरसी हो बादलों से ख़्वाबों की बूंदें जैसे
पलकें झुकी हुई थीं
सांसें ..रुकी हुई थीं
लब थरथरा .रहे थे
पायल थकी हुई थी
इक इक कदम वो मेरे आई करीब ऐसे …
Added by Sushil Sarna on June 25, 2014 at 7:30pm — 14 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on June 25, 2014 at 4:49pm — 18 Comments
हे भगवन वर दीजिए, रहे सुखी संसार |
घर परिवार समाज पे, बरसे कृपा अपार ||
दीन दुखी कोई न हो, ना सूखे की मार |
अम्बर बरसे प्रेम से, भरे अन्न भण्डार ||
कृपा करो हे शारदे, बढ़े कलम की धार |
अक्षर चमके दूर से, शब्द मिले भरमार ||
बेटी सदन की लक्ष्मी, मिले उसे सम्मान |
रोती जिस घर में बहू, होती विपत निधान ||
मीना पाठक
मौलिक अप्रकाशित
(दोहों पर एक छोटा सा प्रयास है )
Added by Meena Pathak on June 25, 2014 at 12:00pm — 27 Comments
पंखुड़ियाँ सब कुचल दिए
===============
एक कली जो खिलने को थी
कुछ सहमी सकुचाई भय में
पंखुड़ियाँ सब कुचल दिए
------------------------
कितनी सुन्दर धरा हमारी
चंदन सा रज महके
चह-चह चहकें चिड़ियाँ कितनी
बाघ-हिरन संग विचरें
हिम-हिमगिरि वन कानन सारे
शांत स्निग्ध सब सहते
महावीर थे बुद्ध यहीं पर
बड़े महात्मा, हँस सब शूली चढ़ते
स्वर्ग सा सुन्दर भारत भू को
पूजनीय सब बना गए
पर आज ..
एक…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 25, 2014 at 11:20am — 12 Comments
याद की छाई घटाये चाँद उनमे खो गया I
रोते-रोते थक गया तो नील नभ पर सो गया I
ह्रदय सागर की लहर पर ज्वार का छाया नशा
स्वप्न के टूटे किनारे चांदनी में धो गया I
पर्वतो के श्रृंग पर है शाश्वत हिम का मुकुट
मौन के सम्राट का भी ह्रदय प्रस्तर हो गया I
देखकर इस देह के पावन मरुस्थल का धुआं
एक सहृदय रेत में कुछ आंसुओ को बो गया I
कल्पना के कलश में करुणा अभी 'गोपाल'…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 24, 2014 at 9:00pm — 43 Comments
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